शुक्रवार 3 जुलाई की सुबह एक शोक की ख़बर लिए आई। प्रख्यात डांस डायरेक्टर सरोज ख़ान के निधन की ख़बर। “धक-धक गर्ल” माधुरी दीक्षित को अपने इशारों पर नचाने वाली कोरियोग्राफर सरोज ख़ान का जन्म 22 नवंबर, 1948 में हुआ था। सरोज ख़ान ने 200 से भी ज्यादा फिल्मों में डांस कोरियोग्राफ किया है। उनका असली नाम निर्मला किशनचंद साधु सिंह नागपाल है। सरोज ने सरदार रोशन ख़ान से शादी की थी, जिसके बाद उनका नाम सरोज ख़ान पड़ गया। सरोज की जोड़ी सबसे ज्यादा माधुरी दीक्षित के साथ जमी। उन्होंने माधुरी के लिए “एक दो तीन”, “तम्मा तम्मा लोगे”, “धक धक करने लगा” जैसे सुपरहिट गाने कोरियोग्राफ किए। 2014 में सरोज ख़ान ने फिल्म “गुलाब गैंग” में माधुरी के साथ एक बार फिर काम किया। सरोज ने “नच बलिए”, “झलक दिखला जा” और “उस्तादों के उस्ताद” जैसे डांस रिएलिटी शो भी जज किए। टीवी पर उनका शो “नचले वे विद सरोज ख़ान” भी खासा लोकप्रिय हुआ था। 2012 में उन पर एक डॉक्यूमेंट्री “द सरोज ख़ान स्टोरी” भी रिलीज हुई थी। सरोज ख़ान की ज़िंदगी से जुड़े कुछ मुद्दों पर हीरेंद्र झा ने उनसे बातचीत की थी। यह बातचीत साल 2015 में प्रकाशित हुई थी लेकिन, आज भी यह उतनी ही प्रांसगिक है।
हीरेंद्र: क्या कभी आपने सोचा था कि आप कभी डांस डायरेक्टर बनेगी?
सरोज: कभी नहीं! हमलोगों की फैमिली बहुत ही ऑर्थोडॉक्स फैमिली है। हमारे यहाँ न कोई गवैया है, न नाचने वाला है, न कोई पेंटर है और न ही कोई आर्टिस्ट है। मेरे मम्मी-पापा रिफ्यूजी बनकर यहाँ इंडिया आए थे। तब मैं माँ के पेट में थी। यहीं 22 नवंबर 1948 को मेरी पैदाइश हुई।
मेरी माँ ने मुझे बताया था कि जब मैं तीन साल की थी तब मैं अपनी परछाई देख कर नाचा करती थी। तो माँ परेशान मुझे डॉक्टर के पास लेकर गयी तब डॉक्टर ने कहा कि कोई चिंता की बात नहीं है ये तो अच्छी बात है, आपकी बेटी डांस करती है। फिर उसी डॉक्टर ने मुझे इंडस्ट्री में इंट्रोडुस करवाया और तीन साल की उम्र में एक चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में मेरा करियर शुरू हो गया। फिल्म का नाम था नज़राना। उसके बाद कुछ सालों का ब्रेक फिर मैं दस से बारह की उम्र में ग्रुप डांस करती रही फिल्मों में। और तभी दक्षिण के एक जाने-माने डांस मास्टर सोहन लाल ने मुझे परफॉर्म करते देखा और फिर उन्होंने मुझे अपना असिस्टेंट चुन लिया। वे पहले आर्टिस्ट्स जिन्हें मैंने डांस स्टेप सिखाया वो थे बैजंती माला और शम्मी कपूर। पहले तो उन्होंने मुझसे साथ डांस सीखने से मना कर दिया कहा कि अब बच्चों से भी सीखना पड़ेगा तब मेरे गुरूजी ने कहा की वो जितना डांस करती है आप उतना ही कर लो यही बहुत है। फिर उन्होंने मेरा डांस देखा और मेरे फैन बन गये। मैंने बाद में उनके साथ कई स्टेज शोज किये। जब तक वे इंडस्ट्री में रहे मैं ही उनकी फिल्में करती रही। उसी तरह धीरे-धीरे मेरा करियर बनता रहा। फिर मुझे एक कव्वाली मिला। मैं तरह साल की थी, फिल्म का नाम था दिल ही तो है, राजकपूर और नूतन पर फिल्माया गया गीत निगाहें मिलाने को जी चाहता है! ज़बरदस्त हिट साबित हुआ ये गीत। फिर मुझे डांस डायरेक्टर का तमगा मिला। उसके बाद तो ढेरों फिल्में की, दो सौ से भी ज़्यादा।
हीरेंद्र: आप सरोज ख़ान कैसे बनी। उससे पहले आप शायद नागपाल लिखा करती थी?
सरोज: मैं कार्ड खेलना बहुत पसंद करती थी तो कई किटी पार्टी वगैरह में जाती रहती थी। तो मेरी एक दोस्त थे कोका कोला, वे comedian थे। तो उन्होंने मुझे एक दिन सरदार ख़ान से मिलाया । वो गोल्फ खेला करते थे। मैं पहली नज़र में ही अपना दिल दे बैठी और इस तरह से हमारा रिश्ता आगे बढ़ा लेकिन मैंने उनसे कुछ छिपाया नहीं कि मैं दो बच्चों की माँ हूँ और मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन, सरदार ख़ान ने बड़े बड़प्पन से हम सबको अपनाया, मेरे बच्चों को अपना नाम दिया। मेरा बेटा राजू और मेरी बेटी कुकु, जो अब इस दुनिया में नहीं है और वो अपनी दो बेटियां मेरे लिए छोड़ गयी है। इस शादी से पहले मैंने अपने बेटे से पूछा जो वक़्त तेरह साल का था, मैंने उनसे पूछा कि बेटे एक आदमी तुम्हे अपना नाम देना चाहता है , वो तुम्हें अपना बेटा बनाना चाहता है , उसे अपने पिता का कुछ याद नहीं था, वो तो एक पिता पाकर खुश हो गया। तो उसने भी कहा की माँ तुम सही कह रही हो फिर हमने शादी की, फिर उनसे मुझे एक बेटी हुई। जो अभी अरब में है उनके हसबैंड पायलट हैं। मैं तेरह साल की थी जब पापा गुज़र गए। उसके बाद माँ, चार छोटी बहनें और एक छोटे भाई सबको सेटल करने के बाद मैं सेटल हुई।
हीरेंद्र: आपने जब अपना करियर शुरू किया तो महिलाओं के लिए कैसा माहौल था?
सरोज: अलग तरह का माहौल था। उस समय ऐसी ही धारणा थी कि जेंट्स ही डांस सीखा सकता है। तो ये चीज़ उलटी हो गयी, फिर लोगों ने मुझ पर भरोसा करना शुरू कर दिया। फिर श्रीदेवी, माधुरी का दौर आया तो फिर सारी दुनिया ने हमारा जादू देखा। उनके लिए मैं खास रही तो मेरे लिए वे दोनों ही खास रहे। मुझे घर की ज़्यादा चिंता इसलिए नहीं रहती थी क्योंकि हनीफा जब वो बारह साल की थी तब से मेरे साथ है, आज वो दादी बन गयी है उसने मेरे बच्चों का बहुत ध्यान रखा, आज मेरे बच्चों के बच्चों का भी बखूबी ध्यान रख रही है।
हीरेंद्र: आज जिस तरह की डांस देखती हैं आप फिल्मों में उसके बारे में क्या कहेंगी?
सरोज: आज के डांस स्टेप बहुत गंदे हैं इसलिए मैंने अपना काम अब बहुत काम कर लिया है। आज कल सेंशुअस गाने नहीं आते अब वल्गैरिटी ज़्यादा है। नहीं तो मैं स्कूल चलते हैं उसमें मैं बिजी रहती हूँ। आज की पीढ़ी कंटेम्पररी के नाम पर भीख मांगी हुई चीज़ें हैं, हिप होप, हमारा कल्चर कितना रिच है हमें बाहर जाने की ज़रूरत ही नही। हमारे पास हर फेस्टिवल के लिए डांस हैं, विदेश से लोग यहाँ आकर हमसे सीख कर जाते हैं, लेकिन आज बच्चे हिप हॉप सीखेंगे। उन्हें बेसिक्स से मतलब नहीं है। मैंने स्कूल शुरू किया है, सिखाती हूँ बच्चों को।
हीरेंद्र: क्या आज के पेरेंट्स बच्चों को डांस सिखाने के लिए आसानी से तैयार हो जाते हैं?
सरोज: अब तो डांस का ज़बरदस्त क्रेज़ है। वे आज कल तो आपके पैरों को छूते हैं कि इनको डांस सीखा दीजिये। जब मैंने डांस शुरू किया था तो मेरे ससुर के फादर ने हमारे घर आना बंद कर दिया। मरते डैम तक उन्होंने हमारे यहाँ पानी तक नहीं पीया, आज ऐसा नहीं है। आज मेरे स्कूल में ही पांच सौ से ज़्यादा बच्चे हैं जिन्हें हम सीखा रहे हैं।
हीरेंद्र: कोई यादगार पल जो आप हमारे पाठकों से साझा करना चाहेंगे?
सरोज: मुझे याद है तेज़ाब की कामयाबी का जश्न मनाया जा रहा था। एक दो तीन, पिक्चर रिलीज़ हो गयी, सुपर हिट हो गयी। तो उस से पहले मैं आपको बताऊँ फिल्मफेयर डांस डायरेक्टर को अवार्ड नहीं दिया करता था। तो हमने पूछा भी था क्यों? तो उन्होंने कहा कि आप तीन घंटे की फिल्म में पंद्रह मिनट के लिए काम करते हैं तो आपको क्यों अवार्ड दें! लेकिन, तेज़ाब चली एक दो तीन गाने की वजह से ही। तो यहाँ से तस्वीर बदली और पहली बार उनकी तरफ से लेटर आया की सरोज ख़ान हम पहला फिल्मफेयर अवार्ड आपको दे रहे हैं, जो की मुझसे पहले कभी किसी को नहीं मिला था। उसके बाद फिर डांस के लिए भी अवार्ड मिलने लगे। तो तेज़ाब की सिल्वर जुबली पर एक पार्टी थी और सबने माधुरी को रिक्वेस्ट किया की वो इस गाने पर परफॉर्म करे। और उस समारोह में ग्यारह विलन जैसेकि अमरीश पूरी साहब, प्राण जैसों को भी सम्मानित किया जाना था। सब बैठे थे! और माधुरी को नाचना था। दिनों से रिहर्सल हो रहा था। प्रोग्राम के दिन जब परफॉर्म करने का समय आया लड़के-लड़कियां सब स्टेज पर उतर चुके थे और जब माधुरी का टर्न आया तो उसने मुझे धक्का मार दिया फिर मैं स्टेज पर थी। पलट कर देखा तो उसने हाथ जोड़ लिए! मैंने भी बिना समय गंवाए नाचना शुरू किया। नाचती रही। अमित जी, अनिल कपूर सब खड़े होकर तालियां बजाते रहे। बहुत सम्मान मिला सबसे, वो हमेशा याद रहेगी! मेरे लिए डांस से अच्छी दुनिया और कोई नहीं।
हीरेंद्र: आज की लड़कियों के लिए कोई सन्देश?
सरोज: डर के, मायूस होकर मत बैठ जाओ। कुछ करो। कोई किसी का साथ नहीं देता, इसलिए अपने पैरों पर खड़ा होना ज़रूरी है। खुद को मज़बूत बनाओ, पूरी तैयारी से!