एक तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री यह कहते हुए नहीं थकते कि मध्यप्रदेश मेरा मंदिर और यहां की जनता मेरी भगवान है,वहीं दूसरी ओर छतरपुर जिले का प्रशासन एक आदिवासी विकलांग युवक को टका सा जवाब देकर उसके हाल पर जीने के लिए छोड़ देता है।
जिला मुख्यालय से पचास किमी दूर लवकुशनगर ब्लाक के परसनियां गांव का रहने वाले बदनसीब आदिवासी युवक के माता पिता का असमय निधन हो गया है और वह स्वयं एक हादसे का शिकार हो जाने के कारण दो साल से खटिया पर है।वह स्वयं चल फिर नहीं सकता।चार बहिनों के अकेले भाई अंशुल गौंड की दो अविवाहित बहनें और पत्नी किसी तरह से घर चला रही हैं।
बदनसीब अंशुल जिला मुख्यालय पर अनुकम्पा नौकरी मांगने के लिए आया था।इसके पहले वह नौकरी के लिए एसडीएम लवकुशनगर को कई बार आवेदन दे चुका है।उसने कहा कि उसे सहायता नहीं मिली तो वह परिवार सहित आत्मदाह कर लेगा।
अंशुल कलेक्टर से मिलने के लिए दो घंटे तक उनकी कार के पास ही खडा रहा।जैसे तैसे एडीएम ने मेहरबानी कर अपने चपरासी को भेजकर उसे बुलाया और उसकी फरियाद सुनी ।
अंशुल की फरियाद सुनने के बाद एडीएम ने कहा कि उसकी मां संविदा शिक्षक थी अतः नियमानुसार उसे नौकरी नहीं मिल सकती।एडीएम ने अंशुल की समस्या सुनने के बाद भी उन्हें हवा में उडा दिया।अंशुल ने कहा जिस घर में वह रहता है, वह भी खाली करना है।राशन कार्ड भी नहीं है।इस पर एडीएम ने बडी बेशर्मी से जवाब दिया कि यदि सर्वे में नाम होगा तो प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिल सकता है और राशन के लिए जनपद पंचायत से पात्रता पर्ची बनवाना होगी।पात्र होगा तो राशन मिल जाएगा।
एडीएम का जवाब स्वयं यह निर्धारित करते हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं ,जो कुछ करना है वह तुम्हें ही करना होगा।अनुकम्पा नियुक्ति के जवाब में एडीएम ने कहा कि कोई घर से तो नौकरी नहीं दे सकता?
एक तरफ जिला प्रशासन स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और राजस्व मामलों में रोजाना टाप पर पहुंचने का दावा कर रहा है ,वहीं एक विकलांग आदिवासी युवक दो जून की रोटी के लिए साहबों से मिलने के लिए दो घंटे इंतजार करना पड़ता है।
ये जिले की राजनीतिक मजबूरियां हैं कि बडामलहरा चुनाव में करोड़ों रुपए फूंकने वाले राजनितिक दल एक बेसहारा आदिवासी को दो वक्त की रोटी की जुगाड़ भी करने में असहाय महसूस कर रहा है।
इस जिले की जनता को जवाब आपको देना होगा, चुनाव आपको लड़ना है।कलेक्टर -एसपी को नहीं।वो आज यहां हैं।कल कहीं और चले जाएंगे।
अंत में
आज लगातार तीन घंटे तक छतरपुर नगर की सांसे थमी रहीं।हजारों लोग वाहनों में फंसे रहे।महिलाएं और बच्चे सुबकते रहे। न्याय मांगने आए सैकड़ों ग्रामीणों ने आकाशवाणी तिराहे पर धरना देकर पूरे शहर को ही बंधक बना लिया।ऐसी स्थिति रोज ही सामने आ रही है।मुख्यमंत्री जी हो सके तो बुधवार को आप इन सवालों के जवाब जरूर देना।
पुनश्चः ऐसी घटनाओं के बाद भी जो लोग जिला प्रशासन की महाआरती उतारना चाहते हैं,वह तेल और बाती तैयार
सुरेंद्र अग्रवाल