नगर निगम वार्डों के आरक्षण के बाद कुछ जमावटें शुरू हुई थीं। चुनाव लड़ने के ख्वाहिशमंदों ने अपने लिए मुफीद वार्डों की तलाश शुरू कर दी थी। महापौर आरक्षण प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद इस बात को स्वीकार कर लिया गया है कि अब चुनावों की आमद जल्दी ही होने वाली है। जनवरी माह में संभावित चुनावों का फिलहाल ऐलान नहीं किया गया है, इसके लिए तारीखें भी अभी तक तय नहीं हुई हैं, लेकिन चुनाव उम्मीदवारों ने अपनी जमीन तलाश करना और दावेदारी मजबूत करना अभी से शुरू कर दिया है।
राजधानी के पुराने इलाके में इन मेल मुलाकातों से लेकर चाय पार्टियों के दौर तेज हो गए हैं। क्षेत्र में मौजूद करीब 22 वार्डों में से आधे से ज्यादा महिला और आरक्षित वार्ड हैं। चंद अनारक्षित वार्डों को खुद के लिए मुफीद मानते हुए लोगों ने यहां अपने प्रयासों को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है।
इधर आरक्षण के बाद बने हालात के बीच कई उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी का रुख अपनी पत्नियों की तरफ मोड़ दिया है। पुतलीघर निवासी और मप्र मदरसा बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे रफीक अहमद राजा इस क्षेत्र से पूर्व में आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान देख चुके हैं। अब वे अपनी पत्नी फौजिया के लिए वार्ड 14 की दावेदारी जता रहे हैं। भाजपा के लिए बरसों के समर्पण के बदले वे टिकट की दावेदारी पुख्ता मान रहे हैं।
क्षेत्र के मौजूदा पार्षद अब्दुल शफीक के यहां से पलायन कर आरिफ नगर जाने की संभावनाओं ने उनके इरादों को मजबूत किया है। साथ ही यहां महिला प्रत्याशी के तौर पर दावेदारी जताने वाली नाजमा अंसारी को लेकर रफीक के पास आसान वार बाहरी प्रत्याशी के रूप में आने वाला है।
इधर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा से जुड़े जावेद बेग अपनी दावेदारी अब 8 नम्बर वार्ड से करते रहे हैं, लेकिन आरक्षण के बाद बदले समीकरण से उन्होंने खुद को वार्ड 22 की तरफ डायवर्ट कर लिया है। उम्मीद की जा रही है कि वे भाजपा की तरफ से टिकट पाने में कामयाबी हासिल कर लेंगे।
कांग्रेस के टिकटों में बंटवारा
पुराने भोपाल में मौजूद करीब 22 वार्डों के टिकटों के वितरण में अब तक क्षेत्र से इकलौते रहने वाले विधायक आरिफ अकील का दबदबा बना रहता था। यहां के अधिकांश टिकट उनकी पसंद से ही बंटते आए हैं। लेकिन इस बार पुराने भोपाल में दो कांग्रेस विधायकों की मौजूदगी से यहां के टिकटों का बंटवारा दो हिस्सों में विभाजित होने की उम्मीद है। सूत्रों का कहना है कि उत्तर और मध्य विधानसभा के दायरे में आने वाले वार्डों के बंटवारे में आरिफ अकील के हिस्से 12 से ज्यादा वार्ड आने की उम्मीद है और करीब 9-10 वार्डों के टिकट वितरण में मध्य विधायक आरिफ मसूद को पैरवी का मौका मिल सकता है।
चौखट बरदारी का दौर
महापौर से लेकर वार्ड टिकट तक के लिए पार्टी स्तर पर होने फैसले तेजी से सामने आने लगे हैं। वार्ड पार्षद के लिए टिकट का अंतिम फैसला जिलाध्यक्ष की सहमति से होने की खबरों ने लोगों को दोनों पार्टियों के जिलाध्यक्षों की तरफ दौड़ लगाने पर मजबूर कर दिया है। पार्षद प्रत्याशी बनने के इच्छुक लोगों ने दावेदारियों के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
इसके लिए वे जिला और प्रदेश कार्यालय से लेकर पार्टी के बड़े नेताओं तक के चक्कर लगाते नजर आने लगे हैं।
सुगबुगाहट नई पार्टियों की उम्मीद की जा रही है कि इस चुनाव में जहां आम आदमी पार्टी अपने प्रत्याशियों को वार्डों में किस्मत आजमाने उतारेगी, वहीं असद उद्दीन औवेसी की पार्टी एमआईएम को लेकर भी चर्चाएं जारी हैं कि निकाय चुनाव में पार्टी भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराएगी। हालांकि इस मामले में पार्टी ने कोई अधिकृत ऐलान नहीं किया है। इधर संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष शम्सुल हसन बल्ली भी इस चुनाव में अपने प्रत्याशियों को मैदान देने का ऐलान कर चुके हैं।
सबकी उम्मीदें नेताओं से
राजधानी भोपाल में इन दिनों बाहरी आमद बढ़ी हुई है। प्रदेशभर से लोग यहां पहुंचकर अपने क्षेत्रीय मंत्री-विधायक के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। चार इमली, 74 बंगले से लेकर उनके कार्यालयों के आसपास भी लोगों की भीड़ दिखाई देने लगी है। अपने क्षेत्रीय संबंधों को भुनाने भोपाल पहुंचने वाले लोग इस सफर में इस बात का ख्याल भी रखते नजर आ रहे हैं कि उनका प्रतिद्वंदी इस यात्रा से बेखबर रहे। इसके चलते वे अपने साथ वे ऐसे लोगों को लेकर आ रहे हैं, जो उनके लिए अतिविश्वनीय हैं और उनके हितैषी हैं।
सोशल मीडिया ने संभाला मोर्चा
पार्टी के बैनर तले और आजाद उम्मीदवार के तौर पर वार्ड की दावेदारी कर रहे अधिकांश लोगों ने सोशल मीडिया को अपना हथियार बना लिया है। इसके चलते बड़ी तादाद में नए व्हाट्सअप गु्रपों ने आकार ले लिया है। फेसबुक पेज पर भी इसी तरह के संदेशों को सजाया जाने लगा है। साथ ही चुनाव चाहतमंदों ने अपने व्हाटसअप स्टेटस को भी प्रचार का माध्यम बना लिया है। सोशल मीडिया प्रचार के बीच उन डिजाइनरों का काम भी चल पड़ा है, जो छोटी-मोटी डिजाइन और संदेश बनाकर अपना काम संचालित कर रहे थे। चुनावी चकल्लस ने उनके कामकाज को रफ्तार दे डाली है।