बिहार में मीडिया का एक धड़ा अक्सर यह पूर्वानुमान लगाता रहता है कि लालू-नीतीश गठबंधन कभी भी दरक सकता है. पिछले ग्यारह महीने में ऐसे कई अवसर आए, जब सोशल मीडिया में भी ऐसे शिगूफे छोड़े गए, लेकिन हर बार ये पूर्वानुमान निराधार साबित होते रहे हैं. विपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी भी गाहे-बगाहे ऐसे बयान देते रहे हैं और उनके इस बयान को आधार बना कर कई बार खबरें चलाई जाती रही हैं, जिसे पढ़ने-सुनने से महागठबंधन के हामियों में संशय का वातावरण बन जाता है. पिछले दिनों जब शहाबुद्दीन प्रकरण जोर-शोर से मीडिया में छाया था, तब भी यह आवाज उठी कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के बीच काफी दूरियां बढ़ चुकी हैं.
राजनीति और मीडिया के गलियारे में भी यह चर्चा चलती रही कि लालू और नीतीश के बीच संवाद की खाई बढ़ती जा रही है. इन तमाम अटकलबाजियों पर तब विराम लग गया, जब दिवाली की पूर्वसंध्या पर गठबंधन के तीनों दलों के वरिष्ठतम नेता मुख्यमंत्री आवास पर रात्रि भोज के लिए मिले. इस बैठक में राजद प्रमुख लालू प्रसाद, जदयू अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी के अलावा तीनों दलों के अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हुए.
इस बैठक की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि गठबंधन के तीनों घटक दलों ने एक स्वर में यह फैसला किया कि अब सभी दलों की महीने में एक बार संयुक्त बैठक होगी. इतना ही नहीं, यह भी तय किया गया कि समय-समय पर सरकार और गठबंधन दलों के बारे में पैदा की जाने वाली अटकलबाजियों और इससे उत्पन्न संशय को दूर करने के लिए भी पुख्ता कदम उठाए जाएंगे. गठबंधन ने यह भी तय किया कि एक बीस सूत्री कमेटी बनायी जाए, जो सरकार व दलों के बीच सामंजस्य बनाते हुए विकास कार्यों की समीक्षा करे.
यह गौर करने की बात है कि तीनों दलों की यह बैठक तब हुई है, जब शहाबुद्दीन प्रकरण के अलावा राजद से निलंबित विधायक राजबल्लभ यादव व जदयू से निलंबित विधायिका मनोरमा देवी के बेटे रॉकी यादव से जुड़े विवादों के कारण गठबंधन के अंदर, विरोधी दल के नेता, खींचतान के हालात देख रहे थे. यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि राजीव रौशन हत्या मामले में शहाबुद्दीन को मिली जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था, जबकि जद यू की निलंबित विधायिका मनोरमा देवी के बेटे रॉकी यादव, जिन पर एक युवक की हत्या का आरोप है, की जमानत को भी सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था.
इसी तरह राजद से निलंबित विधायक राजबल्लभ यादव, जिन पर एक नाबालिग लड़की के बलात्कार का आरोप है, को भी हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी और उसके कुछ ही दिनों बाद राजबल्लभ की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी थी जिसमें वह लालू प्रसाद के आधिकारिक आवास से बाहर आते देखे गये थे.
बताया जाता है कि राजबल्लभ ने लालू प्रसाद से मुलाकात की थी. ये तीनों मामले गठबंधन सरकार पर विरोधी दलों द्वारा जोरदार हमले का कारण बने. इतना ही नहीं, इन तीनों विवादों के बाद राजनीति और मीडिया के गलियारे में समानांतर रूप से यह चर्चा जोरों पर होने लगी थी कि इन मामलों के कारण लालू और नीतीश के बीच खाई बढ़ गई है. उधर तभी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी के एक बयान ने इन कयासों को और मजबूत कर दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि गठबंधन में रहने या न रहने की आजादी हर दल को है और अगर कोई गठबंधन से बाहर जाना चाहता है, तो जा सकता है.
चौधरी का यह बयान लालू प्रसाद को टारगेट कर दिया गया था. दरअसल यह विवाद तब शुरू हुआ था, जब जेल से बाहर आने के बाद शहाबुद्दीन ने नीतीश कुमार को ‘परिस्थितियों का मुख्यमंत्री’ बताया था और उसके ठीक बाद राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी इस बात को दोहराया था. शहाबुद्दीन और रघुवंश प्रसाद सिंह के इस बयान पर जद यू के आधिकारिक प्रवक्ताओं ने भी परोक्ष रूप से अपनी नाराजगी जाहिर की थी.
इस घटनाक्रम के बाद यह चर्चा जोर पकड़ने लगी थी कि गठबंधन के अंदर हालात ठीक नहीं हैं. हालांकि गठबंधन सरकार पर पैनी नजर रखने वाले विश्लेषकों ने तब भी यह नहीं माना था कि ऐसे विवादों से गठबंधन सरकार की सेहत पर कोई असर पड़ने वाला है. पर अब जब दिवाली की पूर्व संध्या पर लालू-नीतीश-अशोक रात्रि भोज पर मिले, तो ऐसे विवादों पर न सिर्फ विराम लग गया है, बल्कि गठबंधन के अंदर अब कोई बड़ी अड़चन भी नहीं है. यही कारण है कि अब तीनों दल सरकार की एक साल की उपलब्धियों का जायजा लेंगे. वे जनता से रूबरू होंगे और उससे मिले फीडबैक के आधार पर विकास के कार्यों को नयी दिशा भी देंगे.
दरअसल जनता से रूबरू होने और फीडबैक लेने की ये तैयारियां इसलिए भी अहम हैं कि नवम्बर के आखिरी सप्ताह में नीतीश सरकार अपने एक साल का कार्यकाल पूरा कर रही है. इसी बात को ध्यान में रख कर नीतीश कुमार ने ‘निश्चय यात्रा’ की घोषणा भी कर दी है. पिछले दिनों नीतीश ने इस यात्रा की सार्वजनिक घोषणा करते हुए मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह को इस यात्रा की रूप रेखा तैयार करने को कहा. नीतीश अपनी निश्चय यात्रा की शुरुआत 9 नवम्बर से करने वाले हैं. इस यात्रा के दौरान वह राज्य के ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों को कवर करेंगे.
इस दौरान वह पिछले एक वर्ष में किये गये कामों और उपलब्धियों पर लोगों का फीडबैक लेंगे और उसी अनुरूप आगामी योजनाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे. नीतीश की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि नयी सरकार के गठन के बाद उन्होंने अपने दो महत्वपूर्ण वादों पर अमल शुरू कर दिया है. इनमें से एक उनके वे सात निश्चय (हर घर नल का पानी, शिक्षा व रोजगार ॠण, नाला व सड़क निर्माण आदि) हैं, जिनका ऐलान उन्होंने चुनावी घोषणा पत्र में कर रखा था.
जबकि दूसरा और चर्चित फैसला शराबबंदी के कानून को लेकर है, जिसे नीतीश एक नये सामाजिक क्रांति के रूप में देखते हैं. बिहार में पिछले छह महीने से शराबबंदी लागू है. शराबबंदी का नया कानून नीतीश सरकार का सबसे ज्यादा चर्चित और विवादित फैसला रहा है. इस मुद्दे ने पक्ष-विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोप के अलावा अदालती हस्तक्षेप के कारण भी खूब सुर्खियां बटोरीं. ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार अपनी निश्चय यात्रा के दौरान शराबबंदी के फैसले के असर को समझने की कोशिश करेंगे.
वैसे नीतीश कुमार की सत्ता की राजनीति का एक खास पक्ष भी यही रहा है कि वह समय-समय पर सीधे जनता से संवाद करने निकल पड़ते हैं. यही कारण है कि पिछले ग्यारह वर्षों के अपने कार्यकाल में अब तक उन्होंने 9 यात्राएं की हैं. इन यात्राओं के दौरान वह अमूमन आठ से दस दिनों तक राजधानी से बाहर होते हैं. नीतीश की नजर में उनकी यात्रायें कितनी महत्वपूर्ण हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह यह कई बार कहते सुने गये हैं कि उन्होंने अनेक योजनाओं को सीधे जनता से संवाद कायम कर और उनकी शिकायतों के आधार पर लागू की हैं.
इस प्रकार नीतीश कुमार की निश्चय यात्रा उनकी पहले की यात्राओं का विस्तार ही है. नीतीश कुमार की इस यात्रा की खास बात यह भी है कि इस यात्रा की समाप्ति तब होगी, जब उनकी सरकार एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी होगी. स्वाभाविक तौर पर यह उम्मीद की जा रही है कि एक साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद सरकार एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन करेगी और तब नीतीश अपनी यात्रा की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचायेंगे.
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि दिवाली की पूर्व संध्या पर गठबंधन के तीनों घटक दलों के नेताओं ने आपस में मिल-बैठ कर इस धारणा को मजबूत करने की कोशिश की है कि सरकार के अंदर कोई खटपट नहीं है. इस बैठक के द्वारा यह भी मैसेज देने की कोशिश की गई है कि सरकार अपने एक साल के कार्यों को मजबूती से जनता के बीच प्रचारित व प्रसारित कर जनता में उपजने वाले भ्रम को दूर करे.
ऐसा नहीं है कि इस काम की जिम्मेदारी अकेले नीतीश कुमार ने अपने सर पर ले रखी है. कुछ इसी तरह के काम राजद और कांग्रेस जैसे घटक दल भी अपने स्तर पर करने में लगे हैं. राजद नेता व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी भी अपने-अपने स्तर पर इस काम में लगे हैं. तेजस्वी यादव पिछले कुछ दिनों में राज्य के पूर्वी और सीमांचल क्षेत्रों के दौरे कर सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने में लगे हैं. तेजस्वी ने जनसंवाद कार्यक्रम के तहत हाल में सहरसा में कुछ ऐसा ही किया है, जबकि अशोक चौधरी का पटना के अलावा दूसरे शहरों में आयोजित कार्यक्रम इसी रणनीति का हिस्सा है.