कहते हैं सच्चे दिल से लिया गया फैसला चाहे जितना कठिन हो इसे पूरा करने में धीरे-धीरे हर सच्चे आदमी का सहयोग मिलने लगता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब राज्य में पूर्ण शराबबंदी का फैसला लिया, उस समय तो ऐसा लगा कि यह जल्दबाजी में लिया गया राजनीतिक फैसला है और इसके सफल होने के आसार बेेहद कम हैं. लेकिन शराबबंदी को लागू हुए अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ और ऐसा लगने लगा है कि नीतीश कुमार अपने सपने को पूरा करने की राह में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं. अब आलम यह है कि समाज के तकरीबन हर तबके और वर्ग ने नशाबंदी को समर्थन देना शुरू कर दिया है.
हालांकि, नशा करने वाले अभी जुगाड़ तंत्र के जरिए कुछ हासिल कर ले रहे हैं लेकिन लगातार हो रही पुलिसिया छापेमारी से जल्द ही इस जुगाड़तंत्र के टूट जाने के आसार हैं. मुख्यमंत्री कहते हैं कि मैं स्वयं जानता हूं कि यह काम कठिन है लेकिन यह संकल्प पूरा होगा, इसका मुझे पूरा भरोसा है. नीतीश कुमार कहते हैं कि जिस तरह से नशाबंदी की आवाज़ दूसरे राज्यों में उठने लगी है, उससे साफ है कि मेरी नीति और नीयत दोनों ठीक है और जल्दी ही इसका असर पूरे देश में देखने को मिलेगा. बिहार में पूर्ण शराबबंदी का नीतीश कुमार का फैसला अब पूरे देश में एक नजीर बनता जा रहा है.
वैसे तो शराबबंदी ने अपना प्रभाव हर जगह छोड़ा है लेकिन इसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव का आकलन करना यहां बेहद जरूरी हो जाता है. पहले बात सामाजिक प्र्रभाव की ही करते हैं क्योंकि राजनीतिक प्रभाव बहुत हद तक इसी से जुड़ा है. सूबे की आधी आबादी यानी सूबे की महिलाओं का शराबबंदी को व्यापक समर्थन मिल रहा है. प्रत्येक घर में नीतीश कुमार की शराबबंदी की ही चर्चा है. महिलाओं का कहना है कि यदि नीतीश कुमार ने यह कदम कुछ समय पहले उठाया होता तो कई घर उजड़ने से बच जाते. जानकार बताते हैं कि चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने शराबबंदी का ऐलान कर चुनावी जीत का अचूक तीर चला दिया था. महिलाओं के वोट तो पहले भी नीतीश कुमार को मिलते रहे हैं पर पूर्ण शराबबंदी के ऐलान ने महिला वोटरों को पूरी तरह नीतीश कुमार के पाले में कर दिया.
महिलाओं ने नीतीश कुमार के वादे पर भरोसा किया और महागठबंधन के पक्ष में जमकर वोट डाले. मतदान के दिन महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें इसकी गवाह हैं. इन कतारों को देखकर लोगों ने कहा कि लालू के जंगलराज से नाराज़ महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में वोट डाला. लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित धराशाई हो गए और नीतीश कुमार का महागठबंधन दो तिहाई सीटों के साथ सत्ता में आ गया. राजनतिक पंड़ितों का मानना है कि महादलित, अतिपिछड़ा के बाद अब महिलाओं के वोट बैंक पर भी नीतीश कुमार का कब्जा हो चुका है. नीतीश की यही ताकत उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा किरदार बनाऐगी.
नीतीश के हाल के बयानों और क्रियाकलापों से ऐसा दिखने भी लगा है. नीतीश अपने शराबबंदी के कार्यक्रम को पूरे देश में फैलाना चाह रहे हैं. अब वह अपने प्रत्येक भाषण में कह रहे हैं कि शराबबंदी कीअपनी मुहिम को वह देशव्यापी बनाएंगे. कई राज्यों से उन्हें न्यौता भी आया है.
बिहार पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि शराबबंदी के बाद अपराधियों के सिर से जुर्म का नशा उतरने लगा है. हत्या और बलात्कार जैसी वारदातों में गिरावट आई है. यातायात पुलिस के एक मोटे आकलन के अनुसार सड़क हादसों में भी पचास फीसदी की कमी आई है. जहां मार्च में पटना जिले में हत्या के 24 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं शराबबंदी लागू होने के 15 दिनों के बाद महज़ आठ मामले दर्ज किए गए हैं. इसी तरह बलात्कार, डकैती और अपहरण के मामलों में भी कमी आई है. यह हाल केवल पटना जिले का नहीं है, बल्कि बिहार के लगभग सभी जिलों में अपराध कम हुए हैं.
पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि महिला उत्पीड़न के मामले अप्रत्याशित रूप से घटे हैं. महिलाओं के हक़ के लिए काम करने वाली डॉ आशा सिन्हा कहती हैं कि मर्द शराब के नशे में महिलाओं पर ज्यादा अत्याचार करते हैं. अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए वे मारपीट का सहारा लेते हैं. और इसके लिए वह शराब को अपना हथियार बनाते हैं. अगली सुबह यह कहकर समझौता कर लेते हैं कि रात में कुछ ज्यादा पी ली इसलिए यह सब हो गया.
लेकिन अगली रात वे फिर ऐसा ही करते हैं. दरअसल शराब मर्दों को जुर्म करने का साहस देती है. शराब पीकर वे सही-गलत में फर्क नहीं कर पाते और जुर्म कर बैठते हैं. लेकिन शराबबंदी के बाद हालात बदले हैं और रात में घरों का माहौल खुशनुमा होने लगा है. खासकर बच्चों की खुशी का ठिकाना ही नहीं है. वे अब घर लौटे पापा से डांट की बजाय प्यार पा रहे हैं और अपनी पढ़ाई को लेकर उनसे समझ भी रहे हैं.
शराबबंदी के अपने फैसले को लेकर नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत होकर उभरे हैं. विधानसभा चुनाव में लाभ उठाने के बाद अब वह साल 2019 की लड़ाई में अपने इस शस्त्र का जमकर उपयोग करना चाहते हैं. यही वजह है कि यूपी में इसी महीने शराबबंदी को लेकर हो रहे एक बड़े आयोजन में नीतीश शरीक हो रहे हैं. इसी तरह दूसरे राज्यों में भी वे शराबबंदी के लिए अभियान चलाएंगे. जानकार बताते हैं कि शराबबंदी का विरोध कोई भी राजनीतिक दल खुलकर नहीं कर सकता है और इसी का पूरा लाभ नीतीश कुमार को मिल रहा है.
नरेेंद्र मोदी ने शराबबंदी को केवल अपने राज्य गुजरात तक सीमित रखा लेकिन नीतीश कुमार इसे राष्ट्रीय पटल पर रखनेे की मुहिम में जुट गए हैं. शराबबंदी की सौ फीसदी सफलता के मार्ग में अभी ढेर सारी चुनौतियां हैं खासकर सीमाई इलाकों में यह एक कठिन काम है. शराब माफिया सक्रिय हो गए हैं और अपने काले कारनामों को अंजाम देने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं.
ऐसे हालात में अब एक अहम सवाल यह कि क्या बिहार सरकार इस क़ानून को लागू रख पाने में सफल होगी? क्योंकि अभी भी कई ऐसे रास्ते बचे हैं, जिनसे होकर सरकार के इस क़ानून को तोड़ा जा सकता है. यह अलग बात है ऐसा एक दायरे तक ही संभव है. लेकिन इस दायरे के कम से अधिक होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. दूसरा यह कि उत्तर बिहार के कई जिले नेपाल की सीमा से जुड़े हैं.
शराब कारोबारी किसी भी तरह अपना कारोबार करने से बाज नहीं आने वाले है. उत्तर बिहार के पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी व दरभंगा सहित कई जिले ऐसे हैं, जिनकी सीमा नेपाल से लगी है. भारत-नेपाल सीमा के खुले रहने की वजह इन क्षेत्रों में अवैध कारोबारी हर वक्त सक्रिय रहे हैं. वर्तमान में सीमा पर तैनात सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की सक्रियता भी देखी जा रही है. मगर यह कितने दिनों तक कायम रह पाएगी. इसको लेकर संशय बना हुआ है. जानकारों की मानें तो एसएसबी बहुत अधिक दिनों तक भारत-नेपाल सीमा पर शराबबंदी को लेकर जारी फरमान को अमल में नहीं रख सकती.
इसका कारण यह है कि सीमा क्षेत्र में सक्रिय कुछ तत्वों की ज़मात अपने वर्चस्व को कायम करने के लिए एसएसबी के खिलाफ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भड़काकर अपना काम निकालते रहे हैं. एसएसबी की कहीं न कहीं कुछ ऐसी मजबूरियां बनती रहीं हैं कि उसे उक्त लोगों के साथ समझौता करके काम करना पड़ता है. यदि एसएसबी की समझौतावादी विचारधारा कारगर हुई तो उत्तर बिहार के अधिकांश जिलों में नेपाली शराब आसानी से उपलब्ध होने लगेगी. जिससे बिहार सरकार द्वारा लागू क़ानून पर असर पड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है.
वैसे वर्तमान में एसएसबी की सख्ती सीमा पर देखी जा रही है. हालांकि, सीमावर्ती जिला सीतामढ़ी के जिला पदाधिकारी राजीव रौशन व एसपी हरि प्रसाथ एस एवं शिवहर जिला पदाधिकारी राजकुमार और एसपी प्रकाशनाथ मिश्र ने शराबबंदी को पूर्णत: लागू कराने को लेकर कई आवश्यक कदम उठाए हैं. इन जिलों में तो गांवों की गलियों तक प्रशासन की पैनी नज़रें घूम रही हैं. दूसरी ओर बिहार में मौजूद कैंटीनों पर भी सख्त पहरे की दरकार है.
इसका कारण यह है कि शराबबंदी के बाद नशे के आदी लोगों की नजरें सेवा निवृत सैनिकों के शराब कोटे को तलाशने लगी हैं. बिहार में दानापुर सैनिक छावनी के अलावा मुज़फ्फरपुर में मौजूद सेना कैंटीन सहित एसएसबी कैंटीन पर भी उक्त लोगों की नजरें हैं. सैनिकों को प्रतिमाह मिलने वाले शराब के कोटे के उठाव को लेकर जाल फैलाया जाने लगा है. संभव है अगर इस दिशा में कुछ भी सफलता मिली तो सरकारी क़ानून लागू करने का मतलब नहीं रह जाएगा.
इसके अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश से आने वाले वाहनों की जांच नियमित तौर पर कराने की आवश्यकता है. खासकर व्यावसायिक वाहनों पर पैनी नज़र रखना जरूरी है. वर्तमान में बिहार में पूर्ण शराबबंदी का इतना असर है कि सामाजिक स्तर पर लोगों में एकजुटता बढ़ने लगी है. दशकों से समाजिक परंपरा से खुद को अलग कर चुके बुजुर्ग भी एक बार फिर से सक्रिय नज़र आने लगे हैं. शराबबंदी का आलम यह है कि युवा वर्ग भी अब नशे के सेवन से अलग पड़ने लगे हैं. शादी सहित अन्य मांगलिक अवसरों में शराब के नशे में धुत्त लोगों का हंगामा थम गया है.
बारातों में फिल्मी गीतों की धुन पर थिरकने वाले युवाओं के पैर में शराबबंदी की बेड़ियां लग गई हैं. वहीं महिलाओं में उत्साह के साथ सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है. अब जरूरत है इस क़ानून को कायम रखने की. बिहार में लागू शराबबंदी क़ानून की सफलता सूबे के सामाजिक परिवेश को नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है. नशे की लत के कारण अपराध के दल-दल में फंस रहे युवा वर्ग को नई दिशा मिलेगी और अपराध की घटनाओं पर नकेल भी कसेगी. गरीबों की बस्ती में खुशहाली और बच्चों की किलकारी भी गूंजेगी.