पटना के कृष्ण मेमोरियल हॉल में पार्टी के हजारों पदाधिकारियों और नेताओं की मौजूदगी में नीतीश कुमार ने शरद यादव के हाथों से जदयू की कमान अपने हाथों में ले ली. मोटे तौर पर इसे महज एक औपचारिकता कहा गया लेकिन अपने भाषण में नीतीश कुमार ने जिन बातों का उल्लेख किया उससे साफ हो गया कि उनकी राजनीतिक लाइन में कहीं से भी कोई कन्फ्यूजन नहीं है और वह क्या और कैसे चाहते हैं, इसे उनके विरोधी और सहयोगी दोनों समझ लें. आगे शरद यादव की क्या भूमिका होगी इसे भी तय कर दिया गया और देश भर से आए पार्टी पदाधिकारियों को यह संदेश दे दिया गया कि अब समय आ गया है कि जदयू को पूरे देश में मजबूत किया जाए और इसमें सभी की भूमिका अहम है. लगे हाथ शराबबंदी और संघमुक्त भारत का हथियार भी नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के लोगों को थमा दिया. कहा जाए तो राष्ट्रीय परिषद की बैठक में जदयू ने एक अध्याय का समापन किया और एक नए अध्याय का श्रीगणेश कर दिया. पार्टी ने अपने नायक और लक्ष्य को तय कर लिया है.
पार्टी अध्यक्ष के रूप में अपने पहले भाषण में नीतीश कुमार ने बहुत सारे भ्रम दूर करने के प्रयास किए. नीतीश कुमार ने कहा कि जो राजनीतिक पंडित यह समझ रहे हैं कि पीएम पद के लिए मैं अपनी दावेदारी पेश कर रहा हूं तो वे गलत दिशा में अपना दिमाग लगा रहे हैं. देश का अगला पीएम कौन होगा यह वक्त और देश की जनता तय कर देगी. आप और हम दावा करने वाले कौन होते हैं. वैसे भी जो पीएम बनने का दावा करते हैं वे कभी पीएम नहीं बन पाते. नीतीश कुमार ने बातों को और साफ करते हुए कहा कि जब मैं संघमुक्त भारत और भाजपा की सोच का विरोध करने वाले दलों और नेताओं की एकजुटता की बात करता हूं तो मेरी मंशा केवल और केवल यह होती है कि 2019 के संग्राम में नरेंद्र मोदी की वापसी न होने पाए. मेरा पक्का मानना है कि अगर हम भाजपा विरोधी ताकतों को एक मंच पर लाने में सफल रहे तो नरेंद्र मोदी की विदाई तय है. लेकिन जब मैं ऐसी बातों की पहल करता हूं तो मेरे जेहन में यह बात नहीं होती है कि मुझे ही सब लोग नेता मान लें.
पहले सब लोग साथ आएं और भाजपा और संघ से देश के सामने जो खतरा पैदा हो गया है उसका मिलकर मुक़ाबला करें. कौन नेता होगा इसे बाद में देख लिया जाएगा. नीतीश कुमार कहते हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं है, सभी को त्याग करना होगा तब कोई तस्वीर बनेगी. बिहार में हम लोगों ने महागठबंधन बनाया तो मैंने और लालू जी ने त्याग किया. अगर ऐसा नहीं होता तो हम लोग कभी भी भाजपा को नहीं रोक पाते. इस रणनीतिक सफलता को हम लोग पूरे देश में लागू करना चाहते हैं और मैं इसके लिए प्रयास कर रहा हूं. अब सफलता मिलेगी या नहीं मिलेगी यह तो वक्त बताएगा, लेकिन हमारी जिम्मेदारी है कि इस दिशा में मैं अपना प्रयास जारी रखूं. नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में यह साफ कर दिया कि वह बिना किसी पद के लालच के एकता का प्रयास कर रहे हैं.
गौरतलब है कि जैसे ही नीतीश कुमार ने संघमुक्त भारत का नारा दिया वैसे ही यह चर्चा गर्म हो गई कि 2019 में वे खुद को नरेंद्र मोदी के समानान्तर रखना चाहते हैं. लगे हाथों लालू प्रसाद और तारिक अनवर का भी समर्थन नीतीश कुमार को मिल गया. बहस तेज़ हो गई कि नीतीश ने पीएम पद के लिए अपनी दावेदारी तेज़ कर दी और जल्द ही नरेंद्र मोदी बनाम नीतीश कुमार की राजनीतिक जंग का यह देश गवाह बनेगा. जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार ने अभी से ही इस तरह की राजनीतिक लड़ाई के खतरे को पहचान लिया क्योंकि उन्हें लगा कि इससे उनके दोस्त कम और दुश्मन ज्यादा बन जाएंगे और भाजपा विरोधी एकता बनाने में दिक्कत आएगी.
यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने तो कहना भी शुरू कर दिया कि नरेंद्र मोदी के विरोध के लिए मुलायम से बेहतर चेहरा और कोई नहीं हो सकता. नीतीश कुमार को लगा कि अगर दूसरे नेताओं का भी विरोध शुरू हो गया तो उनकी मुहिम शुरू होने से पहले ही मर जाएगी. इसलिए उन्होंने दो टूक कहा, मैं पीएम की दौड़ में नहीं हूं और केवल विपक्षी एकता की बात कर रहा हूं, क्योंकि इसी रणनीति से हमें सफलता मिल सकती है, जिसे बिहार में हमने साबित करके दिखा दिया है. इस मुद्दे पर सफाई देने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि वह शराबबंदी को एक सामाजिक आंदोलन के रूप में पूरे देश में छेड़ना चाहते हैं. बिहार के लोगों ने जिस तरह से इस अभियान को हाथों हाथ लिया है उससे साफ है कि देश भर में इसे सफलता मिलेगी.
नीतीश कुमार यह अच्छी तरह जानते हैं कि इस अभियान का चाहकर भी कोई विरोध नहीं कर सकता, चाहे समर्थक हों या विरोधी. दूसरी बात यह है कि इसी तरह के कुछ कार्यक्रमों को लेकर विपक्षी एकता के लिए माहौल बनाया जा सकता है. नीतीश कुमार इसी पृष्ठभूमि में यूपी और झारखंड में बड़े आयोजन कर रहे हैं. साफ है कि नीतीश कुमार दिल्ली की तरफ बढ़ तो रहे हैं लेकिन पूरी सावधानी के साथ, क्योंकि उनको भी पता है कि एक छोटी सी चूक उनके पूरे अभियान को रसातल में पहुंचा देगी. जहां तक बिहार में विपक्षी पार्टियों का सवाल है तो वे सभी अभी इंतजार करो और देखो की रणनीति पर काम कर रही हैं.
इन पार्टियों की एकमात्र उम्मीद फिलहाल लालू प्रसाद ही हैं. विपक्षी पार्टियों को ऐसा लगता है कि लालू और नीतीश का साथ ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है. शराबबंदी का सारा श्रेय नीतीश कुमार को मिल रहा है. वोट बैंक के हिसाब से इससे राजद को कहीं कोई फायदा मिलता नहीं दिख रहा है. उल्टे इसमें राजद को राजनीतिक तौर पर नुकसान हुआ है, क्योंकि शराब के धंधे में ज्यादातर यादव बिरादरी के लोग ही हैं. भाजपा और उसके सहयोगी दलों को लगता है कि लालू प्रसाद मौके की तलाश में हैं. जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि भाजपाई ख्याली पुलाव पकाते रहें, कहीं कुछ नहीं होगा. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद सामाजिक न्याय के आंदोलन को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं.
दोनों नेताओं की बस यही इच्छा है कि गरीबों का भला हो और बिहार में तेज़ी से विकास हो. भाजपा के लोग सपने देखते रहें. उनको पता होना चाहिए कि वे 2019 में दिल्ली की सत्ता से भी बेदखल हो जाएंगे. नीरज कुमार का दावा है कि सूबे की सरकार पूरे पांच साल मजबूती से चलेगी और आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार तय है. साफ है कि नीतीश कुमार का मिशन-2019 चालू है और इरादा भी साफ है. जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार ने जो राजनीतिक लाइन तय की है उसी पर वह सारे देश में घूमेंगे और विपक्षी एकता का माहौल बनाएंगे. पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद इसमें तेजी आने की उम्मीद है.प