बजट के आकार के लिहाज से किसी भी दो राज्यों की तुलना का बहुत ज्यादा औचित्य नहीं है. क्योंकि हर एक राज्य के अपने आर्थिक संसाधन और राज्य की अपनी जरूरते होती हैं और इसी बात के मद्देनजर बजट बनाया जाता है. लेकिन जब बात बिहार और झारखंड की आयेगी तो इन दो राज्यों की तुलना का औचित्य यह बनता है कि सन 2000 तक दोनों राज्य बिहार का हिस्सा थे.
लिहाजा बिहार के विकास की चर्चा होगी, तो बिहार बंटवारे के बाद दोनों राज्यों में अब तक विकास की तुलना की जा सकती है. ऐसी तुलना का मोटे तौर पर हिसाब दोनों राज्यों के बजट के आकार से किया जा सकता है.
सन 2005 में जब नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली, तो उन्होंने एक परिपाटी विकसित की. यह परिपाटी है, सरकार की एक साल की उपलब्धियों का रिपोर्ट कार्ड पेश करने की. ऐसे में पिछले दस सालों में नीतीश के रिपोर्ट कार्ड पर नजर दौड़ायें, तो हर बार इस बात का उल्लेख जरूर किया जाता है कि जारी वर्ष में राज्य के बजट का आकार क्या है.
हालांकि नीतीश सरकार के रिपोर्ट कार्ड में कहीं भी किसी अन्य राज्य से बिहार की तुलना नहीं की जाती, लेकिन अगर हम झारखंड और बिहार के बजट आकार और इसमें वर्षवार हुई प्रगति को देखें तो यह साफ हो जाता है कि झारखंड ने आर्थिक संसाधनों को जुटाने के मामले में जो प्रगति हासिल की है वह बिहार से काफी पीछे है.
वर्ष 2005 में झारखंड के बजट का कुल आकार 15 हजार करोड़ के करीब था, जो 2016-17 में बढ़ कर लगभग 63 हजार करोड़ का हो गया. यानी दस वर्षों में झारखंड का बजट आकार साढ़े चार गुणा बढ़ा.
वहीं बिहार का बजट आकार इसी अवधि में 22 हजार करोड़ से छलांग लगा कर 1 लाख 44 हजार करोड़ तक पहुंच गया. मतलब सात गुणा से भी ज्यादा. यूं तो यह किसी भी तरह नहीं कहा जा सकता कि बजट के बड़े आकार का मतलब ज्यादा विकास ही है, लेकिन आर्थिक संसाधनों के खर्च का प्रभाव तो राज्य पर पड़ता ही है.
2016 के रिपोर्ट कार्ड में नीतीश सरकार ने राज्य के बजट का उल्लेख बड़ी प्रमुखता से किया है और बताया है कि पिछले दस सालों में राज्य ने बहुत तरक्की कर ली है. जहां तक राष्ट्रीय स्तर की बात है तो देश के विकास के औसत से बिहार के विकास की गति का ज्यादा होना भी नीतीश सरकार के लिए राहत की बात है.
इन सब बातों के अलावा एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि रिपोर्ट कार्ड का न तो कोई वैधानिक महत्व है और न ही कोई अनिवार्यता. रिपोर्ट कार्ड की यह परिपाटी दरअसल सरकार के चेहरे को चमकाने की एक कोशिश है, जिसकी परम्परा पिछले दस सालों से बदस्तूर जारी है.
जाहिर सी बात है, रिपोर्ट कार्ड तैयार करने के लिए सरकार का हर विभागीय अमला काम करता है. वे अपने-अपने विभागों की उपलब्धियों का बखान करके, उसेे राज्य के सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के हवाले कर देते हैं.
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग इन तमाम विभागों की उपलब्धियों को ठोक-बजा कर एक किताबी शक्ल दे देता है. यहां यह भी याद रखने की बात है कि राज्य के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की जिम्मेदारी खुद नीतीश कुमार के पास है, ऐसे में यह स्वाभाविक है कि रिपोर्ट कार्ड के अंतिम रूप को खुद मुख्यमंत्री की स्वीकृति होती है.
लिहाजा 140 पेज के इस रिपोर्ट कार्ड में सरकार की विफलताओं का प्रत्यक्ष उल्लेख अगर कहीं भी नहीं है, तो इसमें आश्चर्य करने जैसी कोई बात नहीं है. इस रिपोर्ट कार्ड के पहले पेज, जिस पर नीतीश कुमार ने अपनी बातें लिखी हैं, से लेकर आखिरी पन्ने तक या तो उन उपलब्धियों को सजाया गया है या उन योजनाओं का उल्लेख किया गया है जिन्हें आने वाले वर्षो में लाया जाने वाला है.
इस रिपोर्ट कार्ड में शराबबंदी का विस्तार से उल्लेख किया गया है. इसमें बताया गया है कि शराबबंदी क्यों महत्वपूर्ण है. इसमें यह भी बताया गया है कि सरकार ने जो वादे जनता से किये थे, उसे पूरा किया गया है.
इस बात का भी विस्तार से उल्लेख किया गया है कि उत्पाद संशोधन अधिनियम 2016 के तहत सरकार शराबबंदी को लागू करने के लिए क्या कर रही है. लेकिन यह बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते भले ही सरकार शराबबंदी को लागू करना अपना धर्म समझती हो, पर शराबबंदी से होने वाले राजस्व हानि की पूर्ति के लिए उसने क्या किया इस पर इस रिपोर्ट कार्ड में खुल कर कोई बात कहने से गुरेज किया गया है.
खास कर के तब भी जब शराब से मिलने वाले राजस्व का आंकड़ा देखें तो पता चलता है कि एक अप्रैल 2016 से पहले राज्य को कमोवेश चार हजार करोड़ रुपये के राजस्व की प्राप्ति शराब या अन्य नशीले पेय से हुई.
यह राज्य के कुल राजस्व संग्रह के 25 प्रतिशत के करीब है. राजस्व संग्रह में एक झटके में आयी इस कमी की भरपाई अगर नहीं होगी, तो स्वाभाविक तौर पर राज्य के बजट आकार से ले कर दूसरी विकास योजनाओं तक पर इसका प्रभाव पड़ेगा. हालांकि व्यवहार में ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार ने इस नुकसान के लिए कदम नहीं उठाया है. पेट्रोल पर अतिरिक्त कर लगा कर इस कमी को पूरा करने की कोशिश के अलावा अन्य करों में भी भारी इजाफा किया गया है.
हालांकि अभी यह अनुमान लगाना आसान नहीं है कि इन प्रयासों से शराब से होने वाली आय की भरपाई हो ही जायेगी. क्योंकि राज्य के सैकड़ों होटल्स, शराबखानों, रेस्टोरेंट्स से मिलने वाले सेवाकरों पर भी शराबबंदी का असर पड़ा है. लेकिन इन बातों का या राजस्व नुकसान का उल्लेख रिपोर्ट कार्ड में न होना इस बात का सुबूत है कि सरकार रिपोर्ट कार्ड में सकारात्मक पक्षों पर ही ध्यान देती है.
Read also : तनाव के चार महीने : कश्मीर में हुर्रियत नेतृत्व का धर्मसंकट
जिस दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने एक साल के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड पेश करना था, उस दिन यानी 20 नवम्बर को कानपुर के निकट भीषण रेल दुर्घटना हो गयी. दुर्भाग्य से यह ट्रेन इंदौर से पटना आने वाली ट्रेन थी, लिहाजा मुख्यमंत्री ने इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया. लेकिन दूसरे ही दिन इस रिपोर्ट को सूचना और जनसम्पर्क विभाग की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया.
चूंकि कार्यक्रम पहले से तय था, इसलिए विपक्षी गठबंधन एनडीए की तरफ से भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने एक दिन पहले ही ‘एक साल, बुरा हाल’ शीर्षक से रिपोर्ट कार्ड जारी किया. मोदी की इस रिपोर्ट कार्ड की खास बात यह है कि उन्होंने इसमें उन बिंदुओं का तथ्यवार जिक्र किया है, जिसका ऐलान नीतीश कुमार ने विगत वर्षों में समय-समय पर कर रखा था.
मोदी ने एक महत्वपूर्ण योजना का उल्लेख किया है, जिसके बारे में नीतीश कुमार पहले अक्सर बोला करते थे. एनडीए सरकार के दौर में यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे, जिन्होंने बड़े ताम-झाम से 1 लाख 52 हजार करोड़ रुपये का कृषि रोड मैप जारी किया था. तब नीतीश यह कहते नहीं थकते थे कि आने वाले वर्षों में बिहार का कम से कम एक व्यंजन तमाम भारतीयों की थाली में होगा.
लेकिन इस वर्ष के रिपोर्ट कार्ड में नीतीश के सात निश्चयों का उल्लेख तो है पर कृषि रोडमैप की उपलब्धियों या आगामी योजनाओं पर आम तौर पर चुप्पी साध ली गयी है. इन बातों के मद्देनजर सुशील मोदी कहते हैं कि उन्होंने इसीलिए सरकार के रिपोर्ट कार्ड से पहले अपना रिपोर्ट कार्ड पेश कर दिया है, ताकि नीतीश कुमार इस मुद्दे पर भी कुछ कहें.
सुशील मोदी ने विपक्ष द्वारा जारी रिपोर्ट कार्ड में इस बात पर भी सवाल उठाया है कि सरकार के सात निश्चय से उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे क्यों गायब हैं. इसी तरह मोदी ने मानव विकास मिशन, दलित विकास मिशन और विजन डॉक्युमेंट 2025 जैसे अहम मुद्दों पर भी सवाल खड़ा किया है.
इन मुद्दों पर राज्य सरकार भले ही कुछ बोलती या नहीं बोलती, लेकिन रिपोर्ट पेश होने वाले कार्यक्रम में उन्हें पत्रकारों द्वारा सवालों पर जरूर घेरा जाता. लेकिन कानपुर रेल दुर्घटना चूंकि इस आयोजन को स्थगित करने का कारण बन गयी इसलिए ये तमाम मुद्दे रखे रह गए.
रिपोर्ट कार्ड की कुछ खास बातें
लोकसेवा के अधिकार कानून के तहत नियत समय में 60 हजार शिकायतों का निपटारा. शौचालय निर्माण, आर्थिक हल युवाओं को बल, स्टुडेंट क्रेडिट कार्ड योजना, मुख्यमंत्री स्वयं सहायता भत्ता योजना, कौशल युवा कार्यक्रम, महिलाओं को नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण, हर घर नल का जल, बिहार स्टार्ट पॉलिसी 2016 और घर-घर बिजली योजना की शुरुआत हुई. उद्योग प्रोत्साहन नीति 2016 लागू हुई.
शराबबंदी के लिए नई उत्पाद नीति को अमल में लाया गया. आपदा नियंत्रण को लेकर रोडमैप तैयार करने वाला बिहार पहला राज्य बना. ग्रामीण नाली-नाला पक्कीकरण योजना शुरू हुई. दस वर्ष में राजस्व संग्रह 3 हजार पांच सौ करोड़ रुपये से बढ़ कर 25 हजार पांच सौ करोड़ हुआ, यानी आठ गुणा इजाफा हुआ है.
प्रत्येक जिले में एएनएम स्कूल और पॉलिटेकनिक कॉलेज व महिला आईटीआई और प्रत्येक जिले में एक-एक इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की जानी है.राज्य में अभी निजी व सरकारी मिला कर 14 मेडिकल कॉलेज हैं. इसके अतिरिक्त 5 नए मेडिकल कॉलेज खोले जायेंगे. इनकी स्वीकृति दी जा चुकी है.बिहार पुलिस अवर सेवा चयन आयोग का गठन. सब इंस्पेक्टर रैंक तक के अफसरों की बहाली इसी आयोगसे होगी.
एनडीए के रिपोर्ट कार्ड में महागठबंधन सरकार फेल
एनडीए के सारे नेताओं ने एक सुर में बिहार की महागठबंधन सरकार को फेल घोषित कर दिया. नेताओं की राय थी कि महागठबंधन आपस में ही लड़ रहा है और विकास के सारे काम ठप हैं. रिपोर्ट कार्ड में एनडीए ने महागठबंधन सरकार से कुछ सवाल भी पूछे.
एनडीए का मुख्यमंत्री से प्रश्न
- जब पहले से ही 1 अणे मार्ग स्थित बंगला निर्धारित है, तो फिर नीतीश कुमार के लिए 7 सर्कुलर रोड स्थित दूसरा बंगला आवंटित करने का क्या औचित्य है?
- नीतीश कुमार बताएं कि मुख्यमंत्री हैं या पूर्व मुख्यमंत्री?
- यदि मुख्यमंत्री हैं, तो क्या इनको सीएम के वेतन के साथ-साथ पेंशन लेने का अधिकार है?
- क्या इनको मुख्यमंत्री रहते हुए पूर्व सीएम के नाते आवास व पीए, पीएस की सुविधाएं भी लेनी चाहिए?
सात निश्चय से जुड़े सवाल
- स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना में नया क्या है?
- हर साल पांच लाख छात्रों को शिक्षा ॠण देने का लक्ष्य क्यों पूरा नहीं?
- चालू वर्ष में 55.1 लाख शौचालय निर्माण के लक्ष्य के विरुद्ध छह माह में 55 हजार की क्यों बने?
- अगले ढाई साल में डेढ़ करोड़ शौचालय निर्माण का लक्ष्य सरकार कैसे पूरा करेगी?
- हर घर नल का जल, योजना का लक्ष्य कैसे पूरा होगा?
- जो जलमीनारें बन चुकी हैं, इनका क्या होगा?
राजनीतिक सवाल
- यदि नीतीश कुमार व लालू प्रसाद में सब कुछ ठीक है, तो जिस प्रकार लालू प्रसाद ने दबाब डाल कर जदयू विधायक अनंत सिंह को पार्टी से निलंबित कराया था, क्या नीतीश कुमार भी लालू पर दबाब डालकर मो. शहाबुद्दीन को राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी व पार्टी से बाहर कराएंगे?
- छह माह से राजद कोटे के मंत्रियों के विभागों के कार्यो की समीक्षा क्यों नहीं हो रही?
- क्या नीतीश कुमार केवल जदयू कोटे के मंत्रियों के मुख्यमंत्री है?
शिक्षा से जुड़े प्रश्न
- पटना कॉलेज के वित्तीय अनियमितता के आरोपी लालकेश्वर प्रसाद सिंह को बिहार बोर्ड में अध्यक्ष क्यों बनाया गया?
- बच्चा राय व लालकेश्वर ने महागठबंधन को संरक्षण की क्या कीमत चुकायी?
- मैट्रिक रिजल्ट में आधे छात्र क्यों फेल हुए?
- दलिल छात्रों की छात्रवृत्ति में कटौती क्यों की गई?
- छात्रवृत्ति घोटाले में क्या विजिलेंस से जांच हुई?
- शिक्षकों को वेतन के लाले क्यों?
सरकार से अन्य सवाल
- ट्रेन में महिला से छेड़खानी के आरोपी सरफराज आलम और लड़की अपहरण के आरोपी कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ के मामले में क्या कार्रवाई हुई?
- जेल से छूटा लड्डन मियांं पत्रकार राजदेव की हत्या के दिन से कैसे फरार हो गया?
- गवाह को धमकाने का आरोपी व जदयू विधायक बीमा भारती का पति कुख्यात अवधेश मंडल थाने से कैसे फरार हुआ?
- एमएलसी मनारेमा देवी के घर से शराब की बोतल बरामद होने के 24 घंटे बाद क्यों प्राथमिकी दर्ज हुई?