Buckइंसान और जानवर के बीच सहअस्तित्व के संबंध के साथ अपने दायरे भी हैं. जब तक इन दायरों का अतिक्रमण नहीं हुआ, तब तक इंसान और जानवर के बीच का प्राकृतिक संबंध भी बना रहा. लेकिन, जब इंसानों ने जानवरों के क्षेत्र का अतिक्रमण करना शुरू किया, तब जानवर भी इंसान के क्षेत्र में घुसते चले गए. इंसानी आबादी को लेकर शायद ही किसी ने यह थ्योरी दी हो कि बढ़ती जनसंख्या से होने वाले नुकसान के लिए इंसानों को मार देना चाहिए या उनका बधियाकरण कर देना चाहिए. लेकिन, जानवरों की बढ़ती आबादी और इससे होने वाले नुकसान से बचने के लिए मौजूदा वन एवं पर्यावरण मंत्री समेत राज्य के कई मुख्यमंत्रियों और सांसदों को एकमात्र रास्ता यही समझ में आया कि इन जानवरों को मार दिया जाए या फिर इनका बधियाकरण कर दिया जाए. शायद तभी, पूरे देश में नीलगाय से लेकर मोर, जंगली सुअर, बंदर आदि को मारने के लिए बकायदा सरकारी अनुमति दी जाने लगी. बिहार में तो एक ही दिन में करीब 250 से अधिक नीलगायों को मार गिराया गया.

चौथी दुनिया के पास भाजपा सांसद हेमा मालिनी, अनुराग ठाकुर, केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी, कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद पीके श्रीमती, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे का वो पत्र मौजूद है, जिसमें इन लोगों ने वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर से अपने इलाकों में जंगली जानवरों को रोकने के लिए इलेक्ट्रिक बाड़बंदी कराने, हाथी और अन्य जंगली जानवरों से निपटने के लिए किसानों को आर्म्स लाइसेंस देने, जानवरों का बधियाकरण करने आदि के लिए अनुरोध किया है. मसलन, अनुराग ठाकुर ने अपने पत्र में लिखा है कि हिमाचल प्रदेश में बंदरों के उत्पात से किसानों को मुक्त कराने के लिए इनके देश से बाहर निर्यात पर लगा रोक हटाया जाए. इसी तरह वसुंधरा राजे ने लिखा है कि राजस्थान में नीलगायों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए इसे वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के शिड्यूल 2 से हटाकर शिड्यूल 5 में शामिल किया जाए. शिड्यूल 5 में शामिल करने का मतलब है कि इसका शिकार किया जा सकता है. वहीं मथुरा की सांसद हेमा मालिनी ने अपने पत्र में प्रकाश जावडेकर से वृंदावन के बंदरों के बधियाकरण कराने की बात कही है. नितीन गडकरी ने विदर्भ में जंगली सुअर के आतंक से किसानों को बचाने के लिए इलेक्ट्रिक बाड़बंदी में सहायता देने का अनुरोध किया है, जबकि केरल के कन्नूूर से सीपीआई सांसद पीके श्रीमती ने हाथियों और जंगली सुअर से बचाने के लिए किसानों को बंदूक के लाइसेंस देने का अनुरोध किया है.

गौरतलब है कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने दिसंबर 2015, 3 फरवरी 2016 और 24 मई 2016 को तीन अलग-अलग अधिसूचनाएं जारी की थीं. इन अधिसूचनाओं के मुताबिक बिहार में नीलगाय, उत्तराखंड में जंगली सुअर और हिमाचल प्रदेश में बंदरों को एक साल के लिए फसल को नुकसान पहुंचाने वाला घोषित किया गया था. यानी, इन्हें किसान मार सकते हैं. नीलगायों, बंदरों और जंगली सुअरों को हिंसक जानवर बताकर मारने के इस अधिसूचना के जारी होने के बाद इस मामले को एक गैर सरकारी संगठन सुप्रीम कोर्ट तक ले गया. वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट गौरी मुलेखी और वाइल्ड लाइफ रेस्क्यू एंड रिहेबिलिटेशन ने याचिका दायर कर केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने की मांग की. इस याचिका में कहा गया है कि बिहार, हिमाचल और उत्तराखंड में नीलगाय, बंदर व जंगली सुअर आदि को मारना गलत है और इस पर रोक लगाया जाना चाहिए क्योंकि सरकार ने बिना किसी आधार और वैज्ञानिक अध्ययन के अधिसूचना जारी कर दी है. इस याचिका में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 62 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है, जिसके तहत केंद्र सरकार ने अधिसूचनाएं जारी की हैं. याचिकाकर्ता का कहना है कि एक तो सरकार जंगलों में खनन नहीं रोक पाई है, जिसकी वजह से जानवर रिहायशी इलाकों में घुसने को मजबूर हुए हैं. इसके बाद उन्हें मारने का आदेश दिया जा रहा है, जो गलत है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिसूचना पर रोक लगाने से मना कर दिया है. हालांकि, अदालत ने इस शिकायत पर केंद्र सरकार से 14 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है. इसकी अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी.

वैसे बिहार में नीलगायों को मारे जाने को लेकर खुद मोदी सरकार के मंत्रियों के बीच वाकयुद्ध शुरू हो चुका है. महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी आरोप लगाती हैं कि पर्यावरण मंत्रालय हर राज्य को पत्र लिख रहा है कि बताओ किसको मारना है, हम इजाजत देंगे. दूसरी तरफ, पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना है कि यह सब कानून के तहत किया जा रहा है. जब किसानों को फसल का नुकसान होता है और राज्य सरकार प्रस्ताव भेजती है, तभी हम जानवरों को मारने की मंजूरी देते हैं. बहरहाल सवाल उठता है कि क्या फसल नुकसान से बचने का एकमात्र रास्ता इन जानवरों को मारना ही है? क्या सरकार को इस बात पर विचार नहीं करना चाहिए कि आखिर ये जानवर जंगल से खेतों की ओर या रिहायशी इलाकों की ओर क्यों आते हैं? हमने खुद जंगल और इन जानवरों के प्राकृतिक आवास को कितना नुकसान पहुंचाया है, क्या इस पर ईमानदारी से सोचने की जरूरत नहीं है?

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