नवजात की ध़डकनें हमेशा के लिए खामोश हो गई हों, लेकिन एक कफनचोर एनजीओ उस बच्ची के इलाज के नाम पर आज भी चंदे की उगाही कर रहा हो, तो उसे आप क्या नाम देंगे? जी हां, जब हमने उस मृत बच्ची के मामा से इस मामले की पूरी जानकारी ली, तो यह सुनकर पहले तो वह आवाक रह गया. उसका कहना था कि वह एनजीओ संचालक विशाल को बच्ची की मौत की सूचना पहले ही दे चुका है. खुद को सामाजिक सरोकारों का सबसे ब़डा ठेकेदार समझने वाले ऐसे एनजीओ में से कफनचोर एनजीओ कितने हैं, जो किसी के इलाज के बहाने उसकी मौत पर चंदा उगाही जैसे जघन्य कृत्य कर रहे हैं? भारत में स्थित लगभग 20 लाख एनजीओ को प्रति वर्ष लगभग 950 करो़ड रुपये का डोनेशन देनेवाली केंद्र और राज्य सरकारों के पास क्या इस सवाल का जवाब है?
सर तीन महीने की बच्ची है कनिका. हापुड़ के छपकौली की रहने वाली है. उसके मां-बाप बहुत ही गरीब हैं सर. वे बहुत ही मजबूर हैं. पैसे का इंतजाम नहीं कर सकते. बच्ची मर जाएगी, क्योंकि उसके मां-बाप पैसा नहीं जुटा पाएंगे. बच्ची के दिल में छेद है और उसका इलाज एम्स में चल रहा है. आप उस बच्ची की मदद कीजिए सर. हम प्रगति फाउंडेशन से बोल रहे हैं. कुल 55 हजार रुपयों की जरूरत है. हमने लगभग 40 हजार रुपये जुटा लिए हैं. जितना जल्द हो सके, उस बच्ची की मदद के लिए पैसों की व्यवस्था करवाइए सर.
इसी फोन कॉल ने नोएडा के एक प्रगति फाउंडेशन के पूरे फर्जीवाड़े की पोल खोल कर रख दी. जरा सोचिए, अगर आपके पास एक ऐसी कॉल आए कि किसी तीन महीने की बच्ची के दिल में छेद है और उसके ऑपरेशन के लिए पैसों की आवश्यकता है, तो निश्चित रूप से आप उस बच्ची की मदद के लिए यथासंभव पैसे देने का प्रयास करेंगे. अब अगर पैसे देने के बाद आपको यह पता चले कि जिस बच्ची की जान बचाने के लिए आपने पैसे दिए, उसकी ध़डकनें तो काफी पहले ही खामोश हो चुकी हैं, तो बच्ची की मौत पर पैसे की उगाही करने वाली उस संस्था के प्रति आपकी प्रतिक्रिया कैसी होगी?
कुछ इसी तरह मानवता को शर्मशार कर रहा है नोएडा का एक एनजीओ-प्रगति फाउंडेशन. इस एनजीओ का कार्यालय नोएडा के सेक्टर 15 में स्थित है. इस एनजीओ का मालिक विशाल अरोड़ा है. यह एनजीओ कनिका नाम की मरहूम बच्ची के नाम पर लोगों से पैसे इकट्ठे कर रहा है. हमारे पास भी इस एनजीओ के एक कर्मचारी की तरफ से बीते 3 अप्रैल को कॉल आई कि कनिका का ऑपरेशन होना है और कुल 55 हजार रुपये की जरूरत है. हमने लगभग 40 हजार रुपये जमा कर लिए हैं. 15 हजार रुपये और चाहिए. हमने उस कर्मचारी से मदद का वादा किया और कहा कि आप बच्ची के इलाज से संबंधित कुछ जानकारी हमारी ईमेल आईडी पर भेज दीजिए. पहले तो हमारे दिमाग में यही बात आई कि अपने कार्यालय के सभी कर्मचारियों से पैसे इकट्ठा करके बच्ची के ऑपरेशन के लिए दे दिए जाएं. एनजीओ की तरफ से हमें इसकी जानकारी भेज दी गई. उस मेल में एक पीडीएफ था, जिसमें भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स, नई दिल्ली) के हृदय विभाग का ओपीडी पर्चा भी शामिल था. उस पर्चे से बच्ची के ऑपरेशन की बात की तस्दीक हुई. उस पीडीएफ में इस बात की भी जानकारी दी गई थी कि ऑपरेशन में कुल 55,000 रुपये की राशि ली जाएगी. उस मेल को पढ़ने के बाद हमारे दिमाग में यह बात आई कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह एनजीओ कोई फर्जीवाड़ा कर रहा है, क्योंकि बीते एक साल के दौरान ऐसे कई एनजीओ सामने आए हैं, जो लोगों की जिंदगी बचाने की दुहाई देकर अनाप-शनाप धन की उगाही करते हैं. ऐसे एनजीओ का भंड़ाफोड़ भी हुआ है. शक के आधार पर हमने एक बार फिर उस प्रगति फाउंडेशन को फोन किया और लड़की के किसी अभिभावक से बात कराने की बात कही, लेकिन एनजीओ की तरफ से यह कहते हुए इंकार कर दिया गया कि उनके पास किसी अभिभावक का मोबाइल नंबर नहीं है. हमने एक बार फिर एम्स के पर्चे को ध्यान से देखा, तो उसमें हमें बच्ची के एक अभिभावक का मोबाइल नंबर लिखा मिला. हमने उस नंबर पर फोन किया, तो जानकारी मिली कि यह कनिका के मामा कपिल का नंबर था. कपिल ने हमसे पूछा कि क्या आप नोएडा के किसी एनजीओ से फोन कर रहे हैं, तो हमने उसे पूरी बात बताई और यह भी बताया कि हम मीडिया से हैं. कपिल ने एनजीओ की इस करतूत पर हैरानी जताई. जब कपिल ने हमें बीती 12 फरवरी को कनिका की मौत के बारे में बताया, तो हम सन्न रह गए. मतलब, कनिका की मौत चंदे के लिए की गई कॉल से लगभग दो महीने पहले ही हो चुकी थी. हमने कपिल से पूछा कि क्या आपने कनिका की मौत की जानकारी एनजीओ वालों को दी थी, तो उसने बताया कि बच्ची की मौत के कुछ ही दिनों बाद उसने फोन करके प्रगति फाउंडेशन (एनजीओ) के संचालक विशाल अरोड़ा को इसकी जानकारी दे दी थी.
आइए, आपको इस स्टोरी के दूसरे पक्ष की जानकारी देते हैं. इस पूरी तफ्तीश के दौरान हम लगातार एनजीओ वालों के संपर्क में भी बने हुए थे और हमने उन्हें इस बात का भरोसा भी दिया कि उनकी पूरी मदद की जाएगी. प्रगति फाउंडेशन की तरफ से हमें निशांत नाम के एक कर्मचारी का लगातार फोन आता रहता था. दिन में उसके कई-कई फोन आते थे. सारी कॉल का एक ही मकसद कि अधिक से अधिक पैसे की उगाही कैसे की जाए. हमने अपनी तफ्तीश को और मजबूत करने के लिए 6 अप्रैल को एनजीओ वालों से कहा कि आप किसी आदमी को भेज दीजिए, जिसे हम पैसे दे देंगे.
एनजीओ की तरफ से अभिनीत नाम का एक व्यक्ति आया. हमने उसे 100 रुपये दिए और उससे उस पैसे की रसीद ले ली. इस रसीद पर एनजीओ के डिटेल्स थे. अभिनीत जैसे ही वापस लौटा, हमारे पास तुरंत ही एनजीओ से फोन आया कि सर, आपने तो सिर्फ 100 रुपये ही दिए. हमने उनसे कहा कि हम यह तस्दीक करना चाहते थे कि पैसे सही जगह पहुंच रहे हैं या नहीं. जब हमने निशांत से विशाल अरोड़ा का नंबर मांगा, तो हमें उनका नंबर भी मिल गया. हमने विशाल अरोड़ा से भी बात की, तो उन्होंने बताया कि बच्ची की मदद के लिए वह प्रयासरत हैं. हमारे पास विशाल अरोड़ा से हुई बातचीत की पूरी रिकॉर्डिंग मौजूद है.
सवाल यह उठता है कि एक बच्ची, जिसकी जिंदगी बचाने के नाम पर आप चंदा इकट्ठा कर रहे हैं, उसके बारे में आपको यह तक जानकारी नहीं है कि वह बच्ची जीवित है अथवा नहीं, तो आपकी नीयत पर संदेह तो पैदा करता ही है. आखिर आप पैसा किसके लिए इकट्ठा कर रहे हैं? इसमें एनजीओ यह भी जवाब दे सकता है कि हमें इसकी जानकारी नहीं थी? इसी के लिए हमने उस बच्ची के मामा से इसकी पूरी जानकारी ली. उसने हमें बताया कि मैं विशाल को इस बात की जानकारी दे चुका हूं, तो क्या यह चंदेबाजी सिर्फ अपनी जेबें भरने के लिए की जा रही है या फिर इसके पीछे कोई और खेल भी मौजूद है. आखिर किसी आदमी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का हक इन एनजीओ वालों को किसने दिया है? कहां है सरकार और उसकी मशीनरी? ऐसे बेलगाम एनजीओ पर जल्द ही सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो असहाय और जरूरतमंदों पर से लोगों का विश्वास उठ जाएगा और जिस दिन ऐसा होगा, समझिए उस दिन होठों को कर के गोल कोई ऑल इज वेल नहीं कहेगा, बल्कि उसके लिए वह दिन अंत का आरंभ होगा.
गैर सरकारी संगठनों से जुड़े फर्जीवाड़े के कुछ अन्य मामले
बहुत दिन नहीं हुए, जब क्राइम ब्रांच ने पीएमओ के नाम पर फर्जीवाड़ा कर रहे ग्लोबल नीड फाउंडेशन नामक एनजीओ के फाउंडर को गिरफ्तार किया था. आरोपी की पहचान यशपाल सिंह तोमर (50) के रूप में हुई थी. कबूल नगर शाहदरा स्थित अपने घर पर लगी फैक्स मशीन में छेड़छाड़ कर उसने ऐसी सेटिंग की हुई थी कि जिस कंपनी में फैक्स भेजा जाता था, उन्हें ऐसा लगे कि यह फैक्स पीएमओ और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के ऑफिस से ही भेजा गया है.
बिहार के छपरा में भी ऐसी एक घटना सामने आई थी, जिसमें महादलित बस्तियों में अल्पव्ययी शौचालय निर्माण में भारी फर्जीवाड़े की खबर आई थी. इसमें एक समाचार पत्र के लगातार सक्रिय रहने के बाद आखिरकार विभाग के पदाधिकारी सक्रिय हुए थे. जल एवं स्वच्छता समिति प्रकल्प के अध्यक्ष व सारण डीडीसी सुशील कुमार के आदेश पर पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता चंदेश्वर राम ने एनजीओ के सचिव दशरथ राय एवं पीएचईडी विभाग के तरैया कनीय अभियंता शालीग्राम सिंह के विरुद्ध इसुआपुर थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी. इसके अलावा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधनी में दो अलग एनजीओ चलाकर फर्जीवाड़ा करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को मामले की जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने राज्य सरकार के नगरीय प्रशासन विभाग को निर्देश दिया है कि वह आवेदक की याचिका पर कार्रवाई कर इसकी जानकारी आठ सप्ताह के भीतर युगलपीठ को दे.
केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी के एनजीओ का मामला भी सामने आया था, जिसके बाद मध्यप्रदेश सरकार ने भी विकलांगों को कृत्रिम अंगों के वितरण को लेकर संबंधित विभाग से जानकारी एकत्रित करने को कहा था. सरकारी योजनाओं में फर्जीवाड़े व घोटाले के लिए चर्चित पश्चिमी सिंहभूम में संपूर्ण स्वच्छता मिशन के अंतर्गत बीपीएल-एपीएल के लिए बने शौचालयों में बड़ी गड़बड़ी सामने आई थी. कागजों में ही शौचालयों को पूर्ण दिखाकर न सिर्फ संबंधित एनजीओ ने सारी राशि उठा ली, बल्कि केंद्र सरकार से निर्मल ग्राम पुरस्कार भी झटक लिया. जिन गांवों को निर्मल ग्राम घोषित किया गया है, वहां शौचालय पूरे हुए ही नहीं. जहां हुए भी, वहां उनका होना न होना बराबर है. इस तथ्य का खुलासा होने के बाद पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने निर्मल ग्राम पुरस्कार के तहत मिलने वाली राशि पर रोक लगा दी है.
मेरी भांजी की मृत्यु 12 फरवरी को ही हो गई थी. हमने प्रगति फाउंडेशन से मदद की गुहार की थी, लेकिन अपनी भांजी की मौत के बाद हमने इसकी जानकारी विशाल अरोड़ा को दे दी थी. यह बात हमारी समझ से परे है कि उसकी मौत के बाद भी एनजीओ आखिर क्यों लोगों को फोन कर चंदे की मांग कर रहा है. यह बिल्कुल गलत है. अब, जब हमारी बच्ची ही जीवित नहीं रही, तो पैसे लेकर आखिर हम क्या करेंगे? – कपिल कुमार (कनिका के मामा)
हमें इसकी जानकारी नहीं थी. आपके द्वारा बताए जाने पर ही हम यह जान पाए कि वह बच्ची मर चुकी है. हमलोगों ने यह सबकुछ जान-बूझकर नहीं किया है.-विशाल अरोड़ा (संचालक, प्रगति फाउंडेशन)
( विशाल अरोड़ा के इस बयान से इस बात की पुष्टि होती है कि उनके एनजीओ को इस बात की चिंता थी ही नहीं कि कनिका जिंदा है या नहीं. उन्हें तो सिर्फ इस बात की चिंता थी कि पैसे की उगाही अधिक से अधिक कैसे की जाए. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान उन्होंने यही जिक्र किया कि कनिका जिंदा है. जब अपनी तफ्तीश के आखिरी दिन हमने उन्हें यह बताया कि उनका एनजीओ झूठा बयान दे रहा है, तो उन्होंने अपना बयान बदल दिया और कहा कि उन्हें इसके बारे में नहीं पता था. यह बात हैरान कर देने वाली थी).