जिस तेजी से सारी पार्टियां मंदिरों – मस्जिदों की शरण में पहुंच रही हैं, उसे देखकर तो ऐसा लग रहा है कि अगला लोकसभा चुनाव भगवानों के बीच होगा. केन्द्र में और देश के सबसे ज्यादा राज्यों में जिस पार्टी की सत्ता है, वह भारतीय जनता पार्टी पिछले 25 साल से राम के भरोसे चल रही है. राम की मार्केटिंग कर उन्होंने मतदाताओं का इतना विश्वास प्राप्त किया कि पूरा देश भगवा हो गया. वहीं भारतीय जनता पार्टी की सफलता को देखते हुए देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी अब सॉफ्ट हिन्दुत्व की तरफ मुड़ रही है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भगवान शिव के शरण में चले गए.
अब वे जहां जाते हैं, शिव जी के नारे गूंजते हैं और बम बम भोले के जयकारे लगते हैं. लगता है, अगले चुनाव में कांग्रेस शिव के भरोसे मैदान में उतरेगी. उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा लड़ाई का केन्द्र होगा. वहां सामजवादी पार्टी, जो एक समय मुसलमानों की हितैषी मानी जाती थी, उन्होंने भी भगवान विष्णु के चरणों में शरण ली. अखिलेश जी ने शायद ये सोचा कि जिस भगवान विष्णु के अवतार राम हैं और उनके भरोसे यदि भाजपा सत्ता में आ सकती है तो मैं सीधे भगवान विष्णु के ही भरोसे क्यों नहीं सत्ता में आऊं.
खबर के पीछे की खबर ये है कि पिछले कुछ महीनों से जिस हिसाब से सारी राजनीतिक पार्टियां धर्म की ओर मुड़ रही हैं, उससे लगता है कि 2019 का लोकसभा चुनाव भगवानों के बीच में ही होगा. क्योंकि समाज की जो बेसिक समस्याएं है-बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या, अतिवृष्टि, सूखा, पीने का पानी, ऊर्जा, गिरता रुपया, पेट्रोल के बढ़ते दाम, महंगाई इसके लिए किसी के पास कोई समय नहीं है न कोई ब्लूप्रिंट है. आने वाले समय में अब तो जनता को देखना है कि वाकई भगवान के भरोसे चलने वाले इन राजनीतिक दलों पर वे भरोसा रखे या यथार्थ के धरातल पर काम करने वालों पर.