कसमसाहट श्रेय की, बनेंगे नजारे नए….!

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ख़ान अशु

कम विकल्प वाले प्रदेश (मप्र) की अवाम की बदकिसमती है कि उसके सामने इनती गिनती मात्र दो ऑब्शन हैं….! अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो की तर्ज पर मतदाता की उंगली इधर बहकती है तो कभी उधर फिसल जाती है….! बेचैनी भरी करवट बदलते वोटर्स कभी इनको चुनकर पछताते नजर आते हैं तो कभी उनके चुनाव पर खुद को कोसते दिखाई देते हैं….!
ताज़ा हालात में जहां बहुल संख्या एक खास सियासी तटस्थता के साथ जुटता दिख रहा है, वहीं अल्प तादाद और ईखरे, बिखरे, छितरे लोग अपने सिर पर किसी मजबूत छतरी की तलाश में भटकते दिखने लगे हैं….! जिन्हें अपना मानते हुए भविष्य की कुंजी थमा रखी थी, वे अचानक अपनी दुकान का साइन बोर्ड बदलकर राम जी की शरणम् गच्छामि होने का ढकोसला करने पर उतारू हो गए…! बेमौसम रागे गए इस अलाप की गाज गिरना तय लग रहा है…. और इस अनचाहे जख्म को भरपूर नासूर बनने के लिए पर्याप्त समय भी लोगों के हाथ रख दिया गया है…! माकूल समय उनके लिए भी पसार दिया गया है, जो बरसों बरस से साईकिल से लेकर हाथी तक की दौड़ मध्य प्रदेश में लगवाने की असफल कोशिश करते रहे हैं….!

बचपन की उस कहानी को याद किया जा रहा है, जिसमें एक एक लकड़ी को तोड़ना आसान, गट्ठर को तोड़ना मुश्किल की सीख दी गई थी…! बिखरे लोगों (दलों) को जोड़ने की कवायद को आंध्रा, तेलंगाना, महाराष्ट्र में वजूद कायम कर चुकी एक तेज तर्रार वक्ता की पार्टी ने भी हाथ आगे बढ़ाना शुरू कर दिए हैं….! नई जुगलबंदी से सियासी हलचल मचने के आसार तो हैं… असर पर महज वह आने वाले हैं, जो प्रभु शरण में आने के उतावलेपन में अपने भविष्य से बेखबर अंधी दौड़ लगा चुके हैं…!

पुछल्ला
आमद बनाएगी समीकरण नए

विधानसभा को नजर अंदाज किया। लोकसभा से किनारा किया। किसी बेहतर मौके की तलाश मुहल्ले के चुनाव पर पूरी होने की उम्मीद की जा रही है। मजलिस ने नगरीय निकाय चुनावों में अपना कद आंकने की पहल में पिछली मौजूदगी को बेदखल कर नए नेतृत्व को आगे करने की ठान ली है। उम्मीद की जा सकती है कि मजलिस की जाजम पर बैठने वाले वह लोग होंगे, जो बैगानी पार्टी में खुद का वजूद तलाशते रहे। नई आमद में वे भी जुड़ सकते हैं, जो इस बात से नाराज़ हैं, जिनपर वे बरसों अपनेपन की मुहब्बत लुटाते आए हैं, उन्होंने उनके भरोसे का चीर हरण कर दिया है।

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