गुरुद्वारे में जाने वाला कोई भी व्यक्ति कभी भूखा वापस नहीं जाता है. लेकिन चंडीगढ़ सेक्टर-28 स्थित नानकसर गुरूद्वारा ऐसा गुरुद्वारा है, जहां पर न तो लंगर बनता और ना ही गोलक है, फिर भी कोई यहां से भूखा नहीं जाता है.
अब आप ऐसा सोच रहे हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है, तो बता दें कि गुरुद्वारे में संगत अपने ही घर से बना लंगर लेकर आते हैं. यहां देसी घी के परांठे, मक्खन, कई प्रकार की सब्जियां और दाल, मिठाइयां और फल संगत के लिए रहता है.
गुरूद्वारा नानकसर का निर्माण दिवाली के दिन हुआ था. चंडीगढ़ स्थित नानकसर गुरुद्वारे के प्रमुख बाबा गुरदेव सिंह बताते हैं कि 50 वर्ष से भी अधिक इस गुरुद्वारे के निर्माण को हो गए हैं. पौने दो एकड़ क्षेत्र में फैले इस गुरुद्वारे में लाइब्रेरी भी है.
गोलक के लिए झगड़ा न हो इसलिए यहां पर गोलक नहीं है. जिन्हें सेवा करनी होती है वह यहां आकर सेवा करते हैं. इसका हेडक्वार्टर नानकसर कलेरां है, जो लुधियाना के पास है.
गुरुद्वारा नानकसर में 30 से 35 लोग हैं, जिसमें रागी पाठी और सेवादार हैं. चंडीगढ़, हरियाणा, देहरादून के अलावा विदेश जिसमें अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया में एक सौ से भी अधिक नानकसर गुरुद्वारे हैं. बाबा गुरदेव सिंह का कहना है कि संगत सेवा के लिए अपनी बारी का इंतजार करती हैं. गुरुद्वारे में तीनों वक्त लंगर लगता है. लोग अपने घरों से लंगर बनाकर लाते हैं. किसी को लंगर लगाना हो तो उन्हें कम से कम दो महीने का इंतजार करना होता है.
दिन के तीनों टाइम के लंगर के लिए अलग-अलग लोग अपनी सेवा देते हैं. हर वक्त अखंड पाठ चलता रहता है. सुबह सात बजे से नौ बजे तक और शाम पांच से रात नौ बजे तक कीर्तन का हर दिन आयोजन होता है.