दरअसल चुनावों के कुछ दिन पहले ही नेतान्याहू को यह लगने लगा था कि वे चुनाव हार सकते हैं. इसी वजह से ठीक चुनावों के पहले उन्होंने एक वक्तव्य दिया कि वे कसम खा रहे हैं, फिलस्तीन राष्ट्र का निर्माण नहीं होने देंगे. लोगों के बीच उन्होंने अतिराष्ट्रवादी प्रचार अभियान शुरू कर दिया. इसके अलावा चुनाव के दिन भी उन्होंने विपक्षी पार्टियों, अरब मूल के लोगों और गैर सरकारी संगठनों को भी यह कहते हुए आड़े हाथों लिया था कि ये सभी ट्रकों में भर कर मतदाताओं को लेकर बूथों पर उनके खिला़फ वोट डलवा रहे हैं. बेंजामिन के ये सारे तरीके काम कर गए और नतीजे वह आए जिसकी चुनाव के पहले किसी ने उम्मीद नहीं की थी.
बेंजामिन नेतान्याहू एक बार फिर इजरायल के प्रधानमंत्री बन गए हैं. ऐसा माना जा रहा था कि इस बार उनकी लिकुड पार्टी को चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ सकता है लेकिन आश्चर्यजनक चुनाव परिणाम आए और नेतान्याहू फिर चुने गए. चुनाव प्रचार के दौरान नेतान्याहू ने मतदाताओं के बीच यह बयान दिया था कि वे अपने जिंदा रहते कभी फिलस्तीन राज्य का निर्माण नहीं होने देंगे. ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी हो गया है कि पहले से इजरायली सरकार की वजह से मुसीबतें झेल रही फिलस्तीनी जनता की परेशानियां कब कम होंगी? क्या फिलस्तीनी राष्ट्र के निर्माण को युनाइटेड नेशंस में स्वीकृति मिल पाएगी? आखिर कब तक फिलस्तीन को लेकर जंग चलती रहेगी?
इस बार जब इजरायल में आम चुनावों का बिगुल बजा था तो लग रहा था कि वहां की राष्ट्रवादी लिकुड पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ेगा. राजनीतिक विशेषज्ञ इस बात के कयास लगा रहे थे कि आम जनता के बीच मुख्य विपक्षी जियोनिस्ट पार्टी को लेकर ज्यादा रुझान है और जीत वो ही हासिल करेगी. आश्यर्चजनक रूप से चुनावी नतीजे कुछ और निकले और बेंजामिन नेतान्याहू एक बार फिर सत्ता पर अपनी दावेदारी बचाने में कामयाब हो गए. चुनाव के कुछ ही दिनों पहले देश के तेल अवीव शहर में नेतान्याहू के खिला़फ ज़बरदस्त प्रदर्शन हुए थे. इस प्रदर्शन के दौरान कई गैर सरकारी संगठनों के साथ कुछ विपक्षी पार्टी के नेताओं ने फिलस्तीन के मुद्दे पर नेतान्याहू की आलोचना की थी. प्रदर्शनकारियों ने कहा था कि नेतान्याहू फिलस्तीन के मुद्दे को वीभत्स रूप देकर मामले को जिंदा रखना चाहते हैं.
दरअसल चुनावों के कुछ दिन पहले ही नेतान्याहू को यह लगने लगा था कि वे चुनाव हार सकते हैं. इसी वजह से ठीक चुनावों के पहले उन्होंने एक वक्तव्य दिया कि वे कसम खा रहे हैं, फिलस्तीन राष्ट्र का निर्माण नहीं होने देंगे. लोगों के बीच उन्होंने अतिराष्ट्रवादी प्रचार अभियान शुरू कर दिया. इसके अलावा चुनाव के दिन भी उन्होंने विपक्षी पार्टियों, अरब मूल के लोगों और गैर सरकारी संगठनों को भी यह कहते हुए आड़े हाथों लिया था कि ये सभी ट्रकों में भर कर मतदाताओं को लेकर बूथों पर उनके खिला़फ वोट डलवा रहे हैं. बेंजामिन के ये सारे तरीके काम कर गए और नतीजे वह आए जिसकी चुनाव के पहले किसी ने उम्मीद नहीं की थी. हालांकि चुनाव जीतने के बाद नेतान्याहू ने अरब मूल के लोगों से इस बात के लिए माफी मांगी है.
नेतान्याहू के प्रधानमंत्री बनने के बाद फिलिस्तीन राष्ट्र के निर्माण में और देर होने की आशंकाओं ने एक बार फिर जन्म ले लिया है. फिलिस्तीन राष्ट्र के निर्माण को लेकर पूर्व में इजरायल बहुत ही क्रूरता के साथ पेश होता आया है. जैसे नेतान्याहू के प्रधानमंत्री चुनाव में जीतने की खबरें आने के साथ ही फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों ने वेस्ट बैंक में विरोध प्रदर्शन करने शुरू कर दिए थे. नेतान्याहू के चुनाव प्रचार के तरीकों को लेकर भी कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नेतान्याहू के बयान की आलोचना की थी और यह भी माना था फिलिस्तीन के मुद्दे पर उनमें और इजरायली प्रधानमंत्री में मतभेद हैं. इसके अलावा इजरायली राष्ट्रपति रिउवेन रिवलिन ने भी नेतान्याहू के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि वे देश में रहने वाले सभी धर्मों के लोगों के प्रधानमंत्री हैं, उन्हें ऐसे बयान नहीं देने चाहिए. इजरायली राष्ट्रपति ने नेतान्याहू को अगली सरकार के गठन का काम सौंपने से पहले अरब-इजरायली मतदाताओं के संबंध में उनकी विवादपूर्ण टिप्पणी की आलोचना की थी. उन्होंने कहा, चुनाव हमारे लोकतंत्र का एकमात्र जनमत संग्रह है. हमें शर्म आनी चाहिए अगर हम मतदान के लोकतांत्रिक कर्तव्य को निभाने को एक अभिशाप या किसी ऐसी चीज की तरह देखें, जिसके खिला़फ चेतावनी दी जानी चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी, जो मतों से डरते हैं, उनका अंत सड़कों पर पथराव में होगा. इजरायली राष्ट्रपति ने कहा, हर ओर से, ऐसी चीजें कही गईं, जो कि एक यहूदी और लोकतांत्रिक देश में कही नहीं जानी चाहिए. आग की लपटों को हवा देने से किसी का भला नहीं होता. आग सिर्फ गर्मी ही नहीं देती, बल्कि लपटों का रूप धारण करने का खतरा भी है. आज उन जख्मों को भरने की शुरुआत करने का समय आ गया है.
हालांकि नेतान्याहू ने खुद को सभी इजरायली नागरिकों का प्रधानमंत्री घोषित करते हुए नुकसान की भरपाई की कोशिश की. उन्होंने कहा कि मैं खुद को आप में से हर एक व्यक्ति के प्रधानमंत्री के रूप में देखता हूं, फिर चाहे आपने मुझे चुना हो या नहीं. चुनाव के दौरान समाज के विभिन्न धड़ों में जो तनाव पैदा हो गए हैं, मैं उसे हटाने के प्रयास करूंगा. नेतान्याहू ने कहा, मुझे अगली गठित सरकार में इस मार्ग पर डटे रहना है. अगली सरकार एक यहूदी और लोकतांत्रिक देश की सरकार होगी, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार देगी, फिर चाहे उनके धर्म, नस्ल या लिंग कोई भी हो. ऐसा हमेशा होता रहा है और यह हमेशा होता रहेगा.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि नेतान्याहू चुनाव तो जीत गए हैं लेकिन चुनाव जीतने में उनके द्वारा प्रयोग में लाए गए तरीकों की हर तरफ आलोचना हो रही है. दिक्कत यह है कि जिन भाषणों और वक्तव्यों की बदौलत नेतान्याहू जीते हैं, उन्हें अगर वे भविष्य में भी कायम रखने की कोशिश करेंगे तो फिलिस्तीन के लिए दिक्कत की बात होगी. इसलिए उन पर यह वैश्विक दबाव तो बनता ही जा रहा है कि फिलिस्तीनी राष्ट्र के निर्माण को लेकर संजीदगी दिखाएं. वहीं अमेरिका को भी सिर्फ मुंहजुबानी वायदे करने से बाज़ आना चाहिए और उसे पूरे दबाव के साथ इजरायल को इस बात के लिए राजी करना चाहिए कि फिलिस्तीन का निर्माण हो व वहां के लोगों को भी वह सभी सुविधाएं मिलें जो दुनिया में किसी भी देश के आम नागरिक के लिए जरूरी होती हैं.