बलूचिस्तान की सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी शहरी सभ्यता है. यह ग्यारह हज़ार साल पुरानी है. इसी सभ्यता में ज्योमिट्री, केमिस्ट्री, कैलेंडर, प्रोटोराइटिंग, व्हील इत्यादि चीजें ईजाद हुईं. यह एक मातृसत्तात्मक समाज था, इसलिए यहां पर अमन का राज था. यही अमन-चैन मीरगढ़ की सभ्यता का सूचक था. हर चीज़ वहां से मिली, लेकिन हथियार नहीं मिला. बलोच की जो साइकोलॉजी है, उसमें गुलामी नहीं है, बलोच हमेशा स्वतंत्र रहा है.
बलोच इस जमीन पर हज़ारों साल से रह रहे हैं. बलूचिस्तान एक बहुत बड़ा मुल्क है, जिसके पास लगभग 2000 किमी का समुद्र है, पहाड़ हैं, रेगिस्तान हैं, मैदान हैं. यहां की ज़मीन बहुत उर्वर है. कम आबादी वाले बलोचों द्वारा इनकी हिफ़ाज़त करने या इन्हें संभाले रखने के लिए एक विज़डम की ज़रूरत रही है. उस विज़डम के साथ बलोच हमेशा सर्वाइव करता रहा है.
हमारी कोशिश ये रही है कि अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे से रहें, जिनमें एक तरफ हिंदुस्तान है, एक तरफ अफ़ग़ानिस्तान, एक तरफ ईरान और दक्षिण में अरबियन देश हैं. लेकिन जब किसी ने आक्रमण या हमले की कोशिश की है, तो बलूचिस्तान के बच्चे, बू़ढ़े, औरतें, मर्द, सभी एक साथ उसका सामना करने को आगे आते रहे हैं. हम सब प्राकृतिक लड़ाके हैं. हमारे पास रेगुलर आर्मी नहीं थी, लेकिन हम सब किसी भी हमले के लिए तैयार रहा करते थे.
बलूचिस्तान में ही सिकंदर को हार मिली और यहीं पर वह बीमार हुआ. यहीं पर पुर्तगालियों को शिकस्त मिली, हमने बर्तानिया के साथ समझौता किया. उपमहाद्वीप पर बर्तानिया का क़ब्ज़ा था, लेकिन बलूचिस्तान पर उनकी हुक्मरानी नहीं थी. उस समय भी बलूचिस्तान स्वतंत्र रहा.
27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान की 705 साल पुरानी सरकार को तोड़ा और बलूचिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया. उसी समय से बलूचिस्तान में मिलिटेंट वाली स्थिति बनी हुई है. तब कबीर ख़ान ने बलूचों के लिए लड़ाई लड़ी थी, जो बलूचिस्तान के महाराजा के छोटे भाई थे. पाकिस्तान ने हमेशा हिंसा के ज़रिए बलूचिस्तान को कंट्रोल में रखने की कोशिश की है.
पाकिस्तान में भले ही लोकतंत्र आया या गया, लेकिन बलूचिस्तान हमेशा पाकिस्तानी फौज के कब्ज़े में रहा. बलोच के निवासी 69 साल से पाकिस्तानी सेना द्वारा टॉर्चर होते रहे हैं. तब से अब तक कितने ही बलोच गिरफ्तार हुए, लापता हुए, मारे गए. इस वक्त बलूचिस्तान में युद्ध वाली स्थिति है, आज़ादी की जंग इस समय पूरे चरम पर है. पूरे बलूचिस्तान में पहली बार बलोच एक साथ मिलकर लड़ रहे हैं.
आज़ादी की लड़ाई में आज बलूचिस्तान के कोने-कोने से लोग शामिल हैं. ऐसा पहले नहीं था, पहले कोई हिस्सा इस जंग में शामिल था, तो कोई नहीं था. पाकिस्तान में जब चुनाव हुआ, तो बलोच फ्रीडम ऑर्गनाइज़ेशंस ने घोषणा की कि चुनाव में हिस्सा नहीं लेना है, क्योंकि हमें पाकिस्तान की संसद और इसकी व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनना है. इसी का असर था कि वहां सिर्फ तीन प्रतिशत वोट पड़े. इसके बाद भी वहां सरकार बनी. जहां लाखों की आबादी वाली विधानसभा हो, वहां सिर्फ 600 वोट लेकर कोई मुख्यमंत्री बन जाय, यह तो पूरी तरह से मजाक है. इस तरह से बनने वाली सरकार पूरी तरह से अवैध थी.
बलूचिस्तान में जो आज़ादी की लड़ाई है, उसकी एक अच्छी बात यह है कि हम भले ही किसी भी फ्रंट पर या किसी भी तरी़के से आज़ादी का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सबका मत एक है. वह चाहे अहिंसा के द्वारा आज़ादी मांगने वाले हों, राजनीतिक रूप से लड़ने वाले, मिलिटेंट स्ट्रगल या डिप्लोमेसी-लॉबिंग करने वाले, सब इस बात से सहमत हैं कि एक साथ मिलकर बलूचिस्तान को आज़ादी दिलानी है. भारत ने जो अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी, उसमें वैचारिक मतभेद था. भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गांधी के रास्ते अलग-अलग थे.
लेकिन बलूचिस्तान में जो आज़ादी की लड़ाई चल रही है, उसमें सब संगठन वैचारिक रूप से एक हैं. कुर्द और बलोच, बलूचिस्तान के बाशिंदे रहे हैं, लेकिन आज ये दुनिया के दूसरे देशों में रह रहे हैं. आज दुनिया भर में 40 मिलियन कुर्द और 40 मिलियन बलोच हैं. ये 80 मिलियन लोग बिना अपने देश के रह रहे हैं. हालांकि दुनिया की ये दो बड़ी क़ौमें पहले एक ही थीं. पहले बलोच भी कुर्द ही कहलाते थे.
इस वक्त बलूचिस्तान का जो हाल है, वो यह है कि आज वहां बात मानवाधिकार के उल्लंघन से आगेे बढ़ गई है. अभी वहां नरसंहार की स्थिति है. बलोचों पर पाकिस्तान के अत्याचार को देखकर ऐसा लगता है कि उसे एक क़ौम से, एक सभ्यता से और एक पहचान से नफरत है. वे बच्चों-बूढ़ों तक को मार देते हैं, पशुओं को भी नहीं छोड़ते. बलूचिस्तान में कई जगहों पर सौ-सौ से ज्यादा शव मिले हैं. कई सामूहिक क़ब्र मिले हैं. पाकिस्तान बलोचों के ख़िलाफ़ कैमिकल वेपन यूज़ कर रहा है.
इन सब को देखते हुए यूनाइटेड नेशन्स की ज़िम्मेदारी बनती है कि बलूचिस्तान में फैक्ट फाइंडिंग मिशन भेजा जाय, ताकि पता चले कि जो हथियार बैन हैं, उनसे भी वहांं कैसे लोगों को मारा जा रहा है. न जाने किस तरह के कैमिकल का इस्तेमाल कर लोगों को मारा जा रहा है कि शव की पहचान भी मुश्किल हो गई है? यहां तक कि पानी में भी ज़हरीला कैमिकल डाल दिया गया है, जिससे इंसान या जानवर पानी पीकर मर जा रहे हैं. जहां पर बलोच फ्रीडम मूवमेंट के लिए ज्यादा सपोर्ट है, वहां पर कैमिकल स्प्रे किया जा रहा है.
टॉर्चर और रेप को पाकिस्तान की आर्मी बलोचों के ख़िलाफ़ एक औज़ार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है. हमारे 30,000 से भी ज्यादा बलोच ग़ायब हैं, जिन्हें पाकिस्तानी आर्मी उठा कर ले गई है. उनमें से कई हज़ार लोगों की लाशें मिली हैं. कई शवों से आंखें, दिल, गुर्दे और लीवर निकाल लिए गए हैं यानी पाकिस्तानी आर्मी मानव अंगों की तस्करी में भी शामिल है. कई शवों पर ख़ंजर से काटकर पाकिस्तान ज़िंदाबाद लिखा होता है.
कई हज़ार औरतों और बच्चों को भी पाकिस्तानी आर्मी उठा कर ले गई है. उनमें से कइयों को पाकिस्तानी आर्मी के रेप सेल्स में रखा गया है. बलूचिस्तान में बहुत कम स्कूल-कॉलेज हैं, लेकिन जो हैं, उनपर भी आर्मी ने कब्ज़ा कर लिया है, उन्हें अपने बैरक में बदल लिया है. इस वक्त वहां शिक्षा की स्थिति बहुत ख़राब है. हमारे पास स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं के बराबर हैं.
अगर बलूचिस्तान के किसी हिस्से में बाढ़ या भूकंप आ जाए, तो दुनिया के किसी भी मानवतावादी संगठन को वहां जाने की इजाज़त नहीं है. पाकिस्तानी आर्मी ख़ुद वहां जाती है और बजाय लोगों की सहायता करने के, उनका क़त्लेआम करती है. पाकिस्तानी आर्मी ने बलूचिस्तान को एक नाज़ी कॉन्संट्रेशन कैंप में तब्दील कर दिया है. इस वक्त ज़रूरत है कि दुनिया बलोचों के नरसंहार को रोके.
चीन तो 50 के दशक से ही बलूचिस्तान में सक्रिय रहा है, वह हर दिन लगभग 16 किलो सोना वहां के खानों से निकालता रहा है. इस तरह की चोरियों के अलावा चीन ने अंतरराष्ट्रीय नियमों से बाहर जाकर पाकिस्तान को ख़ुफ़िया मदद दी और उससे परमाणु परीक्षण कराया. इन सबके अलावा बलूचिस्तान में लगातार 6 साल तक सूखा पड़ा, बारिश नहीं हुई, लाखों मवेशी मर गए. पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर बहुत बढ़ गई. अब चीन से पाकिस्तान के सीपैक के बाद हालत और ख़राब हुए हैं. ग्वादर मेगा प्रोजेक्ट के साथ बलूचिस्तान में चीन का हस्तक्षेप ज्यादा बढ़ गया है.
वे लोग लाखों चीनियों और पाकिस्तान के नागरिकों को बलूचिस्तान में बसाना चाहते हैं. उनकी मंशा है कि बलूचिस्तान में बलोचों से ज्यादा बाहरी लोगों की आबादी हो जाय. वे चाहते हैं कि वहां से बलोचों की पहचान तक मिट जाय. जब बलोचों ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, तो उन्हें पाकिस्तान और चीन के नरसंहार का सामना करना पड़ रहा है. सीपैक के लिए रोड बनाने के लिए आर्मी जो सामान या मशीनें लेकर आती है, उन्हें स्थानीय बलोच जला देते हैं. जब तक बलोच नहीं चाहें, सीपैक नहीं बन सकता है और जिस तरह से चीन और पाकिस्तान बनाना चाह रहे हैं, इस तरह से तो बिल्कुल नहीं बनेगा.
15 अगस्त को दिल्ली के लाल क़िले से जिस तरह मोदी जी ने बलोचों के समर्थन में ऐलान किया, उससे बलोचों का हौसला बढ़ा है. पहली बार बलोचों को अहसास हुआ कि दुनिया में कोई है, जो खुले तौर पर हमारे समर्थन में आवाज़ उठा सकता है. इससे पहले अमेरिकन कांग्रेस में बलूचिस्तान के लिए एक बिल पेश किया गया था. ईयू की तरफ से भी बलोचों के समर्थन में बयान आया.
लेकिन भारत के प्रधानमंत्री जैसे विश्वस्तर के ताकतवर और लोकप्रिय नेता की तरफ से जो बयान आया है, यह बलोचों के लिए एक बहुत बड़ा सपोर्ट है. इससे बलोच फ्रीडम मूवमेंट में त़ेजी आई है, इसके साथ ही पाकिस्तान द्वारा बलोचों के नरसंहार में भी तेज़ी आई है. अब वे ज्यादा निर्दयता से बलोचों पर अत्याचार कर रहे हैं. इस मुद्दे को सुषमा स्वराज जी ने यूएन में उठाया है, इससे इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व और बढ़ गया है. लेकिन इससे आगे और भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है.
दो रास्ते हैं, जिनपर बढ़ा जा सकता है. पहला यह कि पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगवाया जाय. पाकिस्तान को एक टेररिस्ट मुल्क घोषित किया जाय. सब जानते हैं कि पाकिस्तान एक आतंकी देश है, उसके पास एक ही एसेट है और वह है आतंक. भारत, अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान को जिस तरह से इसने आतंकियों के हवाले किया हुआ है, इसे खत्म करने के लिए पूरी दुनिया को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की ज़रूरत है. सबसे पहले पाकिस्तान की फंडिंग रोकने के प्रयास किए जाएं.
जो पाकिस्तान को फंडिंग करते हैं, वे वास्तव में आतंक को पैदा कर रहे होते हैं, वे बलोचों का नरसंहार करवा रहे होते हैं. तो ज़रूरत है कि पाकिस्तान को अलग-थलग किया जाय. जब पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगेगा, तब वह इस काबिल नहीं रहेगा कि आतंक फैला सके.
दूसरी जो स्ट्रैटजी है, वो ये है कि बलूचिस्तान की स्वतंत्र सरकार की स्थापना करने की कोशिश की जाय. इसके लिए हमें भारत सरकार का समर्थन चाहिए. इससे उन बलोच संगठनों को ताक़त मिलेगी, जो इसके लिए प्रयास कर रहे हैं. यह सरकार पूरे 40 मिलियन बलोचों की सरकार होगी. इसके लिए हमें भारत से लॉजिस्टिक सपोर्ट भी चाहिए. इससे पहले तिब्बत और बांग्लादेश की सरकार भी भारत के समर्थन से ही बनी थी. हम यह भी चाहते हैं कि हमारी सरकार को ऑटोनॉमस रहने दिया जाए. बलोच यह सरकार बनाएं और वे ही इसे चलाएं.
इसका संविधान, अधिकार, और सब कुछ बलोच का होना चाहिए. हमें भारत का सपोर्ट चाहिए, लेकिन हमारी सरकार के आंतरिक मामलों में हम उसका हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं यानी हम पूरी तरह से ऑटोनॉमस रहें. उसके बाद हम यह चाहते हैं कि हम अपने राजनयिक पूरी दुनिया में भेजें, अपना पासपोर्ट जारी करें और जो बलोच पूरी दुनिया में फंसे हुए हैं, उन्हें हम भारत में बुला सकें और एक बलोच नागरिक के तौर पर उन्हें रख सकें. यह हमारे आज़ाद बलूचिस्तान के रोडमैप में बहुत बड़ा माइलस्टोन होगा.