नक्सल अभियान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आरके मल्लिक का मानना है कि टीपीसी नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चला रहा है. 50 से ज्यादा लोगों को जेल भेजा जा चुका है. 56 बैंक खातों की जांच हो रही है, जो नक्सलियों एवं परिजनों से संबंधित हैं. कई नक्सलियों की सम्पत्ति भी जब्त की गई है.
रांची से सटे टंडवा निवासी रामेश्वर भुईयां ने जब अपने पन्द्रह वर्षीय पुत्र से यह पूछा कि वह क्या बनना चाहता है, तो उसने बिना कुछ सोचे-समझे बोला कि हम उग्रवादी बनना चाहते हैं. वैसे उग्रवादी या नक्सली क्या होते हैं, यह उसे नहीं मालूम, पर वह इतना जरूर जानता है कि झारखंड के नक्सली करोड़पति हैं और उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है. उसने समाचार-पत्र में कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन के आत्मसमर्पण के बारे में भी पढ़ा था कि उसे हीरो की तरह पुलिस ने आत्मसमर्पण कराया था. वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि झारखंड के नक्सली अब करोड़पति ही नहीं, बल्कि अरबपति बन रहे हैं. महानगरों में तो सम्पत्ति है ही, उनके बच्चे भी विदेशों में पढ़ रहे हैं.
पुलिस हमेशा नक्सलियों के सफाये की बात तो करती है, पर इसके उलट सूबे में नक्सलियों की ताकत दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है. इसके साथ ही उनके आय के स्रोत भी बढ़ रहे हैं. कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन को हीरो की तरह आत्मसमर्पण कराए जाने पर उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाई थी और यह कहा था कि इस तरह से आत्मसमर्पण कराने से राज्य के युवाओं में भी भटकाव आ सकता है.
राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास एवं पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय ने दो वर्ष पूर्व यह दावा किया था कि झारखंड नक्सलमुक्त राज्य होगा, लेकिन नक्सलियों के खात्मे की अवधि बढ़ती गई. आज आलम यह है कि नक्सलियों को लगभग 600 करोड़ रुपए की कमाई हो रही है. नक्सली लेवी वसूलते हैं. नक्सली कोयले के अवैध कारोबार सहित कोयले की लोडिंग से एक निश्चित राशि लेवी के रूप में वसूलते हैं. नक्सली संगठनों की इजाजत के बिना यहां न तो कोयले का उठाव हो सकता है और न ही लोडिंग. आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे नक्सली संगठन अपनी अवैध कमाई से अत्याधुनिक हथियार खरीद रहे हैं. यहां तक कि नक्सलियों के पास मोर्टार भी है, जिसका उपयोग नक्सली पुलिस की घेराबंदी के दौरान करते हैं. हालत यह है कि आज छोटे-छोटे अपराधी भी संगठित होकर नक्सली संगठन बना रहे हैं और क्षेत्रों में वर्चस्व कायम करने की कोशिश में जुटे हैं. वर्चस्व को लेकर नक्सली संगठनों के बीच हमेशा हिंसक झड़पें होती रहती हैं.
एक अनुमान के मुताबिक नक्सली पूरे सूबे से लगभग दो हजार करोड़ की लेवी वसूल करते हैं. नक्सलियों की इस कमाई की जानकारी राज्य सरकार के पास भी है और कुछ नक्सलियों के संबंध में पुख्ता जानकारी भी विभाग ने एकत्र की है. नक्सलियों की सम्पत्ति की जब्ती के लिए राज्य सरकार ने जहां सख्त कानून बनाए हैं, वहीं अब नक्सलियों की सम्पत्ति की जांच एनआईए करेगी. राज्य सरकार ने एनआईए को जिम्मेदारी सौंपी है और जल्द ही सूबे में एनआईए का कार्यालय भी खुल जाएगा.
सूत्रों के अनुसार अगर कोयलांचल को छोड़ दें, तो रांची, चतरा, हजारीबाग, गढ़वा और लातेहार जिले के खदानों पर नक्सली संगठनों ने अपनी पूरी पकड़ बना ली है. चतरा में पुलिस व प्रशासन की नाक के नीचे से कोयला उठाने वाले ट्रकों से कमिटी (टीपीसी) के नक्सली विस्थापितों के नाम पर 13 हजार एकड़ में फैले मगध और आम्रपाली प्रोजेक्ट भी बनाया गया, इसके बाद वसूली के लिए योजनाबद्ध तरीके से नक्सलियों का नेटवर्क काम करने लगा. पूरे क्षेत्र में नक्सलियों का वर्चस्व कायम हो गया. आक्रमण जी उर्फ रवीन्द्र, कमलेश गंझू और अमर सिंह भोक्ता जैसे बड़े नक्सली नेता छोटे-छोटे अपराधियों को संरक्षण देते हैं और इनलोगों से लेवी की वसूली कराते हैं. 2017-18 में टीपीसी नक्सली संगठन के लोगों ने सीसीएल से 81.8 लाख टन डिस्पैच किए जाने वाले कोयले के जरिए लगभग 599 करोड़ रुपए वसूले.
कोयला लोडिंग होता है नक्सलियों के इशारे पर
सीआईडी ने भी राज्य सरकार को जो रिपोर्ट दी है, उसमें यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि नक्सली संगठन केवल कोयला खदानों से लेवी के रूप में हजारों करोड़ रुपए की वसूली कर अरबों की सम्पत्ति बना रहे हैं. इतने व्यापक पैमाने पर जब लेवी की वसूली हो रही है तो जाहिर है कि इसका बंटवारा भी होता होगा. नक्सलियों की लेवी की राशि राजनेता, पुलिस और पत्रकारों के बीच भी बंटती है.
राजनेताओं और पुलिस का संरक्षण मिले बिना बिना नक्सली संगठन खुलेआम लेवी नहीं वसूल सकते. नक्सली संगठन चुनाव के समय हर तरह से राजनीतिक दलों को लाभ भी पहुंचाते हैं. यही कारण है कि लेवी का धंधा सूबे में फल-फूल रहा है. नक्सली संगठन लेवी कैसे वसूलते हैं, इसकी भी जानकारी जरूरी है. छह जगहों पर एक ट्रक से 3130 रुपए की वसूली होती है. इसमें 20 रुपये एनएच से माइन्स के रास्ते में प्रवेश करते ही 60 रुपए माइन्स एरिया में प्रवेश करने से पहले, 150 रुपए कुंडी गेट पर देते हैं. यहां पर उन्हें पचास रुपए की रसीद मिलती है.
1200 रुपए कमिटी ऑफिस में माइन्स एरिया में 11 सौ रुपए कमिटी के नाम पर एवं 600 रुपए अनलोडिंग के नाम पर वसूलते हैं. हर ट्रक के लिए डीओ होल्डर कम्पनी 254 रुपए प्रतिटन कोयले के हिसाब से कमिटी को देती है और एक ट्रक में न्यूनतम 20 टन कोयला होता है, यानि 5080 रुपए प्रति ट्रक. इस तरह एक ट्रक से 8210 रुपए की वसूली होती है और यहां से हर दिन 2000 ट्रक निकलते हैं. इस तरह नक्सली संगठन प्रतिदिन लगभग पौने दो करोड़ रुपए की वसूली करते हैं और एक साल में लगभग 600 करोड़ रुपए की वसूली नक्सली संगठन करते हैं.
दरअसल नक्सली संगठन इसका फायदा भी कई कारणों से उठा रहे हैं. आधुनिक स्टील, हिंडाल्को, बजाज ग्रुप, बीकेजी, एआर इन्टरप्राइजेज, सूर्यालक्ष्मी इंटरप्राइजेज, मां इंटरप्राइजेज, भारत कोल ट्रेडिंग, गणगोपाल इंटरप्राइजेज और राहुल कार्बन सहित कई कम्पनियां मगध एवं आम्रपाली प्रोजेक्ट से कोयला खरीदती हैं, मगर लोडिंग एवं ढुलाई का काम ये कम्पनियां नहीं करती हैं. नक्सली संगठन के तय लोडर एवं ट्रांसपोर्टर से ही काम कराना होता है. नक्सली ही कंपनी को लोडिंग स्लिप जारी करते हैं. इससे पहले डीओ होल्डर कम्पनी 254 रुपए प्रतिटन के हिसाब से कमिटी को नकद पैसे देती है, तब कमिटी लोडिंग की जानकारी देती है. यह भी उसी पर निर्भर करता है कि कोयला लोड होगा कि नहीं. इनकी सहमति के बाद ही पास जारी किया जाता है. इससे यह साफ होगा कि कोयला लोडिंग एवं ट्रकों का निकलना नक्सलियों के इशारे पर होता है. नक्सली संगठन अब दूसरी जगह के कोयला खदानों का रुख करने लगे हैं. वर्चस्व जमाने को लेकर दूसरी कोयला खदानों में हिंसक झड़पें होती रहती हैं. नक्सली संगठनों ने अब आसानी से रुपए कमाने का का रास्ता ढूंढ लिया है.
नक्सल अभियान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आरके मल्लिक का मानना है कि टीपीसी नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चला रहा है. 50 से ज्यादा लोगों को जेल भेजा जा चुका है. 56 बैंक खातों की जांच हो रही है, जो नक्सलियों एवं परिजनों से संबंधित हैं. कई नक्सलियों की सम्पत्ति भी जब्त की गई है. जब उनसे यह पूछा गया कि लेवी वसूली का खेल कब बंद होगा, तो उन्होंने कहा कि अब पहले जैसी स्थिति नहीं है. खुलेआम होने वाली वसूली अब बंद है. उनमें से कई फरार हैं, कुछ महीनों में चोरी छिपे होने वाली वसूली भी बंद हो जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग लेवी वसूलने में नक्सलियों को संरक्षण देते हैं, उनकी भी पहचान कर ली गई है, उनलोगों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होगी.
ज़मीन, मकान, दुकान आदि में निवेश कर रहे नक्सली
केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने भी यह स्वीकार किया है कि जंगलों में रहकर सरकार के खिलाफ अभियान चलाने वाले नक्सली खासे मालामाल हैं. वे जमीन, मकान, दुकान आदि में भारी निवेश कर रहे हैं. छापों के दौरान उनके पास से बड़ी मात्रा में नकदी भी बरामद की गई है. नक्सल नेताओं की अरबों रुपयों की सम्पत्ति भी जब्त की गई है. सम्पत्ति जब्ती में प्रवर्तन निदेशालय के कई अधिकारी लगे हुए हैं. नक्सली प्रद्युम्न शर्मा के पास से 68 लाख की सम्पत्ति जब्त की गई है. उसके प्लॉट और मकान भी सील कर दिए गए हैं. संदीप यादव की 86 लाख के साथ ही दिल्ली स्थित द्वारिका में एक फ्लैट भी जब्त किया गया है. इसी प्रकार रोहित यादव एवं सत्यनारायण यादव से 25-25 लाख रुपए नगद, कमलेश गंझू से 36 लाख नगद, अमर सिंह का दो मंजिला मकान, संतोष से सात एकड़ जमीन एवं संतोष झा से कोलकाता के दो फ्लैट जब्त किए गए हैं. गृह मंत्रालय के अनुसार नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए उनके वित्तीय स्रोतों पर भी चोट की जा रही है.
हाल में रांची दौरे पर आए केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यह कहा था कि झारखंड में नक्सली समस्या जल्द ही खत्म होगी. इसके लिए केन्द्र सरकार हर तरह से मदद के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि नक्सली हिंसा छोड़ें तो उनसे बात की जा सकती है, जबकि मुख्यमंत्री रघुवर दास का यह दावा है कि नक्सलवाद खत्म करने वाला पहला राज्य झारखंड होगा. राज्य सरकार नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास को प्राथमिकता दे रही है. अति पिछड़े जिलों पर फोकस किया जा रहा है. शासन और जनता के बीच विश्वास बढ़ा है.
ऐसा देखा जा रहा है कि पुलिस के नक्सल विरोधी अभियान के बावजूद नक्सलियों का हौसला बुलंद है. मई 2018 में दस दिनों में नक्सलियों ने एक दर्जन बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया. केन्द्रीय अनुदान एवं सहयोग मिलने के बाद भी राज्य सरकार पूरी तरह से विफल है, राज्य सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे करे, केन्द्रीय गृह मंत्री से अपनी पीठ थपथपा ले, पर सच्चाई कुछ और ही है. सूबे का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, जहां नक्सलियों की धमक नहीं है. अब देखना है कि राज्य सरकार अपनी घोषणाओं पर कितना अमल करती है और झारखंड को नक्सलमुक्त राज्य बनाने में कब सफल होती है.