बिहार में राजनीति को सशक्त बनाने में जितना योगदान मगध का है, उससे कहीं ज्यादा योगदान प्रतिबंधित नक्सली संगठनों के फलनेे-फूलने के लिए अवसर प्रदान करने का भी है. संयुक्त बिहार में मगध क्षेत्र में प्रतिबंधित नक्सली संगठनों ने सत्तर के दशक में जब अपने पांव फैलाने शुरू किए थे, तब लोगों को इसका अंदाजा नहीं था कि यह क्षेत्र नक्सलियों की मजबूत शरणस्थली बन जाएगा. लेकिन सामाजिक असमानता व राजनीतिज्ञों की स्वार्थ भरी राजनीति ने मगध क्षेत्र में नक्सलियों को फलने-फूलने का पूरा मौका दिया. इसी का नतीजा है कि प्रतिबंधित नक्सली संगठनों ने मगध क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाकर जब जो चाहा, सो किया. मामला चाहे बड़े किसानों की भूमि पर लाल झंडा गाड़ने का हो या पुलिस की मुखबिरी करने का आरोप लगाकर किसी की हत्या करना या फिर विकास कार्यों में लेवी वसूलना या फिर खिलाफ में बयान देने वाले राजनेताओं को टारगेट कर हत्या करने का हो, सभी में नक्सली सफल रहे हैं.
इन मामलों में नक्सलियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने की बात भी सामने आती रही है. इन दिनों पुन: नक्सली संगठनों ने मगध क्षेत्र व इससे बाहर के कई सांसदों और राजनेताओं को चेतावनी दी है कि नक्सलियों के खिलाफ बयानबाजी कम करें, नहीं तो खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. उन्होंने नक्सलियों पर कड़ी कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों को भी चेतावनी दी है. नक्सलियों की धमकी से कई राजनेताओं में दहशत है. उनमें से कइयों ने बिहार सरकार से सुरक्षा की मांग की है. कारण यह है कि पूर्व में नक्सली कई राजनेताओं और पुलिसकर्मियों की हत्या कर चुके हैं.
1992 में गया के तत्कालीन सांसद ईश्वर चौधरी की हत्या नक्सलियों ने चुनाव प्रचार के दौरान कोंच विधानसभा क्षेत्र के कठोतिया गांव में कर दी थी. इसी प्रकार 2005 में इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व संासद राजेश कुमार और उनके सहयोगी की हत्या डुमरिया के मैगरा में नक्सलियों ने कर दी थी. इसके अलावा इमामगंज, टिकारी, परैया समेत कई थानों पर हमला कर नक्सली दर्जनों पुलिसकर्मियों की हत्या कर चुके हैं. हाल में सम्पन्न हुए पंचायत चुनाव में गया जिले के डुमरिया प्रखंड में लोजपा नेता सुदेश पासवान और उनके चचेरे भाई सुनील पासवान की नक्सलियों ने हत्या कर दी. इस घटना के बाद जब राजनेताओं ने नक्सलियों की निंदा की और पुलिस ने नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू की तो नक्सलियों ने पोस्टर चिपकाकर इन सभी को धमकी देना शुरू कर दिया. इसी प्रकार औरंगाबाद में नक्सलियों ने पुलिस मुखबिरी करने का आरोप लगाकर एक लकड़हारे की हत्या कर दी. तब मृतक की पत्नी ने पुलिस के सामने खुलासा किया कि दो नक्सली नेता प्राय: घर आकर उसके साथ दुष्कर्म करते थे. उसने बताया कि मेरे पति ने जब इसका विरोध किया तो उनकी हत्या कर दी गयी. औरंगाबाद के सांसद और वहां के एक विधान पार्षद ने जब मृतक की पत्नी से सहानुभूति जतायी तो नक्सलियों ने इन दोनों के साथ-साथ वहां के एसपी बाबूराम को भी अपने निशाने पर ले लिया. डुमरिया में लोजपा नेता की हत्या के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, लोजपा सांसद चिराग पासवान, पूर्व विधान पार्षद अनुज कुमार सिंह ने इस हत्याकांड की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी. नक्सलियों को नेताओं का बयान नागवार लगा. नक्सलियों ने नेताओं को चेतावनी देते हुए कहा कि वे घ़डियाली आंसू न बहाएं, अन्यथा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. इस मामले में महत्वपूर्ण है कि पूर्व मुख्यमंत्री और इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतनराम मांझी और लोजपा के सांसद चिराग पासवान को जेड श्रेणी की सुरक्षा मिली है. जबकि पूर्व विधान पार्षद अनुज कुमार सिंह की सुरक्षा वापस ले ली गई है और उन्हें सिर्फ दो सुरक्षाकर्मी मिले हैं. अनुज कुमार सिंह बहुत पहले से नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं. इनका घर डुमरिया प्रखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में है और इनका राजनीतिक क्षेत्र भी मगध प्रमंडल का ग्रामीण क्षेत्र है. ग्रामीण क्षेत्रों में इनका अक्सर आना-जाना होता है. अनुज सिंह ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय को भी अपनी सुरक्षा के संबंध में लिखा था. केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने बिहार सरकार को निर्देश दिया था कि अनुज सिंह की सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए उन्हें मुकम्मल सुरक्षा दी जाये. लेकिन अभी तक उन्हें सुरक्षा प्रदान नहीं की गई है और नक्सलियों की ओर से उन्हें बराबर धमकी भी दी जा रही है. इस बात की सूचना गया जिला प्रशासन को भी है. औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह, विधान पार्षद राजन कुमार सिंह तथा औरंगाबाद के एसपी बाबूराम भी नक्सलियों के निशानेे पर हैं. नक्सलियों ने औरंगाबाद जिले के मदनपुर थाना के पचरुखिया निवासी अवधेश भोक्ता एवं देव प्रखंड के उप प्रमुख मनोज कुमार सिंह की हत्या पुलिस मुखबिरी का आरोप लगाकर कर दी थी. इसके बाद पुलिस ने नक्सलियों का सहयोग करने वाले कई लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इन घटनाओं पर औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह और एमएलसी राजन कुमार सिंह ने बयान दिया तो नक्सली भड़क उठे. भाकपा माओवादी ने एक पर्चा में सांसद सुशील कुमार सिंह तथा एमएलसी राजन कुमार सिंह और औरंगाबाद के एसपी बाबूराम को सबक सिखाने की चेतावनी दी है. प्रतिबंधित नक्सली संगठन सामना होने पर ही लाचारी में पुलिस से मुठभेड़ करते हैं.
नक्सली संगठनों ने अबतक गुरिल्ला युद्ध की तरह ही अपने टारगेट पर कार्रवाई की है या फिर बारुदी सुरंग लगाकर हिंसक कार्रवाई को अंजाम दिया है. इन्हीं सब घटनाओं और स्थितियों को देखते हुए मगध क्षेत्र के राजनेता नक्सलियों से भयभीत हैं. विशेषकर झारखंड की सीमा से लगे बिहार के क्षेत्रों में राजनीति करने वाले लोगों को नक्सली प्राय: डराते-धमकाते रहते हैं. यही स्थिति झारखंड की सीमा से लगे बिहार के थाने में पदस्थापित पुलिसकर्मियों का है. सच कहा जाये तो ये पुलिसकर्मी भी नक्सलियों के रहमोकरम पर ही अपनी सुरक्षा कर पाते हैं. यही कारण है कि अर्द्धसैनिक बलों के तमाम प्रयासों के बाद भी नक्सलियों के खिलाफ कारगर कार्रवाई नहीं हो पाती है. स्थानीय थानों से अर्द्धसैनिक बलों को अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता है. स्थानीय स्तर पर थानों को किसी भी नक्सली या अपराधियों के संबंध में पूरी जानकारी होती है. यही कारण है कि नक्सली मगध क्षेत्र में पुलिस और राजनेताओं को अपने निशाने पर लेेकर धमकाने में लगे हैं.