चेतावनी
क्यूँ ढूंढते हो
मंगल सूत्र मेरी गर्दन में;
माथे की बिंदी और मांग के सिंदूर से
तय करते हो अपना आचरण।
यदि मेरे आभूषण,
तुम्हारी सोच को नियंत्रित करते हैं;
और तुम्हारे शरीर को नियंत्रित करते हैं-
‘मेरे वस्त्र’
तो चेतावनी देती हूँ-
किसी नवजात बच्ची को;
गोद में मत उठाना।
सफर
बेटा माँ सा
माँ नानी सी
और दीदी कुछ-कुछ दादी सी
जो सबसे लम्बे
और ज़रूरी सफ़र थे
औरतों ने तय किए
तमाम आदमियों की शक्ल में
औरतें झाँकती हैं
और औरतों की शक्ल में
अजन्मी सभ्यता।
तारीफ़
लड़कियों ग़ौर से सुनना अपनी हर तारीफ़
खाना पकाने की तारीफ़
कपड़ों और श्रृंगार की तारीफ़
तुम्हारे सिर झुकाए रहने
धीरे बोलने, धीरे हँसने, धीरे चलने की तारीफ़
इन तारीफ़ों पर तुम्हारा इतराना
वहीं मदहोशी है
जो किसी धीमे ज़हर से उत्पन्न होती है
एक दिन तुम मर चुकी होगी
और ये तारीफ़ें बढ़ जाएंगी
अपने अगले शिकार की तरफ़।
बद्तमीज़ औरतें
जब सभ्य और संस्कारी औरतें
लड़कियों को रोटी परोसना सिखा रही थीं
तब कुछ बद्तमीज़ औरतों ने
लड़कियों को थाली में सजा व्यंजन हो जाने से बचा लिया
जब संस्कारी औरतें सिखा रही थीं
कैसे बनाया जाए घर को मर्दों के रहने लायक
तब कुछ बद्तमीज़ औरतों ने
दुनिया को लड़कियों के रहने लायक बनाया
इनकी बद्तमीज़ियाँ भारी पड़ती रही
पक्षपाती सभ्यताओं पर……..
सुन्दरता के मापदंड
सुन्दरता के मापदंड तय हुए
और उन्हें तराशकर सजाया गया
औज़ार कभी दिखे कभी नहीं भी दिखे
इस दौरान एनेस्थीसिया दिया गया
जो ताउम्र काम करता रहेगा
उनका इस्तेमाल अब इच्छाओं की
पूर्ति के लिए होता है
ये बात पत्थरों के बारे में है।
स्त्रियाँ हँसती हैं साँचों पर
समाज के बनाए साँचों से,
मेल नहीं खाती स्त्रियाँ।
साँचे पुराने हैं,
टूटने की कगार पर हैं,
इन्हें गला देना होगा,
स्त्रियाँ हँसती हैं साँचों पर,
और साँचों को पकड़े हाथ-
स्त्रियों पर।
शेफ़ाली शर्मा
छिन्दवाड़ा