नेचुरल गैस की क़ीमत में दोगुनी वृद्धि इस तरीके से की गई है, जिसे समझना आम आदमी के लिए लगभग नामुमकिन है. क्योंकि, यहां क़ीमत का संबंध गैस से है और द्रव से भी है. यहां गैस के द्रव बनते ही खेल बदल जाता है, क़ीमत बदल जाती है. आइए, जानते हैं कि नेचुरल गैस के दाम में वृद्धि के पीछे की कहानी क्या है… 
AMBANI-MANMOHANयूपीए-2 की सरकार ने नेचुरल गैस की क़ीमत 4.2 डॉलर से बढ़ाकर 8.4 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू करने का फैसला किया था और वर्तमान एनडीए सरकार ने इस फैसले को रोकने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया है. यानी वर्तमान सरकार भी इस बढ़े हुए दाम को लागू करने जा रही है. दूसरी तरफ़, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में (हेनरी हब, यूएसए) इसी नेचुरल गैस की क़ीमत 3.6 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू है और ज़्यादा से ज़्यादा, आम तौर पर, किसी भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इसकी क़ीमत 4 या 5 डॉलर तक जाती है.
प्राकृतिक गैस देश का संसाधन है. जनता के हित के लिए इसका इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस के फ़ायदे के लिए इसके दाम लगातार बढ़ाए जा रहे हैं. दाम बढ़ाए जाने में रंगराजन समिति की सिफारिशों को भी आधार बनाया गया है. रंगराजन समिति ने प्राकृतिक गैस (एनजी) के दाम तय करने में एलएनजी इंपोर्ट, यूएस हेनरी हब, यूके की एनबीपी और जापान के जेसीसी लिंक्ड प्राइस (इन सभी जगहों पर एनजी और एलएनजी के दाम) के औसत के आधार पर भारत में उत्पादित नेचुरल गैस की क़ीमत तय करने की सिफारिश की. समझने वाली बात यह है कि क्या देश में उत्पादित प्राकृतिक गैस की क़ीमत तय करने के लिए एलएनजी के दाम को आधार बनाया जाना उचित है. यह उसी तरह है, जैसे क्रूड ऑयल (कच्चे तेल) की क़ीमत का आधार पेट्रोल और डीजल के बाज़ार भाव को बना दिया जाए.
मूल्य वृद्धि से किसका फ़ायदा : केजी बेसिन के डी-6 ब्लॉक से नेचुरल गैस का उत्पादन रिलायंस इंडस्ट्रीज कर रही है. इस मूल्य वृद्धि से रिलायंस को प्रति वर्ष 1.6 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त मुनाफा होगा. इसके अलावा, डॉलर में यह वृद्धि किए जाने से भी इसके मुनाफे में 11 फ़ीसद की वृद्धि होगी, क्योंकि रुपये की क़ीमत में पिछले दो-तीन सालों में 11 फ़ीसद की गिरावट रही है.
उत्पादन खर्च एक डॉलर से कम : केजी बेसिन के डी-6 ब्लॉक में मेसर्स निको भी गैस उत्पादन का काम कर रही है. निको ने कनाडा के स्टॉक एक्सचेंज में जो वित्तीय दस्तावेज जमा कराए हैं, उनके मुताबिक, केजी डी-6 ब्लॉक में गैस उत्पादन की लागत महज 0.40 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू आती है, जो दुनिया भर में सबसे कम है. फिर किन वजहों से गैस की क़ीमत दो गुना बढ़ाने का फैसला सरकार ने किया, यह समझ से परे है. रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने डायरेक्टर जनरल, डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ हाइड्रोकार्बन के पास 22 मई, 2009 को जो दस्तावेज जमा कराए हैं, उनके मुताबिक, प्रति एमएमबीटीयू का खर्च 0.8045 डॉलर यानी एक डॉलर से भी कम आता है. फिर तीन वर्षों में ही ऐसा क्या हो गया कि गैस की क़ीमत में दोगुनी वृद्धि करने की नौबत आ गई?
मूल्य वृद्धि का क्या प्रभाव पड़ेगा : उर्वरक उद्योग को 47.8 एमएमएससीएमडी गैस की ज़रूरत होती है. यूरिया उत्पादन करने वाले 85 फ़ीसद प्लांट नेचुरल गैस पर आधारित हैं. ऐसे में अगर नेचुरल गैस का मूल्य बढ़ता है, तो उर्वरक उद्योग को दी जाने वाली सब्सिडी में भी वृद्धि होगी. सरकार खुद मानती है कि गैस के मूल्य में एक डॉलर/एमएमबीटीयू की वृद्धि से यूरिया उत्पादन की लागत में 1384 रुपये/एमटी की वृद्धि हो जाएगी. फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, गैस मूल्य में वृद्धि से हर साल 11,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी का बोझ पड़ेगा.
ऊर्जा क्षेत्र : ऊर्जा क्षेत्र भी इस मूल्य वृद्धि से बुरी तरह प्रभावित होने जा रहा है. इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च एजेंसी के मुताबिक, नेचुरल गैस आधारित पावर प्लांट पर भी गैस मूल्य वृद्धि का असर पड़ेगा. 8.4 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू गैस मूल्य होने पर प्रति किलोवाट ऑवर (केडब्ल्यूएच) बिजली की क़ीमत में 4.29 रुपये की वृद्धि हो जाएगी. अभी देश में 65 बिलियन किलोवाट ऑवर बिजली का उत्पादन गैस आधारित प्लांट के जरिये होता है. नतीजतन, गैस मूल्य में वृद्धि होने से क़रीब 132 बिलियन रुपये का अतिरिक्त बोझ ग्राहकों यानी जनता पर आएगा. संसद की स्थायी समिति का कहना है कि कम उत्पादन की वजह से देश के 56 गैस आधारित बिजली घरों को पर्याप्त गैस नहीं मिल पा रही है.
ग़ौरतलब है कि नेचुरल गैस का उत्पादन करने वाला कोई देश अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एलएनजी का इस्तेमाल नहीं करता है, बल्कि पाइप लाइन द्वारा नेचुरल गैस को उन जगहों पर भेजता है, जहां इसकी ज़रूरत होती है. जिन देशों के पास नेचुरल गैस नहीं है, वे ही एलएनजी के फॉर्म में इसका उपयोग करते हैं, क्योंकि उन्हें नेचुरल गैस आयात करनी पड़ती है. जिन देशों में नेचुरल गैस का उत्पादन होता है, वहां घरेलू उपभोक्ताओं यानी बिजली एवं उर्वरक उत्पादन कंपनियों को एलएनजी नहीं, बल्कि पाइप लाइन से नेचुरल गैस (पीएनजी) दी जाती है. कतर, ओमान, सऊदी अरब, ब्राजील आदि देशों में सरकार प्राकृतिक गैस के दाम का निर्धारण करती है. अमेरिका जैसे कुछ देशों में बाज़ार इसकी क़ीमत तय करता है. भारत में भी सरकार ही नेचुरल गैस की क़ीमत तय करती है, लेकिन क़ीमत तय करने का आधार बहुत संदिग्ध है. अगर एलएनजी और नेचुरल गैस की क़ीमतों के बीच के अंतर को समझें, तो साफ़ हो जाता है कि भारत में यह क़ीमत किसी भी तरह से उचित नहीं है. जैसे, जापान में गैस के भंडार नहीं हैं और वहां इसका आयात करना पड़ता है. यानी जापान एलएनजी का उपयोग करता है. वह मध्य-पूर्व एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया से यह गैस आयात करता है. मध्य-पूर्व एशिया में उत्पादन यानी कुएं से निकाले जाने के समय नेचुरल गैस की क़ीमत 0.5 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू होती है. एलएनजी बनकर जब यह जापान पहुंचती है, तो बिना कस्टम ड्यूटी चुकाए इसकी क़ीमत 5.80 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू हो जाती है. यानी दाम में क़रीब 12 गुना का अंतर हो जाता है.
बहरहाल, संसद की स्थायी समिति (वित्त) की रिपोर्ट ने प्राकृतिक गैस की क़ीमत बढ़ाए जाने का विरोध किया. इस समिति के अध्यक्ष भाजपा नेता यशवंत सिन्हा हैं. लेकिन, संसद में इसका विरोध न भाजपा ने किया और न किसी अन्य दल ने. अब भाजपा सरकार में है, फिर भी अपने ही नेता की सिफारिशें मानने के लिए उसके पास न वक्त है और न इच्छा शक्ति.


संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट

  • ध्यान देने की बात यह है कि इस रिपोर्ट को भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने तैयार किया था और अपनी सिफारिशें दी थीं. सिन्हा उस वक्त संसद की स्थायी समिति (वित्त) के अध्यक्ष थे.
  • 8समिति ने अपनी 74वीं रिपोर्ट में कहा है कि देश में महंगाई और आर्थिक मंदी का माहौल है. ऐसे में गैस मूल्य वृद्धि का उर्वरक, ऊर्जा, स्टील सेक्टर समेत अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा.
  • 2005 से अब तक नेचुरल गैस के दाम में 300 फ़ीसद की वृद्धि हुई, लेकिन इस सेक्टर में निवेश और घरेलू उत्पादन गिरा.
  • सरकार ने बिना कोई खास अध्ययन (परिश्रम) किए गैस के दाम बढ़ाने का ़फैसला कर लिया.
  • इस संबंध में न तो किसी तरह की क़ीमत का अध्ययन किया गया और न इसके प्रभाव के बारे में जानकारी ली गई.
  • रंगराजन पैनल द्वारा सुझाए गए प्राइसिंग फॉर्मूले पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए.
  • सरकार एक ऐसा नया मूल्य लेकर आए, जो संतुलित हो.
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