कुछ माह पहले सरकार और अदालत का फरमान आया था कि सार्वजनिक एवं भीड़भाड़ वाले स्थानों पर सिगरेट-तंबाकू का सेवन दंडनीय अपराध है. यदि कोई शख्स ऐसे स्थान पर सिगरेट पीता पकड़ा जाएगा, तो उसे जुर्माना देना होगा. सरकारी एवं निजी स्कूलों के शिक्षकों द्वारा तंबाकू छोड़ने की ख़बरें मीडिया में सुर्खियां बनी थीं. उधर, गांव से लेकर शहर तक शराब की लाइसेंसी दुकानों की बोली लग रही है. प्रत्येेक पंचायत में शराब की दुकान का लाइसेंस देने की कवायद हो रही है. वहीं बिहार में पिछले साल जहरीली शराब पीने से दो दर्जन से ज़्यादा मौतें हुई थीं, बावजूद इसके सरकारें आय के चक्कर में शराब की दुकानों के लाइसेंस बांट रही हैं.
हाल में बिहार के सभी जिलों में गुटखा की दुकानों पर सख्त छापेमारी की गई, पुलिस की पीठ थपथपाई गई, लेकिन गुटखा की बिक्री और तेज हो गई. एक तरफ़ बिहार समेत पूरे देश को नशामुक्त करने की बात हो रही है, वहीं दूसरी तरफ़ शराब की दुकानों के लाइसेंस दिए जा रहे हैं. बिहार में देशी एवं स्पिरिट निर्मित शराब के ख़िलाफ़ महिलाएं सड़क पर भी उतरीं. उनके आंदोलन की गूंज ने राज्य सरकार के कान खड़े कर दिए. अवैध शराब के कारोबारियों पर कार्रवाई हुई, कुछ महीनों तक सब कुछ ठीकठाक रहा, लेकिन एक बार फिर आगामी लोकसभा चुनाव में मतदाताओं का गला तर करने के लिए यह गोरखधंधा तेजी से फलने-फूलने लगा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2002 में जारी अपनी रिपोर्ट में बीमारियों के लिए जिन दस प्रमुख कारणों को ज़िम्मेदार माना, उनमें चौथे स्थान पर तंबाकू और पांचवें स्थान पर शराब है. विश्व स्तर पर बीमारियों के 41 प्रतिशत मामले तंबाकू के सेवन के कारण हैं. संयुक्त राष्ट्रसंघ और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत में शराब के आदी लोगों की संख्या 25 लाख पार कर चुकी है, जबकि 8 लाख 75 हज़ार लोग चरस, 20 लाख लोग अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं. भारत में कुल नशेड़ियों में से 18 फ़ीसद को तत्काल उपचार की ज़रूरत है. देश के युवा वर्ग में नशा करना फैशन-सा बन गया है. नशीले पदार्थों की लंबी फेहरिस्त है, यथा तंबाकू, शराब, चरस, अफीम, गुटखा, बूट पॉलिश एवं क्रीम. कागज पर लगने वाले व्हाइटनर को शराब में सोडा की जगह और दर्द की दवा एस्प्रिन नशे के लिए इस्तेमाल हो रही है.
हाल में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने बिहार में नशे के लिए कफ सीरप के इस्तेमाल पर चिंता जताई है. बीते दो वर्षों में कफ सीरप की क़रीब 8 करोड़ बोतलों का इस्तेमाल हुआ, जबकि पहले एक साल में क़रीब दो करोड़ बोतलों की खपत होती थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कफ सीरप के कुल उत्पादन का आधा हिस्सा बिहार में खप जाता है. यहां बेनाड्रिल एवं फेंसाडील लिंटस नामक कफ सीरप की काफी मांग है. शराब की जगह कफ सीरप नशेे के रूप में लेने से मुंह से बदबू नहीं आती. यह आसानी से किसी भी फॉर्मेसी से मिल जाती है. युवाओं में सीरप के अलावा स्पासमोप्रॉक्सिवान कैप्सूल मशाहूर है. यह पेटदर्द की दवा है, बावजूद इसके एक बार में पांच-पांच कैप्सूल एविल टैबलेट के साथ लेने का नया मामला प्रकाश में आया है. प्रशासन इसे रोक पाने में असफल है. शराब पीने की आदत समाज के कमजोर एवं ग़रीब तबके में अपेक्षाकृत अधिक है. दूसरी ओर नगरों-महानगरों के अधिकारियों, डॉक्टरों एवं अन्य शिक्षित लोगों ने भोजन के साथ नशा अनिवार्य कर लिया है. स्कूली छात्र-छात्राएं भी गुटखा, खैनी, शराब एवं ड्रग्स के आदी होते जा रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, इन सभी नशीले पदार्थों में तंबाकू सबसे ज़्यादा ख़तरनाक है. तंबाकू तेजी से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती है. तंबाकू के धुएं में निकोटिन के अलावा कार्बन मोनोऑक्साइड, मेथनॉल, अमोनिया, नाइट्रोजन के ऑक्साइड एवं हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे विषैले रसायन होते हैं. तंबाकू के पत्ते पर पाए जाने वाले पीले रंग के टार, पोलोनियम एवं रेडियम आदि कैंसर जन्य रसायन हैं, जो मनुष्य के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालते हैं. मुजफ्फरपुर के डॉ. ए के सिंह (फिजीशियन) के मुताबिक, शराब की लत तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर क्रमश: बोलने, सोचने एवं अन्य मस्तिष्कीय कार्यों को अनियंत्रित करती है. धीरे-धीरे शरीर इसका आदी हो जाता है. नशा एक पैग से बोतल, बोतल से ड्रग्स की सूइयों तक पहुंच जाता है. शराब एवं तंबाकू का सेवन करने वाली महिलाओं में प्रसव पूर्व और प्रसव उपरांत नवजात शिशु मृत्यु दर का उच्च अनुपात देखा गया है. उनसे जन्मे बच्चे में हृदय की विकृति, बौद्धिक विकलांगता एवं छोटा कद होना आम बात है. एक तरफ़ हम समाज को नशामुक्त करने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ हम नशे की बेड़ियों में जकड़ते जा रहे हैं. सरकार को इन मादक पदार्थों पर रोक लगानी चाहिए, वरना वह दिन दूर नहीं, जब भारत की एक बड़ी आबादी नशेे के आगोश में समा जाएगी और सरकार उसके इलाज के लिए लाखों-करोड़ों रुपये का बजट बनाएगी.
Adv from Sponsors