पुस्तक समीक्षा

पुस्तक – “सूत्र काव्य”
लेखक – नरेश अग्रवाल
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन

समीक्षा – डॉ कुमारी उर्वशी
विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग,
रांची विमेंस कॉलेज, रांची

कवि नरेश अग्रवाल की वर्ष 2021 में बोधि प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक है “सूत्र काव्य”। कहा जाता है कि यदि आप में संप्रेषण की क्षमता है तो शब्द मायने नहीं रखते । 20 पृष्ठों की सामग्री को आप दो पंक्ति में समेट सकते हैं। नरेश अग्रवाल जी में भी कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक कहने का माद्दा है । काव्य में प्रयुक्त इनकी भाषा बेहद सरल, सहज महसूस होती है ।इस पारदर्शी भाषा के सहारे कम से कम में अधिक से अधिक कहा जा सकता है।

सलीके से सरल भाषा में जीवन के मर्म और तत्व को पाठकों तक पहुंचाना बिना किसी विस्तार और प्रदर्शन के एक विशिष्ट कला है।जीवन के अनुभवों की गहराई में उतर कर साहित्य रचते इस लेखक में संक्षिप्तीकरण की अद्भुत क्षमता है।

विश्व स्तर पर रचना धर्मिता संक्षिप्तीकरण की राह पर अग्रसर हो रही है। साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा आज लघु रूप में सामने आ रही है । महाकाव्य अब नहीं रचे जाते, उपन्यास, कहानियां भी लघु रूप में ज्यादा पसंद की जा रही हैं। यहां तक की फिल्में भी जो पहले 3:30 – 4 घंटे की हुआ करती थी डेढ़ 2 घंटे की बनने लग गई हैं । आज साहित्य में क्षणवाद की प्रभावशीलता से इनकार नहीं किया जा सकता। नरेश अग्रवाल की रचना “सूत्र काव्य” की रचनाएं एक सूत्रीय काव्य का प्रभाव देती हैं। यह एक सूत्रीय काव्य गहन आत्म विश्लेषण का द्योतक हैं। नरेश अग्रवाल जी ने समकालीन समय को पहचानते हुए, सृजन की एक नई पृथ्वी को वैश्विक चेतना से संपन्न किया है।

भारतीय साहित्य की परंपरा में सूत्र काव्य की प्राचीनता लक्षित होती है। पंक्ति दो पंक्ति की यह रचनाएं अपनी लघुता में विशिष्ट होती हैं और संप्रेषण की ताकत प्रभावशाली होती है।कई बड़े लेखकों की सुक्तियां युगो युगो से आदर पा रही हैं और इन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है ।दोहे सोरठे आदि के रूप में भी सूत्र काव्य लोकप्रिय हुए हैं तो आधुनिक काल में क्षणिकाएं अथवा जापान से आई विधा हाइकु भी प्रतिष्ठित है।

नरेश अग्रवाल जी की यह कृति “सूत्र काव्य” हाइकु तथा क्षणिका विधा से प्रभावित लगती है। हाइकु मूल रूप से जापानी कविता है। यह जापानी संस्कृति की परम्परा, जापानी जनमानस और सौन्दर्य चेतना में हुआ और वहीं पला है। हाइकु में अनेक विचार-धाराएँ मिलती हैं- जैसे बौद्ध-धर्म का आदि रूप, उसका चीनी और जापानी परिवर्तित रूप, विशेष रूप से जैन सम्प्रदाय, चीनी दर्शन और प्राच्य-संस्कृति। यह भी कहा जा सकता है कि एक “हाइकु” में इन सब विचार-धाराओं की झाँकी मिल जाती है या “हाइकु” इन सबका दर्पण है।” हाइकु को काव्य विधा के रूप में बाशो ने प्रतिष्ठा प्रदान की थी । हाइकु मात्सुओ बाशो के हाथों संवरकर 17 वीं शताब्दी में जीवन के दर्शन से जुड़ कर जापानी कविता की युगधारा के रूप में प्रस्फुटित हुआ। आज हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व साहित्य की निधि बन चुका है। बिंब समीपता हाइकु संरचना का मूल लक्षण है। इस से पाठक को रचना के भाव में अपने आप को समदर्शी बनाने की जगह मिल जाती है।

यह सर्वविदित है कि कविता का मूल उसका कथ्य या भाव होता है। विस्तार सिर्फ बाह्य स्वरुप को तथा शब्द संयोजन के शिल्प को दिखाने के लिए किया जाता है। सूत्रों में सजी कविता विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करती है।

हिंदी साहित्य में क्षणिकाएं भी बेहद प्रचलित हैं। क्षण की अनुभूति को शब्दों में पिरोकर साहित्य रचना ही क्षणिका होती है। अर्थात् मन में उपजे गहन विचार को कम शब्दों में इस प्रकार बाँधना कि कलम से निकले हुए शब्द सीधे पाठक के हृदय में उतर जाएं। मगर शब्दों में धार होनी चाहिए तभी क्षणिका सार्थक होगी अन्यथा नहीं। वैसे एक साहित्यकार की दृष्टि से देखा जाए तो क्षणिका योजनाबद्ध लिखी ही नहीं जा सकती है। यह तो वह भाव है जो अनायास ही कोरे पन्नों पर स्वयं अंकित होती है। आशुकवि ही क्षणिका की रचना सफलता के साथ कर सकता है। साथ ही क्षणिका जितनी मर्मस्पर्शी होगी उतनी ही वह पाठक के मन पर अपना प्रभाव छोड़ेगी। क्षणिका को हम छोटी कविता भी कह सकते हैं। क्षणिकाएँ हास्य, गम्भीर, शान्त और करुण आदि रसों में भी लिखी जा सकती हैं।

“सूत्र काव्य” पुस्तक में शामिल प्रत्येक सूत्र काव्य अपने आप में गंभीर अर्थ रखता है:-

1.तूफान हर किसी को स्पर्श करता है , लेकिन शांति केवल स्वयं को।

2. आकाश रोता है जब पक्षियों की जगह उसमें बमवर्षक विमान उड़ते हैं।

3. आक्रमण हमेशा समाज के कमजोर हिस्से पर ही होता है।

4. सत्य दिखाने वाला दर्पण हमेशा हाथों से ढक दिया जाता है।

5. कितने ही होठों से गुजरते हुए कोई दिलचस्प बात एक दिन कहानी का रूप ले लेती है।

6. जब जूते दूसरों को कुचलने में कोई संकोच नहीं करते तो समझ लीजिए कि इन्हें एक अत्यंत भ्रष्ट व्यक्ति ने पहन रखा है।

7. हर यात्रा के बाद देखी हुई जगह आपकी अपनी सी हो जाती है।

8.काबिल लोगों के पास नाव की तरह अनगिनत रास्ते होते हैं दूसरे तट तक पहुंचने के।

9. महत्वपूर्ण व्यक्तियों को गलतियों के लिए अनेक बार क्षमादान मिल जाता है।

10.जिसमें सभी को सुरक्षित रखने का गुण हो उससे हर किसी की आस्था जुड़ जाती है।

11. सहनशील लोगों को पानी की तरह कितनी बार ही उबालिये, फिर भी पीने योग्य बने रहेंगे।

इन सूत्र काव्यों को पढ़कर यह महसूस होता है कि सुक्तियाँ मानव के गहन चिंतन की सार्थक अभिव्यक्तियां होती हैं। जीवन अनुभव जितना विराट और वैविध्यपूर्ण होगा सूक्तियाँ उतनी ही अधिक प्रभावित होगी। सामान्यतः महान प्रतिभाओं,मनीषियों के प्रेरक वाक्य को अथवा शब्दों में अभिव्यक्त जीवन दृष्टियों को सुक्ति से संबोधित किया जाता है ।यह समय पर समाय मार्गदर्शन करती हैं। जीवन को परिपूर्ण बनाने में सूक्तियाँ महत्वपूर्ण सिद्ध होती हैं।

नरेश अग्रवाल जी बड़ी सरलता से सूक्तियों का सहारा लेते हुए समाज को अपना संदेश दे रहे है जो जीवन के व्यावहारिक पक्ष से संबंधित सिध्दांत नीति अथवा अनुभव सिध्द तथ्य की पुष्टि करते हैं। इन सूक्तियों से जीवन की सच्ची परिस्थितियों का मार्मिक अनुभव व्यक्त होता है। सूक्तयों में चिंतन, अनुभूतियों, परीक्षण और कल्पना के तथ्य, सारभूत सत्य निहितार्थ होता है। इनके द्वारा जीवन-यात्रा में स्फूर्ति, प्रोत्साहन और मानसिक बल प्राप्त होगा । यह जीवन के अंधकारपूर्ण क्षणों में प्रकाश किरण का काम करेंगी क्योंकि इन सूक्तियों में जीवन भर के कितने ही अनुभवों का अमृत सिर्फ एक बिंदु में ही भर दिया गया है।

इस पुस्तक में शामिल सूत्र काव्य का प्रमाण सामान्य सत्य है। यह सूत्र काव्य ऐसा कथन है जिसको पढकर मानस झंकृत हो उठे चाहे वह शाब्दिक हो या अर्थ परक । प्रत्येक सत्र काव्य में ज्ञान का जो निष्कर्ष निकलता है, वह सुचिंतित है और प्रायः व्यवहत होता है। संक्षिप्तता ,सारगर्भिता, सप्रमाणतायुक्त जीवन के अनुभवों पर आधारित निष्कर्षात्मकता युक्त, विशेष का सामान्यीकरण रूप सूत्र काव्य में निहित है। यह ज्ञान और चिंतन के परिपक्व फल के रूप में प्रस्फुटित हुआ है। नीतिज्ञान, शिक्षा, तत्वज्ञान और उच्चादर्श इसके प्रेरक हेतु हैं।

Adv from Sponsors