2018 में स्वामी ज्ञान स्वरूप सांनद, जो पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में अध्यापन करते समय प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल के नाम से जाने जाते थे, ने गंगा के संरक्षण हेतु प्रधान मंत्री को चार पत्र लिखे और अंततः 112 दिनों के अनशन के बाद 11 अक्टूबर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश में प्राण त्याग दिए, अपनी मार्मिक मौत से पहले ही प्रधान मंत्री को सम्भावित मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
अपने 24 फरवरी, 2018 के पत्र में प्रधान मंत्री को छोटे भाई के रूप में सम्बोधित करते हुए स्वामी सानंद लिखते हैं, ’तुम्हारा अग्रज होने, तुमसे विद्या-बुद्धि में भी बड़ा होने और सबसे ऊपर मां गंगा जी के स्वास्थ्य-सुख-प्रसन्नता के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने के लिए तैयार होने में तुम से आगे होने के कारण गंगा जी से सम्बंधित विषयों में तुम्हें समझाने का, तुम्हें निर्देश तक देने का जो मेरा हक बनता है वह मां की ढेर सारी मनौतियों और कुछ अपने भाग्य और साथ में लोक लुभावनी चालाकियों के बल पर तुम्हारे सिंहासनारूढ़ हो जाने से कम नहीं हो जाता।’ फिर अपनी तीन अपेक्षाएं स्पष्ट रूप से रखने के बाद स्वामी सानंद लिखते हैं, ’पिछले साढ़े तीन से अधिक वर्ष तुम्हारी व तुम्हारी सरकार की प्राथमिकताएं और कार्यपद्धति देखते हुए मेरी अपेक्षाएं मेरे जीवन में पूरा होने की सम्भवना नगण्य ही है और मां गंगाजी के हितों की इस प्रकार उपेक्षा से होने वाली असह्य यातना से मेरा जीवन ही यातना बनकर रह गया है – अतः मैंने निर्णय किया है गंगा दश्हरा (22 जून, 2018) तक उपरोक्त तीनों अपेक्षाएं पूरी न होने की स्थिति में मैं आमरण उपवास करता हुआ और मां गंगा जी को पृथ्वी पर लाने वाले महाराजा भगीरथ के वंशज शक्तिमान प्रभु राम से मां गंगा के प्रति अहित करने और अपने एक गंगा भक्त बड़े भाई की हत्या करने का अपराध का तुम्हें समुचित दण्ड देने की प्रार्थना करता हुआ प्राण त्याग दूं।’
फिर 13 जून को दूसरा पत्र भी प्रधान मंत्री को छोटे भाई ही सम्बोधित करते हुए स्वामी सानंद लिखते हैं, ’जैसा मुझे पहले ही जानना चाहिए था, साढ़े तीन महीने के 106 दिन में, न कोई प्राप्ति सूचना न कोई जवाब या प्रतिक्रिया या मां गंगाजी या पर्यावरण के हित में (जिससे गंगाजी या निःसर्ग का कोई वास्तविक हित हुआ हो) कोई छोटा सा भी कार्य। तुम्हें क्या फुरसत है मां गंगा की दुर्दशा या मुझ जैसे बूढ़ों की व्यथा की और देखने की??? ठीक है भाई मैं क्यों व्यथा झेलता रहूं? मैं भी तुम्हें कोसते हुए और प्रभु राम जी से तुम्हें मां गंगाजी की अवहेलना, पूर्ण दुर्दशा और अपने बड़े भाई की हत्या के लिए पर्याप्त दण्ड देने की प्रार्थना करता हूं, शुक्रवार 22 जून, 2018 (गंगावतरण दिवस) से निरंतर उपवास करता हुआ प्राण त्याग देने के निश्चय का पालन करूंगा।’ पत्र के अंत में स्वामी सानंद लिखते हैं, ’प्रभु तुम्हें सद्बुद्धि दें और अपने अच्छे बुरे सभी कामों का फल भी। मां गंगा जी की अवहेलना, उन्हें धोखा देने को किसी स्थिति में माफ न करें…’
तीसरा पत्र लिखते समय तक स्वामी सानंद को समझ में आ गया था कि उनका पाला एक निष्ठुर व्यक्ति से पड़ा है जो उनके पत्रों का जवाब नहीं देने वाला। अतः 5 अगस्त के पत्र में उन्होंने नरेन्द्र मोदी को आदरणीय प्रधान मंत्री के रूप में सम्बोधित किया है और पत्र में भी तुम की जगह आप का प्रयोग किया है। उन्होंने लिखा, ’मेरी अपेक्षा यह थी कि आप …. गंगाजी के लिए और विशेष प्रयास करेंगे, क्योंकि आपने तो गंगा का मंत्रालय ही बना दिया था, लेकिन इस चार सालों में आपकी सरकार द्वारा जो कुछ भी हुआ उससे गंगाजी कोई लाभ नहीं हुआ, उसकी जगह काॅरपोरेट सेक्टर और व्यापारिक घरानों को ही लाभ दिखाई दे रहे हैं।’ यह एकमात्र पत्र है जिसमें वे प्रधान मंत्री को राम दरबार में दण्ड दिलाने की बात नहीं करते। वे सिर्फ इतना भर कहते हैं, ’मेरा आपसे अनुरोध है कि मेरी …. चार मांगों को, जो वही हैं जो मेरे आपको 13 जून 2018 को भेजे पत्र में थीं, स्वीकार कर लीजिए अन्यथा मैं गंगाजी के लिए उपवास करता हुआ अपनी जान दे दूंगा। मुझे अपनी जान दे देने की कोई चिंता नहीं है, क्योंकि गंगा जी का काम मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है।’
चैथे व अंतिम पत्र में भी नरेन्द्र मोदी को आदरणीय प्रधान मंत्री के रूप में सम्बोधित करते हुए स्वामी सानंद अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं, ’आपने 2014 के चुनाव के लिए वाराणसी से उम्मीदवारी भाषण में कहा था – ’मुझे तो मां गंगा जी ने बुलाया है – अब गंगा से लेना कुछ नहीं, अब तो बस देना ही है।’ मैंने समझा आप भी हृदय से गंगा जी को मां मानते हैं (जैसा कि मैं स्वयं मानता हूं और 2008 से गंगा जी की अविरलता, उसके नैसर्गिक स्वरूप और गुणों को बचाए रखने के लिए यथाशक्ति प्रयास करता रहा हूं) और मां गंगाजी के नाते आप मुझसे 18 वर्ष छोटे होने से मेरे छोटे भाई हुए। इसी नाते आपको अपने पहले तीन पत्र आपको छोटा भाई मानते हुए लिख डाले। जुलाई के अंत में ध्यान आया कि भले ही मां गंगा जी ने आपको बड़े प्यार से बुलाया, जिताया और प्रधान मंत्री पद दिलाया पर सत्ता की जद्दोजहद (और शायद मद भी) में मां किसे याद रहेगी – और मां की ही याद नही ंतो भाई कौन और कैसा।’ फिर वे अपना अंतिम निर्णय सुनाते हैं, ’तो …. , आज मात्र नींबू पानी लेकर उपवास करते हुए मेरा 101वां दिन है – यदि सरकार को गंगाजी के विषय में, वे युगों युगों तक अपने नैसर्गिक गुणों से भारतीय संस्कृति में विश्वास रखने वालों को लाभान्वित करती रहें, इस दिशा में कोई पहल करनी थी तो इतना समय पर्याप्त से भी अधिक था। अतः मैंने निर्णय लिया है कि मैं आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (तदनुसार 9 अक्टूबर, 2018) को मध्यान्ह अंतिम गंगा स्नान, जीवन में अंतिम बार जल और यज्ञशेष लेकर जल भी पूर्णतया (मुंह, नाक, ड्रिप, सिरिंज या किसी भी माध्यम से) लेना छोड़ दूंगा और प्राणांत की प्रतीक्षा करूंगा (9 अक्टूबर मध्यांह 12 बजे के बाद यदि कोई मुझे मां गंगाजी के बारे में मेरी सभी मांगें पूरी करने का प्रमाण भी दे तो मैं उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दूंगा)। प्रभु राम जी मेरा संकल्प शीघ्र पूरा करें, जिससे मैं शीघ्र उनके दरबार में पहुंच, गंगाजी की (जो प्रभु राम जी की भी पूज्या हैं) अवहेलना करने और उनके हितों को हानि पहुंचाने वालों को समुचित दण्ड दिला सकूं। उनकी अदालत में तो मैं अपनी हत्या का आरोप भी व्यक्तिगत रूप से आप पर लगाऊंगा – अदालत माने न माने।’
स्वामी सानंद की 11 अक्टूबर को मौत के बाद प्रधान मंत्री ने ट्वीट किया, ’श्री जी.डी. अग्रवाल जी के मरने से दुखी हुआ। सीखने, सिखाने, पर्यावरण संरक्षण, खास गंगा सफाई के लिए उनके अंदर की ललक हमेशा याद की जाएगी। मेरी श्रद्धांजलि।’ यह स्वामी सानंद द्वारा प्रधान मंत्री को लिखे चार पत्रों या अपने अनशन पर प्रधान मंत्री की अकेली प्रतिक्रिया थी, और वह भी देर से आई। सवाल यह है कि नरेन्द्र मोदी जीवित स्वामी सानंद से मिलने से क्यों कतराते रहे?
स्वामी सानंद ने जिस नरेन्द्र मोदी को अपनी सम्भावित मौत के लिए तीन पत्रों में जिम्मेदार ठहराया हो और नरेन्द्र मोदी ने एक सच्चे संत, स्वामी सानंद, जो उनसे हर मायने में श्रेष्ठ थे, की जान बचाने का कोई कोशिश ही नहीं की और जिनके लिए स्वामी सानंद ने राम दरबार में अपनी मौत के लिए दण्ड की कामना की हो वे नरेन्द्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास कैसे कर सकते हैं?
लेखकः संदीप पाण्डेय