माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय कश्मीर के कॉंग्रेस नेता सैफुद्दीन सोझ के बन्दी बनाने की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सिर्फ सरकार की बात सुन कर निर्णय दे दिया की सोझ बंदी नहीं है ! और आज के इन्डियन एक्सप्रेस में वो अपने ही घर के दीवारों के पीछे से पत्रकारो से संबोधित करते हुए फोटो के साथ उनकी खबर है ! और मै वही देखकर यह पोस्ट लिख रहा हूँ !
कितने लोगों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास डोलने के लिए यह निर्णय निमित्त हो सकता है ? सामान्य आदमी में आपसी झगड़े होते हैं तब अंत मे यही कहता है कि हम कोर्ट में जायेंगे ! लेकिन आपका यह निर्णय लोगो का न्याय व्यवस्था पर से विश्वास कम करने के लिए पर्याप्त है !
मंदिर निर्माण का निर्णय में भी हमारे संविधान की अनदेखी करते हुए वर्तमान सरकार और कुछ हिन्दुत्ववादी तत्वों की मर्जी रखने के लिए मंदिर निर्माण का निर्णय दिया गया जो सर्वस्वी गलत है !
वही बात जम्मू कश्मीर के 370 आर्टिकल को खत्म करने की केंद्र सरकार के निर्णय को कम से कम 70 से ज्यादा याचिका पर अब पाँच दिन में एक साल पूरा होने जा लेकिन कोई सुनवाई नहीं की जा रही है ! कैसे कश्मीर के लोग देश की मुख्य धारा में शामिल हो सकते ? उन्हे तो एक कोढ़ी के जैसा अलग-थलग वह भी संचार के साधन,ठप्प करके ! कोरोना के कारण स्कूल बंद कर दिये और ऑन लाइन एजुकेशन की बात चल रही है तो क्या कश्मीर के बच्चे उससे वंचित रहेंगे ? और मुख्य धारा में शामिल हो !!!!
भारत के संविधान को बदलकर एन.आर.सी जैसे इतने गंभीर मुद्दे पर भी काफी याचिकाए प्रलंबित है ! और उसको लेकर चल रहे आंदोलन के सेकड़ों लोगो को तथाकथित देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है ! जिस कानून का मामला आपके सामने पड़ा हो और उसी को बचाने की कोशिश आप जाने अनजान मे कर रहे हैं !
जहा तक मेरी समझ है की न्यायालय सर्वोच्च होता है तो कुछ दिनों से मैं देख रहा हूँ की न्यायालय सरकार की मर्जी रखने के लिए निर्णय दे रही है ! इसमे हमारे संविधान की अनदेखी करके निर्णय लेने या ना लेने की बात देख रहा हूँ जिसका उदहारण 370, आयोध्या के राममंदिर निर्माण का निर्णय और नागरिकता के कानून के खिलाफ चल रहे मुद्दे पर आपका चुप रहने की बात किस बात का परिचायक है ?
कश्मीर के बारे में तो लगता है की जैसा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन चुका है ऐसा सरकार दावा करती है लेकिन आपका 370 पर एक साल पूरा होने आ रहा है लेकिन सुनवाई तक नहीं करना यह बात वहाकी हालतों देखकर निर्णय लेने की बात आप कर रहे हैं और सरकार कह रही है की हालत सामान्य है तो कोर्ट को 370 को लेकर जो भी याचिकाए साल भर से आपके सामने पेश है उनपर कोई भी सुनवाई क्यो नही हो रही ?
सैफुद्दीन सोझ के ताजा केस को देखकर लगता नहीं कि आप अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से ले रहे हो ! और सचमुच कोर्ट वर्तमान सरकार के दबाव में काम कर रहा है तो बहुत ही चिंता की बात है !
वर्तमान भारत के गृहमंत्री और प्रधान-मंत्री का ट्रेक रेकार्ड देखकर लगता नहीं कि उन्हे हमारी संवेधानिक संस्थाओ के प्रती कोई सम्मान हैं ? क्यो कि यही प्रधान-मंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री बनते हुए उन्होंने शपथ ली थी कि मैं नरेंद दामोदर दास मोदी इश्वर को साक्षी मानकर यह शपथ लेता हूँ कि मैं आज गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए यह आशव्स्थ करता हूँ कि गुजरात मे रहने वाले हर नागरिक के साथ बगैर कोई भेदभाव किये मै कार्य करूंगा और 150 दिन के भीतर गोधरा की रेल्वे दुर्घटना में मारे गए लोगों के शवो की कलेक्टर ने मना करने के बावजूद विश्व हिंदू परिषद के लोगों को अहमदाबाद शहर में जुलूस निकालने के लिए जबरदस्ती देने का काम किया है और 28 फरवरी की शाम अहमदाबाद एयरपोर्ट पर 3000 भारतीय सेना के जवान गुजरात मे लॉ एंड आर्डर कायम करने के लिए आये थे और मुख्यमंत्री ने तीन दिन तक उन्हे एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकलने नहीं दिया ! यह बात उस सेना का नेतृत्व करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल जमिरुद्दींन शाह ने अपनी सरकारी मुसलमान नाम की किताब के पन्ना नम्बर 116,117 पर विस्तार से लिखी है और उनके कुछ यु टूब के इंटरवू में भी उप्लब्ध हैं ! यह बात कितनी संगीन है की एक मुख्यमंत्री पद पर आसीन होते हुए यह शपथ लेते हैं कि मैं भारत के संविधान के अनुसार काम करते हुए गुजरात मे रहनेवाले हर नागरिक की जान माल की रक्षा करूंगा और कितने लोग मारे गए कितना माल जलाया गया है और मुख्यमंत्री ने अपने अधिकार का कौनसा प्रयोग किया ? यह पूर्व न्यायाधीश कृष्णा अय्यर,पी बी सावंत,सुरेश होस्बेट और अन्य लोगों की क्राईम अगेन्स्ट हुमानीटी नाम की रिपोर्ट के अनुसार मैंने खुद उस रिपोर्ट को देखकर लगता नहीं कि वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने गुजरात के अपने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए शपथ का पालन किया हो !
इसलिए वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय के आप सभी न्यायधीश महाशयो को मेरा विनम्र निवेदन है कि आप अपने निर्णय सरकारी वकीलो की दलिलो के आधार पर ना देते हुए सब बातों की जाच खोज लेनेके बाद ही निर्णय ले ! अन्यथा सैफद्दींन सोझ जिकी केसमे सरकारी वकील की बात सुन कर दिया हुआ निर्णय झूठा साबित होनेकी नौबत नहीं आती ! और इसलिये मुझे नहीं मालूम कि हमारे देश के कानून में इस ढंग से न्यायालय को गलत जानकारी देने वाले सरकारी वकील की सनद रद्द करने की मांग कर रहा हूँ !
मुझे नहीं मालूम है कि मैं हमारे न्यायालय की अवमानना कर रहा हूँ ! लेकिन मेरा उद्देश्य हमारे न्याय व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास ना उठे इसीलिए मैंने यह सवाल उठाये हैं !
आपका
डॉ सुरेश खैरनार,नागपुर 31जुलाई 2020