पस्चिम बंगाल में, ममता बॅनर्जी को हटाने के लिए ! वामपंथी और बीजेपी साथ – साथ ! यह आलम पहले ही दिन से बंगाल में जारी है ! और इसीलिये पैतिस साल राज्य में सत्ता में रहने वाले लेफ्ट फ्रंट के आज की कोलकाता की विधानसभा में एक भी प्रतिनिधि नही है ! और बंगाल में तीस साल पहले बीजेपी के प्रतिशत था वहीं प्रतिशत आज लेफ्ट फ्रंट के दलों का है ! इसलिए अपने अस्तित्व के लिए ! इस हदतक जाने की मानसिकता बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी के केडर की बन गई है ! और केरल से लेकर उर्वरित भारत में बीजेपी की तुलना हिटलर के साथ करते हैं ! और सांप्रदायिकता के खिलाफ भी खूब पानी पी पीकर बोलते लिखते हैं ! लेकिन बंगाल की बीजेपी उन्हें ममता से कम शैतान नजर आती है !


आज के भास्कर नाम के दैनिक अखबार की पन्ना नंबर एक की प्रमुख है, खबर सही है ! लेकिन कोई बिसात नहीं है ! पस्चिम बंगाल में यह खो – खो के जैसा सत्ता के लिए जो खेला जाता है ! यह आजादी के पहले से ही जारी है !1942 के भारत छोडो आंदोलन के दौरान ! कांग्रेस ने सभी राज्यों की सरकारों से इस्तीफे दे दिए थे ! तो हिंदुत्व के अंमलदार ! हिंदुत्ववादीयो के दल हिंदु महासभा और मुस्लिमों का पाकिस्तान बनाने के लिए विशेष रूप से 23 मार्च 1940 को लाहौर प्रस्ताव पारित करने वाले मुस्लिम लिग के साथ, हिंदु महासभा और मुस्लिम लिग की सरकार बंगाल और सिंध प्रांत में बनी थी ! उस समय की सरकारों के बनने का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम क्या रहा होगा ? सिर्फ कांग्रेस का विरोध !


फिर आजादी के बाद बीस साल के भीतर डॉ. राम मनोहर लोहिया को लगा कि ! “सभी विरोधी दलों को एक साथ लिए बगैर कांग्रेस की सरकारों को हटाने के लिए इकठ्ठा होना चाहिए!” तो 1967 से संविद सरकारों का दौर चला ! फिर जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद ! आपातकाल की घोषणा के बाद ! हुए चुनाव में, जयप्रकाश नारायण ने कहा कि “सभी विरोधी दलों की एक पार्टी हुए बगैर मैं अपने घर से चुनाव प्रचार के लिए नही निकलुंगा! “तो उस दबाव में जनता पार्टी का जन्म हुआ ! और उन्नीस महीनों के भीतर वह दल बिखर गया !


फिर माननीय कांशीराम के सत्ता के लिए कुछ भी करने के ! फार्मूले में पहले सपा और बाद में बीजेपी के साथ उत्तर प्रदेश में सत्ता समिकरण हुए हैं !
और नब्बे के दशक में ! बिहार में जॉर्ज फर्नाडिस के नेतृत्व में ! समता पार्टी, और उसके बीजेपी के साथ जाने के इतिहास को लिजिए ! यहां तक की वह उस गठबंधन के अध्यक्ष भी बने ! जिसका नाम एन डी ए है ! और उस दौरान उन्होंने भरी लोकसभा में ! गुजरात के दंगों का समर्थन करते हुए कहा “कि कौन-सा दंगा है? जिसमें औरतों के उपर अत्याचार नही हुए ?” और ओरिसा कंधमाल के मनोहरपुकुर में ! कोढीओ की पच्चीस साल से भी अधिक समय से !

सेवा कर रहे फादर ग्रॅहम स्टेन्स और उनके दोनों बच्चों की जलाने की घटना को ! एन डी ए के तरफसे जॉर्ज फर्नाडिस के कमिटी ने सही ठहराने की बात ! आज जिझस के जन्मदिन के अवसर पर पुनः बरबस याद करते हुए मुझे दुःख होता है !


केरल में मुस्लिम लिग के साथ अक्सर कभी कांग्रेस तो कभी कम्युनिस्टों की मिलि – जुली सरकारों का आलम रहा है ! सत्तर के दशक में ! और अभी हाल ही में शिवसेना के साथ कभी मुंबई महानगर पालिका में तो कभी राज्य के स्तर पर सत्ता के लिए गठजोड़ हैं !

रही बात आज के भास्कर नाम के ! दैनिक अखबार की पन्ना नंबर एक पर जो खबर है ! “कि ममता बनर्जी को रोकने के लिए ! 12 साल से पस्त वाम समर्थक कुछ जगह भाजपा के साथ !” सबसे पहली बात, बारह साल पहले ममता बनर्जी सत्ता में आने के बाद तुरंत, तथाकथित वामपंथी पार्टियों के ज्यादातर लोग बीजेपी में शामिल हो चुके हैं ! कुछ पूर्व विधायक और सांसद तक ! और वर्तमान में लगभग सभी बचे-खुचे वामपंथी दलों के लोगों को बीजेपी से अधिक ममता बॅनर्जी को हटाने के लिए कुछ भी करने की मानसिकता बनीं हुई है ! इस खबर में शत – प्रतिशत सच्चाई है !


इसी साल पूजा के समय, मैं बंगाल में कुछ जगहों पर बोला हूँ ! तो कोलकाता में 18 सूर्यसेन स्ट्रीट में, पस्चिम बंगाल एन ए पी एम के कार्यक्रम में ! मैंने बीजेपी और संघ कितने खतरनाक है ! जिसके लिए जस्टिस लोया मर्डर से लेकर गुजरात, दिल्ली के दंगों के उदाहरण ! और देश के सभी महत्वपूर्ण सवालों की जगह ! संपूर्ण राजनीति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर लाकर रखने से लेकर ! आज हम बात कर रहे हैं ! लेकिन कल नही कर पायेंगे ! क्योंकि बीजेपी या संघ का आदर्श फॅसिस्ट दर्शन है ! और इसीलिये उन्होंने भारत के सभी मिडिया संस्थाओं से लेकर सभी संविधानिक संस्थान अपने कब्जे में लेकर ! बैंकों की जमापूंजी को पुंजीपतियो के हवाले करने से लेकर ! सभी सरकारी उपक्रम पुंजीपतियो को औने-पौने दामों में बेचने से लेकर ! लोगों को नई नौकरी-पेशे देना दूर ! उल्टा करोड़ों लोगों की नौकरियां छिनी गई हैं !
और किसानों से लेकर मजदूरों की मांगों को अनदेखा कर के ! पूंजीपतियों के हितों की रक्षा के लिए ! पूराने मजदूरों के लिए बनाये गये कानून बदलने से लेकर ! लेबर कोर्ट उद्योगपति कोर्ट में तब्दील कर दिये है ! और शिक्षा आरोग्य सेवा जैसे क्षेत्रों से सरकार की जगह ! प्रायव्हेट लिमिटेड करने के कारण ! हमारे गरीब छात्रों को और मरीजों को इतनी महंगी फिस देकर ! पढ़ने और इलाज करने के लिए कितना कठिन हो रहा है ?


यह सब स्तिथी को विस्तार से रखने के बावजूद एक नौजवान उठकर बोलने लगे ! “कि पहले ममता बनर्जी को हटाने के बाद यह सब देखेंगे !” मैंने कहा कि “मैं बिल्कुल ममता बनर्जी का समर्थन करने वाले लोगों में से नही हूँ ! ममता बॅनर्जी या नवीन पटनायक, चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी, स्टालिन, लालू या अखिलेश यादव, मायावती, उद्धव ठाकरे जैसे वन मॅन वन वुमेन पार्टियों के खिलाफ हूँ ! क्योंकि जनतंत्र में इस तरह व्यक्ति केंद्रीकृत राजनीति से ही एकाधिकार शाही निर्माण होती है ! लेकिन राजनीतिक शास्त्र में कम-से-कम शैतान (Lessar Evil) नामकी संज्ञा होती है ! इसलिए बडे सैतान को खत्म करने के लिए कभी-कभी छोटे मतलब लेसर एवील को तात्कालिक रूप से एक परे रखते हुए बड़े सैतान को निपटने की रणनीति पर काम करना पड़ता है !”

तो वह व्यक्ति बोलने लगे” कि हमारे लिए ममता बनर्जी ही बड़ी सैतान है !” यह बंगाल के कुछ लोगों में ममता बनर्जी को लेकर बहुत ही तिखि प्रतिक्रिया है ! इस बात में कोई शक नहीं है ! क्योंकि ममता बनर्जी की कार्यशैली भी तानाशाह जैसी और व्यक्ति केंद्रित है ! लेकिन नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को देखते हुए ममता बनर्जी बहुत ही मामूली रूप लगता है ! लेकिन गांव देहाती इलाके में ममता बनर्जी के पार्टी के लोगों का आतंक बिल्कुल बारह वर्ष पहले के लेफ्ट फ्रंट के समय की याद दिलाता है ! लेफ्ट फ्रंट ने 1977 में पहली बार सत्ता में आने के बाद 2011 तक चौतीस साल के दौरान गांव से लेकर राईटर्स बिल्डिंग तक सीपीएम के इजाजत के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता था ! और इसीलिये लोगों ने तंग आकर ममता बनर्जी की पार्टी को बहुमत से जिताया ! लेकिन हमारे देश के संसदीय जनतंत्र की यात्रा अभि भी प्राथमिक अवस्था में चल रही है !

इसलिए जयप्रकाश नारायण मतदाताओं के प्रशिक्षण की बात करते थे ! और उसके लिए उन्होंने सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी, पीपुल्स युनियन फॉर सिविल लिबर्टी, यूथ फॉर डेमोक्रसी जैसे महत्वपूर्ण प्रयोग करने के लिए विशेष रूप से इन सभी फोरमो का गठन किया था ! लेकिन उनके मृत्यु के बाद यह सभी फोरम सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं ! कोई सार्थक कार्य नहीं कर सके ! और सबसे हैरानी की बात जिन लोगों को सत्ता की राजनीति में रुचि है उन्हें इस तरह की गतिविधियों में बिल्कुल भी रुचि नहीं है ! सीएसडीएस जैसे संस्थान अकादमीक कवायद के आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं है ! और जयप्रकाश नारायण के सपनों के सौदागरों को आपसी सरफुटौवल से फुर्सत नहीं है ! आज भारत की संसदीय राजनीति के शुरू होने के सत्तर साल पूरे हो रहे हैं ! लेकिन हमरी राजनीति 1952 से 2022 तक कागज के मतदान से इवीएम नाम के मशिन तक पहुंचने के अलावा उसमें परिवर्तन नही के बराबर हुआ है ! और उसे किए बगैर जयप्रकाश नारायण की भाषा में नागनाथ की जगह सांपनाथ को चुन कर देने के अलावा और कुछ नहीं हो रहा है !
डॉ सुरेश खैरनार 25, दिसंबर 2022, नागपुर

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