यह मेरे पिताजी के स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट की कापी है ! मै कुछ और कागज ढूंढ रहा था ! तो उसमें पिताजी के स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट की कापी मिली ! और तब पता चला कि यह तो उनके उम्र के सौ साल पूरे होने का समय है ! हालांकि उन्हे इस दुनिया से विदा होकर बीस साल हो रहे हैं !
मतलब उनकी शताब्दी को शुरू होकर आज तेरह दिन हो रहे है ! अमूमन शताब्दी मनाने के लिए कोई महान व्यक्ति होना चाहिए ऐसी मान्यता है ! और मेरे जीवन के शुरूआती दिनों में मेरे लिए वही महान व्यक्ति थे ! तो उस हिसाब से मै ! उनके शताब्दी साल के उपलक्ष्य में उनके बारे मे कुछ संस्मरण लिखने की कोशिश कर रहा हूँ !
हमारा पुश्तैनी गांव, मालपुर-कासारे नाम का जिला धुलिया ! महाराष्ट्र के उत्तरपस्चिमी दिशा का जिले का आखिरी हिस्सा ! जिसके पस्चिमी दिशामे गुजरात का डांग जिला है ! और उत्तर की तरफ (अब धुलिया जिले को विभाजित करने के बाद नंदुरबार जिल्हा बनाया गया है !) जो मध्य प्रदेश के निमाड क्षेत्र के, बिचमे सातपूडा यह सीमा है ! और नर्मदा-तापी नदीया भी !
हमारे भी गाँव में भिल्ल आदिवासी और महार,चमार तथा दो-चार परिवार मुस्लिम समुदाय के ! जो कोई खाटिक याने बकरा काटकर उसका मांस बेचने वाला ! तथा एकाध रजई, गद्दा बना कर पिंजारी, अपनी उपजिविका चलाते थे ! और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग है ! जिनमें लुहार, सुनहार, शिंपी याने कपडे सिलनेवाला ! नाई बाल काटने वाले लोग ! तथा लकड़ी के औजार बनाने वाले को सुतार बोला जाता है !
और मैंने अपने खुद के आंखों से बलुतेदार प्रथा को चलते हुए देखा है ! 1960 – 70 तक ! जिसमें सिलाई वाले शिंपी से लेकर चमार, कुम्हार, लुहार तथा नाई सुतार और ब्राह्मण को भी देखा है ! जो फसल तैयार होने के बाद ! हमारे खलिहान में उसमें से अपना हिस्सा लेने के लिए ! उस फसल के चारों ओर बैठकर ! अपने लाए हुए कपड़े या बर्तन में अपने हिस्से का अनाज ले जाते थे ! और साल भर उनसे हमारे घर के सभी ! बच्चों से लेकर बड़े तक के कपड़े सिलना शिंपी से कर लेते थे !
और नाई से बालों को काटने से लेकर डाढी – मुछे तराशने के काम होता था ! वैसे ही लुहारों से खेती करने के औजारों की मरम्मत ! और सुतार से लकड़ी के बैलगाड़ियों से लेकर हल इत्यादि बनाने का काम होता था ! और चमार से चप्पल – जुतो का काम ! और कुम्हार से मट्टी के बर्तन का ! मतलब गांव के एक किसान परिवार को लगने वाले, हर जरूरी काम करने की व्यवस्था को ! बलुतेदारी व्यवस्था बोला जाता था ! अब शायद नहीं है !
लेकिन गांव में ज्यादा संख्या मराठाओकी है ! पिताजी किसान संयुक्त परिवारमे पैदा हुए थे ! शायद उस समय गाँव के सबसे ज्यादा गाय बैल हमारे ही थे ! जिनका सबसे प्रमुख उद्देश्य हमारे खेतों के लिए खाद ! और खेती करने के लिए बैल ! दुध दोयम दर्जे की बात थी ! क्योंकि मुझे जहाँ तक याद आ रहा ! तब एक समय 10-12 गाये जनती थी ! और उसमें से आधे से ज्यादा गाय अपने स्तनों को हाथ भी लगाने नहीं देती थी ! दुध दोहना तो दूर की बात थी ! और अन्य गायों के बछडे एक तरफ दुध पीते थे ! और दूसरे तरफसे दुध दोहना होता था ! तो बारह महीने हमारे घर में दुध,दही,मख्खन हमारी आवश्यकता से भी अधिक होता था ! लेकिन तबतक बाजार नामके बिमारी से हमारा घर कोसो दूर था ! मुझे याद है कि कभी भी दुध,दही या घी को बेचने की बात मैंने नहीं देखा है ! यहां तक कि हमारे खेती के बाडमे आम के पेड़ों के आमो को भी कभी बेचा नहीं मिलबाटकर खाये जाते थे ! और इख की खेती के कारण रस और गुड बनाने के समय जो भी कोई आता था वह तबीयत से खा – पीकर ही जाता था !
जिस दिन छांछ बनाने का काम होता था ! तो छांछ लेनेके लिए गांव की महिलाओं को ! बाकायदा कतार में खडे – खड़े, विनामुल्य छांछ बाटा जाता था ! और कभी किसी के घर में दुध की आवश्यकता होती थी ! तो वह भी दुध विना मुल्य ले जाते थे ! और कभी-कभी घी भी !
इसी तरह साल भर के लिए पापड,बडी,सेवइयों के बनाने के लिए ! लगभग पूरे मोहल्ले की औरतें आकर ! विनामुल्य एक दूसरे के हाथ बाटकर यह सब काम ! अहिराणी भाषा में गाने गाकर एक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तरह ! निपटाने के लिए एक दूसरे की मदद करने चले आते थे ! और हम बच्चों का मनोरंजन हो जाता था !
हमारे क्षेत्र में अहिल्याबाई होलकर के समय से ! पाटस्थळ (कैनाल द्वारा सिंचाई) की व्यवस्था थी ! और वह पूरे गाँव द्वारा मिलजुलकर सम्हालने के लिए ! बिच-बिचमे गाद निकालने से लेकर ! पानी की बटवारे का व्यवस्थापन सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था थी ! लेकिन इतने सालों में ! बेतहाशा पानी इस्तेमाल करने के कारण ! हमारी जमीन मर गई है ! और सचमुच ही यह बात है ! कि अब उस सफेदी वाले जमीन पर घास भी नहीं उगता है ! भाक्रा-नानगल के जमीन जैसे!
सरकारी स्कूल शुरू नहीं हुए थे, साठ के दशक में ! तो हमारे गाँव में मंदिर मे की मुर्तियोको हटाकर ! उन जगहों पर स्कूल चलते हुए, मैंने खुद देखा है ! और मेरे ही सामने, जिला परिषद की व्यवस्था शुरू हुई ! शायद 1960 तो उसके तरफसे बिल्डिंग का निर्माण स्कूलों के लिए भी देखा है !
काफी लोगों को मूर्तिया हटानेका मामले को लेकर आश्चर्य हुआ होगा ! तो उन्हें बता दूँ ! कि हमारे गाँव पर महात्मा ज्योतिबा फुले जी के सत्यशोधक समाज का प्रभाव होनेके कारण ! हमारे गाँव में मंदिर और ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला कर्मकांड नहीं के बराबर था ! और तीन या चार ब्राह्मणों के घर थे ! तो वह भी खेती करने के काम में थे ! कुछ शिक्षक या पटवारी के नौकरी में भी थे !
मैंने पैदा हुआ तबसे ! (25 दिसंबर 1953 ) मेरे गाँव में एक भी धार्मिक अनुष्ठान ! या पुजा-पाठ देखा नहीं है ! हाँ कासारे नाम के गाव में ! बिचमे एक नदी है नाम पांझरा ! के परली तरफ के गाँव में ! मंदिर और ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला कर्मकांड जारी था ! लेकिन हमारे गाँव की शादीया तक ! ज्योतिबा फुले द्वारा रचित मंगलाष्टक गाकर और वह भी गैर ब्राह्मणों द्वारा ! शादिया संपन्न होती थी !
गाँव के पढे लिखे लोगों मे, पिताजीका शुमार था ! उस समय के लिए वह सातवीं फाइनल पास ! याने आराम से शिक्षक की नौकरी कर सकते थे ! लेकिन हमारे खेती-बारी और गोपालन के कारण ! वह खेती करने के काम में लगे रहे ! वह चार भाई और दो बहनों के परिवार मे ! बडी बहन के बाद लडकोमे सबसे बडे होने के कारण ! भी उनको घर की जिम्मेदारी का वहन करना पडा है ! मैंने आँखे खोली तबसे देखा ! उनके शरीर पर खादी छोडकर कोई दूसरा वस्त्र नहीं था !
और हमारा गाँव, सत्यशोधक समाज के प्रभाव का होने के कारण ! कांग्रेस विरोधी, यानी हमारे अहिराणी भाषा में ! गाँव पार्टी और राव पार्टी ! तो गाँव पार्टी कांग्रेस और राव यानी जिन्हें अंग्रेजों द्वारा राव,सर के खिताब से नवाजा जाता था ! इसलिये उन्हें राव पार्टी कहाँ जाता था !
तो पिताजी गाँव पार्टी के, मतलब कांग्रेस के कमिटेड सदस्य थे ! और संपूर्ण गाँव में एक मात्र वही थे ! जो चुनाव में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार ! और बुथ एजंट की भूमिका में बहुत ही लगन से बने रहे ! शायद 62-63 के चुनाव में, मै भी उनके साथ प्रचार के लिए गया था ! तो पडोसी गाँव में ! एक चुनाव सभा पर पथराव हुआ था ! तो मेरे बाहे तरफ की आंखके भौवो के कोने में ! पत्थर लगकर, मै खून से लथपथ हो गया था ! मेरी आँख कुछ सेंटीमीटर से बची ! अन्यथा जिंदगी भर, मोशेदायान जैसे मेरे भी ! एक आंख को ढकने की नौबत आई होती !
जहाँ तक याद आ रहा है ! कि यह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जगह ! कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जितकर जाते रहे ! साक्री विधानसभा नाम है ! लेकिन लोकसभा चुनाव में ! कांग्रेस के उम्मीदवार जितकर जाते रहे !
लेकिन आज लगभग परिवार वही है ! जिनके पूर्वज कम्युनिस्ट और कांग्रेस के थे ! उसी घर के आज के प्रतिनिधि ! भाजपा की तरफ से विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बैठे है ! और उनमें से एक लोकसभा सदस्य ! मेरे रिस्तेदार और बचपन के मित्र डॉ. सुभाष भामरे है ! और उसके पिताजी कम्युनिस्ट पार्टी के ! बाद में कांग्रेस और फिर अंत में कमुनिस्ट कामरेड गोविन्द पानसरे के उपस्थिति में घर वापसी की थी ! और जब बेटा संसद में गया तो बहुत अभिमान से कह रहे थे ! “कि चलो आखिर में हमारे परिवार से कोई तो संसद में गया ! हालांकि सत्तर के दशक में डाॅ. सुभाष की माँ गोजरबाई विधानसभा में कांग्रेस की तरफ से विधायक रही है ! मैके की खैरनार परिवार की थी !
1936 साल के फैजपूर कांग्रेस के अधिवेशन ! जोकि कांग्रेस के इतिहास में ! पहली बार गाँव में हुआ अधिवेशन है ! उस अधिवेशन में ! पिताजी पंद्रह साल के उम्र में एक स्वयंसेवक के रूप में भाग लिये थे ! और 1942 मे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान चिमठाना खजाने की घटना में शामिल लोगों में, एक सदस्य थे ! जिसके नेतृत्वकारी भूमिका में ! उत्तमराव पाटील और कमलताई पाटील तथा उनके छोटे भाई शिवाजीराव पाटील ! प्रसिध्द फिल्म अभिनेत्री स्मिता के पिताजी तथा चाचा चाची के साथ ! एक सिपाही रहे हैं !
दो समय का खाना छोड़कर, उनके और कोई शौक नहीं थे ! शायद उन्हें बचपन से ही ! इस तरह देखते हुए ! मैंने भी खद्दर से लेकर ! किसी भी तरह के व्यसन मे न फसने की वजह ! मेरे जीवन के शुरू आती दिनो के वही हीरो रहे ! साने गुरूजी,गाँधी,विनोबाजी,एस एम जोशी, जेपी,लोहिया तथा डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी सब राष्ट्र सेवा दल मे 1965 – 66 के दौरान आने के बाद !
सातवीं कक्षा के बाद ! मुझे गाँव में अगले पढाई के लिए स्कूल नहीं होने के कारण ! छोटी बुआजी जो, हमारे ही तालुका के बगल वाले शिंदखेडा तालुका के गाँव मे ! 1965 -66 के समय मे जाना पडा ! जाने के बाद सबसे पहले, मेरे स्कूल के भूगोल विषय के श्री. बी बी पाटील नामके शिक्षक की वजह से ! संघ की शाखा में जाने लगा ! लेकिन कुछ ही समय में ! मेरे मुसलमान मित्रों को भी शाखामे शामिल करने के, मेरे आग्रह के कारण ! मुझे संघ से निकाल दिया गया !
तो उसी गाँव में ! एक और शाखा चल रही थी ! जो की राष्ट्र सेवा दल की थी ! जिसमें हिंदू,मुस्लिम,दलित हो या आदिवासी और लडकियों को भी प्रवेश था ! तो मुझे जल्द ही सेवा दल की शाखा में प्रवेश मिल गया ! और थोडे ही समय में शाखा नायक ! और उसी साल राष्ट्र सेवा दल के, मध्यवर्ती के पुणे स्थित मुख्यालय के प्रांगण में ! एक सप्ताह से भी ज्यादा समय के ! दस्तानायक-शाखानायक शिबिर ने ! मेरे जीवन की आगे की दिशा निश्चित होने मे मदद हुई है !
उसी शिबीरसे सीधा मध्यप्रदेश के हरदा,पिपरिया,भोपाल और रीवा में राष्ट्र सेवा दल के ! शिबिर प्रशिक्षक की हैसियत से शायद पंद्रह साल के उम्रमें ! फिर क्या ? अमरावती के होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेजकी शिक्षा समाप्त होने के बाद ! चार साल बाद 1973 से राष्ट्र सेवा दल के पूर्ण समय कार्यकर्ता ! उम्र का बीस साल का था ! और वह निर्णय पिताजी को बहुत नागवर लगा ! उसपर उनके साथ काफी बहस होनी शुरू हो गयी थी ! आखिरी बात मैंने कहा कि “आपने मेरे पढाई के लिए काफी पैसा खर्च किया है ! तो मै अपने पुस्तैनी संपत्ति का अपना हिस्सा कभी भी नहीं लूंगा” ऐसा पिताजी को कहा ! और मै उस बात पर आज भी अटल हूँ ! फिर आपातकाल में जेल ! 1976 के अक्तूबर माह में ! अंडरग्राउंड था लेकिन किसी के कारण पुलिस को खबर होने से पकड़ा गया ! तो बडोदा डायनामाईट के केस में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था ! लेकिन कोर्ट में सुनवाई होने के कारण ! और मेरे वकिलसाहेब बहुत ही काबील होने के कारण ! उन्होंने बहुत ही मेहनत से मेरे उपर लगे आरोपों को खारिज करवाने में ! अपनी भूमिका बखुबी निभाने के कारण ! मुझे कुछ दिनों बाद रिहा करना पडा !
और पिताजी कांग्रेस के ! और राष्ट्र सेवा दल के कारण मै कांग्रेस विरोधी ! तो पिताजी के साथ इस बात पर काफी बहस होनी शुरू हो गई थी ! जिसे लगभग पूरे मोहल्ले या गाँव के लोग सुनते थे ! शायद मेरी याददाश्त ठीक है ! तो मेरे गाँव में एक मै ही था ! जो अखबार,पत्रिका तथा कुछ किताबें पढने वाला होने के कारण ! पिताजी के साथ ! बहस-मुबाहिसे मे मेरा ही पलडा भारी होता था ! फिर पिताजी के पास आखिरी तिर होता था ! तुम्हारे राष्ट्र सेवा दल के सभी नेता ब्राह्मण ही है ! तो मै जवाब देता था ! “कि वह खुद गैर ब्राह्मणों को शामिल करने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं ! और मेरे जैसे को जिस तरह से सभी नेता आप जैसे पिता जी के जैसे मेरे साथ स्नेह करते हैं ! और आपकी नेता इंदिरा गाँधी भी तो ब्राम्हण है !
फिर जेपी आंदोलन के समय भी ! वह जेपी सरकारी कर्मचारीयोको भड़काने का आरोप करते थे ! तो मैंने “कहा गलत आदेश या अपने संविधान के खिलाफ या गैर कानूनी आदेश मत मानो कहते हैं !” लेकिन मुझे आज पीछे मुड़कर देखने से लगता है ! कि भले मेरे और पिताजी के राजनीतिक मतभेद थे ! लेकिन कभीभी उन्होंने मुझे डांट डपट ! या अपने पिताजी होने के बावजूद, अपने आप को जब्त करके ! मेरे साथ एक मित्र जैसे ही व्यवहार किया है ! वह भी आजसे साठ – सत्तर साल पहले !
आज उनके जाने को बीस साल बाद! लगता है ! “कि वह सही मायनों में डेमोक्रेटिक टेंपरामेंट के थे !” लेकिन अब हमारे गाँव में, मंदिर और ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला कर्मकांड बदस्तूर जारी है ! और सबसे बड़ी हैरानी की बात ! वह मतदाता संघ ! उनके जाने के बाद लगातार जनसंघ और उसके नये एडिशन बीजेपी के ही लोग चुनाव जीत रहे हैं ! हालाँकि यह वही परिवार के लोग है ! जो पहले कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बनकर जितकर जाते रहे ! फिर कांग्रेस पार्टी के और अब बीजेपी के ! और हमारे रिश्तेदार है ! मै जो बार – बार बोलता – लिखता रहता हूँ कि हमारे घर भी हिंदू-मुस्लिम के खेल में शामिल हो गए हैं !
भारत की बीजेपी लगभग पुरानी कांग्रेस के ! और वर्तमान समय में बंगाल ,आसामका चित्र से साफ दिखाई देता है ! कि तृणमूल कांग्रेस के, और कम्युनिस्ट पार्टी के लोग बिजेपिमे ! कितनी आसानी से कपड़ों को बदलने जैसे पार्टी बदलते रहते हैं !
जो की पिताजी ने, शायद ग्राम पंचायत का भी चुनाव नहीं लडा था ! और पार्टी से पैसे मिलते हैं ! यह बात भी शायद तब नहीं थी ! या होगी भी तो, उन्होंने कभी नहीं लिया ! यहा तक कि स्वतंत्रता सेनानी की सहुलियत भी नहीं लिया है ! और शायद मेरे जेहन में उनके ही असर के कारण !
मैंने भी आपातकाल की बाद जेल में गये हुए लोगों को दी जाने वाली पेंशन की ! मैने 1977 से ही मुखालिफत की है ! मेरे पिताजी भी कोई बहुत बडे नेता नहीं थे ! लेकिन कांग्रेस जैसे सत्ताधारी पार्टी के कमिटमेंट वाले लोगों में से एक थे ! और मै भी कोई बडी हस्तियों मे शुमार नहीं हूँ ! लेकिन एक सुकून मिलता है ! “कि जैसे उन्होंने अपने जीवन में कभी कोई समझौता नहीं किया ! है वैसे ही मैंने भी नहीं किया !
1977 के समय जनता पार्टी बनने के बाद ! मुझे महाराष्ट्र के जनता पार्टी के महासचिव से लेकर ! अमरावती लोकसभा चुनाव में ! पार्टी के महाराष्ट्र के अध्यक्ष श्री. एस. एम. जोशी जी की तरफ से, कितना आग्रह हुआ था ! लेकिन मैंने कहा कि “नहीं अण्णा मुझे जयप्रकाश नारायण के धुनि युवकों की जमात में शामिल होना है ! और वर्तमान संसदीय राजनीति के बारे में ! मेरे कुछ मतभेद है ! इसलिए मैं चुनाव में शामिल होने से लेकर, पार्टी के महासचिव बनने की ! आपकी इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार नहीं हूँ !”
और उसके बाद हमारे अमरावती के अन्य साथियों की मदद से ! महाराष्ट्र में जयप्रकाश नारायण के धुनी युवाओं का पहला शिबीर ! 1977 के मई माह में एक सप्ताह का आयोजन किया ! और उसके बाद महाराष्ट्र छात्र युवा संघर्ष वाहीनी की स्थापना करने के बाद ! उसके लिए संपूर्ण महाराष्ट्र में फैलाने के काम में जुट गए !
फिर 1979 में शादी हुई ! तो हाऊस हजबंड के भुमिका में दस साल ! (1979 – 89) कलकत्तावासी रहते हुए गुजर गए थे ! और उसके दस साल बाद 1989 के अक्तूबर में ! भागलपुर दंगे की भयावह शुरुआत देखने के बाद ! मुझे लगा कि ” भारत के आनेवाले, पचास वर्षों तक ! सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही ! संपूर्ण राजनीति घुमने वाली है ! और आज गत तैतीस साल हो रहे ! मै उसीके खिलाफ काम करने की कोशिश कर रहा हूँ ! मैं कितना कामयाब हूँ ? यह बात दिगर है ! लेकिन मै मुकदर्शक नही हूँ ! अपने क्षमता के अनुरूप, जो भी संभव है मै कोशिश कर रहा हूँ ! और यही मेरी पिताजी के शताब्दी वर्ष में मेरे तरफ से विनम्र अभिवादन !
डॉ सुरेश खैरनार 17,मार्च 2021,नागपुर