रिपोर्ट के अनुसार, सेवा संकल्प द्वारा संचालित बालिका गृह में लड़कियों का यौन शोषण होता है. हर तरीके से उनकी प्रताड़ना होती है. सरकार को संस्था के दोषी लेागों पर प्राथमिकी दर्ज कराकर इसकी त्वरित जांच की जानी चाहिए. शुरू में तो रिपोर्ट पटना से लेकर मुजफ्फरपुर तक दबाई गई, मगर बाद में ऐसा करना संभव नहीं हो सका. कोशिश की इस कमेंट के आधार पर जैसे ही सेवा संकल्प के नौ लोगों पर एक साथ एफआईआर दर्ज की गई, मामला जंगल की आग की तरह फैल गया. विभाग ने सबकुछ बहुत की गोपनीय तरीके से करना चाहा. प्राथमिकी दर्ज करने के पहले ही वहां की सभी लड़कियों को पटना, मोकामा और मधुबनी के बालिका गृहों में शिफ्ट कर दिया गया. इसकी किसी को भनक तक नहीं लगी. संस्था की नौ वैसी महिलाओं पर प्राथमिकी दर्ज की गई, जो इस कुकर्म में शामिल थीं.
यह एक ऐसी घटना है, जिससे हैवानियत भी शर्मशार हो जाए. यह उन पीड़िताओं का दर्द है, जिन्हें हर दिन ढलता सूरज दर्द और बेबसी की दहलीज पर खड़ा कर देता था. यह उन सफेदपोशों के चेहरे से नकाब उतरने की कहानी है, जो बाहर में तो कृष्ण बने घूमते थे, लेकिन अंधेरा उनकी दरिंदगी से पर्दा हटा देता था. कहने को यह बालिका गृह था, लेकिन हैवानों ने इसे ऐय्याशी गृह बना दिया था.
पांच साल पहले वर्ष 2013 में कल्याण विभाग ने मुजफ्फरपुर में सेवा संकल्प संस्था को बालिका गृह चलाने का ठेका दिया था. बालिका गृह का उद्देश्य जितना पाक और मासूम था, यहां पर ब्रजेश ठाकुर ने उतना ही नापाक और क्रूर काम किया. घर और समाज से तिरस्कृत और परित्यक्त बच्चियों का आसरा था बालिका गृह. जब वे जिंदगी से हार जाती थीं, तो उनके लिए नई जिंदगी की शुरुआत का ठिकाना था बालिका गृह.
इसे लेकर नियम बनाते समय सरकार का उद्देश्य था, इन बेसहारा बच्चियों को सहारा देना और आंसुओं की जगह उनके चेहरे पर मुस्कान लाना. इसलिए इन बच्चियों को खुश रखने और इनका गम दूर करने के लिए सरकार इस संस्था को एक-दो लाख नहीं बल्कि 35 से 40 लाख रुपए प्रति वर्ष देती थी. इतना ही नहीं, उनके खाने-पीने से लेकर कपड़ा आदि के साथ ही उन्हें बेहतर जिंदगी देने के सारे साधन उपलब्ध कराए जाते थे. मगर उन्हें बेहतर जिंदगी देने की बात तो दूर, हैवानों ने उनकी जिंदगी को और भी नरक बना दिया. ऐसा नरक जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है.
इन दरिंदों की कहानी सुनकर पूरा देश विस्मित है. ऐसा भी नहीं है कि दरिंदगी का यह पूरा खेल कुछ समय से हो रहा था, लंबे समय से बच्चियां हैवानों की शिकार हो रही थीं, लेकिन यह हकीकत सामने आने में वर्षों लग गए. इसमें जिन लोगों की संलिप्तता है, उनकी पहुंच पटना से लेकर दिल्ली और पक्ष से लेकर विपक्ष तक थी. दिन के उजाले में लोगों के रहनुमा बनने वाले नेताओं से लेकर अधिकारी तक इस परिसर में आने के बाद हैवान हो जाते थे और अपनी हवस मिटाने के लिए ये सब ब्रजेश ठाकुर की हर कालिख पर सफेदी चढ़ा देते थे. बच्चियों की इज्जत तार-तार करने के एवज में ब्रजेश ठाकुर को हर साल बालिका गृह से लेकर अन्य संस्थानों तक के नाम पर करोड़ों रुपए दिए जाते थे. सरकार किसी की भी हो, मंत्री कोई भी हो, ब्रजेश ठाकुर को कोई फर्क नहीं पड़ता था. उसके पाप की गाड़ी वैसे ही दनदनाती हुई चलती रहती थी.
ऐसे खुली पोल
सत्ता के गलियारों में इस बात की जबर्दस्त चर्चा है कि एक बड़े साहब से पंगा लेना ब्रजेश के लिए भारी पड़ गया. हालांकि इसे आप इस तरह से भी कह सकते हैं कि पाप का घड़ा आज न कल फूटना ही था, बस कोई बहाना चाहिए था. ऐसी सभी संस्थाओं की सोशल ऑडिट का जिम्मा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस की संस्था कोशिश को दिया गया. ऐसे पूछताछ और ऑडिट संचालक ब्रजेश के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी. उसे पता था कि जब एक से एक आका उसके इशारे में घूमते हैं, तो यह भी मैनेज हो जाएगा. सूत्रों की मानें, तो नेताओं और अधिकारियों की ऐय्याशी को इस शख्स ने रिकॉड भी कर रखा था कि ताकि वह जिन्न की तरह उनके प्राण अपनी बोतल में रख सके. मगर बच्चियों की आह उसे इस तरह से खाकसार बना देगी इसका अंदाजा उसे तनिक भी नहीं था.
हालांकि इसे भी मैनेज करने में उसने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इसका अंदाज आप इससे लगा सकते हैं कि संस्था ने अपनी रिपेार्ट फरवरी में ही सरकार को सौंप दी थी और कार्रवाई की प्रक्रिया मई के अंत में शुरू हुई. तीन महीने तक संस्था की ऑडिट रिपोर्ट नोट या पाप के तले दबी रही. मगर अब तो भगवान का दिल भी इन बच्चियों के आंसूओं से पसीज चुका था. सचिवालय में एक साहब ने अपने अधीनस्थ अधिकारी को ब्रजेश ठाकुर की संस्था सेवा संकल्प के पदाधिकारियों पर एफआईआर दर्ज कराने का आदेश दे दिया. हालांकि ब्रजेश के हाथ की लंबाई का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि प्राथमिकी में इसका नाम नहीं दिया गया. बाद में इसे पुलिस ने उठाया.
रिपोर्ट के अनुसार, सेवा संकल्प द्वारा संचालित बालिका गृह में लड़कियों का यौन शोषण होता है. हर तरीके से उनकी प्रताड़ना होती है. सरकार को संस्था के दोषी लेागों पर प्राथमिकी दर्ज कराकर इसकी त्वरित जांच की जानी चाहिए. शुरू में तो रिपोर्ट पटना से लेकर मुजफ्फरपुर तक दबाई गई, मगर बाद में ऐसा करना संभव नहीं हो सका. कोशिश की इस कमेंट के आधार पर जैसे ही सेवा संकल्प के नौ लोगों पर एक साथ एफआईआर दर्ज की गई, मामला जंगल की आग की तरह फैल गया. विभाग ने सबकुछ बहुत की गोपनीय तरीके से करना चाहा. प्राथमिकी दर्ज करने के पहले ही वहां की सभी लड़कियों को पटना, मोकामा और मधुबनी के बालिका गृहों में शिफ्ट कर दिया गया. इसकी किसी को भनक तक नहीं लगी.
संस्था की नौ वैसी महिलाओं पर प्राथमिकी दर्ज की गई, जो इस कुकर्म में शामिल थीं. पुलिस ने सबको हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की. दूसरी ओर पुलिस ने मोकामा, पटना और मधुबनी में शिफ्ट की गई लड़कियों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ के बाद जो बयान सामने आए उससे शायद आपकी रूह भी कांप जाए. उनके साथ क्या होता था, इसकी तो शायद आपने कल्पना भी न की होगी. मगर उससे भी आश्चर्यजनक जानकारी यह थी कि कई सफेदपोश लोग उन मासूमों के साथ घिनौना व्यवहार करते थे. बच्चियों को नशीली दवाएं दी जाती थीं और फिर उनके साथ रेप किया जाता था.
एय्याशी गृह या सरकारी चकला घर बना दिया था बालिका गृह को
इस मामले में लड़कियों के बयान चौंकाने वाले थे. जिसे समाज ब्रजेश ठाकुर के नाम से जानता था, वह ठाकुर क्रूर सिंह निकला. बच्चियां उसे हंटर वाले सर के नाम से जानती थीं. उसके हाथ में हंटर रहता था. हंटर का भय दिखाकर वह खुद तो बच्चियों की अस्मत लूटता ही था, दूसरों से भी लूटवाता था. हंटर वाले सर तय करते थे कि आज कौन लड़की किसकी हैवानियत की शिकार होगी, किस लड़की को यहीं पर साहब के आगे परोसा जाएगा और किसे होटल में जाना होगा.
इस दरिंदे का एक होटल भी इसी शहर में है, जहां यह साहबों को खुश करने के लिए मासूमों को भेजता था. लड़कियों के बयान में कई सफेदपोशों के नाम भी सामने आए हैं. उसे कलमबंद किया जा चुका है. उनमें कई तो कल्याण विभाग के अधिकारी ही हैं. विभाग का सीपीओ (चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफसर) रवि रोशन भी इस मामले में अंदर हो गया है. बच्चियों ने इसकी भी दरिंदगी बयान की हैं. इनमें कोई तोंद वाले तो कोई मूंछ वाले थे. सीबीआई जांच के बाद इनके नामों का भी खुलासा करेगी. हालांकि इनमें कई लोगों के नाम तो राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में सामने आ भी चुके हैं.
शुरू हुई खुदाई तो याद आया निठारी कांड
पूछताछ में बच्चियों ने बताया कि उनकी एक सहेली को बालिका गृह में गला दबाकर मार डाला गया. बाद में दरिंदों ने उसे इस परिसर में गड्ढा खोदकर उसे दफना दिया. बयान के बाद पुलिस ने कोर्ट में अर्जी डालकर वहां पर खुदाई का आदेश मांगा. कोर्ट ने त्वरित सुनवाई कर खुदाई करने का आदेश जारी कर दिया. दूसरे दिन खुदाई शुरू हो गई. यह कांड निठारी कांड जैसा हो गया. लोगों को अंदेशा होने लगा कि यहां भी बच्चियों को मारकर नीचे दफना दिया गया या नाले में तो नहीं डाल दिया गया. देशभर के चैनलों ने इसे लाइव दिखाकर पूरे मामले को अंतरराष्ट्रीय बना दिया.
विधानसभा से लेकर लोकसभा तक बवाल
खुदाई के बाद से लगातार दो दिनों तक विधानसभा से लोकसभा तक में बवाल होता रहा. विधानसभा में विपक्षी दल के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, राबड़ी देवी सहित अन्य नेताओं ने इसपर नीतीश सरकार को घेरते हुए जमकर बवाल किया. दूसरे दिन तेजस्वी यादव, हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, सदन में कांग्रेस के नेता सदानंद सिंह और भाकपा (माले) के महबूब अली मुजफ्फरपुर बालिका गृह पहुंच गए. उधर सासंद पप्पू यादव के बवाल के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कह दिया कि अगर राज्य सरकार चाहे तो केंद्र सरकार इसकी जांच सीबीआई से करा सकती है.
इधर उसी दिन राज्य के डीजीपी ने सीबीआई जांच से मना कर दिया. इस पर विपक्षियों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया. बाद में सरकार को झुकना पड़ा और जांच सीबीआई को सौंपी गई. 26 जुलाई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐलान किया कि सरकार ने सीबीआई से इस मामले की जांच कराने की सिफारिश कर दी है. अगले ही दिन सीबीआई ने पूरे मामले की कमान अपने हाथ में ले ली. सीबीआई एसपी जेपी मिश्रा के नेतृत्व में दस अधिकारियों की टीम मुजफ्फरपुर पहुंच गई. उन्होंने बालिका गृह को देखा और आईजी से मिलकर पूरी जानकारी ली. मामला सीबीआई के पास जाते ही इसकी जांच तेज हो गई. सीबीआई ने फिर से प्राथमिकी दर्ज की, फिर से लड़कियों के बयान लिए और अपने हिसाब से मामले की तफ्तीश शुरू कर दी.
मंत्री और एक मंत्री पति का नाम भी उछला
विपक्षी दल के नेता तेजस्वी यादव ने कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति लखेन्द्र वर्मा पर खुलकर आरोप लगाया कि वे यहां आते-जाते थे. साथ ही नगर विकास मंत्री की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि एक मंत्री तो अपनी इसी शौक को पूरा करने के लिए बंगाल तक जाते हैं. इसी क्रम में तारा पीठ के एक होटल में उनकी पिटाई भी हुई थी. ऐसी घटना नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा के साथ हुई थी. बाद में इस आरोप पर मंजू वर्मा बिफर पड़ी थीं और कहा था कि अगर यह आरोप साबित हो जाता है, तो वे इस्तीफा दे देंगी. वहीं मंत्री सुरेश शर्मा ने तो तेजस्वी को कानूनी नोटिस भी भेज दिया. हालांकि इसके बावजूद, विपक्षी दोनों के इस्तीफे पर अड़े रहे और आखिरकार 8 अगस्त को समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा.
ब्रजेश के स्वधार गृह से ग़ायब हुईं 11 महिलाएं
ब्रजेश का पाप यहीं खत्म नहीं होता है. बालिका गृह की घटना के बाद इसी की संस्था स्वधार गृह से 11 महिलाएं गायब हो गईं या करा दी गईं. मामले का खुलासा हुआ तो समाज कल्याण विभाग के सहायक निदेशक दिवेश कुमार शर्मा ने 31 जुलाई की रात महिला थाने में 11 महिलाओं के लापता होने की एफआईआर दर्ज कराई. इसमें सेवा संकल्प व विकास समिति के संचालक व अन्य को आरोपी बनाया है.
बताया गया है कि छोटी कल्याणी स्थित स्वाधार गृह में रहने वाली महिलाओं का ट्रेस नहीं है और न ही स्वाधार गृह को संचालित करने वाली संस्था ने इस संबंध में पत्राचार किया है. बाद में पुलिस जब वहां मुआयना करने पहुंची, तो वहां पर खाली शराब की बोतलें और कंडोम भी पाया गया. सहायक निदेशक ने बताया कि स्वधार गृह में परिवार से अलग हो चुकी महिलाएं रहती थीं. ऐसी महिलाओं को स्वधार गृह में रोजगार का प्रशिक्षण भी दिया जाता था.