झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के आरोपों से आहत पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी अब रघुवर के खिलाफ बाण चलाने के लिए अपनी तरकश तान ली है, और कभी भी झारखंड में राजनीतिक भूचाल ला सकते हैं. मुंडा ने सीएनटी एसपीटी एक्ट को अपना हथियार बनाया है और इसी बहाने मुख्यमंत्री रघुवर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. विपक्षी दल के साथ-साथ सरकार में शामिल सहयोगी पार्टी आजसू भी मुंडा की इस मुहिम का खुलकर साथ दे रही है.
भाजपा छोड़ने के बाद अपनी पार्टी बनाकर अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी ने तो आदिवासी भावना जगाकर अर्जुन मुंडा की तारीफों के पुल बांध दिए. साथ ही प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा भी पर्दे के पीछे से मुंडा के साथ हो गया है. राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि अर्जुन मुंडा के पास भाजपा के 22 विधायकों के साथ ही अन्य दलों के लगभग 25 विधायकों का समर्थन प्राप्त है.
गौरतलब है कि झारखंड भाजपा में अब दो धुरी बन गए हैं. रघुवर और मुंडा के बीच छत्तीस का रिश्ता जगजाहिर है. झारखंड में आदिवासी विधायकों का एक बड़ा तबका अर्जुन मुंडा के साथ है. वे इस समर्थन के कारण ही काफी उत्साहित हैं और कभी भी सत्ता परिवर्तन की क्षमता रखते हैं. इसका भली-भांति अहसास मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी है. लेकिन अपनी पीठ पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हाथ होने के कारण वे अहंकार से चूर हैं.
यही कारण है कि वे न तो पार्टी में और न ही प्रशासन में किसी को तवज्जो देते हैं. वे पार्टी के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा एवं उनकी टीम को किनारा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. झारखंड में भ्रष्टाचार एवं विकास न होने का दोष रघुवर दास पूर्व मुख्यमंत्री मुंडा पर थोप दे रहे हैं.
मुंडा भी पार्टी में अब अपने को असहज महसूस करने लगे हैं. दो साल शांत बैठने के बाद अब उन्होंने सरकार के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुंडा भी अब रघुवर दास से आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं.
एक पखवाड़ा पूर्व जमशेदपुर में हुए प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दोनों नेताओं ने नाम लिए बिना एक-दूसरे पर जमकर हमला बोला. मुंडा ने सीएनटी एसपीटी एक्ट के साथ ही आदिवासी एवं मूलवासी से जुड़े मुद्दे को लेकर रघुवर दास पर हमला बोला.
उन्होंने कहा कि बिना इन लोगों के हित को ध्यान में रखे नए संशोधन और अधिनियम लाए जा रहे हैं. इसके कारण आदिवासी और मूलवासियों में आक्रोश पनप रहा है और इससे पार्टी की छवि भी धूमिल हो रही है. मुंडा का यह स्पष्ट कहना था कि कोई भी कानून आदिवासियों की हित को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए.
एक तरह से उन्होंने इस सरकार को आदिवासी और मूलवासी विरोधी ही बता दिया. वहीं मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी मुंडा पर हमला बोलते हुए कहा कि पार्टी नेता विरोधी दलों के नेता की भाषा में बात नहीं करें, साथ ही यह भी कहा कि किसी भी बात को पार्टी मंच पर लाने की जरूरत है न कि विरोधियों की तरह सार्वजनिक मंच से आरोपों की बौछार करने की. उन्होंने मुंडा पर निशाना साधते हुए कहा कि चौदह साल में झारखंड का विकास नहीं हो पाया, केवल लूट मची हुई थी, भ्रष्टाचार चरम पर था.
मैंने काफी हद तक भ्रष्टाचार पर काबू पाया है और अब राज्य में विकास की गंगा बहनी शुरू हुई है, तो पार्टी के कुछ नेता ही विरोध का रास्ता थाम लिए हैं. गौरतलब है कि इन चौदह सालों में लगभग नौ साल अर्जुन मुंडा ही राज्य के मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे थे. मुख्यमंत्री एक तरह से अर्जुन मुंडा को ही राज्य का विकास नहीं होने का दोषी मान रहे हैं.
मुंडा और रघुवर के बीच छत्तीस का रिश्ता कोई नया नहीं है. दोनों ही कोल्हान प्रमण्डल की राजनीति में सक्रिय थे. मुंडा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत झारखंड मुक्ति मोर्चा से की थी, पर बाद में भाजपा में शामिल हो गए. झारखंड गठन के बाद बाबूलाल मरांडी की सरकार में कल्याण मंत्री बने, लेकिन राजनाथ सिंह का आशीर्वाद मिलते ही बाबूलाल की सरकार को गिराकर मुख्यमंत्री बन गए. वहीं रघुवर दास के राजनीतिक कद को छोटा करने का प्रयास करते रहे.
हद तो तब हो गई जब भाजपा झामुमो गठबंधन में रघुवर दास उप-उपमुख्यमंत्री थे और शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत को उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया था. कहा जाता है कि मुंडा ने शिबू से इसी रणनीति के तहत बात की और गुरुजी को आश्वस्त किया कि हेमंत का राजनीतिक कद बढ़ाने में सहयोग करेंगे. इसके बाद रघुवर दास और अर्जुन मुंडा की दूरियां बढ़ती ही गई और दोनों एक-दूसरे के कट्टर राजनीतिक विरोधी हो गए.
राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले मुंडा को रघुवर ने इस बार पटकनी दे दी. विधानसभा चुनाव में भी उन्हें मात खानी पड़ी और रघुवर दास अपनी जाति का सहारा लेते हुए अमित शाह के करीबी हो गए और मुख्यमंत्री का ताज मुंडा ने छीन ली. स्वजातीय होने के कारण रघुवर दास राष्ट्रीय अध्यक्ष के कृपापात्र बने हुए हैं.
लेकिन अब रघुवर के लिए यह ताज कांटो भरा साबित हो रहा है. सरकार में शामिल आजसू तो सरकार के खिलाफ मुखर हुई ही है. मंत्रिमंडल में शामिल सरयू राय ने भी एक तरह से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. अब देखना है कि रघुवर दास, राष्ट्रीय नेताओं के बलबूते कितने दिनों तक सरकार चलाने में सफल रह पाते हैं.
जब कोई संगठन या परिवार बड़ा होता है, तो कुछ मनभेद होते ही हैं, पर इसे मतभेद कहना बिल्कुल गलत होगा. एक तरफ सरकार बखूबी काम कर रही है, वहीं रघुवर दास एवं अर्जुन मुंडा पूरी क्षमता के साथ संगठन बढ़ाने में लगे हुए हैं. -लक्ष्मण गिलुवा
सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन से आम जनमानस पर सीधा असर पड़ा है. संशोधन करने के पहले सभी पहलुओं पर सोचना चाहिए, पर सरकार ने इसका दूरगामी परिणाम जाने बिना इस संशोधन को पारित करा दिया. -अर्जुन मुंडा
मुंडा को यह सार्वजनिक करना चाहिए कि किस लॉबी के दबाव में वे अपने कार्यकाल में सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन लाने वाले थे. इसके पीछे कौन लोग थे, उन्हें बताना चाहिए. इस संशोधन के विरोध पर मेरी पार्टी उनके साथ है. -बाबुलाल मरांडी