नई दिल्ली। वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी उन तानाशाहों में शामिल हो चुके हैं जो न अपोजीशन पार्टियों को बर्दाश्त करने के लिए तैयार है और न ही अपनी पार्टी को अपोजीशन या मीडिया किसी का सवाल उन्हें पसंद नहीं, वह बस ‘वन मैन आर्मी’ में यकीन करते हैं। अफसोसनाक बात यह है कि उनके इस काम में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और राज्य सभा चेयरमैन जगदीप द्दनखड़ भी उनका पूरा साथ देते दिख रहे हैं। दुनिया भर की पार्लियामेंट में अपोजीशन मेम्बरान अपनी बात रखने के लिए स्पीकर से जिद भी करते हैं और वेल में भी आ जाते हैं। भारत में भी ऐसा होता रहा है। लेकिन मोदी हुकूमत में अगर कोई मेम्बर अपनी बात मनवाने के लिए वेल में आ जाए तो चेयरमैन जगदीप द्दनखड़ उसे फौरन मोअत्तल कर देते हैं। वह भी एक दिन के लिए नहीं, इजलास की बाकी बची मुद्दत तक के लिए। पार्लियामेंट के सर्दियों के इजलास में चौदह दिसम्बर से लोकसभा के एक सौ सात (107) और राज्यसभा के चौंतीस मेम्बरान को सिर्फ इसलिए मोअत्तल कर दिया गया कि वह तेरह दिसम्बर को लोकसभा में सिक्योरिटी चूक की वजह से दो नौजवानों सागर शर्मा और मनोरंजन डी के कूदने के मामले पर वजीर-ए-आजम मोदी और होम मिनिस्टर अमित शाह के पार्लियामेंट में बयान पर बहस कराने का मतालबा कर रहे थे।
लोकसभा स्पीकर ने तो इंतहा ही कर दी उन्होंने लीडर आफ अपोजिशन की जिम्मेदारी निभाने वाले कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को ही मोअत्तल करके एवान से निकाल दिया। उन्होंने कई ऐसे मेम्बरान को मोअत्तल करके बाहर कर दिया जो लोकसभा में हमेशा इंतहाई संजीदगी और डिसिप्लिन के साथ जवाबित (नियमों) के मुताबिक ही अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। इनमें कांग्रेस के शशि थरूर, मनीष तिवारी, रवनीत बिट्टू, मोहम्मद सादिक, प्रतिभा सिंह, नेशनल कांफ्रेंस के डॉक्टर फारूक अब्दुल्लाह , हसनैन मसूदी, एनसीपी की सुप्रिया सुले जनता दल यूनाइटेड के गिरधारी यादव तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय, माला राय, समाजवादी पार्टी की डिंपल यादव, डॉक्टर एस.टी. हसन, एनसीपी के पी.पी. मोहम्मद फैजल, तृणमूल कांग्रेस की साजिदा अहमद खलीलुर्रहमान डीएमके ए. राजा, दयानिधि मारन, टी.आर. बालू, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय, जैसे मेम्बरान शामिल हैं। इसी तरह राज्य सभा में प्रमोद तिवारी, सैयद नासिर हुसैन, शक्ति सिंह गोहिल, रंजीत रंजन, इमरान प्रतापगढ़ी, टीएमसी के मोहम्मद नदीमुल हक, डी.एम.के. की कनिमोझी, आरजेडी के मनोज झा, फैयाज अहमद समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव और जावेद अली खान, सीपीएम के ए.ए. रहीम और कांग्रेस के कुमार केतकर वगैरह के नाम शामिल हैं।
स्पीकर की कुर्सी पर बैठकर बेईमानी के तमाम रिकार्ड कायम करने वाले बीजेपी के स्पीकर केसरीनाथ त्रिपाठी थे। जिन्होंने डिफेक्शन के अंदर डिफेक्शन को मंजूरी दे दी थी। अब लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और राज्य सभा चेयरमैन जगदीप द्दनखड़ के फैसलों से केसरीनाथ त्रिपाठी के रिकार्ड भी टूटते दिखाईदे रहे हैं। पूरे यकीन से यह नहीं कहा जा सकता कि स्पीकर और चेयरमैन संवैद्दानिक ओहदों पर बैठकर मोदी सरकार के इशारों पर काम करते हैं लेकिन उनके फैसलों में इंसाफ होता तो बिल्कुल नहीं दिखता। जगदीप द्दनखड़ जब पच्छिम बंगाल के गवर्नर थे तो वहां की वजीर-ए-आला ममता बनर्जी मुसलसल इल्जाम लगाती रहती थी कि वह गवर्नर के ओहदे के मुताबिक काम न करके बीजेपी के एजेंट के तौर पर काम करते हैं। अब वह नायब सदर जम्हूरिया (उप उपराष्ट्रपति) हैं। यहां भी अपने संवैधानिक ओहदे का ख्याल रखे बगैर उन्होंने बयान दे दिया कि पिछली सदी की अजीम शख्सियत महात्मा गांधी थे लेकिन मौजूदा सदी के ‘युग पुरूष’ नरेन्द्र मोदी हैं।
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी अपनी पार्टी में तो किसी को कुछ समझते ही नहीं है। वह ऐसा अपोजीशन भी नहीं चाहते जो उनसे सवाल कर सके। वह अपने किस्म के ऐसे तानाशाह हो गए हैं जो देश के तमाम संवैधानिक इदारों (संस्थाओं) को अपने इशारे पर चलाते हैं। अपने बिठाए हुए गवर्नरों के जरिए देश की तमाम गैर कांग्रेसी सरकारों के कामकाज में जबरदस्ती दखलअंदाजी कराते रहते हैं। ई.डी., सी.बी.आई., एन.आई.ए. और दीगर मरकजी एजेंसियों का जैसा बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसा तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा। किसी भी तानाशाह में जो सबसे बड़ी बात होती है वह यह होती है कि वह बहुत बड़े पैमाने पर गलत बयानी करता है यानि सतही जबान में कहा जाए तो झूट बोलता है। वह भी ऐसा झूट कि उसके हामी उसे सच समझते रहें। मोदी ने 2013 से अब तक जितने भी वादे किए एक भी पूरा नहीं हुआ, सब झूटे साबित हुए, हर चुनाव में नया वादा करते हैं जिस पर बड़ी तादाद में लोग यकीन भी कर लेते हैं। जैसे आजकल ‘मोदी की गारंटियों’ की रट लगाए हुए हैं। सिर्फ एक शौचालय बनवाने का मामला देखा जाए तो उनकी सरकार के जरिए बनवाए गए शौचालयों की तादाद हर तकरीर और हर तहरीर में अलग-अलग होती है, फिर भी लोग यकीन कर रहे हैं।