अपनी समावेशी ,उदार प्रवृत्ति के कारण ही हिन्दी भाषा इतनी समृद्ध ,विकसित और व्यापक हो सकी है । हिन्दी भाषा की यह प्रेरक प्रवृत्ति संकीर्णतावादी ,कट्टरपंथी ,प्रतिगामी ताकतों के लिए एक सबक है।संकीर्णतावादी ,कट्टरपंथी अंततः अपने आप को ही क्षति पहुंचाते हैं ।
सिर्फ़ दो सदियों में ही हिन्दी भाषा इतनी अधिक समृद्ध और व्यापक हुई ,जबकि अति शुद्धता के आग्रह के कारण अतीत में महिमा मंडित कुछ भाषाएं यह उपलब्धि अर्जित नहीं कर पाईं ।
प्रतिगामी ताकतें अब भी हिन्दी भाषा को ” हिन्दी , हिन्दू , हिन्दुस्तान ” के दायरे में बांधने की असफल करतूतें करती रहती हैं ।लेकिन हिन्दी के व्यापक ,बहु आयामी तीव्र प्रवाह के कारण यह संभव नहीं है ।
हिन्दी को और अधिक समृद्ध तथा व्यापक करने के लिए हिन्दी भाषी जनता कम से कम दो अन्य भाषाएं भी सीखें । हिन्दी का अन्य भाषाओं के साथ भाईचारा विकसित हो । हिन्दी तथा अन्य भाषाओं के साहित्य का अनुवाद एक आंदोलन का स्वरूप ले ।किसी भी भाषा को दोयम दर्जे का साबित नहीं किया जाए ।किसी भी भाषा का सम्मान अंततः हिन्दी का सम्मान है ।