मोतिहारी के चम्पारण सत्याग्रह स्मारक को देख कर आज बापू की आत्मा कराह रही होगी, क्योंकि स्मारक में वही सब कुछ होता है, जिससे बापू दूर रहने की शिक्षा देते थे. व्यवस्था, रख-रखाव, व्यवहार और नियमों के पालन से लेकर सब कुछ यहां बापू की सोच के विपरित हो रहा है. आज हालत ये है कि देश ही नहीं दुनिया भर के लोगों के लिए प्ररेणा के स्त्रोत रहे गांधी जी के इस स्थल पर स्थानीय लोग आने से कतराते हैं.
अक्सर पे्रमी युगल या असमाजिक तत्वों को यहां आपत्तिजनक हालत में देखा जा सकता है. इन स्थितियों से तंग आकर शहर के कुछ बुद्धिजीवियों ने गांधी संग्रहालय बचाओ समिति की स्थापना की. सबसे पहले 4 अप्रैल 2007 को गांधी संग्रहालय बचाओ समिति से जुड़े लोगों ने गांधी संग्रहालय की अनियमितताओं को दर्शाते हए जिलाधिकारी सह अध्यक्ष, गांधी संग्रहालय को पत्र लिखा. उन्होंने पत्र में बताया था कि स्मारक असामाजिक तत्वों और शराबियों को अड्डा बन गया है. ये भी कहा गया था कि प्रवेश शुल्क काट कर इसका गबन कर लिया जाता है. संग्रहालय के विकास के लिए जो चन्दा जमा होता है, उसका भी गबन हो रहा है. लेकिन इन सब शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
पहले यहां किसी राजनीतिक दल या किसी अन्य सदस्य के लिए सभा करने का प्रावधान नहीं था. केवल कुछ सामाजिक संगठनों और गांधी दर्शन से जुडे लोगों को ही सभा करने की अनुमति दी जाती थी. लेकिन आज हालत ये है कि यहां हर दिन किसी न किसी पार्टी की बैठक होती है. इतना ही नहीं, संग्रहालय के भीतर रखे ऐतिहासिक मेज पर चाय, नाश्ता-पानी परोसा जाता है. जनवरी 2015 में गांधी संग्रहालय में प्रवेश शुल्क को बढ़ा कर 5 रुपए और 2 रुपए कर दिया गया, लेकिन संग्रहित राशि नहीं बढ़ी. ये भी खबर आती है कि एक ही टिकट का प्रयोग बार-बार करके रोज सैकड़ो रुपए का बंदरबांट किया जाता है. गांधी संग्रहालय परिसर में बने 24 दुकानों में कई दुकानें ऐसी हैं, जिनके पास किराए का हजारों रुपए बकाया है.
गौर करने वाली बात ये है कि इस चम्पारण सत्याग्रह स्तंभ का निर्माण उसी जगह पर कराया गया है, जहां अंग्रेज प्रशासन द्वारा जिला छोड़ने के आदेश के मुद्दे पर मोतिहारी के तत्कालीन एसडीओ के अदालत में ‘डॉक’ में खडे होकर महात्मा गांधी ने अपना ऐतिहासिक बयान दिया था. 10 जून 1972 को तत्कालीन महामहीम राज्यपाल देवकान्त बरुआ ने गांधी स्माारक स्तंभ का शिलान्यास किया. 49 फीट लम्बे स्मारक का डिजाईन जाने-माने वास्तुकार नन्दलाल बोस ने किया था. शुरू में यह खुले में था. बाद में इसके रख-रखाव के लिए एक समिति बनाई गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पाण्डेय समिति के अध्यक्ष और विधायक नागेश्वर दत्त पाठक सचिव बनें. केदार पाण्डेय के बाद कौन-कौन लोग अध्यक्ष और सचिव बनें, उनकी सूचि आज स्मारक में उपलब्ध नहीं है. हालांकि बाद के दिनों में जिले के कलक्टर पदेन अध्यक्ष होने लगे. बाद में गांधी संग्रहालय का भव्य भवन और चहारदिवारी बनकर तैयार हुआ. जिसका उद्घाटन बिहार के राज्यपाल महामहीम एआर किदवई ने 6 दिसम्बर 1999 को किया था. यहां पर गांधी और गांधीवाद से जुड़े सैकड़ों पुस्तकों और गांधी दर्शन पर बनी फिल्मों के प्रदर्शन के लिए टीवी, वीसीआर से सुसज्जित पुस्तकालय बनाया गया. पूरे स्मारक में साउण्ड सिस्टम लगाया गया, जिससे सुबह-सवेरे गांधी जी के भजनों की ध्वनी वातावरण में सत्य, अहिंसा और प्रेम का संदेश देती थी. रौशनी से चकाचौध स्मारक किसी को भी अपने ओर आकर्षित करने में सक्षम था.
2003 में गांधी स्मारक और संग्रहालय समिति के नाम से संस्था को ट्रस्ट एक्ट में पंजीकृत कराया गया और संचालन हेतु नियमावली बनाकर आम सभा से इसका अनुमोदन कराया गया. इसी दौरान सचिव श्री पाण्डेय की पहल पर भारत के विदेश मंत्री गांधीवादी श्यामनंदन मिश्र की प्रेरणा से उद्योगपति धरुभाई अम्बानी ने महात्मा गांधी की काठियावाड़ी वेश में एक आदमकद प्रतिमा गांधी संग्रहालय को भेंट दिया. तब इसकी लागत 25 लाख रुपए थी. इस प्रतिमा का अनावरण 26 फरवरी 2006 को गांधी जी के पौत्र और तत्कालीन राज्यपाल महामहीम गोपाल कृष्ण गांधी ने किया. सौन्दर्यीकरण के तहत फव्वारा और गार्डेन लाइट लगाया गया. लेकिन ये तमाम चीजें आज या तो नदारद हो गई हैं या फिर खत्म होने की कगार पर हैं. विनोवा भावे के सहकर्मी एवं प्रसिद्ध गांधीवादी श्रीनारायण मुनि ने महामहीम राष्ट्रपति और बिहार के राज्यपाल को पत्र भेजकर गांधी स्मारक समिति मोतिहारी को पुर्नगठित करने की मांग की है. पत्र में इन्होंने कहा है कि समिति में गांधी के आदर्शों का पालन करने वाले लोगों को मनोनित किया जाय.