तकरीबन दो दशक पूर्व 1994 के लोकसभा चुनाव के बाद बिहार की राजधानी पटना समेत देश के अन्य स्थानों से मां सीता की पावन जन्म स्थली सीताम़ढी को बेहतर सड़क मार्ग से जा़ेडने को लेकर पहली बार पहल की गयी थी. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री भुवनचंद खंडूरी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए हर संभव पहल की थी. इस कार्य के लिए सीताम़ढी के तत्कालीन सांसद रहे नवल किशोर राय ने अहम योगदान दिया था. बाद के सालों में सत्ता परिवर्तन होता गया और सांसद रहे सीताराम यादव व डॉ. अर्जुन राय ने भी अपने स्तर से विकास को लेकर प्रयासरत रहे. इसी कड़ी में इस सड़क को फोरलेन में परिवर्तित कराने को लेकर केंद्रीय मंत्री रहे डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी प्रयास किया था. उन्होंने केंद्रीय मंत्री टीआर बालू को लाकर सड़क का मुआयना भी कराया था.
बताया जाता है कि सरकारी सहमति के बाद फोरलेन के लिए जमीन का अधिग्रहण की कार्रवाई भी हुई, लेकिन सड़क का निर्माण फोरलेन के रूप में नहीं कराया जा सका. फोरलेन के रूप में हाजीपुर से मुजफ्फरपुर तक हीं कार्य कराया गया. कार्य एजेंसी सी एंड सी कंपनी के कार्य रफ्तार का आलम है कि अब तक कार्य अधर में लटका है. जानकारों का कहना है कि मुजफ्फरपुर से सीताम़ढी मार्ग में एनएच-77 को कई स्थानों पर निर्माण कंपनी ने जर्जर हाल में छोड़ दिया है. नतीजा है कि लोगों को भारी तवाही झेलने की विवशता बनी है. सड़क के अलावा पुलों को भी हादसा के इंतजार में छा़ेड दिया गया है. इसका एक उदाहरण सीताम़ढी-मुजफ्फरपुर मार्ग में गोपालपुर में मौजूद है. जहां पुल निर्माण को लेकर कई पाया का निर्माण कार्य को अधर में छा़ेड दिया गया है. नतीजा है कि अब तक पुराने जर्जर हो चुके पुल से हीं वाहनों का परिचालन जारी है. दशकों पूर्व निर्मित पुल अब इस हाल में पहुंच चुकी है कि कभी भी यह भयावह हादसा के लिए चर्चा का केंद्र बन सकता है. मगर ताज्जुब की बात यह कि गोपालपुर से लेकर बेदौल गांव तक का जर्जर सड़क सीतामढ़ी जिले के जनप्रतिनिधियों को दिखाई नहीं दे रहा. मानो सभी को इस पथ में किसी दुर्घटना का इंतजार हो. जनता का हमदर्द होने का दंभ भरने वाले जनप्रतिनिधियों के सजगता का आलम है कि कार्य पूर्ण नहीं होने के बावजूद टॉल टैक्स की वसूली की जा रही है. लेकिन कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है. निर्माण एजेंसी के मनमानी का आलम है कि नये सड़क को जहां अधर में लटका रखा है. वहीं पुराने एनएच का मरम्मत तक कराने को तैयार नहीं है. जब प्रशासनिक शिकंजा कसता है, तब था़ेडा बहुत लिपापोती कर गुम हो जाती है. निर्माण कार्य में लापरवाही समेत अन्य मसलों को लेकर हाल हीं में पूर्व सांसद नवल किशोर राय ने एक शिटमंडल के साथ जिला पदाधिकारी राजीव रौशन से मुलाकात कर मांग पत्र भी सौंपा है.
अब एक नज़र दोनों हीं महत्वपूर्ण पथों पर डालना आवश्यक है. बताते चलें कि 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चले सत्ता परिवर्तन की लहर में नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि अगर बिहार में शासन का कमान मिला, तो सीताम़ढी-मुजफ्फरपुर एनएच-77 के कटौझा की पीढ़ा से जनता को मुक्ति दिलाना पहली प्राथमिकता होगी. चुनाव बाद मिले जनादेश से जब नीतीश को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, तब उन्होंने कटौझा स्थित बागमती नदी पर रामवृक्ष बेनीपुरी सेतू का निर्माण कराने का कार्य किया. सड़कों की बदहाली से लोगों को मुक्ति मिली. कटौझा में साल के तीन माह तक भारी परेशानी का सामना करने वाले लोगों में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा. सड़क निर्माण का कार्य प्रगति पर रहा. परंतु निर्माण एजेंसी के कार्य के धीमा ऱफ्तार का आलम रहा कि अब तक सड़क का कार्य पूर्ण नहीं कराया जा सका है और न ही निर्मित सड़क की सही तरीके से देखभाल. एनएच-77 के धर्मपुर चौक के समीप सड़क के पूर्वी भाग में बरसात के कारण ऐसा होल बना है, जो बाहर से नज़र नहीं आ रहा है. जबकि अंदर ही अंदर सड़क के काफी भाग में मिट्टी धंस चुकी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि कभी भी कोई इसे देखने को तैयार नहीं है. अगर समय रहते समुचित मरम्मत नहीं कराया गया, तो कभी भी भीषण हादसा होने से इंकार नहीं किया जा सकता है. वहीं एनएच-104 का हाल अब तक वहीं है, जो दशकों पूर्व था. शिवहर सांसद रमा देवी की पहल पर हाल के महीना में सड़क निर्माण एजेंसी ने कार्य शुरू तो कराया है, मगर रफ्तार से लगता नहीं है कि निकट भविष्य में निर्माण का कार्य पूर्ण हो सकेगा. उधर, एनएच-104 के सीताम़ढी से लेकर नेपाल सीमा को जोड़ने वाली भिट्ठा मा़ेड के बीच सालों पहले सड़क का निर्माण तो कराया गया. मगर इस रास्ता में पड़ने वाला दर्जनों पुल और पुलिया को पुराने हाल में छोड़ दिया गया, जो अब तक आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बना है. इस रास्ते में कई ऐसे डायवर्जन बनाए गए हैं, जहां मामूली बरसात के बाद ही वाहन चालकों के लिए आवागमन एक गंभीर चुनौती बन जाती है. ख़ासकर देश के अलग-अलग प्रांतों से पर्यटकों को लेकर प्रतिदिन आने वाली दर्जनों बसों के चालकों के लिए नेपाल के जनकपुर धाम तक आवागमन एक चुनौती बनी रहती है. निर्मित सड़क का हाल है कि धीरे-धीरे पुराने रूप में लौटने लगी है. मगर इसे कोई देखने को तैयार नहीं है. अब लोगों को इंतजार उस दिन का है, जब एनएच-77 और 104 पूर्ण रूप से दुरुस्त होगी. वाहनों का परिचालन बेरोक-टोक होगा. आवागमन में समय की बचत होगी. मगर यह तभी संभव हो पायेगा, जब स्थानीय जनप्रतिनिधि मामले को गंभीरता से लेकर आवश्यक पहल करने को आगे आएंगे. जाति व पार्टी के झंडा को विकास के हीत में जबतक किनारे नहीं रखा जायेगा, तब तक जनता की उम्मीदों को पूरा करना मुश्किल है.