जब देश अच्छे दिनों के सपने देख रहा था, तब मध्यप्रदेश में मोरवा टाउन के निवासियों को घर खाली करने का नोटिस थमाया जा रहा था. सिंगरौली में औद्योगिक विस्तार के दौरान 1950 में मोरवा टाउन बसाया गया था. इन दशकों में लोगों ने अपनी मेहनत और लगन से इस शहर को बसाया और किसी तरह से जीना शुरू किया. जब सब कुछ व्यवस्थित हो चला था, तब एक बार फिर उन्हें विस्थापन का डर सता रहा है. मोरवा के सरयू मांझी बताते हैं कि 1950 के दशक में जब मोरवा टाउन बसाया जा रहा था, तब हमें यहां लाकर छोड़ दिया गया था. हमसे कहा गया कि अब यही तुम्हारा घर है, यहीं रहो और कमा-खाकर गुजारा करो. सरयू बताते हैं कि बुनियादी सुविधा तो जाने दें, तब यहां पीने का पानी भी नहीं था. अब जब हमने जीना शुरू किया, तब एक बार फिर सरकारी अधिकारी हमें घर खाली करने की धमकी दे रहे हैं.
सिंगरौली की आबादी करीब दो लाख है. विश्व बैंक और एनटीपीसी द्वारा गठित पर्यावरणीय आकलन आयोग ने 1991 में एक रिपोर्ट में बताया कि औद्योगिक विस्तार के कारण यहां की 90 प्रतिशत आबादी को एक बार विस्थापित किया गया है. वहीं, यहां की 34 प्रतिशत आबादी को बार-बार विस्थापित होना पड़ा है. हाल में मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज ने भी सिंगरौली आकर लोगों को आश्वस्त किया था कि हम मोरवा का विस्थापन नहीं होने देंगे, लेकिन उनका यह वादा भी हवा-हवाई साबित हुआ. नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) ने कोल खनन के विस्तार के लिए मोरवा में गतिविधियां तेज कर दी हैं. खनन विस्तार की चपेट में करीब पौने दो लाख लोग सीधे प्रभावित हो रहे हैं. एनसीएल 1957 के ‘कोयला धारक क्षेत्र अधिनियम’ कानून के तहत मोरवा टाउन और आसपास के 10 गांवों का अधिग्रहण करने जा रही है. जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद यह पूरा क्षेत्र कोल खनन के दायरे में आ जाएगा.
मोरवा टाउन बसने की कहानी भी विचित्र है. 1950 में सिंगरौली का पूरा क्षेत्र कोयला खनन के रूप में विकसित हो रहा था. कई पावर प्रोजेक्टस भी लगने थे. इस दौरान दूर-दराज से लोगों को लाकर औद्योगिक क्षेत्र के नजदीक मोरबा टाउन में बसाया गया. धीरे-धीरे ये इलाका एक विकसित टाउन क्षेत्र के रूप में विकसित हो गया. यहां के ज्यादातर लोग कोल खनन कंपनियों या पावर प्रोजक्ट से संबंधित कंपनियों में काम करते हैं. अब विडंबना है कि जिन कोल खनन के कारण यह इलाका विकसित हुआ, वही क्षेत्र अब इन कोल खनन कंपनियों की भेंट चढ़ने जा रहा है.
2015 में ही स्थानीय लोगों को इस बात की भनक लग गई थी कि एनसीएल खनन विस्तार के नाम पर मोरवा टाउन और उसके आस-पास के 10 गांवों का अधिग्रहण करने जा रही है. इसके बाद 4 मई 2017 को कोयला मंत्रालय ने अचानक साढ़े 19 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के अधिग्रहण के लिए विशेष गजट अधिसूचना जारी कर दी. किसी प्रोजेक्ट के संदर्भ में तत्काल भूमि अधिग्रहण के लिए यह एक आपतकालीन प्रावधान है. मोरवा टाउन के आस-पास के गांव गौैंड बहुल क्षेत्र हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि उन्हें आपत्ति दर्ज कराने के लिए भी समय नहीं दिया गया, जबकि प्रावधान है कि नोटिस जारी करने के तीन माह के अंदर लोगों की शिकायतें सुनी जाएंगी. लोगों ने आपत्तियां दर्ज भी कराईं, पर उनपर कोई सुनवाई नहीं हुई. सबसे बड़ा सवाल यह है कि 19 वर्ग किलोमीटर भूमि अधिग्रहित होनी है, जबकि मात्र 4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्थापित लोगों को बसाया जाना है. पूरे मोरवा टाउन की 50 हजार की आबादी और 10 गांवों के चार हजार लोगों को इतनी कम जगह में बसाना मुश्किल है.