प्रभात रंजन दीन : नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में 60 से अधिक बच्चों की मौत को हादसा नहीं बल्कि सुनियोजित हत्या का मामला बताया है और दोषियों पर हत्या का मुकदमा चलाए जाने की मांग की है. गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पिछले दिनों 60 से अधिक बच्चों की मौत हो गई. बच्चों की मौत का मुख्य कारण अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई का बंद हो जाना है. इसके अलावा जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से भी बच्चों की मौत हुई. यह बात भी सामने आई कि अस्पताल में लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई करने वाली कंपनी ‘पुष्पा सेल्स’ ने सरकार को बकाया भुगतान करने के बारे में पहले ही लिखा था और सरकार को अमानवीय-चेतावनी भी दी थी कि भुगतान नहीं हुआ तो ऑक्सीजन की सप्लाई तत्काल बंद कर दी जाएगी. योगी सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय भी उतना ही बड़ा हृदयहीन साबित हुआ, जिसने ‘पुष्पा सेल्स’ की चेतावनी को संजीदगी और गंभीरता से नहीं लिया.

‘पुष्पा सेल्स’ ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को भी छह अप्रैल को बकाये के भुगतान का रिमाइंडर भेजा था. उस पत्र में लिखा गया था कि तीन अप्रैल 2017 तक अस्पताल पर 52 लाख 34 हजार 774 रुपए का बकाया है. अगर लंबित बिल का भुगतान नहीं हुआ, तो सप्लाई नहीं मिल पाएगी. ‘पुष्पा सेल्स’ का यह पत्र स्वास्थ्य मंत्री, चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन को भेजा गया था. पत्र की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री को भी भेजी गई थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत होना सही तथ्य नहीं है.

मुख्यमंत्री ने प्रदेश के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन की रिपोर्ट के हवाले से इसकी आधिकारिक पुष्टि की कि ऑक्सीजन सप्लायर ने एक अगस्त को बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को बकाये के भुगतान के बारे में पत्र लिखा था. प्रिंसिपल ने चार अगस्त को मेडिकल एडुकेशन के डीजी को पत्र लिखकर सूचित किया था और पांच अगस्त को दो करोड़ रुपए की राशि जारी कर दी गई थी. मुख्यमंत्री ने माना कि इस प्रकरण में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. राजीव मिश्र की लापरवाही सामने आई है, जिसके चलते उन्हें निलम्बित कर दिया गया है.

प्राचार्य की सरपरस्ती में अस्पताल में तमाम अवैध गतिविधियां चलाने के आरोप में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के इंसेफ्लाइटिस विभाग के चीफ नोडल अफसर डॉ. कफील अहमद को भी पद से हटा दिया गया है. अस्पताल की परचेज कमेटी के सदस्य डॉ. कफील अस्पताल में ऑक्सीजन सिलिडरों के बंदोबस्त के भी प्रभारी थे. उन पर ऑक्सीजन सिलिंडरों के बेजा निजी इस्तेमाल की भी शिकायतें सामने आई हैं. अंबेडकर नगर राजकीय मेडिकल कॉलेज के कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. पीके सिंह को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य की जिम्मेदारी सौंपी गई है. मुख्यमंत्री ने कहा कि ऑक्सीजन सप्लाई वाले पहलू की जांच के लिए मुख्य सचिव राजीव कुमार की अध्यक्षता में जांच समिति गठित कर दी गई है. घटना की मैजिस्टीरियल जांच भी कराई जा रही है.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पैसा बकाया होने की जो बात फैलाई जा रही है वह नियोजित है. सरकार पर दोष डालने के लिए इसे तूल दिया जा रहा है. तथ्य यह है कि ‘पुष्पा सेल्स’ वर्ष 2014 से ही अस्पताल को लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई कर रही है. नवम्बर 2016 से मेडिकल कॉलेज के साथ कंपनी का पेमेंट को लेकर विवाद शुरू हुआ, लेकिन उस समय कंपनी ने ऑक्सीजन सप्लाई नहीं रोकी. ‘पुष्पा सेल्स’ अब तक करोड़ों रुपए का पेमेंट सरकार से ले चुकी है. लेकिन महज कुछ लाख रुपए के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दिए जाने की घटना की गहराई से जांच होनी चाहिए. गोरखपुर के लोग कहते हैं कि इस हादसे के पीछे सुनियोजित षडयंत्र है.

चिकित्सा शिक्षा के महानिदेशक डॉ. केके गुप्ता ने कहा भी कि ‘पुष्पा सेल्स’ के पुराने रिकॉर्ड खंगाले गए हैं. कंपनी को पहले भी कई बार विलंब से पेमेंट दिया गया है, लेकिन कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि ऑक्सीजन सप्लाई ही बंद कर दी जाए. कंपनी ने जब ऑक्सीजन सप्लाई रोकने की नोटिस दी थी, उसी समय मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को इस समस्या का हल करना चाहिए था. गहराई से छानबीन हो तो यह मामला भी एनआरएचएम घोटाले की तरह विकराल घोटाला निकले.

शासन ने प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण और बेहद संवेदनशील मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई का ठेका एक नौसिखिया कंपनी को दे दिया, इसकी भी गहराई से जांच होनी चाहिए. सियासी पहुंच के कारण बगैर अनुभव वाली इस कंपनी को चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसरों ने भी काम देने में कोई आपत्ति नहीं जताई. यह कंपनी ऑपरेशन थिएटर को मॉड्यूलर बनाने के उपकरण भी सप्लाई करती थी. एनआरएचएम में भी गैर पंजीकृत सोसाइटी को 1546 करोड़ रुपए दे दिए गए थे. इसमें भी बहुत सी चहेती कंपनियों को सरकार ने ठेका दे दिया था.

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