नथुराम गोडसे ने भी 30 जनवरी 1948 के श्याम को पांच बजकर सत्रह मिनट पर, दिल्ली के बिड़ला भवन के आंगन में, महात्मा गांधी को गोली मारने के पहले नमस्कार किया था !


मुहं में राम बगल में छुरी यह संघ के रणनीति का हिस्सा है ! संविधान के बारे में संघ 25 नवंबर 1949 के दुसरे दिन से संविधान की आलोचना करते आ रहा है ! ऑर्गनायझर अंग्रेजी संघ मुखपत्र में दो लेख लिखकर संविधान की आलोचना करते हुए, उसे देश-विदेश के विभिन्न संविधानों की नकल की हुई गुदढी बोलते हुए ! इसमें भारतीयत्वका कुछ भी समावेश नही है ! उसमें स्पार्टाकस और ग्रिक से भी पुराना भारतीय संविधान ऋषि मनू द्वारा लिखित ‘मनुस्मृति’ मौजूद रहते हुए इस भिमस्मृति की क्या आवश्यकता थी? ऐसे सवाल उठाए गए हैं !


और पहलीबार अटलबिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने थे, तो उन्होंने संविधान समीक्षा के लिए एक कमेटी भी गठित की थी ! और नरेंद्र मोदी सत्ता में आने के बाद अनंत हेगड़े से लेकर कई भाजपा के नेताओं ने संविधान बदलने के संकेत दिए हैं !
नरेंद्र मोदी ने अभी भले ही माथे पर लगाकर उसे वंदन किया होगा, लेकिन जो लोग नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह में सेक्युलरिज्म और सोशलिस्ट शब्दों को हटाकर संसदसदस्यो को नई संविधान की कॉपी बाँटने का काम कर चुके हैं ! हमारे संविधान में भारत धर्मनिरपेक्ष देश है ! यह हमारे संविधान की घोषणा में लिखा होने के बावजूद, नऐ संसद भवन के उद्घाटन समारोह में ब्राम्हणों को विशेष रूप से लाकर, प्रधानमंत्री उनके सामने साष्टांग दंडवत करते हैं ! और पूजापाठ के साथ ‘सोंगल’ जैसे सामंतवाद के प्रतिक की प्रतिस्थापना करने का उद्देश्य से साफ जाहिर कर दिया है, कि यह हिंदुराष्ट्र है ! और उसके बाद अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल तथा देश के प्रधानमंत्री के द्वारा पूजा-अर्चना करते हुए करते हुए, क्या हमारे संविधान का उल्लंघन नहीं हुआ है ?


हमारे संविधान के अनुसार, आप व्यक्तिगत जीवन में आपकी आस्था के अनुसार आपके धर्म या आस्था का पालन कर सकते हैं! लेकिन नरेंद्र मोदी ने अपने व्यक्तिगत ध्यान धारणाओं का खुलकर मार्केटिंग ( यह नरेंद्र मोदी का खुद का शब्द है जो उन्होंने महात्मा गाँधी जी के बारे में कहा है कि ” गांधी जी का ठीक से मार्केटिंग नही किया गया ! “) करने का, और लाइव प्रसारण तथा फोटो प्रदर्शनी करते हुए, वह सिर्फ नरेंद्र मोदी इस व्यक्ति की बात नही है, वह 140 करोड आबादी जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ख्रिश्चन, बौद्ध, लिंगायत, पारशी, जैन, यहुदीयो तथा आदिवासीयो का सरणा और सेक्युलर लोगों के रहते हुए ! वह जानबूझकर सिर्फ हिंदू धर्म के कर्मकांड और वह भी प्रचार- प्रसार करते हुए, यह कौन सा संविधान का पालन करना हुआ ?
और अभी संपन्न हुआ लोकसभा चुनाव प्रचार में, नरेंद्र मोदी ने हमारे चुनाव आयोग द्वारा प्रसारित चुनाव की आचारसंहिता का, तथा जनतंत्र की सभी मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए जीस तरह से सांप्रदायिकता से लबरेज प्रचार करने के ऑडियो- विडियो प्रमाण उपलब्ध है ! लेकिन हमारे चुनाव आयोग ने उन्हें एक बार भी रोकने की कोशिश नहीं की है ! और इस तरह से नरेंद्र मोदी ने अपने आपको हिंदू सांप्रदायिक होने का खुलकर प्रदर्शन किया है ! और उसके बावजूद वह विश्व के लगभग सभी धर्मों के देश भारत में रहते हुए, प्रधानमंत्री की शपथ लेने जा रहे हैं !


और इसके पहले उन्होंने 7 अक्तुबर 2001 को पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली थी ! और 27 फरवरी 2002 के गुजरात के दंगे में भले ही वह तकनीकी आधार विभिन्न जांच आयोगों से बरी हो गए होंगे ! लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि “आपने राजधर्म का पालन करना चाहिए था ! ” मतलब उन्होंने 7 अक्तूबर 2001 को मुख्यमंत्री के रूप में ली हुई शपथ का उल्लंघन किया है ! वैसे ही उन्होंने गुजरात के दंगों के बाद जानबूझकर चुनाव आयोग की रिपोर्ट के खिलाफ जाकर गुजरात विधानसभा के चुनाव घोषित करते हुए, दंगों की आग के पृष्ठभूमि में चुनाव प्रचार करते हुए ! दोबारा मुख्यमंत्री पद की 22 दिसंबर 2002 की शपथ ग्रहण की ! और खुद की बनियन की साइज 44 इंच रहते हुए ! अपनी 56 इंच छाती को खुब प्रचारित किया !

जो पुरुषों के अहंकार का भौंडा प्रदर्शन था ! और उसी 56 इंची छाती के जुमले पर 25 दिसंबर 2007 में तिसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की ! और चौथी बार 26 दिसंबर 2012 को तथाकथित गुजरात मॉडल के और 56 इंची छाती के जुमलो पर मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के बावजूद, उस शपथ-पत्र के अनुसार सभी जाति धर्म के लोगों की जानमाल की सुरक्षा की अनदेखी करते हुए ! अपने आप को ‘हिंदूहृदय सम्राट’ के रूप में 2014 में 26 मई को भारत जैसे बहुआयामी संस्कृति के देश के सबका साथ सबका विकास बोलते हुए, प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली ! लेकिन उस दौरान संविधानिक संस्थान सबसे पहले योजना आयोग की बर्खास्त करने से जो शुरुआत की, वह रिजर्व बैंक के सलाह मशविरा के बीना नोटबंदी जैसा सबसे संवेदनशील आर्थिक फैसला ! सिर्फ अपने खुद के मनमर्जी से लेकर, देश के अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड किया ! जिसमें लाखों लघुउद्योग खत्म होने की वजह से करोड़ों लोगों के रोजगार छिने गए ! यह बहुत बड़ा आर्थिक अपराध का निर्णय था ! जिसपर नरेंद्र मोदी के उपर कारवाई होनी चाहिए थी ! लेकिन कुछ चंद रिजर्व बैंक के गवर्नरों के इस्तीफे में नरेंद्र मोदी के इस आर्थिक अपराध की अनदेखी की गई !


और एक संविधान का उल्लंघन कश्मीर के 370 हटाने के लिए कश्मीर की विधान सभा की अनुमति चाहिए थी ! तो उसके पहले ही कश्मीर की विधान सभा को भंग कर के रख दिया था ! पता नहीं हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने क्या सोचते हुए 370 हटाने के निर्णय पर क्यों संविधान की अनदेखी की है ! जैसे कि बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसे अपराधिक मामले के निर्णय के पहले ही राममंदिर निर्माण कार्य शुरू करने के लिए निर्णय लेने की बात ! और कश्मीर के 370 हटाने के निर्णय दोनों के दोनो निर्णय हमारे संविधान के अनुसार नहीं दिए हैं ! नरेंद्र मोदी के सविंधान के उल्लंघन के निर्णयों को हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने ठप्पा लगाना हमारे संविधान के खिलाफ है ! और जितने भी संविधानिक संस्थाएँ है जिसमें आई बी, सीबीआई, ईडी, सेबी, सेना पुलिस बल तथा न्यायालय तथा संसद और अब चुनाव आयोग सभी को डरा-धमका कर अपने मनमर्जी के अनुसार और वह भी सिर्फ विरोधी दलों को खत्म करने के लिए इस्तेमाल करने की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने की है ! कौन सा डॉ. बाबा साहब आंबेडकर द्वारा दिए भारत के संविधान के महान मुल्यो के प्रति समर्पण दिखाया है ? अगर नरेंद्र मोदी का भारतीय संविधान के प्रति इस तरह का समर्पण भाव है तो वह हमे नही चाहिए !


जिस तरह से नरेंद्र मोदी पहली बार 26 मई 2014 के दिन, लोकसभा में प्रवेश करने के समय लोकसभा की सिढि पर चढ़ने के पहले साष्टांग दंडवत किया ! और उन्होंने उसके बाद लोकसभा को अपने दल के सभागार में तब्दील कर लिया था ! विरोधी दलों के नेताओं की सदस्यता रद्द करने से लेकर उनके माईक बंद करने की कृतियों को क्या कहेंगे ?
किसानों के खिलाफ तिनो बिलों को राज्य सभा में अपने अल्पमत रहने के बावजूद ! जिस तरह से तथाकथित आवाजी मतदान के द्वारा तीन बील पास करने की कृती ! और 26 मई 2014 के दिन संसद भवन के सिढि पर साष्टांग दंडवत ? क्या हमारे संसदीय प्रणाली को हास्यास्पद बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है ?
वैसे ही अभी शुक्रवार को संसद भवन में प्रवेश करने के बाद संविधान की कॉपी को माथे को लगाने की कृति, 26 मई 2014 के दिन संसद भवन के सिढि पर चढते हुए दंडवत ! और दस सालों में भारतीय संसद के सभी परंपराओं को बेरहमी से खत्म करना लोग भूले नहीं है ! इसलिए शुक्रवार को संविधान की प्रति को माथे पर लगाने का पाखंड 26 मई 2014 के दिन संसद की सिढीपर किया गया साष्टांग दंडवत एक जैसा ही लगता है ! क्योंकि नरेंद्र मोदी के चोबीस सालों के राजनीतिक सफर को देखते हुए इस आदमी पर भरोसा नहीं किया जा सकता !


सौ वर्ष पहले जर्मनी में भी हिटलर ने दुमा में 30 जनवरी 1930 के दिन प्रवेश करने के बाद जर्मनी के चांसलर बनने के बाद 30 अप्रैल 1945 तक, कौन सी संसदीय प्रणाली का पालन किया था ? यह इतिहास ताजा है ! और सबसे महत्वपूर्ण बात नरेंद्र मोदी जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बचपन से पले बढे है ! वह भी हूबहू हिटलर और मुसोलिनी के फासिस्ट विचारों का अनुकरण करते हुए ही खडा किया गया है ! जिसे अगले वर्ष 2025 में सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं !

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