- सीबीआई के पूर्व निदेशक एपी सिंह के बाद अब रंजीत सिन्हा पर चार्जशीट की तैयारी
- साढ़े पांच सौ घंटे की टेलीफोन टैपिंग में सफेदपोशों की भरमार, इनमें कई भाजपाई भी
- सपा नेता, पूर्व डीजीपी, फिल्मकार, ईडी के अफसर व कई अन्य छानबीन के दायरे में
- फिल्म ‘जानिसार’ में मोईन कुरैशी ने पैसा लगाया तब हिरोइन बनी उसकी बेटी परनिया
तनातनी और कलह का कारण क्या था? जांच का विषय यह है. मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच में ईडी की कोताही, नोटबंदी के दरम्यान मनी लॉन्ड्रिंग की शिकायतों पर ईडी की ओर से किसी कार्रवाई का न होना, मनी लॉन्ड्रिंग धंधे में मुब्तिला एक बहुराष्ट्रीय फोन कंपनी का मामला रफा-दफा कर दिया जाना, एक बड़ी मिठाई कंपनी की मुद्रा-धुलाई के धंधे में संलिप्तता हजम कर जाना, मनी लॉन्ड्रिंग धंधे के सरगना मोईन कुरैशी के खिलाफ रामपुर के एसएसपी से मिली आधिकारिक सूचनाओं को दबा दिया जाना जैसे कई मसले हैं जो एक साथ आपस में गुंथे हुए हैं. सीबीआई अधिकारी मानते हैं कि अब ईडी में घुसने का उन्हें मौका मिल गया है, अब सारे मामले की जांच होगी.
सीबीआई यह भी जांच कर रही है कि ईडी की फाइलें लखनऊ के एक पॉश क्लब में क्यों ले जाई जाती थीं और कुछ खास आला नौकरशाहों के सामने फाइलें क्यों खोली जाती थीं. इस क्लब के पदाधिकारी जेल में बंद एक कुख्यात माफिया सरगना के इशारे पर चुने और हटाए जाते हैं. उस माफिया सरगना के भी मोईन कुरैशी से अच्छे सम्बन्ध बताए गए हैं.
सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा और मोईन कुरैशी के सम्बन्ध इतने गहरे रहे हैं कि 15 महीने में दोनों की 90 मुलाकातें आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज हैं. यह तथ्य कोई छुपा हुआ मामला नहीं है. एपी सिंह से भी कुरैशी की ऐसी ही अंतरंग मुलाकातें सीबीआई और ईडी की छानबीन में रिकॉर्डेड हैं. एपी सिंह और कुरैशी की अंतरंगता इतनी थी कि सिंह के घर के बेसमेंट से कुरैशी का एक दफ्तर चलता था. एपी सिंह और कुरैशी के बीच ब्लैक-बेरी-मैसेज के आदान-प्रदान की कथा सार्वजनिक हो चुकी है.
यह सीबीआई का दस्तावेजी तथ्य है. दूसरे निदेशक रंजीत सिन्हा के प्रसंग में सीबीआई के दस्तावेज बताते हैं कि मोईन कुरैशी अपनी कार (डीएल-12-सीसी-1138) से कई बार सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा से मिलने उनके घर गया. कुरैशी की पत्नी नसरीन कुरैशी भी अपनी कार (डीएल-7-सीजी-3436) से कम से कम पांच बार सिन्हा से मिलने गई. कुरैशी दम्पति की दोनों कारें उनकी कंपनी एएमक्यू फ्रोजेन फूड प्राइवेट लिमिटेड के नाम और सी-134, ग्राउंड फ्लोर, डीफेंस कॉलोनी, नई दिल्ली के पते से रजिस्टर्ड हैं. ये दोनों कारें कई बार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर भी जाती रही हैं, जिनमें मोईन और उसकी पत्नी सवार रही हैं. मोईन कुरैशी की बेटी परनिया कुरैशी की शादी कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद के रिश्तेदार अर्जुन प्रसाद से हुई है.
बहरहाल, सीबीआई का निदेशक रहते हुए रंजीत सिन्हा ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज़ (सीबीडीटी) पर दबाव डाल कर मोईन कुरैशी के खिलाफ हो रही छानबीन का ब्यौरा जानने और छानबीन की प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश की थी. सीबीडीटी के पास रंजीत सिन्हा का वह पत्र भी है, जिसके जरिए उन्होंने छानबीन का ब्यौरा उपलब्ध कराने का औपचारिक दबाव डाला था. बाद में वित्त मंत्री बने अरुण जेटली ने सीबीडीटी को निर्देश देकर ऐसा करने से मना किया था.
एपी सिंह हों या रंजीत सिन्हा, इस सिस्टम में मोईन कुरैशी के हाथ इतने अंदर तक धंसे हैं कि मनी लॉन्ड्रिंग का पूरा मसला बिना किसी नतीजे के अधर में ही टंगा रह जाएगा, इसी बात का अंदेशा है. अमेरिका के पेंसिलवानिया में अरबों रुपए की जालसाजी करने वाला जाफर नईम सादिक जब कोलकाता के रवींद्र सरणी इलाके में पकड़ा जाता है, तब यह रहस्य खुलता है कि वह भी मोईन कुरैशी का ही आदमी है.
इंटरपोल की नोटिस पर जाफर पकड़ा जाता है. बाद में यह रहस्य खुलता है कि जाफर नईम, दुबई के विनोद करनन और सिराज अब्दुल रज्जाक का नाम इंटरपोल की वांटेड-लिस्ट और उनकी तलाशी के लिए जारी रेड-कॉर्नर नोटिस से हटाने के लिए इंटरपोल के तत्कालीन प्रमुख रोनाल्ड के नोबल से कुरैशी ने सिफारिश की थी. नोबल ने यह आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि उसके मोईन कुरैशी परिवार और सीबीआई के तत्कालीन निदेशक एपी सिंह से नजदीकी सम्बंध रहे हैं.
लेकिन नोबल ने इंटरपोल की लिस्ट से नाम हटाने के मसले को सिरे से खारिज कर दिया था. कुरैशी की सिफारिश को नकारने वाले इंटरपोल प्रमुख रोनाल्ड के नोबल के भाई जेम्स एल. नोबल जूनियर और भारत से फरार स्वनामधन्य ललित मोदी बिजनेस-पार्टनर हैं. अमेरिका में दोनों का विशाल साझा धंधा है. यह सीबीआई के रिकॉर्ड में है. रोनाल्ड नोबल वर्ष 2000 से 2014 तक की लंबी अवधि तक इंटरपोल के महासचिव रहे हैं.
केंद्रीय खुफिया एजेंसी काले धन की आमद-रफ्त का पूरा नेटवर्क जानने की कोशिश में लगी है. इसी क्रम में मुद्रा-धुलाई और हवाला सिंडिकेट के सरगना मोईन कुरैशी से जुड़े उन तमाम लोगों के लिंक खंगाले जा रहे हैं, जिनके कभी न कभी मोईन कुरैशी से सम्बन्ध रहे हैं या मोईन कुरैशी का धन उनके धंधे में लगा है. इनमें नेता, अफसर, व्यापारी और फिल्मकारों से लेकर माफिया सरगना तक शामिल हैं. जैसा ऊपर बताया, मोईन कुरैशी के काफी नजदीकी सम्बन्ध समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान से रहे हैं.
ये सम्बन्ध इतने गहरे रहे हैं कि आजम खान की बनाई मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के उद्घाटन के मौके पर मोईन कुरैशी चार्टर हेलीकॉप्टर से रामपुर आया था. सीबीआई गलियारे में भुनभुनाहट थी कि आजम खान की यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय की मान्यता दिलाने में मोईन कुरैशी ने यूपी के अल्पकालिक कार्यकारी राज्यपाल अजीज कुरैशी से सिफारिश की थी. स्वाभाविक है कि इसकी आधिकारिक पुष्टि छानबीन से ही होगी, क्योंकि इंटरपोल के महासचिव की तरह कोई यह स्वीकार तो करेगा नहीं कि मोईन कुरैशी से उनके दोस्ताना सम्बन्ध रहे हैं. यह भारतवर्ष के लोगों की खासियत है.
इसी प्रसंग में याद करते चलें कि उत्तर प्रदेश के दो निवर्तमान राज्यपालों क्रमशः टीवी राजेस्वर और बीएल जोशी ने मौलाना जौहर अली यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा देने के विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था. जोशी के जाने के बाद और राम नाईक के राज्यपाल बन कर आने के बीच में महज एक महीने के लिए यूपी के कार्यकारी राज्यपाल बनाए गए अजीज कुरैशी ने आनन-फानन मौलाना अली जौहर यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय की मान्यता के विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए. कुरैशी 17 जून 2014 को यूपी आए, 17 जुलाई 2014 को जौहर विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय की मान्यता दी और 21 जुलाई 2014 को वापस देहरादून चले गए.
मनी लॉन्ड्रिंग सरगना मोईन कुरैशी के साथ सम्बन्धों की बात तो प्रसिद्ध फिल्मकार मुजफ्फर अली भी स्वीकार नहीं करेंगे. जबकि असलियत यही है कि मुजफ्फर अली की फिल्म ‘जानिसार’ में मोईन कुरैशी का पैसा लगा और मोईन की बेटी परनिया कुरैशी इस फिल्म में हिरोइन बनी. ‘जानिसार’ फिल्म के प्रोड्यूसर में मीरा अली का नाम दिखाया गया, लेकिन सब जानते हैं कि फिल्म में मोईन कुरैशी ने पैसा लगाया था. बाप मोईन कुरैशी की तरह बेटी परनिया कुरैशी को भी कानून से खेलने में मजा आता है. अमेजन इंडिया फैशन वीक-2016 के दरम्यान मीडिया के लिए निजी तौर पर कॉकटेल पार्टी (बेशकीमती शराब पीने-पिलाने की पार्टी) देकर परनिया कुरैशी चर्चा में रही. मीडिया वालों ने पहले तो खूब दारू छकी और बाद में नुक्ताचीनी की कि परनिया कुरैशी फैशन डिज़ाइन काउंसिल ऑफ इंडिया की सदस्य नहीं हैं, तो फिर कॉकटेल पार्टी कैसे दी. मजा यह है कि इस कॉकटेल पार्टी का नाम परनिया ने ‘रामपुर का कोला’ रखा था.
हम आप सोचेंगे वही आजम खान का रामपुर… लेकिन वो कहेंगे, नहीं, मोईन कुरैशी का रामपुर. इसके पहले भी परनिया कुरैशी इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर स्मगलिंग के आरोप में पकड़ी और करीब 40 लाख रुपए का जुर्माना लेकर छोड़ी जा चुकी हैं. मोईन के अंतरंगों और उपकृतों की लिस्ट में ऐसे और कई नाम हैं. कांग्रेसियों के नाम तो भरे पड़े हैं. सोनिया गांधी का नाम इनमें शीर्ष पर है. पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद तो मोईन कुरैशी के रिश्तेदार ही हैं. वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल, कमलनाथ, आरपीएन सिंह, मोहम्मद अजहरुद्दीन जैसे कई नेता इस सूची में शुमार हैं. ये उन नेताओं के नाम हैं जो मोईन कुरैशी के घर पर नियमित उठने-बैठने वाले हैं. सोनिया के घर पर मोईन परिवार नियमित तौर पर उठता-बैठता रहा है.
सीबीआई अफसरों को ‘पटाने’ वालों को पकड़ती क्यों नहीं सरकार!
देश का अजीब हाल है कि केंद्र सरकार सीबीआई जैसी खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों को पूंजी-सिंडिकेटों और सरगनाओं की ओर से उपकृत किए जाने पर गुस्सा भी दिखाती है और उसे रोकती भी नहीं है. सीबीआई के अधिकारियों को ‘पटाने’ का दो तरीका इस्तेमाल में लाया जा रहा है. या तो उन्हें मोटी रकम घूस में दी जाती है, या उन्हें सेमिनार और गोष्ठियों में बुला कर आकर्षक सम्मानिकी देकर उपकृत किया जाता है. कई पूंजी संस्थानों में तो खास तौर पर सीबीआई अधिकारियों को आलीशान वेतन पर नौकरी दी जाती है.
यह ऐसा प्रलोभन है कि सीबीआई अफसर अपने रिटायरमेंट के बाद के जुगाड़ में उस पूंजी संस्थान को अनैतिक मदद पहुंचाते रहते हैं. सीबीआई के अधिकारियों को आकर्षक नौकरी का प्रलोभन देने में जिंदल प्रतिष्ठान अव्वल है. जिंदल प्रतिष्ठान कोयला घोटाले में लिप्त रहा है, लिहाजा वह सीबीआई अफसरों को अधिक उदारता से अपने यहां नौकरियां देता रहा है. सीबीआई जांचों के फेल होने की वजहों का भयानक सच भी यही है.
अब हम इसे आपको तफसील से बताते हैं. इसके लिए थोड़ा फ्लैश-बैक में चलना होगा. सीबीआई के निदेशक रहे अश्वनी कुमार सीबीआई से रिटायर होने के बाद और नगालैंड का राज्यपाल बनाए जाने के पहले नवीन जिंदल के प्रतिष्ठान में नौकरी कर रहे थे. सीबीआई के कई पूर्व निदेशक और वरिष्ठ नौकरशाह जिंदल संगठन में अभी भी नौकरी कर रहे हैं.
सीबीआई के निदेशकों को रिटायर होते ही जिंदल के यहां नौकरी कैसे मिल जाती है? सत्ता के गलियारे में पैठ रखने वाले वरिष्ठ नौकरशाहों को जिंदल से जुड़े प्रतिष्ठानों में प्रभावशाली ओहदों पर क्यों बिठाया जाता है? जिंदल के संस्थानों से ताकतवर नौकरशाह महिमामंडित और उपकृत क्यों होते रहते हैं? उन पर केंद्र सरकार ध्यान क्यों नहीं दे रही? यह सवाल सामने है. कोयला घोटाले में जिंदल समूह की संलिप्तता और घोटाले की सीबीआई जांच से जुड़ी फाइलों की रहस्यमय गुमशुदगी के वाकये को देखते हुए इन सवालों को सामने रखना और भी जरूरी हो जाता है.
उद्योगपति और ताकतवर कांग्रेसी नेता नवीन जिंदल की कोयला घोटाले में भूमिका जगजाहिर है. यूपीए कालीन सत्ता से उनकी नजदीकियां और उन नजदीकियों के कारण कोयला घोटाले की लीपापोती की करतूतें आपको याद ही होंगी. घोटाले में लिप्त हस्तियों की साजिशी पहुंच कितनी गहरी होती है, यह कोयला घोटाले से जुड़ी फाइलों के गायब होने के बाद पूरे देश को पता चला था.
खैर, अब आप इस खबर के जरिए देखिए कि पर्दे के पीछे पटकथाएं कैसे लिखी जाती हैं और इसे कौन लोग लिखते हैं! कोयला घोटाले में लिप्त जिंदल समूह के जरिए केंद्र सरकार के वरिष्ठ नौकरशाहों को उपकृत कराने का सिलसिला लंबे अरसे से चल रहा है. आप तथ्यों को खंगालें, तो पाएंगे कि सत्ता के अंतरंग जिन नौकरशाहों को केंद्र सरकार उपकृत नहीं कर पाई, उन्हें जिंदल के यहां शीर्ष पदों पर नौकरी मिल गई. ऐसा भी हुआ कि नौकरी करते हुए भी कई नौकरशाहों को जिंदल के मंच से महिमामंडित किया जाता रहा. कांग्रेस के बेहद करीबी रहे अश्वनी कुमार तब सीबीआई के निदेशक थे, जब कोयला घोटाला पूरे परवान पर था. दो साल की निर्धारित सेवा अवधि में चार महीने का विस्तार अश्वनी कुमार के सत्ता साधने के हुनर का ही प्रमाण था.
अश्वनी कुमार दो अगस्त 2008 को सीबीआई के निदेशक बनाए गए थे और उन्हें दो अगस्त 2010 को रिटायर हो जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें एक्सटेंशन दिया गया. सत्ता का ‘लक्ष्य’ पूरा होने के बाद अश्वनी कुमार नवम्बर 2010 को सीबीआई के निदेशक पद से रिटायर हुए. जैसे ही रिटायर हुए, उन्हें जिंदल समूह ने लपक लिया. जिंदल समूह ने उन्हें ओपी जिंदल ग्लोबल बिजनेस स्कूल का प्रोफेसर नियुक्त कर दिया. बाद में तत्कालीन केंद्र सरकार ने अश्वनी कुमार को नगालैंड का राज्यपाल बना दिया. कोयला घोटाला, घोटाले की लीपापोती, उसमें जिंदल की भूमिका और जिंदल समूह में सीबीआई निदेशकों की नियुक्ति के सूत्र आपस में मिलते हैं कि नहीं, इसकी पड़ताल का काम तो जांच एजेंसियों का है. हमारा दायित्व तो इसे रौशनी में लाने भर का है.
अश्वनी कुमार को सीबीआई का निदेशक बनाए जाने के पीछे की अंतरकथा कम रोचक नहीं है. 17 साल से अधिक समय से सीबीआई को अपनी सेवा देते रहे खांटी ईमानदार राजस्थान कैडर के आईपीएस अधिकारी एमएल शर्मा का निदेशक बनना तय हो गया था. चयनित निदेशक को प्रधानमंत्री के साथ चाय पर आमंत्रित करने की परम्परा के तहत शर्मा को पीएमओ में बुला लिया गया था. उधर, सीबीआई कार्यालय तक इसकी सूचना पहुंच गई थी और वहां लड्डू भी बंट गए. लेकिन अचानक केंद्र सरकार ने एमएल शर्मा का नाम हटा कर हिमाचल प्रदेश के डीजीपी अश्वनी कुमार को सीबीआई का निदेशक बना दिया. जबकि शर्मा उनसे सीनियर थे. वे पीएमओ से अपमानित होकर लौट आए. शर्मा ने प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड और उपहार सिनेमा हादसा जैसे कई महत्वपूर्ण मामले निपटाए थे.
लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें आखिरी वक्त पर सीबीआई का निदेशक बनने लायक नहीं समझा, क्योंकि शर्मा वह नहीं कर सकते थे जो केंद्र सरकार सीबीआई से कराना चाहती थी. अचानक एमएल शर्मा को हटा कर अश्वनी कुमार को सीबीआई का निदेशक कैसे और क्यों बनाया गया, यह देश के सामने आए बाद के घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया. आरुषि हत्याकांड की लीपापोती करने और सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में अमित शाह को घेरे में लाने में अश्वनी कुमार की ही भूमिका थी. लिहाजा, कोयला घोटाले में उनका रोल क्या रहा होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है. अश्वनी कुमार ऐसे पहले सीबीआई निदेशक हैं, जो राज्यपाल बने.
सीबीआई के पूर्व निदेशक डीआर कार्तिकेयन जिंदल समूह के ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी की एकेडेमिक काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य हैं. कार्तिकेयन 1998 में सीबीआई के निदेशक रह चुके हैं. इसी तरह चार जनवरी 1999 से लेकर 30 अप्रैल 2001 तक सीबीआई के निदेशक रहे आरके राघवन भी जिंदल समूह की सेवा में हैं. राघवन ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट के वरिष्ठ सदस्य हैं.
सीबीआई के जिन निदेशकों को जिंदल अपने समूह में नियुक्त नहीं कर पाया, उन्हें अपने शैक्षणिक प्रतिष्ठान से महिमामंडित कराता रहा. सीबीआई के निदेशक रहे अमर प्रताप (एपी) सिंह को रिटायर होने के महज महीने डेढ़ महीने के अंदर केंद्र सरकार ने लोक सेवा आयोग का सदस्य मनोनीत कर दिया था. उधर, जिंदल समूह इनके भी महिमामंडन में पीछे नहीं था. ओपी जिंदल ग्लोबल विश्वविद्यालय के कई शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में एपी सिंह शरीक रहे.
यहां तक कि राष्ट्रीय पुलिस अकादमी तक में अपनी घुसपैठ बना चुका जिंदल वहां भी सैकड़ों वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के विशेषज्ञीय प्रशिक्षण का आयोजन कराता रहता है और उसी माध्यम से शीर्ष नौकरशाही को उपकृत करता रहता है. सीबीआई के पूर्व निदेशक पीसी शर्मा के साथ भी ऐसा ही हुआ. उन्हें भी रिटायरमेंट के महीने भर के अंदर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का सदस्य बना दिया गया. जिंदल ने पीसी शर्मा को भी अपने समूह से जोड़े रखा और शैक्षणिक प्रतिष्ठानों; ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी और जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के जरिए उनका महिमामंडन करता रहा.
सत्ता से जुड़े रहे वरिष्ठ नौकरशाहों की जिंदल से नजदीकियां वाकई रेखांकित करने लायक हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व सदस्य, भारत सरकार की नीति बनाने और उसे कार्यान्वित कराने की समिति के पूर्व निदेशक, प्रधानमंत्री, कैबिनेट सचिवालय और राष्ट्रपति तक के मीडिया एवं संचार मामलों के निदेशक रह चुके वाईएसआर मूर्ति को जिंदल ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी का रजिस्ट्रार बना दिया. मूर्ति न केवल विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार हैं बल्कि वे मैनेजमेंट बोर्ड और एकेडेमिक काउंसिल के भी सदस्य हैं. देश के ऊर्जा सचिव रहे राम विनय शाही और भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रहे अरुण कुमार पुरवार जिंदल स्टील्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं.
ऐसे तमाम उदाहरण हैं. जिंदल देश का अकेला ऐसा पूंजी प्रतिष्ठान है, जिसने सत्ता से जुड़े शीर्ष नौकरशाहों को अपने समूह में सेवा में रखा. खास तौर पर सीबीआई के पूर्व निदेशकों को अपनी सेवा में रखने में जिंदल का कोई सानी नहीं है. जिंदल जैसे समूहों से उपकृत होने वाले सीबीआई के पूर्व निदेशकों या वरिष्ठ अधिकारियों पर किसी की निगाह नहीं जाती. यह भी तो घूस है! इस पर केंद्र सरकार कोई अंकुश क्यों नहीं लगाती? भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी-बड़ी बोलियां बोलने वाले सत्ताधारी नेता इन सवालों पर चुप रहते हैं.
लखनऊ में बड़े आराम से खप जाता है काला धन
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला के धंधे के साथ-साथ नौकरशाहों के काले धन के ‘एडजस्टमेंट’ का भी सुविधाजनक स्थान रही है. स्मारक घोटाला, एनआरएचएम घोटाला, बिजली घोटाला जैसे तमाम घोटालों के धन मनी लॉन्ड्रिंग का धंधा करने वाले गिरोह के जरिए यहां से बेरोकटोक विदेश जाते रहे हैं. लखनऊ से नेपाल के रास्ते काला धन बड़े आराम और बिना किसी शोरगुल के दक्षिण एशियाई देशों तक पहुंच जाता है. केंद्र सरकार का ध्यान स्विट्जरलैंड और अन्य पश्चिमी देशों पर लगा रहता है और इधर दक्षिण एशिया के छोटे-मोटे देशों में देश का पैसा धड़ल्ले से जाता रहता है. चीन के अधीन हॉन्गकॉन्ग काले धन के निवेश का बड़ा केंद्र बन गया है. यूपी के कई नेताओं का काला धन हॉन्गकॉन्ग के अलावा थाईलैंड और मलेशिया में भी खपा हुआ है. इसकी छानबीन में खुफिया एजेंसियां कोई रुचि नहीं ले रही हैं. नेताओं की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच इन देशों में हुए निवेश की छानबीन के बगैर पूरी नहीं हो सकती. बहरहाल, भ्रष्ट नौकरशाह भी लखनऊ का इस्तेमाल काला धन खपाने में करते रहते हैं. कुछ अर्सा पहले अंगदिया कुरियर कंपनी के जरिए 50 लाख रुपए का बड़ा कन्साइनमेंट लखनऊ निवासी ध्रुव कुमार सिंह के नाम से आया था. इसकी भनक सीबीआई को पहले ही लग चुकी थी. यह पैसा क्रिकेट फिक्सिंग और सट्टे से जुड़े धंधेबाजों का था, जिसे रिश्वत के रूप में इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट के अधिकारियों को ‘ऑब्लाइज’ करने के लिए भेजा गया था. इसमें ईडी के संयुक्त निदेशक जेपी सिंह व अन्य अफसरों और उनसे जुड़े सट्टेबाज विमल अग्रवाल, सोनू जालान और कुछ अन्य का नाम आया था.
साढ़े पांच सौ घंटे की रिकॉर्डिंग उजागर हो तो तूफान आ जाएगा
इन्कम टैक्स विभाग की खुफिया शाखा ने मोईन कुरैशी की विभिन्न हस्तियों से होने वाली टेलीफोनिक बातचीत टेप की. उसके बारे में आईटी इंटेलिजेंस के सूत्र थोड़ी झलक दिखाते हैं, तो लगता है कि कुरैशी का मनी लॉन्ड्रिंग का साम्राज्य पूरे सरकारी सिस्टम को समानान्तर चुनौती दे रहा है. तकरीबन साढ़े पांच सौ घंटे की रिकॉर्डिंग है. आईटी के अधिकारी ही कहते हैं कि इसे देश सुन ले, तो भारतीय लोकतांत्रिक सिस्टम की असलियत प्रामाणिक रूप से समझ में आ जाए.
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में इन्कम टैक्स की इंटेलिजेंस शाखा पहले से खुफिया जांच कर रही थी. आईटी इंटेलिजेंस ने मोईन कुरैशी की विभिन्न लोगों से टेलीफोन पर होने वाली बातचीत को तकरीबन साढ़े पांच सौ घंटे सुना था और उसे रिकॉर्ड किया था. इसमें केंद्र सरकार के कई मंत्री, यूपी समेत कई राज्य सरकारों के मंत्री, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, सीबीआई के अधिकारी, बड़े कॉरपोरेट घरानों के अलमबरदार, कई फिल्मी हस्तियां समेत ढेर सारे महत्वपूर्ण लोग शामिल हैं. आप हैरत न करें, इनमें भाजपा के भी कई नेताओं के नाम हैं. एक वरिष्ठ भाजपा नेता की बेटी का नाम भी है और उस भाजपा नेता का भी नाम है, जो मोईन कुरैशी के भाई को रामपुर से टिकट दिलाने की कोशिश कर रहा था. यह अपने आप में बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन होगा, अगर उसे सार्वजनिक कर दिया जाए.
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मोईन कुरैशी के जाल में फंसने और सीबीआई के दो-दो निदेशकों के उसके साथ सम्बन्ध उजागर होने के बाद देशभर में चर्चा हुई, निंदा प्रस्ताव जारी हुए और अपने-अपने तरीके से नेताओं ने इसे खूब भुनाया. लेकिन किसी भी नेता ने सार्वजनिक तौर पर यह चर्चा नहीं की कि ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी ने केंद्र सरकार को पहले ही क्या सूचना दे दी थी. ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी ने भारतीय खुफिया एजेंसी को आगाह करते हुए यह बता दिया था कि दुबई के एक बैंक अकाउंट से 30 करोड़ रुपए ट्रांसफर हुए हैं. अकाउंटधारी भारतीय है और यह पैसा सीबीआई के निदेशक को घूस देने के लिए भेजा गया है. केंद्र सरकार न तो उस अकाउंट को जब्त कर पाई और न अकाउंटधारी को ही पकड़ा जा सका.
सीबीआई के निदेशक के पद पर रहते हुए एपी सिंह और रंजीत सिन्हा, दोनों मोईन कुरैशी की फर्म ‘एसएम प्रोडक्शन्स’ को सीबीआई के विभागीय कार्यक्रमों के आयोजन का भी ठेका देते रहे हैं. इसे मोईन कुरैशी की दूसरी बेटी सिल्विया कुरैशी संचालित करती थी. सीबीआई के निदेशकों के साथ मोईन कुरैशी के इंटरपोल के प्रमुख रोनाल्ड के नोबल के करीबी सम्बन्धों के बारे में आपने ऊपर जाना. साथ-साथ यह भी जानते चलें कि सीबीआई और ईडी दोनों एजेंसियों के अधिकारी फ्रांस के आर्किटेक्ट जीन लुईस डेनॉयट को मोईन कुरैशी के हवाला धंधे के सिंडिकेट से सक्रिय तौर पर जुड़ा हुआ सदस्य बताते हैं. …केवल बताते हैं, उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाते हैं.
जिनसे आतंकी लेते हैं फंड, उन्हीं से नेता लेते हैं धन
देखिए, दृश्य एकदम साफ है. मोईन कुरैशी का मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला का धंधा बहुत बड़ा घोटाला है, लेकिन यह कोई नया थोड़े ही है! इसके पहले भी हवाला का धंधा होता रहा है. इसके पहले भी काला धन सफेद होता रहा है. उन घोटालों का क्या हुआ? कुछ नहीं हुआ. सारे मामले लीप-पोत कर बराबर कर दिए गए. कम राजनीतिक औकात वाले कुछ नेता और दलाल जेल गए. फिर सब कुछ सामान्य हो गया. नेता और नौकरशाह जिन मामलों में इन्वॉल्व रहेंगे, उसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आतंकी संगठन जिन स्रोतों से पैसे प्राप्त करते हैं, उन्हीं स्रोतों से विभिन्न राजनीतिक दल भी धन लेते हैं. लेकिन इससे नेताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
अब आप ही बताइए कि नब्बे के दशक के उस हवाला घोटाले का क्या हुआ, जो बड़े धमाके से उजागर हुआ था? देश से बाहर विदेशों में अरबों रुपए का काला धन भेजने की हवाला-कला से देश के आम लोगों का परिचय ही जैन हवाला डायरी केस से हुआ था. सीबीआई ने वर्ष 1991 में कई हवाला सरगनाओं के ठिकानों पर छापे मारे थे. इसी छापेमारी के क्रम में एसके जैन की डायरी बरामद हुई थी और वर्ष 1996 में यह देश-दुनिया के सामने उजागर हो गया था. थोड़ा झांकते चलते हैं, जैन हवाला मामले की फाइलों में…
25 मार्च 1991 को दिल्ली पुलिस ने जमायत-ए-इस्लामी के दिल्ली मुख्यालय से कश्मीरी युवक अशफाक हुसैन लोन को गिरफ्तार किया था. अशफाक से मिले सुराग पर जामा मस्जिद इलाके से जेएनयू के छात्र शहाबुद्दीन गोरी को पकड़ा गया. अशफाक और शहाबुद्दीन दोनों हवाला के जरिए पैसा हासिल कर उसे आतंकवादी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट तक पहुंचाते थे. यह पैसा लंदन से डॉ. अय्यूब ठाकुर और दुबई से तारिक भाई भेजा करता था. यह संवेदनशील सूचना मिलने पर मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई ने जांच अपने हाथ में लेने के बाद 3 मई 1991 को विभिन्न हवाला कारोबारियों के 20 ठिकानों पर छापेमारी की. इसमें भिलाई इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक सुरेंद्र कुमार जैन के महरौली स्थित फार्म हाउस और उसके भाई जेके जैन के दफ्तर पर भी छापा पड़ा. छापे में 58 लाख रुपए से ज्यादा नकद, 10.5 लाख के इंदिरा विकास पत्र और चार किलो सोना बरामद किया गया. इसके अलावा 593 अमेरिकी डॉलर, 300 पाउंड, 27 हजार डेनमार्क की मुद्रा, 50 हजार हॉन्गकॉन्ग की मुद्रा, 300 फ्रैंक सहित 50 अलग-अलग देशों की काफी मुद्राएं बरामद की गईं. सबसे महत्वपूर्ण बरामदगी थी दो संदेहास्पद डायरियां.
एसके जैन की डायरी में तत्कालीन केंद्र सरकार के तीन कैबिनेट मंत्री सहित केंद्र के कुल सात मंत्रियों, कांग्रेस के कई बड़े नेताओं, दो राज्यपालों और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का नाम भी शामिल था. इस लिस्ट में 55 नेता, 15 बड़े नौकरशाह और एसके जैन के 22 सहयोगियों को मिलाकर कुल 92 नामों की पहचान हुई थी. अन्य 23 लोगों की पहचान नहीं हो पाई थी. डायरी में लिखे नामों के आगे राशि-संख्या लिखी थी. इसमें लालकृष्ण आडवाणी पर 60 लाख रुपए, बलराम जाखड़ पर 83 लाख, विद्याचरण शुक्ल पर 80 लाख, कमलनाथ पर 22 लाख, माधवराव सिंधिया पर 1 करोड़, राजीव गांधी पर 2 करोड़, शरद यादव पर 5 लाख, प्रणब मुखर्जी पर 10 लाख, एआर अंतुले पर 10 लाख, चिमन भाई पटेल पर 2 करोड़, एनडी तिवारी पर 25 लाख, राजेश पायलट पर 10 लाख और मदन लाल खुराना पर 3 लाख रुपए लिखे थे. सीबीआई ने चार साल बाद मार्च 1995 में एसके जैन को गिरफ्तार किया. जैन ने अपने लिखित बयान में कहा कि उसने वर्ष 1991 में मार्च से मई महीने के बीच राजीव गांधी को चार करोड़ रुपए पहुंचाए. इसमें से दो करोड़ रुपए राजीव गांधी के निजी सचिव जॉर्ज के लिए थे. इसके अलावा दो करोड़ रुपए सीताराम केसरी को भी दिए गए, जो उस समय कांग्रेस के कोषाध्यक्ष थे. इसी तरह उसने नरसिम्हा राव और चंद्रास्वामी को भी साढ़े तीन करोड़ रुपए देने की बात कबूली थी. एसके जैन ने यह भी स्वीकार किया था कि इटली के हथियार डीलर क्वात्रोची के जरिए वह हवाला कारोबारी आमिर भाई के सम्पर्क में आया था. आप आश्चर्य करेंगे कि गिरफ्तारी के 20 दिन बाद ही एसके जैन को जमानत पर रिहा कर दिया गया था.
गिरोहबाजों के तार कितने लंबे रहे हैं, इसका अहसास आपको इस बात से ही लग जाएगा कि जिस अशफाक और शहाबुद्दीन की निशानदेही पर इतना बड़ा मामला खुला, उन दोनों का नाम चार्जशीट से गायब कर दिया गया. एसके जैन की भी गिरफ्तारी मामला उजागर होने के चार साल बाद की गई थी. सीबीआई ने 16 जनवरी 1996 को आधी-अधूरी चार्जशीट दाखिल की. 8 अप्रैल 1997 को दिल्ली हाईकोर्ट के जज मोहम्मद शमीम ने लालकृष्ण आडवाणी और वीसी शुक्ला को बाइज्जत बरी कर दिया, धीरे-धीरे सारे नेता बेदाग निकल गए. कोर्ट ने भी जैन की डायरी को ‘बुक ऑ़फ अकाउंट’ में लेने से इंकार कर दिया. कोर्ट ने इसे सबूत नहीं माना. सीबीआई ने भी सब कुछ ढीला छोड़ दिया. विडंबना यह है कि जैन हवाला डायरी मामले से यह खुलासा हुआ था कि विदेश से जिस फंड के द्वारा राजनीतिक दलों को पैसा भेजा गया था, उसी चैनल के जरिए आंतकी संगठनों को भी फंड भेजा गया था. इस घोटाले में 115 राजनेता और कारोबारी के साथ-साथ कई नौकरशाह शामिल थे. लेकिन सब सबूत के अभाव में बचकर निकल गए.
लिहाजा, हमें यह समझ लेना जरूरी है कि उस बार की तरह इस बार भी कुछ नहीं होने वाला. हवाला या मनी लॉन्ड्रिंग के बूते ही राजनीतिक दलों का धंधा चलता है. चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, आम आदमी पार्टी हो या समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी या कोई अन्य. राजनीतिक दलों पर हवाला के पैसे के लेन-देन के आरोप लगते रहे हैं और वे अपने सफेद वस्त्र से धूल झाड़ते रहे हैं. मनी लॉन्ड्रिंग मामले में करीब-करीब सारे राजनीतिक दल कमोबेश इन्वॉल्व हैं, लेकिन बताइए कौन नेता पकड़ा जाता है? आपके सामने बस एक उदाहरण है, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का.
आरोप है कि मधु कोड़ा ने हजारों करोड़ रुपए बटोरे और उसे हवाला के जरिए विदेश भेजा. लेकिन आप यह भी जानते चलें कि मधु कोड़ा बड़े नेताओं का एक कारगर मोहरा थे, जिसे सामने रख कर काला धन बाहर भेजा गया और मोहरा जेल चला गया.