नई दिल्ली : भाजपा के नेता किसी भी मौके पर ये बताना नहीं भूलते कि वे अटल जी और दीनदयाल उपाध्याय जी के बताए रास्ते पर चल रहे हैं. लेकिन हकीकत यही है कि वर्तमान भाजपा अपने इन निर्माताओं को पीछे छोड़ती जा रही है. ऐसे तो भाजपा के पोस्टरों और होर्डिंग्स से ये नेता गायब हो ही चुके हैं, अब वैचारिक रूप से भी पार्टी इनसे दूरी बनाने लगी है. इसका सबसे ताजा उदाहरण है, ‘राष्ट्रधर्म’ पत्रिका के अस्तित्व पर संकट.

राष्ट्र धर्म के के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से अगस्त 1947 में अटल जी और दीनदयाल उपाध्याय जी द्वारा ‘राष्ट्रधर्म’ पत्रिका शुरू की गई थी. अटल जी इसके संस्थापक संपादक थे, वहीं पं. दीनदयाल उपाध्याय संस्थापक प्रबंधक थे. अब तक ये पत्रिका छप रही थी, लेकिन अब केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने पत्रिका की डायरेक्टरेट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी (डीएवीपी) की मान्यता रद्द कर दी है. इसका मतलब है कि केंद्र सरकार ने अब इस पत्रिका को अपने विज्ञापनों की पात्रता सूची से बाहर कर दिया है. इसके पीछे तर्क ये दिया गया है कि अक्टूबर 2016 के बाद से इसकी कॉपी पीआईबी व डीएवीपी के कार्यालय में जमा नहीं कराई गई है.

‘राष्ट्रधर्म’ के वर्तमान प्रबंधक पवन पुत्र बादल का कहना है कि हमें अभी तक इसकी जानकारी नहीं मिली है. लेकिन अगर ऐसा हुआ है, तो ये बिल्कुल गलत है. उन्होंने कहा कि आपातकाल में इंदिरा गांधी द्वारा हमारे कार्यालय को सील किए जाने के बाद भी इस पत्रिका का प्रकाशित होना बंद नहीं हुआ. लेकिन अब भाजपा सरकार में ही पत्रिका पर इस तरह का संकट आता है, तो ये दुर्भाग्य कहा जाएगा. उन्होंने कहा कि अगर संबंधित कार्यालय को पत्रिका की कॉपी नहीं मिल रही थी, तो उन्हें नोटिस जारी कर पूछना चाहिए था.

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