आज का नागपुर से निकल ने वाले हिंदी नवभारत अखबार के प्रथम पृष्ठ पर का यह शीर्षक है ! एक रिपोर्ट पढकर मै हतप्रभ हो गया हूँ! हमारे प्रधानमंत्री अपने 6 साल के कार्यकाल के दौरान हमारे जनतंत्र के मंदिर में 2014 जब प्रथम बार प्रवेश कर रहे थे तो पहले सिढीपर साष्टांग दण्डवत करने के पस्चात प्रवेश किया था और उस मंदिर में प्रवेश कर के वह छ साल से भी अधिक समय से लगातार संसद सदस्य और प्रधानमंत्री के नाते उसमें बैठे हुए हैं और इन छ सालों के दौरान वह सिर्फ 22 बार ही बोले है !
अगर यह रिपोर्ट सही है तो प्रधानमंत्री जी हमारे लोकतंत्र के मंदिर की कितनी इज्जत करते हैं यह इसपर से सिद्ध होता है ! उनके तुलना में अटल बिहारी वाजपेयी जी को भी छ साल का प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 77 बार बोले थे और महज दो साल के कार्यकाल मिले हुए देवगौड़ाजी ने नरेंद्र मोदी जी से ज्यादा बार बोला था और जिन्हें सतत नरेंद्र मोदी जी मौनी मनमोहन बोला करते हैं वह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान 48 बार बोले थे !
भारतीय संसदीय इतिहास में प्रथम बार अगर कोई प्रधानमंत्री पदपर बैठने के बाद अगर संसद की उपेक्षा कर रहे हैं तो वह सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी जी ही है !
वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर आसीन थे तब भी गुजरात विधानसभा के सत्र हर एक साल में जितने होने चाहिए वे इनके कार्यकाल के दौरान रेकार्ड ब्रेक कम होने लगे थे ! और अध्यादेशों से काम चलाना यह भी उनके कार्य प्रणाली का पार्ट लगता है और हर साल औसतन 11 अध्यादेशों का रेकार्ड भी मोदी जी के खाते में जा रहा है !
और ताजा संसद सत्र में राज्य सभा में अपना अल्पमत है यह देखकर हमारे ही मित्र हरिवंश जी जो राज्यसभा के उपाध्यक्ष बनाये गये हैं! और उनकी मदद लेकर तथाकथित आवाजी मतदान पर जो निर्णय लिया गया है वह तो आजतक के भारत के संसदीय इतिहास में प्रथम बार ही हुआ है !
और वह होने के पस्चात हरिवंश जी का एक दिन का उपवास और उसके साथ राष्ट्रपति महोदय को लिखी चिट्ठी जो खुद प्रधानमंत्री जी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा था कि यह पत्र भारत के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में दर्ज हो गया है ! और इसमे जेपी, गांधी जी के साथ लोहिया, कर्पूरी ठाकुर और यह सब कम पडे तो महात्मा गौतम बुद्ध और महावीर की भी मदद लेनी पडी थी ! और राज्य सभा में लगभग समस्त विरोधी दलों के सदस्यों को बाहर निकाल कर जो बिल पास करा लिये उसमें सबसे अहम बिल कृषि क्षेत्र में प्रायवेट क्षेत्र के धन्ना शेठो के लिए खोलने से लेकर श्रमजीवी वर्ग के लोगों को सौ साल पहले के पूरे विश्व के मजदूरों के लडाई के कारण जो श्रम कानूनों बनाने पडे थे उन्हें औद्योगिक घरानों के उद्योगपतियोंकि सुविधा से बदल ने वाले बिल जिसका विरोध संघ परिवार के द्वारा भी कीया जा रहा है! जिसकी आप आपकी आदत के अनुसार अनदेखी कर रहे हैं !
ऐसे 7 से ज्यादा बिल पास करा ने के लिए संसदीय लोकतंत्र का गला घोंटकर निर्मम तरीके अपना कर आपने तथाकथित पास करने का कर्म-काण्ड पूरा किया है और जिसके विरुद्ध हमारे देश के सभी प्रमुख किसान-मजदूर संगठन लगातार अपना विरोध कर रहे हैं !
आज से 90 साल पहले के जर्मनी की संसद जिसे ड्यूमा कहा जाता है वहां तक पहुंचने का हिटलर का सफर देखकर हूबहू आपका अभि का भारत की संसद तक पहुंचने की बात काफी मेल खाती नजर आ रही है !
बीजेपी जिस कछुआ गती से चल रही थी उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी जी को अनपेक्षित रूप से बहुमत मिला है और उसी कारण संसद में प्रथम बार प्रवेश कर ने वाले नरेंद्र मोदी जी को संसद की सीढियां चढ़ने के पहले जो साष्टांग दण्डवत करने की प्रेरणा हुई है वह शत-प्रतिशत सही थी ऐसा मुझे लगता है !
अन्य लोगों को वह नाटक लगता होगा लेकिन शायद उन्हें हिटलर का राजनीतिक सफर ठिकसे मालुम नहीं है या भूल गए हैं बिलकुल हिटलर ने अपने आप को जर्मनी की संसद जिसे ड्यूमा कहा जाता है वहां तक पहुंचने का सफर देखकर लगता है कि मामला काफी कुछ मिलता जुलता है !
और हिटलर ने भी तथाकथित जनतांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा ही अपने आप को जर्मनी की छाती पर मूँग दलने के लिए एक सिढी के तौरपर इस्तेमाल किया है और उसे आग लगा ने के षडयंत्र से लेकर बहुत कुछ मिलता जुलता है !
और वह भी जन सभा और रेडियो के माध्यम से गोबेल्स जैसे एक्सपर्ट की मदद से ! अब तो भारत के मीडिया मे कई-कई गोबेल्स मील गये हैं ! जो हिटलर से भी बढचढकर चिल्ला-चिल्ला कर आपके पक्ष मे बोलते हुए दिख रहें हैं !
और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जो हिटलर के समय बहुत ही प्राथमिक अवस्था में था! आज वह पूरे परवान पर है और यही कारण है कि नरेंद्र मोदी जी संसद में बोलने के बजाय जिसे अंग्रेजी में मोनोलाॅग बोला जाता है एकतरफा बोलना ! फिर वह रेडिओ पर मन की बात हो या अक्षय कुमार जैसे फिल्मी दुनिया के एक्टर के साथ सुरक्षित अपने घरमे अकेले ही बात कर के उसे प्रसारित करने की बात हो !
छ साल के कार्यकाल के दौरान मुझे एक भी संवाददाता सम्मेलन जो हमारे देश के सभी प्रधानमंत्री साल में कम से कम एक बार विज्ञान भवन में करने की परंपरा है उसे नरेंद्र मोदी जी को प्रधान मंत्री बनने के बाद एक बार भी कीया याद नहीं आ रहा है ! क्या नरेंद्र मोदी जी को डर लगता है कि की पत्रकारों के तरफ से जो सवाल पूछे जाने वाले होंगे उनका जवाब नहीं दिया जा सकता है ?
अगर नरेंद्र मोदी जी को सचमुच भारत के संसदीय लोकतंत्र के बारे में आदर सम्मान हैं तो वह लोकसभा सदन में या हमारे देश के मीडिया को सीधा सामना करने से क्यो मुकर रहे हैं ? 56 इंच छाती क्या सिर्फ अल्प संख्यक समुदाय के लोगों को डराने के लिए है ? वह तो अल्पसंख्यक हैं और आगे भी रहेंगे ऐसे निर्बल लोगों को बार-बार अपनी ताकत का प्रदर्शन करने मे कौनसी बहादुरी का लक्षण है ?
आप सचमुच ही निडर और बहादुर हो तो संसद जिसे आप हमारे जनतंत्र के मंदिर की उपमा देते हो ! हालांकि मंदिर और मस्जिद की रजनिति करा के ही आप यहाँ तक पहुंच गये हो! लेकिन उस मंदिर के अन्य नियम कानून का पालन करना भी आपका कर्तव्य है और यही कारण है कि आज के नवभारत की न्यूज़ देखकर ही मै यह पोस्ट लिख रहा हूँ !
अन्यथा आपके सत्ता में आने के 20 साल के उपलक्षमे मैंने आपका सत्ता सम्हलने का लेखा-जोखा एक हप्ता दस दिन पहले ही लीखा था और लगा नहीं कि इतने कम समय में मुझे पुनः आपको लेकर कुछ लिखने की आवश्यकता महसूस हुई !
डाॅ सुरेश खैरनार 17 अक्तूबर 2020,नागपुर