नई दिल्ली (ब्यूरो, चौथी दुनिया)। कहते हैं कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश के चुनावी बाईपास से होकर गुजरता है। जिसका लखनऊ में कब्जा होता है कि दिल्ली पर उसकी दावेदारी उतनी मजबूत मानी जाती है। 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी को यूपी में ऐतिहासिक जीत मिली। विरोधियों ने दबे मन से स्वीकार कर लिया की 2019 का चुनाव बीजेपी के ही पक्ष में रहेगा। फिर भी मोदी और शाह की जोड़ी आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए हैं।
अब गुजरात के सांसदों के साथ मोदी और शाह की चर्चा हुई। इस दौरान अगला विधानसभा चुनाव भी एक बिंदू रहा। बीजेपी कोशिश में है कि गुजरात का चुनाव समय से पहले करवाया जाए। दरअसल गुजरात को लेकर मोदी और शाह की चिंता का कारण हैं गुजरात का ‘मोदी और शाह का गढ़’ होना। बीते कुछ महीनों में मोदी और शाह के गढ़ में जिस तरीके से पाटीदार और दलित आंदोलन हुआ उससे गुजराती जोड़ी चिंतित है।
मोदी और शाह ने बीजेपी को जिस दौर में पहुंचाया है। उस दौर में अगर गुजरात में उन्हे हार मिली। तो हार का असर अगले लोकसभा में भी पड़ेगा। मोदी कतई नहीं चाहते कि उनके पॉलिटिकल स्टारडम को इस वक्त कोई झटका लगे। लिहाजा गुजरात के सांसदों के साथ साथ वहां के हर नेता को चुनावी फार्मूला समझाया जा रहा है। अमित शाह को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। ऐसा माना जा रहा है कि यूपी की तरह गुजरात का चुनाव भी दिलचस्प होने वाला है।