एक बेहद समझदार महिला पत्रकार मित्र कई बार गम्भीर चर्चाओं में गम्भीरता से दोहरा चुकी हैं कि मैं चाहती हूं कि मोदी तीसरी बार भी सत्ता में आएं तभी ‘इनका’ पेट भरेगा। एक बार फोन पर भी उन्होंने इसी बात को दोहराया। मैंने सिर्फ इतना कहा कि आप जान रही हैं कि इसका परिणाम क्या होगा। दरअसल वे उन लोगों से क्षुब्ध हैं जो मोदी से अभी तक ‘हिप्नोटाइज़’ हैं। वे उन्हीं के पेट भरने की बात कर रही हैं। पर वे नहीं जानती अपनी इस जरा सी चाहत के लिए देश को क्या क्या कुर्बान करना पड़ेगा और 2024 में मोदी के फिर से आने के बाद देश के क्या हालात बनेंगे।
हिप्नोटाइज कौन लोग हैं। तीन बिरादरी हैं। एक वे जो मोदी के अंधभक्त हैं और पहले से ही इस पार्टी से जुड़े हैं। उन्हीं से ट्रोल आर्मी और आईटी सेल भी है। वे मुख्यत: इसी वर्ग को हिप्नोटाइज मानती हैं। यह वे मुझको बता चुकी हैं। लेकिन दूसरी बिरादरी उन लोगों की है जिनका बीजेपी से कोई लेना देना नहीं और वे सबसे गरीब वर्ग के दिहाड़ी लोग हैं। वे रोज जीते हैं और रोज मरते हैं। वे दिनचर्या के अलावा अपनी बुद्धि का कतई उपयोग नहीं करते । राजनीति और सामाजिक मुद्दों में तो बिल्कुल ही नहीं। उन्हें चुहलबाज़ी, जमूरेबाजी पसंद है। उन्हें बाजीगर की बाजीगरी में आनंद मिलता है। यह वह वर्ग है जिस पर मोदी ने जैसे रिसर्च की है। आज से पहले कोई कोई राजनेता ऐसा नहीं कर पाया। यह वर्ग 2014 में मोदी से इस कदर हिप्नोटाइज हुआ कि आज तक तमाम परेशानियां झेलने के बाद भी मोदी की छवि उसके दिमाग से मिटाए नहीं मिटती। वह हिप्नोटाइज हुआ और पांच साल के लिए फिर अपने अपने धंधों में लग गया। इस वर्ग ने सिर उठा कर फिर कभी राजनीति के विषय में कुछ नहीं सोचा। दरअसल उसके पास इस सबके लिए फुर्सत ही नहीं है। उसकी बौद्धिक क्षमता पर कहीं से भी कैसे भी कुठाराघात नहीं हुआ। ऐसे वर्ग का मोदी ने हमेशा अपने कारनामों में खयाल रखा । इसीलिए वह जिस तरह 2014 में मोदी का रहा आज भी रत्ती भर कम नहीं हुआ । किसी सीएसडीएस या किसी सी-वोटर ने इस वर्ग का कभी कोई सर्वे नहीं किया। कभी सब्जी भाजी खरीदते हुए उससे पूछिए कौन नेता तुम्हें पसंद है जवाब मिल जाएगा।
तीसरा वर्ग मुख्यत: व्यापारियों का है जो शुरु में हिप्नोटाइज हुआ और जिसका नीचे के इन दो वर्गों से कोई लेना देना नहीं। उसे अपने व्यापार और भ्रष्टाचार की चिंता है जो दोनों इस सरकार से सधते हैं बावजूद इसके कि यह वर्ग जीएसटी से बेतहाशा परेशान रहा है और सरकार से खुश नहीं पर वोट मोदी को ही देना चाहता है क्योंकि तीसरा बिंदु जो हिन्दू होने और मुसलमान विरोध का है उसको वह इसी सरकार से पूरा होते देखना चाहता है। कांग्रेस और राहुल गांधी में इस वर्ग की कोई आस्था नहीं। जो लोग शुरु से पारंपरिक रूप से कांग्रेसी हैं केवल उन्हें छोड़ कर। लेकिन इन कट्टर कांग्रेसियों में भी अधिकांश 2014 में मोदी की ओर मुड़े थे क्योंकि कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी भ्रष्ट छवि से वे आहत थे और मोदी ने नये और भ्रष्टाचारमुक्त भारत के स्वप्न दिखाए थे।
तो ये तीन वर्ग मोदी से ‘हिप्नोटाइज़’ थे । लेकिन हमारी महिला पत्रकार मित्र बीच वाले वर्ग को ही हिप्नोटाइज मान कर चल रही हैं। उनका कहना है कि तीसरी बार जब मोदी सत्ताधीश होंगे तब इस वर्ग को आटे दाल का पता चलेगा या तब इनके पेट भरेंगे। अभी इनके पेट नहीं भरे । यकीनन वे भूली नहीं हैं कि चाहे नोटबंदी हो, चाहे लॉकडाउन हो, चाहे जीएसटी इन वर्गों को रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ा कि वे मोदी से अलग हों। 2024 में मोदी के लौटने के बाद जो आशंकाएं जताई जा रही हैं वे सारी आशंकाएं भयावह हैं। फिर चाहे वह संविधान खतम होने की हो, चुनाव से भविष्य में मुक्ति की हो, मुसलमानों के पूर्णतया सफाए की हो , सोशल मीडिया पर विरोधी चैनलों पर गाज गिरने की हों, विरोध में बोलने वाले बुद्धिजीवियों और पत्रकारों पर होने वाले अत्याचारों आदि की हो । ऐसी आशंकाओं के बीच ऐसी चाहत कि मोदी तीसरी बार सत्ता में आएं उन महिला मित्र के प्रति उनकी नादानी का अहसास कराती है जबकि वे स्वयं मुस्लिम हैं फिर भी सब कुछ जानते समझते। इन तीन वर्गों पर हमारे विचार में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मोदी हिंदुस्तान के आदमी की मनोवृत्ति को जितना समझते हैं उतनी मेहनत किसी और ने नहीं की । कलम उठाने वालों ने भी शायद नहीं की । इसके लिए एक खास, बेहद खास नजरिए की जरूरत होती है। जो हर किसी में नहीं, अफसोस इसी बात का है।‌ तो यदि इन महिला मित्र की भांति किसी और की भी ऐसी चाहत हो तो कृपया सोचे। जिस समाज का निर्माण मोदी करना चाहते हैं जो एक ओर विरोधियों के लिए आतताई होगा वहीं समर्थकों के लिए वह आकर्षक भी होगा। इसीलिए किसी समर्थक वर्ग पर कैसा भी प्रतिकूल असर नहीं पड़ने वाला। 2024 में
मोदी की देशव्यापी हार ही देश के लिए शुभ है इसके लिए कमर कस लें। देश को बचाना है या डूबने देना है यह हर देशवासी के लिए सोचने का विषय है।
लाउड इंडिया टीवी में संतोष भारतीय ने जीवन से जुड़ा बहुत जरूरी मुद्दा उठाया पानी का । यह उन लोगों पर एक चपत है जिन्हें दिन रात राजनीतिक बहसों और चर्चाओं के अलावा कुछ सूझता नहीं। इस विषय पर कल चार लोगों की चर्चा में अभय दुबे, आलोक जोशी और पानी वाले बाबा के नाम से मशहूर राजेन्द्र सिंह के साथी विक्रांत शर्मा भी साथ थे। आप कह सकते हैं कि देश में माहौल तो कुछ और है तो इस मुद्दे का इस समय क्या तर्क और यह भी कि अभी इस मुद्दे पर चर्चा करने से सरकारी तंत्र और स्वयं सरकार को क्या फर्क पड़ने वाला है। दोनों बातें जायज़ हैं। लेकिन जनता की जानकारी और जागरूकता भी कुछ चीज हुआ करती है। सही मुद्दों के लिए हर वो वक्त सही होता है जब वे जोरदार तरीके से उठाए गए हों। इसका जोरदार तरीका यही है कि इस विषय पर लगातार कम से कम पांच ठोस कार्यक्रम किए जाएं। मुझे याद है और अभय दुबे को भी जरूर याद होगा कि ‘राष्ट्रीय सहारा’ की शुरुआत यानी 1991 से उसमें प्रति सप्ताह हर शनिवार को चार पन्नों का एक परिशिष्ट हुआ करता था जो हिंदी पत्रकारिता जगत में ऐतिहासिक था — ‘हस्तक्षेप’ नाम से। उसमें हर हफ्ते एक विषय को उठाया जाता था और उस विषय पर जबरदस्त तरीके से पूरे शोध के साथ चीजों को प्रस्तुत किया जाता था। लेख, इंटरव्यू, सर्वे की रिपोर्ट, सरकारी पक्ष आदि। उसमें अभय दुबे के भी कई बार लेख प्रकाशित हुए हैं। कुछ इसी तरह का शोध इस कार्यक्रम में भी हो तो लाउड इंडिया टीवी की चर्चा और उसकी प्रासंगिकता को चार चांद लगेंगे। इतना ही नहीं ऐसे अन्य बहुत से मुद्दे हैं जिन्हें संतोष जी उठा सकते हैं समय समय पर। शुरुआत बहुत अच्छी हुई है। पर आलोक जी का आदर्शवाद कुछ जरूरत से ज्यादा लगा कि हर मंत्री के लिए यह तय कर देना चाहिए कि आपको यही पानी पीना पड़ेगा आदि आदि जैसी बातें उन्होंने कहीं। बाकी तो सबने वस्तुस्थिति ही सामने रखी और पानी की बर्बादी का बखान करते हुए उसमें खुद को भी शरीक बताया। इस कार्यक्रम को प्रस्तावना या भूमिका के रूप में लिया जाए तो ही बेहतर है। आगे उम्मीद करें। (क्रमशः)

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