कश्मीर में आई बाढ़ ने घाटी में काफी कुछ बदल कर रख दिया है. इस बाढ़ ने तबाही तो खूब मचाई, जिसका असर आगामी विधानसभा चुनाव पर भी दिखाई देने लगा है. कश्मीर में एक बड़ा बदलाव आया है, वह है सोच का. इस बाढ़ में मुश्किलों का सामना कर बाहर निकले स्थानीय लोगों की सोच में दो तरह के महत्वपूर्ण बदलाव देखे गए. पहला, लोगों के सेना विरोधी नज़रिये में बदलाव हुआ है और दूसरा, लोग राजनीतिक पार्टी के रूप में भाजपा को तरजीह देने पर विचार करने लगे हैं. आम लोगों में यह विश्‍वास देखा जा रहा है कि विकास की बात करने वाले नरेंद्र मोदी बाढ़ के बाद बदसूरत हुई राज्य की तस्वीर को बदल सकने में सक्षम हैं. कश्मीर यानी दुनिया के स्वर्ग के विभिन्न इलाकों के दौरे के बाद तैयार हुई यह विशेष रिपोर्ट आपको कश्मीर की ताजा और वास्ततिक स्थिति से अवगत कराने की कोशिश कर रही है.
Page1111111111111कश्मीर में इन दिनों नरेंद्र मोदी की आवाज़ें गूंजनी शुरू हो गई हैं. कारण अलग-अलग हैं और पूरा कश्मीर इस समय नरेंद्र मोदी की तरफ़ आशा भरी निगाहों से देख रहा है. मुसलमानों के बारे में माना जाता था कि वे नरेंद्र मोदी का नाम सुनना भी पसंद नहीं करेंगे, लेकिन इस समय कश्मीर में, विशेषकर श्रीनगर में मुसलमान नरेंद्र मोदी का नाम सुन रहे हैं. और इन सबके पीछे जो कारण है, वह कारण देश के नेताओं के लिए एक सीख है. दो महीने पहले कश्मीर में आई बाढ़ ने नरेंद्र मोदी के लिए श्रीनगर घाटी में घुसने का मुहाना खोल दिया है. नरेंद्र मोदी को मिले इस अप्रत्याशित अवसर के बारे में बाद में बात करेंगे. पहले उस बाढ़ के बारे में बात करते हैं, जिसने पूरे श्रीनगर को डुबो दिया था और जो नरेंद्र मोदी के लिए विजय का घोड़ा साबित हो सकती है.
जो कश्मीर नहीं गया, उसने स्वर्ग नहीं देखा. और फारसी कहावत है, जिसे हमारे देश के अधिकांश लोग जानते हैं कि पृथ्वी पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है यानी कश्मीर में है और कश्मीर में भी श्रीनगर में है. स़िर्फ लिखने से और तस्वीरों से कश्मीर के स्वर्ग की कल्पना नहीं की जा सकती. आई हुई बाढ़ की तबाही बिना कश्मीर गए महसूस ही नहीं की जा सकती. अभी दो-ढाई महीने पहले देश ने टेलीविजन के ऊपर श्रीनगर की तबाही देखी. लेकिन उस तबाही के फौरन बाद हमने मनोरंजन के कार्यक्रम देखे, नेताओं के झगड़े देखे और वह दर्द जो श्रीनगर के लोगों ने भुगता, उसका हमें स्पर्श बहुत कम हो पाया. इसीलिए आज भी जब श्रीनगर जाते हैं, तो पता चलता है कि कश्मीरियों ने किस तरह से कयामत जैसे हालात का सामना किया और कैसे अपनी ज़िंदगी दोबारा जीने के लिए सारी परेशानियां भूल फिर से खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं.
झेलम नदी में बाढ़ आती है. झेलम नदी में बढ़े हुए पानी को निकालने के लिए फ्लड चैनल महाराजा हरि सिंह ने बनवाए थे और भी कई सारे चैनल थे, जो बाढ़ के पानी को दाएं-बाएं खेतों की तरफ़ फेंक देते थे. लेकिन, इन चैनलों के ऊपर, खासकर फ्लड चैनलों के ऊपर पिछले बीस सालों में काफी कब्ज़े हुए, जिसे इन्क्रोचमेंट कहते हैं. लोगों ने घर बनाए, चैनलों की सफ़ाई नहीं हुई और इस बार जब झेलम में पानी बढ़ा, तो जितना पानी झेलम में था, उतना ही पानी इस चैनलों में भी था. झेलम ने किनारे के बांध कुछ अपने आप तोड़ दिए, कुछ लोगों ने काट दिए. पूरे शहर में पानी इस तेजी से भरा कि लोग केवल किसी तरह से अपनी जान बचा पाए. जो श्रीनगर नहीं गया, वह कैसे अंदाज़ा लगा सकता है कि एक मंजिल और डेढ़ मंजिल पूरी तरह से पानी में डूब गई हो और घर का एक-एक सामान पानी में भीग गया हो. घरों में कुछ नहीं बचा और यह मीलों का किस्सा है. श्रीनगर का दिल और सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र लाल चौक, वहां भी नावें चल रही थीं. एक-एक दुकान में करोड़-करोड़ रुपये का सामान भरा होता है. सारे सामान भीग गए, बर्बाद हो गए. दुकानें जूतों की रही हों, कपड़ों की रही हों, जेवरों की रही हों, इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं की रही हों, सारा सामान बर्बाद हो गया. जो लोग अपने घरों से निकलने में थोड़ा भी चूक गए, उनके घरों में पानी इस तेजी से गया कि उन्हें घर की ऊपरी मंजिल पर, फिर उसके बाद छत पर जाना पड़ा. मोटे तौर पर दो सौ से ढाई सौ के बीच मौतें आंकी जाती हैं. इसमें उन लोगों का आंकड़ा शामिल नहीं है, जो श्रीनगर शहर से बाहर गांव में रहते हैं.

बारिश ने अनंतनाग में तबाही मचा दी और लगभग छह से आठ फीट तक पानी पूरे अनंतनाग क्षेत्र में भर गया. और इस भरने का मतलब, वहां से वह पानी हाईवे को अपने नीचे डुबाता हुआ, घरों को तबाह करता हुआ श्रीनगर की तरफ़ बढ़ा. जितना पानी झेलम में जा सकता था, उतना झेलम में गया. झेलम उफन गई, उसने पानी लेने से इंकार कर दिया और वह पानी चारों ओर फैलने लगा. गांव के गांव साफ़ हो गए. लोग अपना सामान ऊपर नहीं ले जा पाए और यह पानी श्रीनगर की तरफ़ बढ़ने लगा. श्रीनगर में सरकार सोई रही और उसे शायद लगा कि यह पानी श्रीनगर में आने से पहले ही जज्ब हो जाएगा या सूख जाएगा.

श्रीनगर से अस्सी किलोमीटर दूर अनंतनाग है, जहां लगभग छह दिनों तक भारी बारिश हुई. कुछ लोग उसे क्लाउड बर्स्ट कहते हैं, कुछ लोग लगातार बारिश की बात कहते हैं. उस बारिश ने अनंतनाग में तबाही मचा दी और लगभग छह से आठ फीट तक पानी पूरे अनंतनाग क्षेत्र में भर गया. और इस भरने का मतलब, वहां से वह पानी हाईवे को अपने नीचे डुबाता हुआ, घरों को तबाह करता हुआ श्रीनगर की तरफ़ बढ़ा. जितना पानी झेलम में जा सकता था, उतना झेलम में गया. झेलम उफन गई, उसने पानी लेने से इंकार कर दिया और वह पानी चारों ओर फैलने लगा. गांव के गांव साफ़ हो गए. लोग अपना सामान ऊपर नहीं ले जा पाए और यह पानी श्रीनगर की तरफ़ बढ़ने लगा. श्रीनगर में सरकार सोई रही और उसे शायद लगा कि यह पानी श्रीनगर में आने से पहले ही जज्ब हो जाएगा या सूख जाएगा. अफ़वाहें थोड़ी-थोड़ी फैल रही थीं, लेकिन सरकार ने साधारण चेतावनी ही दी. उसने यह नहीं कहा कि लोग अपना सामान निकाल लें और श्रीनगर में ऊंची जगहों पर, सुरक्षित जगहों पर चले जाएं. इस चेतावनी के अभाव में लोग अपने घरों में और दुकानों पर बने रहे. और उन्हें लगा कि जिस तरह हर साल बाढ़ आती है, उसी तरीके से थोड़ा-बहुत पानी रिसेगा, लेकिन वह झेलम एवं फ्लड चैनल के जरिये बह जाएगा.
यह पानी दो से तीन दिनों के भीतर श्रीनगर पहुंचा और सरकार की नातजुर्बेकारी की वजह से, लापरवाही की वजह से श्रीनगर इस पानी में डूब गया, क्योंकि झेलम ने तटबंध को काट दिया था. पानी का वेग इतना था कि मैंने अपनी आंखों से देखा कि मजबूत कंक्रीट की दीवारें ताश के पत्ते की तरह गिर पड़ीं. घरों के भीतर पानी ने जाकर हर चीज को तबाह कर दिया और डेढ़ मंजिल ऊंची खिड़कियों से पानी झरने की तरह बाहर आ रहा था. स्थानीय निवासी बताते हैं कि कारें कागज की नाव की तरह बह रही थीं. सैकड़ों कारें तबाह हो गईं, घरों का सामान तबाह हो गया, किताबें तबाह हो गईं. यानी जो कुछ भी डेढ़ मंजिल के नीचे था, वह सब तबाह हो गया. आप स़िर्फ यह अंदाज़ा कर सकते हैं. आप अपना घर ज़मीन से डेढ़ मंजिल जोड़ लीजिए और वह पानी ऐसा नहीं कि स़िर्फ एक घर में आता है. पानी का स्तर एक रहता है और कम से कम तीस-चालीस किलोमीटर तक वह पानी लोगों को तबाह करता हुआ कम से कम सात दिनों तक बना रहा. इसके बाद पानी थोड़ा कम हुआ, लेकिन इलाकों में भरा रहा. अमीर लोगों ने तो फिर भी अपने लिए ज़िंदगी को दोबारा पटरी पर लाने के लिए रास्ते निकाले, लेकिन ग़रीब लोगों की ज़िंदगी नर्क की तरह हो गई.
श्रीनगर में बाढ़ का सबसे ज़्यादा असर शिवपुरा, सोनावार, कैंटोनमेंट एरिया, लाल चौक और राजबाग में दिखाई दिया. बेमिना ग़रीबों का इलाका है. बाढ़ ने यहां लोगों की ज़िंदगी ही तबाह कर दी. सोनावार मजबूत दीवार के अंदर सेना का पूरा शहर है. यहां पर सेना का अस्पताल, मॉल सभी कुछ मौजूद है. यह सब कुछ बाढ़ के पानी में डूब गया था, लेकिन सेना के जवान लोगों की ज़िंदगियां बचाने का प्रयास कर रहे थे. लाल चौक सहित सभी जगहों पर नावें चल रही थीं. इतिहास में पहली बार हुआ था कि श्रीनगर पानी के अंदर था. नाव वालों ने एक-एक परिवार से 20-20, 25-25 हज़ार रुपये लिए घरों से बाहर निकालने के लिए और उस समय सरकार कहीं नहीं थी. लगभग चार हज़ार नावें डल झील में हैं. सरकार ने उनको लेने की कोशिश नहीं की और शिकारे वालों या नाव वालों ने लोगों को जमकर लूटा. सरकार कहीं थी ही नहीं. खुद उमर अब्दुल्ला का संपर्क किसी से नहीं था. श्रीनगर की हर वह चीज, जो सत्ता का केंद्र होती है, पानी में डूबी हुई थी. रेडियो स्टेशन, दूरदर्शन, हाईकोर्ट, सचिवालय, पोस्ट ऑफिस, बैंक सब पानी में डूबे हुए थे. और मेरा ख्याल है कि जितने भी बैंक थे, उनके स्ट्रांग रूम जनरली ग्राउंड फ्लोर पर होते हैं, लॉकर्स होते हैं, तो जितने लोगों ने पैसे लॉकर में रखे थे, वे बर्बाद हो गए. बैंक का कैश, जो स्ट्रांग रूम में था, वह बर्बाद हो गया. स़िर्फ गहने बच गए. दवाइयां बर्बाद हो गईं. श्रीनगर में स्टोरेज में छह महीने के अन्न का स्टॉक रखा जाता है. वह सब कुछ बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो गया. लगभग चालीस हज़ार टन चावल को बाढ़ का पानी लील गया. गैस, पेट्रोल सभी का स्टॉक बर्बाद हो गया. किसी का किसी से कोई संपर्क नहीं रहा.
मैं जब श्रीनगर की सड़कों पर घूमा, तो हर तरफ़ मलबे के बड़े-बड़े ढेर दिखाई दिए.
मोहल्लों में गया, तो लोग अपना सामान जलाते हुए दिखे, क्योंकि डॉक्टरों ने कहा कि किसी भी चीज का इस्तेमाल महामारी में घिर जाने की आशंका पैदा करेगा. इसलिए कपड़े, घर का फर्नीचर, अच्छे-अच्छे घरों में झाड़-फानूस ऐसे निकले हुए थे, जैसे पेड़ की छालें निकली हुई होती हैं, सब लोग अपने घर का सामान जलाते हुए दिखाई दिए. कारों के शोरूम में कारें दस दिनों से ज़्यादा समय तक डूबी रहीं. कितना नुक़सान हुआ, अभी इसका कोई आकलन नहीं है. पर मध्यम वर्ग एवं उच्च-मध्यम वर्ग इससे बचने की सलाहों पर अमल कर रहा है. जैसे, पढ़ने की किताबें जलाई जा रही हैं. स्कूल में इन किताबों का इस्तेमाल न हो, इसका ख्याल रखा जा रहा है, क्योंकि डॉक्टरों ने यह सलाह दी है. दुकानों में भीगे हुए सामान सड़कों पर दोबारा न बिकें, इसकी सलाह दी जा रही है, लेकिन इसके बावजूद श्रीनगर में सूखे हुए कपड़े कौड़ी के भाव बेचने की कोशिश हो रही है. एक दुकानदार ने बहुत खूबसूरत दीवार घड़ियों की नुमाइश लगा रखी थी और कहा कि दस रुपये में आज जो चाहें, वह घड़ी ले जाएं. और सारा माल उसने दस-दस रुपये में बेच दिया. बहुत सारे दुकानदारों ने जूतों को सुखाकर बेचने की कोशिश की. लेकिन, सरकार और स्वास्थ्य अधिकारी यही कह रहे हैं कि पानी में भीगा हुआ कोई भी सामान इस्तेमाल न हो. पढ़ने की किताबें जलाई जा रही हैं और धार्मिक किताबों को इज्जत के साथ दफन किया जा रहा है.
मैं शब्दों के जरिये आपको एक हल्की झलक दिखाने की कोशिश कर रहा हूं. आप देखिए कि जो ग़रीब लोग हैं, वे अपने कीचड़ से सने हुए सामानों को धोकर दोबारा से इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास नया खरीदने के लिए पैसा है ही नहीं और कश्मीर में ठंड शुरू हो चुकी है. घर तिनकों की तरह बर्बाद हो गए हैं. लोगों के पास अभी भी रहने की जगह नहीं है. लोग सेना और सरकार द्वारा मुहैया कराए गए टेंटों में रह रहे हैं. इन टेंटों की भी कमाल की कहानी है. सेना को लेकर कश्मीर में बने विरोधी वातावरण में कमी आई है, क्योंकि सेना ने बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने का अद्भुत काम किया है. पुलिस वाले तो हथियार छोड़कर भाग गए थे. श्रीनगर पांच दिनों तक लोगों के रहमोकरम पर था. सेना ने लोगों को बचाया. एक जगह सेना के जवानों से
अलगाववादियों का झगड़ा हुआ. इसमें सीआरपीएफ का एक जवान मारा गया. वहां पर फायरिंग हुई. पूरा कश्मीर इन लोगों के ख़िलाफ़ हो गया कि लोग इस समय मुसीबत में हैं और आप अपनी बात कर रहे हैं. आप कश्मीर में तनाव पैदा कर रहे हैं. परिणाम यह हुआ कि ऐसे सारे लोग खामोश हो गए, क्योंकि श्रीनगर के लोगों का पूरा समर्थन सेना को था. सेना ने लोगों को बचाया. लोगों के यहां खाना-पानी पहुंचाया. खासकर, पीने का पानी. और पहली बार श्रीनगर के लोगों में सेना को लेकर हमदर्दी दिखाई दी. लेकिन यहां यह भी कहना पड़ेगा कि जम्मू-कश्मीर में एक समानता दिखाई देती है. जब भी चुनाव आते हैं, लॉ इंफोर्समेंट एजेंसियों द्वारा गोलियां चल जाती हैं, लोग मारे जाते हैं और पूरा माहौल खराब हो जाता है.
सरकार गायब थी, लेकिन लोगों में जज्बा था. बहुत सारे लोग दूर के गांवों से आकर बाढ़ में फंसे हुए लोगों को बचाने का काम कर रहे थे. किसी ने दस को बचाया, किसी ने बीस को बचाया, तो किसी ने पच्चीस को. पीने के पानी की बोतलें अपने पूरे शरीर में बांधकर नौजवान तैरते हुए बाढ़ में फंसे हुए लोगों के बीच फेंक रहे थे, जिससे उन्हें बचे रहने का वक्त मिल सके. खाना तो नहीं दे सकते थे, लेकिन पीने का पानी तो दे सकते थे. विडंबना यह कि जिन्होंने लोगों को बचाया, वे खुद किसी न किसी हादसे का शिकार होकर शहीद हो गए. दूसरों को बचाते हुए कुछ लोगों की जानें चली गईं. पानी की बोतलें फेंकते हुए भार की वजह से वे पानी में डूब गए. जब पानी उतर गया, तो कुछ लोगों की मौत इसलिए हो गई, क्योंकि इतनी देर पानी में रहने की वजह से पानी से पैदा हुई बीमारियों ने उनकी जान ले ली. उन्हें इलाज मुहैया नहीं हो पाया. ऐसे लोगों के नाम नहीं पता. सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों के नाम पता करे और उनके परिवार को मदद करे, क्योंकि ऐसे लोगों के जज्बे को सलाम करना चाहिए और इज्जत भी देनी चाहिए, जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर लोगों को बचाया.
श्रीनगर अब स्वर्ग नहीं है. इसे स्वर्ग बनने में पांच से दस साल का समय लगेगा. यहीं पर लोगों को नरेंद्र मोदी का इंतजार है. लोगों को लगता है कि पिछले प्रधानमंत्री रस्म निभाने के लिए कश्मीर आते थे, पर नरेंद्र मोदी पिछले छह महीने में छह बार किसी ने किसी बहाने कश्मीर आ चुके हैं. और चूंकि नरेंद्र मोदी बाढ़ को देखने आए थे, इसलिए वह बचाव कार्य के लिए, पुनर्वास के लिए और इससे जुड़े विकास कार्यों के लिए एक अच्छी रकम देंगे. नरेंद्र मोदी ने एक हज़ार करोड़ रुपये का पहला पैकेज एनाउंस किया. और कश्मीर के लोगों को इस बात की खुशी है कि नरेंद्र मोदी ने यह पैसा जम्मू-कश्मीर सरकार को नहीं दिया, क्योंकि लोगों को लगता है कि राज्य सरकार भ्रष्टाचार में यह सारा पैसा बर्बाद कर देती. जिन लोगों के नाम चेक भी आ रहे हैं, कश्मीर में इस तरह की अफ़वाहें हैं या जानकारियां हैं कि वे सारे चेक दिल्ली से बनकर ही आ रहे हैं. उमर अब्दुल्ला सरकार पर रिलीफ की कोई ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार का पैसा बांटने के संबंध में नहीं डाली गई है. उमर अब्दुल्ला की सरकार अभी तक इस बात का अंदाज़ा भी नहीं लगा पाई है कि कितना ऩुकसान हुआ है और लोगों को कितनी सहायता मिलनी चाहिए या नहीं मिलनी चाहिए. इसीलिए स्थानीय सरकार पर नाराज़गी और नरेंद्र मोदी पर विश्‍वास का यह नायाब काम इस बाढ़ ने कर दिखाया. बाढ़ से प्रभावित पूरा श्रीनगर बिना किसी संदेह के यह मान बैठा है कि चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी यहां के राहत, पुनर्वास और विकास के कार्यों में ज़्यादा दिलचस्पी लेंगे.
दूसरी तरफ़ भाजपा इन चुनावों को गंभीरता से लड़ रही है. पिछले 25-30 सालों में न तो केंद्र के कांग्रेसी नेताओं ने कश्मीर जाकर वहां के लोगों से कोई संपर्क बनाया और न ही समाजवादी एवं साम्यवादी नेताओं ने. जम्मू क्षेत्र में कांग्रेस की पैठ थी, लेकिन यह क्षेत्र अब भाजपा के साथ है. और घाटी में जहां भाजपा को उम्मीदवार नहीं मिलते थे, अब उसे उम्मीदवार मिलने शुरू हो गए हैं. भाजपा जोर-शोर से किसी भी क़ीमत पर हर सीट पर उम्मीदवार उतारना चाहती है. श्रीनगर में उसे लगता है कि लोग नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस से नाराज़ हैं. दूसरी तरफ़ गिलानी साहब और उनकी हुर्रियत कांफ्रेंस हर बार की तरह इस बार भी चुनाव बहिष्कार का नारा देंगे, जिससे उनका वोट प्रतिशत कम हो जाएगा और उस स्थिति में भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों को मिले वोट उन्हें जिताने में बड़ा योगदान दे सकते हैं. यहां पर हुर्रियत द्वारा चुनाव बहिष्कार का नारा सौ प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में जा सकता है.
अनंतनाग हो, कश्मीर घाटी हो, यहां पर पहली बार मुस्लिम उम्मीदवार भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह के ऊपर चुनाव लड़ रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी किस शिद्दत के साथ लोगों से संपर्क कर रही है, उसका एक उदाहरण मैं आपको बता सकता हूं. स्वयं वित्त मंत्री अरुण जेटली एक-एक घंटे आधे-आधे घंटे लोगों से बात करके चुनाव लड़ने की अपील कर रहे हैं. किसी भी व्यक्ति के बारे में पता चलता है कि वह चुनाव लड़ सकता है, तो सवाल जीतने-हारने का नहीं है, सवाल स़िर्फ चुनाव लड़ने का है. उसे पैसों की मदद, उसे साधनों की मदद का वादा दिल्ली से किया जा रहा है. और अगर किसी को अरुण जेटली खुद फोन करके कहें कि वह उनकी पार्टी से चुनाव लड़े, तो यह बखूबी समझा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी इस बार कश्मीर में अपने संपर्क और साधन के सहारे क्या नतीजा निकालना चाहती है.
मुझसे बहुत सारे लोगों ने कहा कि हुर्रियत कांफ्रेंस चोर है. जब मैंने गिलानी के बारे में पूछा, तो लोगों ने कहा कि गिलानी साहब खुद तो भारत का पैसा खाते हैं और हमसे कहते हैं कि वोट मत दो. जब मैंने पूछा, कौन जीत सकता है, तो दो ही जवाब आए. पहला, मुफ्ती मोहम्मद सईद की पार्टी पीडीपी को अच्छा समर्थन मिलेगा और दूसरा जवाब आया कि भारतीय जनता पार्टी को वहां सीटें मिल सकती हैं. भारतीय जनता पार्टी को ज़्यादा सीटें मिलने का सबसे बड़ा कारण कांगे्रस के समर्थक वर्ग का भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देना हो सकता है, पर पूरे कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद को लेकर बहुत ज़्यादा भरोसा है. लोगों को लगता है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद एक ऐसे शख्स हैं, जिन्हें अनुभव है, जिनके पास विजन है, जिनके पास पूरे कश्मीर का एक नक्शा है. और अगर वह जीतते हैं, मुख्यमंत्री बनते हैं, तो चाहे जम्मू हो, चाहे लेह हो या कश्मीर घाटी हो, हर जगह विकास का एक नया दौर आ सकता है तथा जो लोग बाढ़ के शिकार हुए हैं, उनकी ज़िंदगी में दोबारा रोशनी आ सकती है. मुफ्ती मोहम्मद सईद के अपने मुख्यमंत्रित्व काल में किए हुए बहुत सारे काम लोगों को याद हैं. इसलिए संभावना इस बात की है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद या तो अकेले सरकार बना लें या फिर अगर कुछ कमी रहती है, तो वह दूसरे दल के साथ मिलकर सरकार बनाएं. लेकिन, शायद वह सरकार इसी शर्त पर बनाएंगे कि उनके काम में सहयोगी दल हस्तक्षेप न करें.

श्रीनगर की यह त्रासदी देश के नेताओं को संदेश देती है कि अब वह दिन गए, जब आप जनता को यूं ही बहलाने की कोशिश करते थे. यह भी संदेश देती है और हर सरकारों को देती है कि अब आपदा सिग्लन देकर नहीं आती. इसलिए आपदा तंत्र को बहुत सक्रिय बनाकर रखना चाहिए, अन्यथा सिवाय हाथ मलने और सिर पीटने के कुछ रह नहीं जाता.

श्रीनगर की यह त्रासदी देश के नेताओं को संदेश देती है कि अब वह दिन गए, जब आप जनता को यूं ही बहलाने की कोशिश करते थे. यह भी संदेश देती है और हर सरकारों को देती है कि अब आपदा सिग्लन देकर नहीं आती. इसलिए आपदा तंत्र को बहुत सक्रिय बनाकर रखना चाहिए, अन्यथा सिवाय हाथ मलने और सिर पीटने के कुछ रह नहीं जाता. श्रीनगर वैली में पानी निकालने के पंप ही नहीं हैं. जो कुछ पंप थे, वे पानी के नीचे डूबे हुए थे. कहीं से छोटे-छोटे पंप मंगाए गए, पर उनमें पानी निकालने की क्षमता ही नहीं थी. इसके बावजूद जो सबसे ख़तरनाक बात थी कि वहां का आपदा प्रबंधन तंत्र था ही नहीं. और जो बाहर से लोग आए थे, उन्हें यही नहीं मालूम था कि श्रीनगर शहर में कहां जाना है, क्या करना है और प्राथमिकताएं क्या तय करनी हैं. स्थानीय लोगों को उसमें शामिल ही नहीं किया गया. सब कुछ बिखरा-बिखरा सा था, जिसका आकलन अरबों-खरबों रुपये के नुक़सान के रूप में सामने आया. शायद पूरी तरह कभी न पता चले कि श्रीनगर यानी दुनिया का स्वर्ग पानी में डूबा और जब उबरा, तो क्या खोकर उबरा.
पर इसके बावजूद कश्मीरी लोगों को सलाम करना चाहिए कि वे इस सबसे उबर चुके हैं. जब मैंने पूछा कि यह बाढ़ क्यों आई, तो ज़्यादातर लोगों ने कहा कि शायद हमारे बुरे कर्म थे, जिसकी वजह से अल्लाह हमें सबक देना चाहता था. बहुत सारे अपराध का काम करने वाले, बुरा काम करने वाले लोग सुधर गए हैं. उन्हें लग रहा कि अल्लाह ने उन्हें एक मौक़ा दिया है, अच्छी ज़िंदगी बिताने का. लेकिन, नए लोग अपराध के काम में जुट गए हैं, जैसे इंश्योरेंस कंपनियों को ग़लत जानकारी देना और यह सब वे कर रहे हैं, जो बड़े पैसे वाले हैं. इंश्योरेंस कंपनियों से लूट की योजना बनाना, बाहर से आई मदद के नाम पर फर्जी एनजीओज खड़े करना जैसे काम हो रहे हैं. स्वयंसेवी संस्थाओं की तो कश्मीर में बाढ़ आ गई है. बाहर के लोग भी बिना यह जाने कि उनकी सहायता प्रभावित लोगों तक पहुंच रही है या नहीं, इन संस्थाओं को पैसे भेज रहे हैं. इसके बावजूद कश्मीर के लोग खड़े हो रहे हैं और उसमें सबसे पहला सबक उनसे सीखना चाहिए, जिनके पास साधन नहीं हैं, जो ग़रीब हैं, जिनके सामने इस समय भी खराब सामान को इस्तेमाल कर महामारी में फंसने का ख़तरा है, लेकिन वे भी दोबारा ज़िंदा होने की कोशिश कर रहे हैं. कश्मीर देश के लिए आपदा प्रबंधन के मामले में तो सबक है ही, देश के राजनीतिक नेताओं के लिए भी एक सबक है. अब देखना यही है कि कौन इससे सबक सीखता है.

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