एक पुरानी कहावत है, चोर से कहो, चोरी कर और साह से कहो, जागते रहो. खुद को दुनिया का दादा समझने वाला अमेरिका हमेशा से इसी नीति का पालन करता रहा है. ताज़ा मसला भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित अमेरिका यात्रा का है, जिसमें कड़वाहट पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं और उसके लिए हथियार बनाया जा रहा है कश्मीर विवाद, ताकि मोदी की अमेरिका यात्रा कामयाब न होने पाए और उसका ठीकरा भारत के सिर पर फूटे. अमेरिका के इस दोहरेपन पर रोशनी डाल रही है चौथी दुनिया की यह स्पेशल रिपोर्ट…
दिल्ली की सत्ता पर नरेंद्र मोदी क़ाबिज न हो पाएं, इसके लिए अमेरिका ने काफ़ी कोशिशें कीं और काफ़ी पैसे भी ख़र्च किए, लेकिन आख़िरकार मोदी की लहरदार जीत के आगे अमेरिका ने घुटने टेक दिए. ऐसा दिखता तो है, लेकिन असलियत में ऐसा है नहीं. अमेरिका घुटने टेकने की बजाय लोमड़ी जैसी चालाकी दिखा रहा है. कश्मीर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मंत्री की स्पष्ट विचारधारा और साफ़-साफ़ योजना किसी भी हाल में कारगर न हो पाए, इसके लिए नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के पहले ही अमेरिका ने ख़तरनाक तैयारियां शुरू कर दी हैं. ये इतनी घातक हैं कि इन्हें आप जानेंगे, तो इसके दूरगामी नकारात्मक परिणाम के बारे में आसानी से कल्पना कर लेंगे.
एफबीआई की रिपोर्ट बताती है कि जो शख्स पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के एजेंट के बतौर काम करते हुए आतंकवाद फैलाने में आईएसआई की फंडिंग लेने और भारत के ख़िलाफ़ उसका इस्तेमाल करने के आरोप में अमेरिका के सख्त क़ानून के तहत गिरफ्तार किया जा चुका था, उसे रिहा कर दिया गया और मोदी के अमेरिका आगमन के पहले भारत विरोधी माहौल बनाने के लिए उसे उकसाया जा रहा है, ताकि अमेरिका में मोदी की सार्वजनिक फ़ज़ीहत हो और कश्मीर मसले का एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीयकरण किया जा सके. मोदी की अमेरिका यात्रा के पहले कश्मीर को लेकर अमेरिका में भारत विरोधी माहौल फिर से बनाया जाने लगा है. अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी इन गतिविधियों का केंद्र बन रही है. रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एफबीआई की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि आईएसआई के इशारे पर अमेरिका में नियोजित तरी़के से भारत विरोधी माहौल बनाने, आतंकवाद को बढ़ावा देने का जिसे आरोपी पाया गया था और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों एवं सरकार ने दस्तावेज़ों में यह स्वीकार किया था कि उसके संबंध ओसामा बिन लादेन और अल जवाहिरी जैसे कुख्यात आतंकवादी सरगनाओं से भी रहे हैं, उसे अचानक रिहा किया जाना बेहद आश्चर्यजनक है. अमेरिका की यह कार्रवाई आतंकवाद के ख़िलाफ़ साथी देशों का गिरोह बनाकर दुनिया भर में उत्पात मचाए घूमने की अमेरिकी असलियत का पर्दाफ़ाश भी है.
फई रिहा क्यों, ज़हीर मरा क्यों!
एफबीआई की रिपोर्ट के आधार पर रॉ के खुलासे में आप यह तो जान जाएंगे कि आईएसआई एजेंट के बतौर भारत के ख़िलाफ़ काम करने वाले किस व्यक्ति को अमेरिका ने रिहा कर दिया, लेकिन आप यह नहीं जान पाएंगे कि रिहा होने वाले सरगना के लिए काम करने वाले शख्स जहीर अहमद की हत्या कैसे हो गई, किन लोगों ने उसकी हत्या की और वे कौन से महत्वपूर्ण सुराग थे, जिनके खुलने के डर से ज़हीर अहमद की हत्या कर दी गई? ज़हीर अहमद की रहस्यमय मौत पर अमेरिकी प्रशासन रहस्यमय चुप्पी साधे क्यों रह गया? उसकी जांच क्यों नहीं कराई गई? बाल की खाल निकालने में माहिर अमेरिका की इस हत्याकांड पर चुप्पी अपने आप ही कई सवालों के जवाब दे देती है.
इन सवालों के जवाब की तरफ़ हम आपको ले जाएंगे, लेकिन उसके पहले बता दें कि अमेरिकी सरकार की पहल पर रिहा किए गए आईएसआई एजेंट का नाम गुलाम नबी फई है. आप सब उसका नाम और उसकी करतूतों के बारे में जानते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि गुलाम नबी फई और आईएसआई के बीच कड़ी का काम करने वाला ज़हीर अहमद ही वह शख्स था, जो अलकायदा के हाथों तक परमाणु हथियार पहुंचाने की क़वायद कर रहा था. 9/11 की घटना के पहले ज़हीर अहमद ओसामा बिन लादेन और उसके ख़ास अयमान अल जवाहिरी से इस मसले पर मुलाक़ात कर चुका था. 9/11 जैसी तमाम घटनाओं के दोषी अलकायदा को परमाणु हथियार देने के लिए ज़हीर अहमद एवं पाकिस्तानी न्यूक्लियर वैज्ञानिक सुल्तान बशीरुद्दीन महमूद की साठगांठ और लादेन से मुलाक़ातें कितनी गंभीर हैं, इसे आप अच्छी तरह समझ सकते हैं. ध्यान देते चलें कि ज़हीर अहमद का रिकॉर्डेड बयान भी एजेंसी के पास उपलब्ध है, जिसमें उसने अपनी उक्त गतिविधियों की स्वीकारोक्ति की है. ऐसी संवेदनशील गतिविधियों और सूचनाओं से भरे व्यक्ति की अचानक हत्या कई बातें खुद-ब-खुद साफ़ कर देती है. यह भी स्पष्ट करती है कि ज़हीर अहमद से जुड़े गुलाम नबी फई के भी न केवल आईएसआई, बल्कि अलकायदा से संबंध हैं, फिर भी उसे रिहा किया जाना विचित्र, किंतु सत्य है. और, ऐसे गंभीर मामलों में अमेरिका की चुप्पी आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक संघर्ष के अमेरिकी ऐलान का असली चरित्र उजागर करती है. आधिकारिक तौर पर यह बताया गया कि ज़हीर अहमद की मौत सेरीब्रल हैमरेज से हुई, जबकि सारी स्थितियां कुछ और ही बयान करती हैं. ज़हीर अहमद को गुलाम नबी फई के साथ ही अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन उसकी गिरफ्तारी तो दूर, उसे बीच में ही निपटा दिया गया. स्पष्ट है कि आतंकवाद को लेकर अमेरिका की प्राथमिकताएं केवल षड्यंत्र तक ही सीमित हैं.
उल्लेखनीय है कि फिलाडेल्फिया के शिफा हॉस्पिटल के डॉक्टर गुल चुगतई ने उसी अस्पताल में डॉक्टर रहे ज़हीर अहमद की संदेहास्पद गतिविधियों और फई के साथ उसके संबंधों के बारे में एफबीआई को सुराग दिया था. ज़हीर अहमद और पाकिस्तानी न्यूक्लियर साइंटिस्ट सुल्तान बशीरुद्दीन महमूद की संदेहास्पद अफगानिस्तान यात्रा भी एफबीआई की निगाह में थी, जिसके बाद यह साबित हुआ कि अगस्त 2001 में हुई उस यात्रा के दौरान ही इन लोगों की ओसामा बिन लादेन और अयमान अल जवाहिरी से न्यूक्लियर हथियारों के मसले पर बातचीत हुई थी. दस्तावेज़ बताते हैं कि पाकिस्तान सरकार, आईएसआई और गुलाम नबी फई के बीच रकम के ट्रांसफर में ज़हीर अहमद की महत्वपूर्ण भूमिका थी. ज़हीर की निगरानी में और उसके ज़रिये ही हवाला या अन्य माध्यमों से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का फंड फई की संस्था को ट्रांसफर होता था.
बहरहाल, जासूसी, राष्ट्रद्रोह, आतंकवादी गतिविधियों और वित्तीय हेराफेरी के गंभीर आरोपों में घिरे गुलाम नबी फई की इस तरह की नाटकीय रिहाई के बारे में दुनिया को तब पता चला, जब उसने जेल से बाहर आते ही अमेरिकी उकसावे पर भारत विरोधी गतिविधियां शुरू कर दीं. गुलाम नबी फई ने 15 फरवरी को बाक़ायदा कश्मीरी फोरम का सम्मेलन बुला कर भारत के ख़िलाफ़ फिर से खुलेआम आग उगलने का काम शुरू कर दिया. अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी के आलीशान होटल होली-डे इन में आयोजित इस सम्मेलन का आलीशान ख़र्च फिर से आईएसआई ने वहन किया और अमेरिकी प्रशासन न केवल इसे देखता रहा, बल्कि इस भारत विरोधी सम्मेलन में अमेरिका के कई स्वनामधन्य सीनेटर भी भारत विरोधी राग अलापने में आईएसआई एजेंट का साथ देने के लिए शरीक रहे. इस सम्मेलन को फई की कश्मीरी अमेरिकन काउंसिल (केएसी) ने साझा तौर पर प्रायोजित किया, जिसे आईएसआई के लिए काम करने के लिए अमेरिका काली सूची में डाल चुका था. हैरत की बात यह है कि मार्च 2012 में गुलाम नबी फई को अमेरिका को धोखा देने की साज़िश करने, आईएसआई की भारी फंडिंग पर भारत के ख़िलाफ़ माहौल बनाने और आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने के आरोप में दोषी (यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस का प्रपत्र संख्या-(202) 514-2007/(202) 514-1888) मानते हुए दो साल की सज़ा दी गई थी, लेकिन आश्चर्य यह है कि उसे नवंबर 2013 में ही रिहा कर दिया गया. मेरीलैंड स्थित कम्बरलैंड जेल से उसे अचानक एक दिन रिहाई का रास्ता दिखा दिया गया. फई के साथ जो लोग अभियुक्त बनाए गए थे, उनमें से अब्दुल अकीफ, सईद बाजवा, जावेद रहमत एवं कुछ अन्य लोगों को पकड़ा ही नहीं गया. इसका भी खुलासा हुआ कि गुलाम नबी फई की रिहाई के लिए मुस्लिम लीगल फंड ऑफ अमेरिका (एमएलएफए) ने फंड झोंक दिया. एमएलएफए के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर खलील मलिक ने इसमें सक्रिय भूमिका अदा की.
नामवर हस्तियों की सरपरस्ती
अमेरिका का यह सबसे बड़ा जासूसी प्रकरण था, जिसमें पकड़े गए लोगों के सीधे संबंध अमेरिकी सीनेटर डैन बर्टन जैसी कई ताकतवर राजनीतिक हस्तियों और बड़े सरकारी अधिकारियों से थे.
दस्तावेज बताते हैं कि एक साल में ही गुलाम नबी फई की अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों और अमेरिका सरकार की नामवर हस्तियों से 33 बार मुलाक़ातें हुईं. एफबीआई की स्पेशल एजेंट सारा वेब लिंडन ने बाकायदा अपने हलफनामे में ये बातें कही हैं. कश्मीरी अमेरिकन काउंसिल (केएसी) पिछले 20 सालों से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की फंडिंग के बूते भारत विरोधी माहौल तैयार कर रही थी. एफबीआई ने गुलाम नबी फई और आईएसआई के बीच हुए चार हज़ार से अधिक संवाद पकड़े हैं. मार्च 2010 में आईएसआई के मेजर जनरल मुमताज़ अहमद बाजवा और सुहैल महमूद से फई की जेनेवा में मुलाक़ात भी हुई थी. कश्मीरी आतंकवादियों के विभिन्न गिरोहों पर निगरानी रखने की ज़िम्मेदारी आईएसआई ने मेजर जनरल बाजवा को ही दे रखी है. यहां तक कि कैपिटल हिल में हुई केएसी की कश्मीर पीस कॉन्फ्रेंस में आईएसआई की तरफ़ से आधिकारिक तौर पर लेफ्टिनेंट कर्नल तौकीर महमूद बट्ट शरीक हुए थे. मजे की बात यह है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी को आतंकवादियों का पोषक बताने वाले अमेरिका के सीनेटर डेनिस कुसीनिक, जो पिट्स, जिम मोरन, वेट क्लार्क और डैन बर्टन भी उसी कॉन्फ्रेंस में साथ-साथ बैठे थे. एफबीआई के पास इसकी रिकॉर्डिंग भी है. आईएसआई के मेजर जनरल बाजवा और लेफ्टिनेंट कर्नल बट्ट की फई से हुई गोपनीय बातचीत की रिकॉर्डिंग भी एफबीआई ने की. एफबीआई एजेंट की रिपोर्ट (पेज-20) बताती है कि आईएसआई के अधिकारी गुलाम नबी फई को बाकायदा योजनाओं का असाइनमेंट देते थे और काम की प्रगति और उपलब्धियों की समीक्षा (पेज-24) करते थे. आईएसआई के असाइनमेंट में अमेरिकी राष्ट्रपति भवन, स्टेट डिपार्टमेंट, रक्षा मंत्रालय (पेंटागन), कांग्रेस के सदस्यों एवं संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों से दोस्ती बढ़ाने और पकड़ मज़बूत करने जैसे टास्क शामिल हैं. इसके साथ ही आईएसआई ने गुलाम नबी फई को अमेरिकी मीडिया की 11 प्रमुख हस्तियों और वाशिंगटन के छह प्रमुख बुद्धिजीवियों को पटाने का भी टास्क दिया था. गुलाम नबी फई की संस्था केएसी का कंट्रोल बाक़ायदा आईएसआई के हाथ में था और इसके लिए आईएसआई के ब्रिगेडियर जावेद अजीज उर्फ राठौर उर्फ अब्दुल्ला उर्फ निजामी मीर को ख़ास तौर पर ज़िम्मेदारी दी गई थी. इस काम में ब्रिगेडियर का साथ देने के लिए आईएसआई ने तौकीर महमूद बट्ट और सुहैल महमूद उर्फ मीर को असाइन कर रखा था. फई को आईएसआई की तरफ़ से हर साल सात लाख डॉलर मिलते थे.
एफबीआई की छानबीन में आईएसआई एजेंट गुलाम नबी फई और सीनेटर डैन बर्टन के गहरे नज़दीकी संबंधों की आधिकारिक पुष्टि हुई. फई ने खुद अपने हाथों डैन बर्टन को 10,290 डॉलर दिए थे और फई की संस्था से जुड़े निदेशकों ने डैन बर्टन को अलग से 28,951 डॉलर दिए थे. इन निदेशकों ने सीनेटरों और प्रशासन को खुश करने के लिए 92,556 डॉलर खर्च किए थे. फई ने अमेरिका की नेशनल रिपब्लिकन सिनेटोरियल कमेटी को 9,500 और फेडरल प्रत्याशियों को 28,165 डॉलर दिए थे. धन देने का सिलसिला लगातार जारी है. यह धन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की तरफ़ से फई की संस्था को मिला था और अब भी मिल रहा है. 2003 के बाद हर साल कश्मीर पीस कॉन्फ्रेंस के नाम पर हस्तियों को जुटाने का काम लगातार जारी रहा और आईएसआई उन आयोजनों पर बेतहाशा पैसे बहाती रही. ये कॉन्फ्रेंस विदेशों में भी आयोजित होती रहीं, जिनमें शामिल होने वाले लोगों के हवाई टिकट, रहने, खाने और ऐश करने के सारे ख़र्चे फई के ज़रिये आईएसआई ही वहन करती रही. इन अय्याशियों में भारत सरकार की तरफ़ से कश्मीर मसला सुलझाने के लिए बनाई गई उच्चस्तरीय समिति के कुछ सदस्य भी शरीक रहे हैं.
लब्बोलुवाब यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा में प्रायोजित अड़चनें खड़ी होने वाली हैं. रिसर्च एंड एनालिसिस विंग अमेरिका में चल रही अंदरूनी गतिविधियों पर निगाह और निगरानी तो रख रही है, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय को कूटनीतिक काट की तैयारी भी रखनी होगी तथा कश्मीर स्टैंड पर भारत को अपनी अटूट दृढ़ता दिखानी होगी. यहां यह बताना ज़रूरी है कि गुलाम नबी फई और उसके हैंडलर मेजर जनरल बाजवा के बीच हुए वे ई-मेल संदेश भी पकड़े गए, जिनमें भारत में होने वाले संसदीय चुनाव को अवैध, अमानवीय और कश्मीरियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई का हिस्सा बताया गया और इसी आशय के पर्चे पूरे कश्मीर में बंटवाने का कुचक्र रचा गया.
नॉर्वे को दर्द क्यों होता है!
यह भी समझना होगा कि भारत विरोधी सम्मेलन में अतिरिक्त सक्रियता और उत्साह से शरीक होने वाले नॉर्वे के सांसद लार्स राइज का क्या एजेंडा है? क्योंकि, राइज ने खुलेआम कहा कि वह फई के सम्मेलन में पहले भी आ चुके हैं, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की मज़बूती चाहते हैं और वह फई की मंशा के साथ हैं. आप याद करते चलें कि नॉर्वे ने ही मध्यस्थता के नाम पर भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका के अंदरूनी मामलों में घुस कर तमिल मुक्ति चीतों (लिट्टे) और सरकार के बीच बिगाड़ पैदा करने की कोशिश की थी और आख़िरकार श्रीलंका के राष्ट्रपति को ऐसे मध्यस्थों को देश से बाहर निकालने का आदेश देना पड़ा था.
एफबीआई और सीआईए में ठनी
दुनिया भर के देशों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने, सत्ता पलट कराने, राजनीति में परोक्ष दख़लंदाज़ी करने और राजनीतिक हत्याएं कराने के लिए कुख्यात अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई एवं फई के ख़िलाफ़ चल रही एफबीआई की जांच और कार्रवाई में हमेशा अड़ंगे डालती रही. एफबीआई ने कई बार गुलाम नबी फई को गिरफ्तार करने की भी कोशिश की, लेकिन सीआईए ने उसे नाक़ाम कर दिया. अमेरिका की बाह्य और आंतरिक खुफिया एजेंसियों के बीच का यह भयंकर विरोधाभास एफबीआई के दस्तावेज़ों से ही उजागर हुआ है. सीआईए कहती थी कि फई की गिरफ्तारी से अमेरिका और पाकिस्तान के बीच अनावश्यक तनाव बढ़ेगा. विडंबना यह है कि एफबीआई की छानबीन और रिपोर्ट पर गुलाम नबी फई ने अपने 26 पेज के इकबालिया बयान में सारे आरोप स्वीकार किए, लेकिन अमेरिकी सरकार ने उसकी गंभीरता इतनी ही समझी कि उसे सज़ा की अवधि के बीच में ही रिहा करा दिया. जबकि फई ने जिस तरह के कृत्य किए, उसकी अमेरिका में ही सज़ा आजीवन कारावास होती है. और तो और, अमेरिकी सरकार ने उन सीनेटरों की संदेहास्पद भूमिका की भी जांच नहीं कराई, जो दुनिया में आतंकवाद फैलाने वाली पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के अधिकारियों के साथ अंतरंग थे.