यह तो हमारी नादानी ही होगी यदि हम समझें कि गुजरात के अलावा सब जगह हारे मोदी अब कमजोर पड़ गये । कौन नहीं जानेगा कि नादानी और मूर्खता में अंतर होता है । अक्सर मुझे पूर्व जस्टिस काटजू की वह बात याद आती है कि देश की नब्बे फीसदी जनता मूर्ख है । जस्टिस काटजू को हम किस श्रेणी में रखेंगे । यदि वे यह नहीं समझते कि मूर्खता और नादानी में क्या फर्क है । जनता समझदार होती या उसे समझदार बनाया गया होता तो आज राजनीतिक स्थितियां कुछ और होतीं । नब्बे फीसदी तो नहीं पर देश का एक विशाल हिस्सा गरीब, अनपढ़, नासमझ और नादान है । वह भावुक बातों में बह जाने वाला वर्ग है । 2014 से अब तक इस वर्ग से कोई बहुत ज्यादा लोग नहीं छिटके हैं । अब भी ये भावनाओं में या चमत्कारिक जैसे कार्यों में बह जाने वाले लोग हैं । हिमाचल और दिल्ली में बीजेपी क्यों हारी उसके दूसरे कारण हैं । आज के समाज में बेशर्मी कोई मायने नहीं रखती। इसे मोदी ने बहुत अच्छे से परख लिया है । यह उसी दिन साबित हो गया था जिस दिन मोदी ने अपने मंच पर शहीदों की तस्वीरें लगा कर उस बेशर्मी से वोट मांगे थे जिसे देख मृत आत्माएं भी शरमा जाएं । बेशर्मी का दूसरा नमूना फिल्मी दुनिया को धीरे धीरे अपने प्रभाव में लेना है । मोदी अपने पर फिल्में बनवाएं या अपने एजेंडे पर या नरसंहार को दिखाने वाली उन फिल्मों को प्रमोट करें जो उनके हिंदू एजेंडे को बल देती हों । हमारी मूर्खता यही है कि हम उन फिल्मों को देखने से कन्नी काटते हैं जो मोदी के एजेंडे को पूरा कर रही हैं । मैंने ‘उड़ी’ फिल्म देखी और समझने की कोशिश की कि हम इस फिल्म का क्यों विरोध करें । मैंने समझा कि यदि यह फिल्म मोदी के हटने के कुछ वर्षों बाद बनती तो हम इसे वास्तविक फिल्म मानते या उस नजरिए से नहीं देखते जिस नजरिए से आज देख कर उससे नफ़रत कर रहे हैं क्योंकि इसमें मोदी का पात्र भी है, अजीत देवल का भी , मनोहर पर्रिकर का भी और सम्भवतः राजनाथ सिंह का भी । यह फिल्म मोदी समर्थकों में न केवल जोश भर्ती हैं बल्कि उनकी नजर में मोदी को अब तक का सबसे मजबूत प्रधानमंत्री साबित करती है । इस फिल्म में एतराज के काबिल यही है कि यह मोदी के एजेंडे का अंधभक्तों पर अमिट छाप की तरह छोड़ती है । अंधभक्त की श्रेणी बहुत व्यापक है । इस फिल्म से ताल्लुक बेशर्मी इस बात पर है कि यह मोदी के जीते जी ही नहीं बाकायदा सत्ता में रहते बनी या बनवाई गयी फिल्म है। इसे देख कर आप खुश हो सकते हैं कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक ‘ मोदी का आइडिया नहीं था बल्कि अजीत देवल का आइडिया था । मोदी ने सिर्फ ठप्पा लगाया या हांमी भरी । वैसे राजनीति में जीते जी बेशर्मी की शुरुआत तो तभी से समझिए जबसे मायावती ने मुख्यमंत्री रहते अपनी मूर्तियां लखनऊ में लगवा डाली थीं । और थोड़े से हो हल्ले के बाद सब लोग सब कुछ भूल गये थे । मोदी की बेशर्मियां भी कुछ ऐसी ही हैं । मोदी न कभी अपनी बेशर्मियों पर, गलत तथ्यों या झूठ आदि पर माफी मांगते हैं न उन्हें कैसा भी मलाल होता है । वे अपनी मजबूती के लिए हमेशा फौज के जवानों और उनकी बहादुरी को भुनाते रहते हैं । अनपढ़ और नादान जनता हो या कारपोरेट को सराहने वाला पढ़ा लिखा वर्ग हमेशा मोदी की ढाल बन कर खड़ा रहेगा यह मोदी बखूबी जानते समझते हैं । वे अपनी सारी योजनाएं इसी दिशा में बनाते और सारे काम इसी दिशा को ध्यान रख कर करते हैं । वे जानते हैं कि लालच इस देश का बड़ा हथियार है । उसका इस्तेमाल वे बखूबी करते हैं । लालच इस देश की मिट्टी में घुला मिला है । जियो के फ्री सिम को लेने के लिए भी सैकड़ों की लाइनें लग जाती हैं । यह अनपढ़, गंवार और नादान वर्ग नहीं है । यह खाता पीता वर्ग है । अंबानी मोदी के खास हैं और वे अपना फ्री सिम मोदी सत्ता के लिए खास मकसद से दे रहे हैं इतना सब जानने के बावजूद वह वर्ग भी जो मोदी को नहीं पसंद करता फ्री सिम की लाइन में लगता है । वजह है लालच ।
मोदी ऐसे शख्स हैं जो अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए जीते हैं । हिंदू राष्ट्र और आरएसएस से भी बढ़कर हैं उनकी महत्वाकांक्षाएं । बाकी सब कुछ उसी में समाहित है । आज आरएसएस की वह ताकत नहीं कि वह मोदी को छेड़े । वह अटल बिहारी वाजपेई या किसी दूसरे भाजपाई नेता को कंट्रोल में कर सकता है पर मोदी ‘लार्जन दैन लाइफ ‘ वाले शख्स हो चुके हैं । इसलिए यह मान कर चलिए कि मोदी आने वाले वक्त में कुछ भी कर सकते हैं । यानी कुछ भी । आप कल्पना कीजिए कि किसी प्रधानमंत्री की इतनी बेइज्जती, इतना मजाक , इतनी दुर्गति हो जाए फिर भी उसके चाल चलन और हाल भाव में कोई फर्क न आये , ऐसा तो भारतीय राजनीति के इतिहास में यह कभी हुआ नहीं । उनके लिए मर मिटने वाली जनता में रत्ती भर कहीं कोई गिरावट आयी हो तो आयी हो । वरना किसी के लिखे से , कहीं की चर्चा और बहसों से मोदी के फितरत में कोई बित्ती भर भी खरोंच नहीं आयी । कल मुझे एक प्रतिष्ठित व्यक्ति ने नागपुर रेलवे स्टेशन पर मोदी की टिकट खरीदते हुए फोटो भेजी । वे सब कुछ जानते हुए भी अपने मन में मोदी की पहली बनी छवि को मिटा नहीं सकते । दरअसल 2014 में मोदी ने लोगों के दिमागों की जो ‘प्रोग्रामिंग’ की है वह अद्भुत है । लिहाजा आने वाला समय भी हमें तो मोदी का ही लगता है बेशक कुछेक राज्यों में उनके हाथ से सत्ता गिरे तो गिरे । लेकिन ‘लाउड इंडिया टीवी’ के अपने ही शो में अभय कुमार दुबे ने सही कहा कि यदि अगले साल होने वाले राज्यों के चुनावों में कांग्रेस ने गुजरात जैसा निराशाजनक प्रदर्शन किया तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उतनी सीटें भी नहीं आ सकेंगी जितनी अभी हैं । अब मोदी के सामने केवल आम आदमी पार्टी के साथ शतरंज का खेल होगा । वरना राज्यों के क्षत्रपों से बहुत ज्यादा उम्मीद मत रखिए । टक्कर वे अच्छी देंगे , फिर भी । सोशल मीडिया मोदी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता । अब धीरे धीरे वह खदेड़ा ही जाएगा । मोदी विरोध की आवाजें दबायी जाएंगी । मोदी को अपने लोगों से समर्थन मिलेगा और हम उसी तरह हताश, परेशान और मूक दर्शक बने रहेंगे जैसे एनडीटीवी बिकने पर रहे हैं । आजकल जिंदा लाशें हर वक्त इंतजार में पड़ी रहती हैं ।

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