मोदी सरकार ने अप्रैल 2015 में मुद्रा योजना की शुरुआत करते हुए देशभर में छोटे और मध्यम कारोबार शुरू करने के लिए लाखों करोड़ रुपये के आसान कर्ज बांटे. इस कर्ज को बांटने के पीछे सरकार की मंशा कारोबार को बूस्ट देने के साथ-साथ देश में रोजगार के नए संसाधन पैदा करना था. लेकिन तीन साल से चल रही इस योजना ने अब सरकार की नींद उड़ा दी है. केन्द्र सरकार को डर है कि मुद्रा योजना से भी कहीं देश में बैंकों का एनपीए न बढ़ जाए और बैंकों को उबारने की उसकी कोशिशें धरी की धरी रह जाएं.
मुद्रा योजना के तहत केन्द्र सरकार ने तीन साल के दौरान लगभग 5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज देने का काम किया है. मीडिया में छपी कुछ खबरों में दावा किया जा रहा है कि मुद्रा योजना के तहत दिए गए इन कर्जों में एनपीए तेजी से बढ़ते हुए 14 हजार करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर चुका है. हालांकि एक हिंदी अखबार द्वारा एनपीए की रकम के इस दावे की पुष्टि वित्त मंत्रालय अथवा बैंकिंग व्यवस्था से नहीं हो सकी है.
वहीं सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत कुल 1.81 लाख करोड़ रुपये का कर्ज स्वीकृत किया गया जिसमें 1.75 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दे दिया गया. हालांकि इस वित्त वर्ष के लिए केन्द्र सरकार ने कुल 2.44 लाख करोड़ रुपये का कर्ज आवंटन का लक्ष रखा था. वहीं वित्त वर्ष 2016-17 में यह लक्ष महज 1.80 लाख करोड़ रुपये था.
गौरतलब है क प्रधानमंत्री मोदी ने मुद्रा योजना को 8 अप्रैल 2015 में शुरू किया था और इस योजना के तहत तीन श्रेणिओं में कर्ज देने का प्रावधान है. पहला, शिशु कर्ज (50,000 रुपये तक), दूसरा, किशोर कर्ज (50,000 से 5 लाख रुपये तक) और तीसरा तरुण कर्ज (5 लाख से 10 लाख रुपये तक). इस योजना के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम कारोबार के लिए लिए जाने वाले कर्ज को बिना किसी कोलैटरल सिक्योरिटी के तहत देने का प्रावधान है.
इस तरह के कर्ज को बढ़ावा देने के पीछे केन्द्र सरकार की मंशा देश में ज्यादा से ज्यादा रोजगार के नए संशाधन खड़े करने की है. केन्द्र सरकार की इस पायलट योजना का कर्ज देश में सरकारी बैंक, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था और माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के जरिए दिया जाता है. केन्द्र सरकार के आंकड़ों के देखें तो वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान कुल 4,03,89,854 लोगों को मुद्रा कर्ज दिया गया. वहीं योजना के प्रावधान के मुताबिक 75 फीसदी तक यह कर्ज महिलाओं को दिया गया है और 50 फीसदी तक के मुद्रा कर्ज अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को दिया गया है.
जानकारों का दावा है कि मुद्रा योजना के ये प्रावधान कर्ज का रिस्क फैक्टर बढ़ा देते हैं. वहीं बैंकिंग से जुड़े कुछ एक्सपर्ट्स का दावा है कि मुद्रा योजना के तहत किसी व्यक्ति को एक बार कर्ज देने के बाद उसके उपक्रम के लिए रीफआइनेंनसिंग नगण्य के बराबर है जिसके चलते मुद्र कर्ज लेने वालों के सामने शुरुआती घाटा खाने की स्थिति में दुबारा खड़े होने के लिए रीफाइनेंसिंग की समस्या रहती है.
वहीं मुद्रा योजना के तहत सभी कर्ज देने का काम सरकारी बैंकों को ही करना है जो पहले से ही एनपीए की गंभीर समस्या में फंसे हुए हैं. गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने हाल ही में सरकारी बैंकों को एनपीए से उबारने के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये का रीकैपिटेलाइजेशन मसौदा तैयार किया है जिससे बैंक अपने नए कर्ज आवंटन में रिस्क को कम कर सकें.
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हालांकि मुद्रा योजना के तहत केन्द्र सरकार ने लगातार बैंकों पर दबाव बना रखा है कि वह केन्द्र सरकार के मुद्रा लोन के लक्ष्य को समय से पूरा करें. लिहाजा, इन परिस्थितियों में सवाल खड़ा होता है कि क्या मुद्रा योजना ने बैंकों के सामने दोहरी चुनौती खड़ी कर दी है. एक तरफ वह सरकार से पैकेज लेकर अपने एनपीए को सुधारने की कवायद कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार के दबाव में मुद्रा योजना का असुरक्षित कर्ज देकर वह अपने एनपीए को बढ़ाने का रास्ता साफ कर रहे हैं?