देश के नक्शे पर बिंदु सी जगह है जामताड़ा । झारखंड राज्य का एक छोटा सा कस्बा जामताड़ा मशहूर है नाबालिग लड़कों के उस गैंग के लिए जो देश भर में कहीं भी किसी को भी आनलाइन क्राइम के जरिए लूट लेते हैं । ये लड़के बेहद सफाई से अपनी आवाज में या किसी सुशिक्षित महिला की आवाज में उसे विश्वास में लेकर उसका एटीएम नंबर, पिन नंबर आदि पूछ कर उसके खाते से बेशुमार रकम निकाल लेते हैं । यह विश्वास और लूट का खुला खेल है । आज हमारे पूरे देश में यही- विश्वास और लूट का खेल चल रहा है । कुछ ग़लत नहीं होगा अगर कहें कि पूरा देश ही आज जामताड़ा बना हुआ है । पूरा देश इस समय एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसा हुआ है जहां से कोई रास्ता किसी को सूझता नहीं । दीवार पर मकड़ी अपना जाला बना कर शिकार को इस तरह फंसाती है कि शिकार वहीं दम तोड़ देता है । आठ साल पहले किसने वह सोचा था जिसे आज हम होता देख रहे हैं । एक सरकार गयी और दूसरी सरकार आयी । यही तो लोकतंत्र की प्रक्रिया है । यह अहसास कभी किसी को नहीं रहता कि एकदम से अचानक कोई उसके घर में घुस आएगा और फिर धीरे धीरे समूचे घर पर अपने शातिर अंदाज से कब्जा भी जमा लेगा । आज अगर यह देश हतप्रभ है और मुक्ति का रास्ता खोजने में असमर्थ दिख रहा है तो किसको दोष दिया जाए ।
नागपुर के एक बड़े पत्रकार का आकलन तो बड़ा ही अजीबोगरीब था । मैंने कहा ये पचास साल का हिसाब किताब लेकर आए हैं। तो वे बोले, ठीक है न। पर आप नेगेटिव सोच मत रखिए पाज़िटिव रहिए कोई न कोई इनके खिलाफ जरूर उठेगा । इतिहास गवाह है कोई जेपी , कोई गांधी । मैंने पूछा कब, हमारे जाने के बाद तो बोले , हां चाहे हमारी पीढ़ी निकल जाए लेकिन कोई न कोई जरूर उभरेगा । दिग्गज पत्रकार हैं , पत्रकारिता के कई संस्थानों में रहे हैं । उधर एक सच्ची बात आरफा खानम शेरवानी के एक कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार सत्येन्द्र रंजन ने कही कि देश के बड़े जनमानस के दिमाग पर इनका कब्जा है इसलिए जोड़ तोड़ की राजनीति से भाजपा का विकल्प तैयार नहीं हो सकता, इसके लिए विपक्ष को मिल कर जनता को समझाना होगा । सत्येन्द्र रंजन वही बात कह रहे हैं जो इस कालम में असंख्य बार लिखी गयी है । महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त जनता । फिर भी क्या यह सच नहीं कि देश का हर चौथा पांचवां व्यक्ति मोदी को वोट देने को मजबूर है। मोदी के व्यक्तित्व में कई गुण हैं जिन्हें हम ‘अवगुण’ कहेंगे। उनके चाहने न चाहने वाले , दोनों के लिए । मजबूत नेता। तो विकल्प आप किस चीज का ढूंढेंगे । आपके पास मोदी के विकल्प के रूप में कोई नेता नहीं, कोई दल नहीं , उसके प्रचार तंत्र का आपके पास उतना पुख्ता जवाब नहीं । केजरीवाल अकेले चलने की नीति से क्या हासिल करना चाहते हैं कोई नहीं जानता ।
कांग्रेस, कांग्रेसियों के दिलों में अपनी यात्रा से एक आस जगाई रही है लेकिन प्रश्न बहुत से सामने खड़े हैं । सबसे बड़ा प्रश्न यात्रा की सफलता का है । क्या पांच महीने निर्बाध गति से यात्रा अपने लक्ष्य तक पहुंचेगी । लक्ष्य क्या है । राहुल गांधी की जो तस्वीरें बच्चों, बुजुर्गों , महिलाओं के साथ आ रही हैं ये तो हमने बहुत देखी हैं । हर चुनाव में आप ऐसी तस्वीरें देखेंगे । सबसे बड़ा सवाल राहुल गांधी की राजनीतिक परिपक्वता का है । क्या यह यात्रा पांच महीने बाद एक नये राहुल गांधी को एक ऐसे इंसान के रूप में खड़ा करेगी जो सारे राजनीतिक फैसले स्वयं के सोच विचार से लेगा। अभी यह यात्रा राहुल और उनके शुभचिंतकों की है। इस यात्रा में जो बुजुर्ग और पुराने कांग्रेसी या कहें जी- 23 के कांग्रेसी नजर आ रहे हैं वे कितने मन से जुड़े हैं। कांग्रेस अध्यक्ष का पेंच इसी यात्रा के बीच है । इसी यात्रा के बीच गोवा के आठ कांग्रेसी छोड़ गये । कुल मिलाकर कांग्रेस के अंदर कुछ भी ठीक-ठाक नहीं । राहुल को अध्यक्ष बनाने की आवाजें फिर जोरदार तरीकों से मुखर हो रही हैं । ये कौन से और कैसे कांग्रेसी हैं जो अपने ही नेता को विचलित करने और कांग्रेस की एकता को भ्रमित करने का खेल कर रहे हैं । निश्चित रूप से भाजपा के भीतर इस यात्रा को लेकर असंतोष है । खासतौर से मोदी और शाह को । कांग्रेसियों में यह भ्रम है कि मोदी राहुल से डरते हैं । सच यह है कि मोदी और शाह दोनों कांग्रेस के उभार से डरते हैं । वे डरते हैं इसलिए कि वे जानते हैं कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है और अगर यह फिर से उभर आयी या जिंदा हो उठी तो भाजपा के लिए मुश्किल ही मुश्किल होगी । कांग्रेस से सत्ता छीनी थी और लोग जानते हैं कि कांग्रेस मोदी की बीजेपी से लाख गुना बेहतर है । हम कांग्रेस की यात्रा से उतने ही आश्वस्त हैं कि यदि यह पार्टी फिर से उभर आयी तो अच्छा और मजबूत विपक्ष बन सकती है लेकिन चिंता कांग्रेस के भीतर के कलह की है । इतना जान लेना जरूरी है कि 2024 हम सबके लिए एक डेड लाइन है । इसके बाद सत्ता की जो क्रूरता दिखाई देगी वह मिसाल होगी जैसी आजाद भारत में इमरजेंसी के दौरान भी नहीं देखी गयी होगी । इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद आनन-फानन में डरते हुए इमरजेंसी लगाई जिसका हटना लाजिमी था । लेकिन आज आक्टोपस की भांति पूरे देश को अपनी लपेट में लिया जा रहा है और यह उसी को दिखाई दे सकता है जो उसे देखना चाहे। यहां इमरजेंसी का कोई डर नहीं है क्योंकि वैसा वातावरण तो पहले ही दिन से शुरू हो गया था हम ही नहीं समझ पाये या समझने में देर लगी ।
कभी कभी मन होता है सोचने का कि रवीश कुमार की सालों की इतनी मेहनत का नतीजा क्या निकलेगा । रवीश पर शानदार डोक्युमेंटरी बनी और टोरंटो में दिखाई गयी । हाल खचाखच भरा हुआ था । रवीश को रमन मैग्सेसे पुरस्कार भी मिला । सब कुछ कितना गद् गद् करता है । पर देश कितना जागा । एक व्यक्ति एक पत्रकार अपना सब कुछ दांव पर लगा देता है । लेकिन समाज नहीं जागता । समाज का एक मुट्ठीभर हिस्सा ही जागता है । कांग्रेस के राज में एनडीटीवी और रवीश कुमार चौतरफा प्रभाव ही नहीं छोड़ते थे, बल्कि न्यूज चैनलों के बीच प्रमुख स्थान पर देखे जाते थे । आज जबकि इसी चैनल और रवीश कुमार को देश की आवाज बनना चाहिए था , योजनाबद्ध तरीके से नक्कारखाने में तूती सा बना दिया गया है ।हम देश की बात कर रहे हैं , देश से बाहर की नहीं । चैनलों की एक ऐसी फूहड़ भीड़ खड़ी कर दी गई है जिसके बीच केवल मोदी विरोधियों के लिए ही एक बड़ा साधन बन कर रह गया है यह चैनल । वह भी डरा डरा सा जिसे न जाने कब डस लिया जाए । एनडीटीवी के बाद सबका नंबर आएगा । विपक्ष की सोशल मीडिया वेबसाइट्स में ‘वायर’ शायद सबसे पहली वेबसाइट थी जिसने दमदार तरीके से एंट्री मारी थी । उसके बाद ‘सत्य हिंदी’। लेकिन आज सबमें एक बौखलाहट सी आप महसूस करेंगे । इनमें आने वाले ज्यादातर घिसे पिटे पैनलिस्ट ,बेशक बड़े पत्रकार रहे हों पर आज उन्हें देख सुन कर नहीं लगता कि उनमें अब कोई आग बची होगी । सारे उल्टे सीधे आकलन और बिना किसी गहराई के भविष्यवाणियां । बीसेक साल पुरानी पत्रकारों की धार सब कुंद हो चुकी है । आज तो लगता है सब सुनी सुनाई बातों वाले पत्रकार हैं ये सब । न अध्ययन, न चिंतन , न कोई गहरी शोध । सब अपनी अपनी ‘बात’ लेकर हाजिर हो जाते हैं । कार्यक्रम का नाम भी यही रख लिया गया है ‘फलाने फलाने की बात’। देश के असंगठित क्षेत्र के लिए मोदी के प्रचार तंत्र और उनके चैनलों को छोड़ दिया गया है । वहां उनका एकछत्र राज है और ऐसे में दावा यह कि 2024 में मोदी को हरायेंगे । जो प्रबुद्ध वर्ग है वही वेबसाईट्स को देखता है या जो मोदी विरोधी फेसबुकिया वर्ग है वह । कांग्रेस से फिलहाल इस बार उम्मीद नहीं, विपक्षी दल अलग-अलग खिचड़ी पका रहे , केजरीवाल खुद का दावा ठोक रहे ऐसे में रवीश कुमार कब तक किसकी नैया उबारेंगे , सोचिए और सोचते रहिए । देश के जिन जिन इलाकों में बीजेपी और आरएसएस के दल पहुंच चुके हैं वहां तो किसी और के पहुंचने की उम्मीद नहीं। वैसे भी जब तक बड़े उद्योगपतियों का हाथ मोदी सरकार पर है तब तक चिंता क्या । फालतू की चिंता करे, तो करे विपक्ष।
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