ईश्वर की सत्ता पर सदियों से प्रश्न चिन्ह लगते आये हैं । समय क्या है और किस्मत क्या है । हमारी आंखों के सामने महज़ एक चक्र है जो उसी गति से घूम रहा है जैसे, कहा जाता है कि, धरती अपनी धुरी पर घूम रही है। क्या निश्चित है और क्या अटकल ।बस आपका काम है देखना और मन के संदेश और निर्देश पर जीवन को ढोते चलना । देश, राजा, जनता के जिम्मे सिर्फ इतना भर ही। आज हमारे देश में राजशाही नहीं है ।किसी भी देश में नहीं है ।शायद इक्का दुक्का कहीं छोड़कर ।पर मन है कि मानता नहीं ।न लोकतंत्र का , न जनता का और न लोकतंत्र में जनता के खुद को सेवक कहलाने वाले ‘सेवक’ का। यहां लोकतंत्र की आड़ में सब कुछ संभव है । आप गरीबों की झोली में अनाज और पैसा फेंक कर अघोषित राजा बन सकते हैं । जनता को पल भर नहीं लगेगा भिखारी की श्रेणी में खड़े होने पर । हमारा देश आज इसी बात की गवाही दे रहा है ।
हम अपने प्रधान सेवक की बात करें – नरेंद्र मोदी की, तो वे कारपोरेट जगत की शैली के प्रधान ज्यादा दिखते हैं । कारपोरेट का चतुर प्रधान कभी स्वयं को मालिक नहीं कहता । नरेंद्र मोदी की शैली और व्यक्तित्व की गहरी समझ रखने वाले इस बात की ताकीद करेंगे कि भारत के राजनीतिक लोकतांत्रिक इतिहास में नरेंद्र मोदी संभवतः पहले शासक हैं जिन्होंने सार्वजनिक मंच बल्कि लालकिले की प्राचीर से स्वयं को ‘सेवक’ घोषित किया और करवाया । धूर्त राजा छल का प्रपंच बहुत बारीकियों के साथ पहचानते हैं । लेकिन ‘यू ट्यूब’ की प्रोग्रामिंग की तरह समय की नजर अचूक है । जिसने मोदी जी से यूपी चुनाव से पहले एक नारा नहीं दिलवाया । वे कांग्रेस की भांति एक नारा और दे सकते थे – ‘सपा मुक्त यूपी’ । इस बार के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव मोदी जी की परीक्षा ले रहे हैं । यूपी में नींव पूरी हिल रही है । गोवा और मणिपुर को छोड़ कर कहीं बीजेपी की अच्छी गत नहीं दिखाई दे रही । मोदी का ईश्वर, मोदी का समय और मोदी की किस्मत सब उनसे छल कर रहे हैं । मोदी अगर तीन राज्यों में हारते हैं तो यह हार उनकी कारपोरेट शैली की हार से ज्यादा कुछ नहीं होगी ।साफ है कि भारत का संस्कार लाल बहादुर शास्त्री सरीखे नेताओं को सिर माथे पर बैठाने का संस्कार है। कोई छलिया तत्काल प्रभाव में तो बड़ी जीत का भ्रम दे सकता है पर यह दीर्घकालीन सत्य नहीं हो सकता । यूक्रेन पर युद्ध पुतिन ने किया है , रूस ने नहीं । शी जिनपिंग के आतंक से चीन थर्राता है पर हमें पता नहीं चल पाता । मोदी जी की पहली चाल को अच्छे अच्छे दिग्गज समझने में विफल हो गये , बल्कि उसमें भ्रमित हो गये । पर कहिए देर है , अंधेर नहीं । इन पांच राज्यों के चुनावों का सबसे बड़ा संदेश है कि मोदी से देश की जनता का मोहभंग हो रहा है । मोदी ‘थोथा चना’ साबित होने जा रहे हैं , जो जब बजता है तब खूब बजता है । गत सात आठ सालों में मोदी ने स्वयं को खूब बजाया है । लेकिन प्रश्न अपनी जगह है – ईश्वर की सत्ता का । देश जिस गति से पीछे लौटा है और दरिद्रता के साथ दरिंदगी की भी हदें पार हुईं हैं उसके लिए जिम्मेदार कौन होगा ।बनते इतिहास के सबक इसके जवाब देंगे ।
मुख्य धारा के मीडिया और सोशल मीडिया की दोनों धाराओं से देश आंदोलित है । हम तो सोशल मीडिया को ही पूरी तरह से देख लें वही बहुत है जो आजकल नहीं हो पा रहा है । सवाल यह भी आ जाता है कि आप जो देख रहे हैं वह कितना प्रासंगिक, रोचक और ज्ञानवर्धक है । आजकल ‘सत्य हिंदी’ की चर्चाएं कुछ उसी तरह से उबाऊ हो रही हैं जैसे वाजपेई जी का एकल स्वर । फिर क्या देखें । इस ऊब के साथ समय भी खराब होता है । लाउड इंडिया टीवी पर अभय दुबे शो देख सकते हैं ।इस बार संतोष भारतीय के अचानक से उठे एक प्रश्न का अभय दुबे सीधा जवाब नहीं दे पाये जो कुमार विश्वास से संबंधित था । कुमार विश्वास से बयान बीजेपी ने दिलवाया ,यह तो अभय दुबे बोल गये लेकिन कैसे, यह नहीं बता पाये ।अभय जी को समझना चाहिए कि देखने वाले बहुत गहराई से देखते हैं । संतोष जी समझ गये होंगे कि सीधे सीधे इनके पास कोई तथ्य(जवाब) नहीं है सिर्फ बीजेपी को लेकर एक अटकल है । श्रोता और दर्शक भी यही समझे । कोई नहीं चाहता कि अभय दुबे के विश्लेषण में कहीं से कोई छीजन आये । हां, दोहराव तो आता ही है । जैसे आपने सुबह 11 बजे अभय जी को सुना हो तो रात में आशुतोष के साथ सुनने का कोई अर्थ नहीं । लोग पूछते हैं कि सर ये ‘सत्य हिंदी’ वाले इतने बड़े बड़े मगों में चाय क्यों सुड़कते हैं तो मैं कहता हूं कि यह दिल्ली मुंबई का घमंड है और नमस्कार करते वक्त आशुतोष चिल्लाते क्यूं हैं तो मैं कहता हूं यह उनका पागलपन है । आप इसी घमंड और पागलपन की आदत डाल लीजिए । गम्भीर लोग ऐसे न घमंड करते हैं और न पागलपन जाहिर करते हैं । कभी आपने संतोष जी को ऐसा होते देखा है । जब आप ऐसी हरकतों से ऊबने लगें तो अंकुर के बुलेटिन सुन लीजिए ।आरफा खानम शेरवानी और भाषा सिंह के जानदार वीडियो देखिए । ‘जी-फाइल्स’ के अनिल त्यागी का कार्यक्रम देखिए । ‘ताना-बाना’ देखिए । ताजगी मिलेगी ।
‘सत्य हिंदी’ पर मुकेश कुमार का ‘ताना बाना’ कार्यक्रम एक अच्छा साहित्यिक कार्यक्रम है । लेकिन इस डिजिटल युग में साहित्य की दुनिया खुद में सिमट रही है । मुकेश भाई स्वयं जानते होंगे कि दुनिया दरअसल भाग रही है । गम्भीर साहित्य (एक) अपेक्षित ठहराव चाहता है ।समय और साहित्य का यह तालमेल बेमेल सा हो गया लगता है । ऐसे में यह कार्यक्रम श्रोताओं की कितनी बड़ी दुनिया समेटेगा , कहना कठिन है। फिर भी विस्तार तो होना ही चाहिए ।
विजय त्रिवेदी शो इस बार पूरा नहीं देख पाया । यों भी यूपी चुनाव पर आकलन बोरियत पैदा कर रहे हैं । लाउड इंडिया टीवी पर एक चीनू नाम की बच्ची एंकरिंग करने लगी है ,देख कर अच्छा लगा । इस भागती दुनिया में थोड़ा ठहराव और ताजगी चाहिए , जहां मिले स्वागत कीजिए । नीलू व्यास ने जब अपना कार्यक्रम ‘बेबाक’ शुरू किया था तब मैंने उन्हें सुझाव दिया था कि चालू विषयों से हट कर नये ताजगीभरे और गम्भीर विषयों पर चर्चा करें । लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भेड़ चाल हो गयी । सबसे गम्भीरता के साथ भाषा सिंह लगीं हुईं हैं ।आरफा खानम शेरवानी के इलाहाबाद वाले सभी वीडियो देखने लायक हैं ।वे वास्तव में पत्रकारिता की धुरंधर हैं आज के समय में । अजीत अंजुम अपने अंदाज में लगे हैं । सब मोदी योगी को यूपी में धता बताने में लगे हैं ।काश मोदी जी ने नारा दिया होता – ‘सपा मुक्त यूपी’ ।चूक हो गयी । अब नतीजा देखें (भुगतें) ।

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