यह विडंबना ही है कि जो व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बनना चाहता है, वह यह नहीं समझता कि अगर वह यह संदेश दे रहा है कि वह देश को सेना और पुलिस के माध्यम से चलाना चाहता है, तो प्रशासन में राजनेताओं की क्या जरूरत? अगर ऐसा है तो फिर हमें प्रधानमंत्री की कोई जरूरत नहीं. वास्तव में मोदी मुद्दे से हट रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने बीते 13 सितंबर को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी को अपनी पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया. भाजपा 1970 के समय से ही कांग्रेस के ख़िलाफ़ गला फाड़ रही है. तब बीजेपी कांग्रेस पार्टी पर इस बात का आरोप लगाती थी कि इंदिरा गांधी व्यक्तिगत रूप से ख़ुद को प्रभावशाली साबित कर रही हैं, जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ख़तरा है. अब भारतीय जनता पार्टी भी उसी दौर में वापस लौट आई है. पार्टी के नेता पार्टी की नीतियों या विचारधारा की कोई बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से हमले कर रहे हैं. जो भी हो, यह उनका अपना मसला है, लेकिन पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार चुने जाने के बाद सबसे पहले मोदी ने क्या किया? उन्होंने रेवाड़ी में पूर्व-सैनिकों की एक रैली आयोजित की. मोदी ने कहा कि चूंकि पहले ही उन्होंने यह वादा किया था, जो कि उन्हें पूरा करना ही था. यह विडंबना ही है कि जो व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बनना चाहता है, वह यह नहीं समझता कि अगर वह यह संदेश दे रहा है कि वह देश को सेना और पुलिस के माध्यम से चलाना चाहता है, तो प्रशासन में राजनेताओं की क्या जरूरत? सेना और पुलिस तो पहले से ही अपना काम कर रही हैं. और अगर देश चलाने के लिए यह दोनों पर्याप्त हैं तो फिर चुनाव कराने की क्या जरूरत है? अगर ऐसा है तो फिर हमें प्रधानमंत्री की कोई जरूरत नहीं. हमें सांसदों की कोई जरूरत नहीं. और हमें विधायकों की कोई जरूरत नहीं. वास्तव में वे मुद्दे से हट रहे हैं. एक गैर-सैनिक राजनीतिक व्यवस्था का उद्देश्य होता है कि वह जनता की भावनाओं को समझ सके और उनके लिए समाधान प्रस्तुत करे. उन्होंने उस रैली में कहा कि देश की सेना के माध्यम से मैं पाकिस्तान को सबक सिखाऊंगा. क्या इसके लिए हमें प्रधानमंत्री की जरूरत है? सेना प्रमुख यह क़दम ख़ुद ही उठा सकते हैं. हमें ऐसे प्रधानमंत्री की ज़रूरत है, जो यह कहे कि मेरी कोशिश रहेगी की पाकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य बनें, जिससे सेना पर भी दबाव न रहे. वास्तव में प्रधानमंत्री का कर्तव्य ही यही है, न कि यह कहना कि पाकिस्तान पर हमला कर दो. सेना को किसी की सलाह की ज़रूरत नहीं है. वास्तव में वे मुद्दों से भटक गए हैं. यही भाजपा का असली चेहरा है. वे एक ऐसे प्रधानमंत्री का चुनाव करना चाहते हैं, जो देश में हिंसा के बारे में बात करे. अभी उन्हें प्रधानमत्री पद की ज़िम्मेदारी मिली भी नहीं और उन्होंने हिंसा की बात शुरू कर दी. देश पहले से ही हिंसा की चपेट में है. देश पहले से ही पाकिस्तान, चीन और माओवादियों द्बारा फैलाई हिंसा की मार झेल रहा है. हमें ऐसे प्रधानमंत्री की ज़रूरत है जो उन्माद के इस माहौल को कम कर सके.
निश्चित रूप से मौजूदा सरकार असफल साबित हुई है. इसमें कोई शक नहीं है. यह बड़े दुर्भाग्य की बात है और मैं यह समझ सकता हूं, जब कोई यह कहता है कि पाकिस्तान आए दिन युद्ध-विराम का उल्लंघन करता है और हम कुछ नहीं करते. ऐसा क्यों है, यह भी मैं समझ सकता हूं, लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए यह समझना मुश्किल है, क्योंकि वे ठेठ आएसएस-भाजपा संस्कृति का हिस्सा हैं. और यह संस्कृति कहती है कि हम विरोध के स्वरों की अनदेखी नहीं करेंगे. हम लोकतंत्र को बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम उन सभी को सबक सिखाएंगे, जो हमारा विरोध करेंगे, भले ही उनमें हमारे अपने लोग ही क्यों न शामिल हों. इसलिए जो भी कट्टर हिंदू नहीं है, वह अब मुश्किल में हैं. उनमें मैं भी शामिल हूं. निश्चित तौर पर मुसलमानों पर आने वाले दिनों में संकट रहेगा. ईसाइयों पर भी मुश्किलें आएंगी. यहां तक कि आम नागरिक, जो कि शांतिप्रिय है, वो भी मुश्किल में होगा, क्योंकि वह भाजपा के कट्टर राष्ट्रवाद का समर्थक नहीं है. मोदी रोटी-कपड़ा और मकान की बात नहीं कर रहे हैं. वे इस बारे में बात नहीं कर रहे हैं कि किस तरह से लोगों का जीवन शांति और सुखमय हो. वे इस बारे में बात नहीं कर रहे हैं कि किस तरह से मुद्रास्फीति कि दर नीचे आए. इस बारे में बात नहीं कर रहे हैं कि किस तरह से चालू खाते में होने वाले घाटे पर नियंत्रण किया जाए.
यह सभी वे मुद्दे हैं, जिनके बारे में प्रधानमंत्री को निश्चित तौर पर बात करनी चाहिए, जबकि वे पाकिस्तान को सबक सिखाने के बारे में बात कर रहे हैं. वे इसे प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी पहली भूमिका समझते हैं. बावजूद इसके भी अगर देश की जनता उन्हें चुनती है तो फिर देश ऐसे ही सरकार के लायक है. क्या देश की जनता एक ऐसे व्यक्ति को चुनना चाहती है, जो पड़ोसियों को सबक सिखाना चाहता है, जिसके लिए यह उसी तरह है कि आप एक फ्लैट किराये पर लीजिए और अपने पड़ोसियों से रोज झगड़ा कीजिए. आप अपने दोस्त तो बदल सकते हैं, लेकिन अपने पड़ोसी नहीं. पाकिस्तान और चीन हमेशा ही हमारे पड़ोसी बने रहेंगे.
हमें ऐसे लोगों की जरूरत है, जो समझदार हों. जवाहरलाल नेहरू में वह समझदारी थी. हां, यह सही है कि चीन ने उनका भरोसा तोड़ा और उन्हें यह बुरा भी लगा, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने चीन से बेहतर संबंध बनाए रखे. इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सेना बेहद सशक्त थी. पाकिस्तान का विभाजन हुआ. इसका श्रेय इंदिरा गांधी को ही जाता है कि उनके नेतृत्व में सेना ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई, लेकिन उन्होंने अपने भाषणों में कभी भी हिंसा की बात नहीं की. लोगों को उनकी भूमिका बताना और उसका पाठ पढ़ाना, यह प्रधानमंत्री का दायित्व नहीं है. अगर केवल लॉ-आर्डर को ही ठीक करना है तो फिर एक जिलाधिकारी ही पर्याप्त है. तब हमें किसी मुख्यमंत्री की ज़रूरत नहीं है फिर तो कलेक्टर और पुलिस ही पर्याप्त हैं. उनके पास बंदूकें हैं. उनके पास कार्रवाई करने का आदेश है. उनके पास लाठी है. हमें राजनेताओं की जरूरत है, ताकि देश की जनता का इस्तेमाल कोई अपने मंसूबों के लिए न कर सके. अगर जनता किसी बात को लेकर नाराज़ है तो नेता को इस योग्य होना चाहिए कि वह उन्हें समझाए. उन्हें शांत करे. अगर आपको केवल कलेक्टर और पुलिस के माध्यम से ही शासन करना है तो फिर चुनावों पर वक्त और पैसा जाया करने का क्या मतलब है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और उसके नये प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार वास्तव में यही चाहते हैं. अन्य सभी पार्टियों को चाहिए कि वे एकजुट होकर भाजपा को हराएं, ताकि वह अपने नापाक मंसूबे हासिल न कर पाए. यही वक्त की ज़रूरत है.