miचीन ने अपनी रक्षा प्रणाली में इलेक्ट्रॉनिक्स और साइबर ऑपरेशन प्रणाली को भी इतना विकसित कर रखा है कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि चीनी सेना भारत में घुस जाए और भारतीय सेना का ‘कंट्रोल एंड कमांड सिस्टम’ चीनी सेना के साइबर-रेजीमेंट द्वारा ‘हैक’ कर लिया जाए. इस वजह से भारतीय सेना का पूरा संचार-तंत्र ऐन मौके पर कहीं ‘हैंग’ न हो जाए. इस बात की पूरी आशंका है. पिछले ही साल यह बात आधिकारिक तौर पर उजागर हुई कि चीन की कुख्यात कंपनी हचिसन और मोबाइल फोन कंपनी शाओमी (दळरेाळ) ने भारतीय सेना और सुरक्षा तंत्र की जासूसी कराई, जिस वजह से भारतीय सेना को स्मार्ट फोन्स और स्मार्ट ऐप्स पर रोक लगानी पड़ी.

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को पठानकोट बेस के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं चीन ने ही मुहैया कराई थीं. चीन अब भी अपने कुछ खास स्मार्ट फोन्स और स्मार्ट एप्लिकेशंस के जरिए भारतीय सेना की संवेदनशील सूचनाएं हासिल कर रहा है. चाइनीज़ कंपनियां हचिसन-वैमपोआ और शाओमी स्मार्ट फोन चीन की मदद कर रही हैं. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ मिल कर दुनियाभर में साइबर-जासूसी करने में हचिसन-वैमपोआ कुख्यात रही हैं. पाकिस्तान के बंदरगाहों पर चीन ने हचिसन-वैमपोआ के जरिए ही दखल बनाई है.

इस कंपनी से पाकिस्तान को भारी आर्थिक मदद मिल रही है. हचिसन कंपनी कुछ अर्सा पहले तक भारत में काम करती रही, लेकिन 2005-07 में अचानक उसने भारत का कारोबार बंद कर दिया. वोडाफोन ने उसे खरीद लिया. हच के इस तरह भारत से काम समेट लेने के पीछे भारी कर चोरी के अतिरिक्त कई और संदेहास्पद वजहें थीं, लेकिन भारत सरकार ने और भारत की खुफिया एजेंसियों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया. वही हचिसन प्रतिष्ठान अपनी साझीदार शाओमी के साथ भारतीय सेना की जासूसी में फिर से सक्रिय है.

‘चौथी दुनिया’ इसके पहले भी यह महत्वपूर्ण सवाल उठा चुका है कि हचिसन को भारत में घुसने की इजाजत किसने दी थी? हचिसन के जरिए भारत के चप्पे-चप्पे में चीनी सेना के कम्युनिकेशन-नेटवर्क स्थापित होने का मौका आखिर किसने दिया था? क्या भारत सरकार को यह नहीं पता था कि हचिसन-वैमपोआ और चीन की सेना साथ मिल कर क्या काम करती है? हचिसन कंपनी का भारत में निवेश किन शर्तों पर हुआ था? उस निवेश को फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड ने ठीक से मॉनिटर क्यों नहीं किया और कंपनी जब भारत से काम समेट कर जाने लगी, तो उसकी (असली) वजहें जानने की भारत सरकार ने कोशिश क्यों नहीं की? ये ऐसे सवाल हैं, जिसका जवाब देश के समक्ष आना ही चाहिए, जिसे केंद्र सरकार दबाए बैठी है.

भारतीय जमीन से चल रहा है चीनी सेना का कम्युनिकेशन लिंक
देश की सुरक्षा से जुड़ा यह अजीबोगरीब पहलू है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के साइबर रेजीमेंट के साथ मिल कर विभिन्न देशों के संचार तंत्र पर साइबर हमला करने में कुख्यात रही हचिसन-वैमपोआ को न केवल भारत में निवेश की इजाजत दी गई बल्कि भारत की जमीन पर ही हचिसन ग्रुप और चीनी सेना (पीएलए) के बीच कम्युनिकेशन-लिंक स्थापित करने की भी इजाजत मिल गई. हैरत है कि 90 के दशक से लेकर आज तक भारत सरकार इस मसले पर आंख मूंदे है. जाहिर है कि पूरे व्यवस्था-तंत्र को अपने ही देश के दीमक चाट रहे हैं और उसे खोखला कर रहे हैं.

हचिसन के वेश में चीनी सेना के देश के घर-घर में घुसने का रास्ता भारत सरकार ने ही खोला और उसे लिबरल पॉलिसी और ग्लोबलाइज्ड इकोनॉमी बता-बता कर अपनी पीठ खुद ही ठोकती रही. आज की असलियत यही है कि हमारे चप्पे-चप्पे पर चीनी सेना की नजर है. देश का एक-एक नागरिक चीन के लिए जासूसी का उपकरण शाओमी फोन की शक्ल में अपने हाथ में लिए घूम रहा है. हचिसन और उसकी साझीदार शाओमी और रेडमी के स्मार्ट फोन्स व स्मैश-एप और वी-चैट जैसे स्मार्ट एप्लिकेशंस के जरिए चीन ने भारत के खिलाफ खूब जासूसी की और अब भी कर रहा है.

भारतीय वायुसेना रक्षा मंत्रालय से लगातार यह कहती रही कि चीन का बना स्मार्ट फोन शाओमी और रेडमी जासूसी के काम आ रहा है. लेकिन वायुसेना की सूचना को भारत सरकार ने गंभीरता से लिया ही नहीं. संसद में मामला भी उठा, फिर भी केंद्र सरकार ने विवादास्पद चाइनीज़ स्मार्ट फोन्स को प्रतिबंधित करने या मामले की खुफिया पड़ताल कराने की जरूरत नहीं समझी. सर्च इंजन गूगल ने स्मैश-एप जैसे एप्लिकेशन को अपने प्ले-स्टोर से हटा दिया और यह माना कि एप्लिकेशन का इस्तेमाल पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी भारत के खिलाफ जासूसी के लिए कर रही थी.

चीन के बने मोबाइल फोन्स की करतूतों पर भारत सरकार को चुप्पी साधे देख आखिरकार भारतीय सेना की तीनों इकाइयों ने स्मार्ट फोन्स के इस्तेमाल पर ही पाबंदी लगा दी. भारतवर्ष की लचर साइबर सुरक्षा व्यवस्था का खामियाजा आखिरकार सेना को ही भुगतना पड़ा.

थलसेना, वायुसेना और नौसेना में स्मार्ट फोन्स के इस्तेमाल पर रोक के साथ-साथ फेसबुक, ट्‌विटर, व्हाट्सएप, स्मैश-एप, वी-चैट, लाइन-एप जैसे स्मार्ट फोन एप्लिकेशंस, मैसेंजर एप्लिकेशंस और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के इस्तेमाल पर भी पूरी तरह पाबंदी लगा दी. सेना की तीनों इकाइयों के सैनिकों, जूनियर कमीशंड अफसरों और कमीशंड अफसरों से कहा गया कि वे अपना ई-मेल आईडी भी तत्काल प्रभाव से बदल लें.

फिर भी केंद्र सरकार बेशर्मी की चादर ओढ़े रही. सरकार को शाओमी फोन्स के बड़े-बड़े विज्ञापन नजर नहीं आते. चीनी स्मार्ट फोन्स और एप्लिकेशंस के जरिए यूज़र का पूरा डाटा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी को मुहैया कराया जा रहा था. स्मैश-एप का सर्वर जर्मनी में था, जिसे कराची का रहने वाला पाकिस्तानी एजेंट साजिद राना पीबीएक्समोबीफ्लेक्स.कॉम के नाम से चला रहा था. इस एप्लिकेशन की तकनीक चीन द्वारा विकसित की गई थी.

इसे इतने शातिराना तरीके से तैयार किया गया था कि उसे डाउनलोड करते ही यूज़र के फोन में दर्ज सारे डीटेल्स, एसएमएस रिकॉर्ड, फोटो, वीडियो और यहां तक कि किन-किन लोगों से उसकी बातें हो रही हैं, उसका ब्यौरा भी सर्वर को मिल जाता था. इसी तरह शाओमी और रेडमी फोन्स द्वारा भी यूज़र-डाटा चीन में स्थापित सर्वर्स को भेजे जा रहे थे. स्मार्ट फोन के स्मार्ट एप्लिकेशन के इस्तेमाल से सेना के कर्मचारी या अफसर अनजाने में ही खुद ब खुद जासूसी के ‘टूल’ के रूप में इस्तेमाल हो रहे थे.

सेना के सामान्य अफसर या सैनिक तकनीकी तौर पर विशेषज्ञ नहीं होते, लिहाजा वे समझ नहीं पा रहे थे कि उनकी सूचनाएं किस तरह बाहर लीक हो रही थीं. भारतीय सेना के डायरेक्टर जनरल (मिलिट्री ऑपरेशंस) ने सेना के सारे कमानों को बाकायदा यह निर्देश दिया कि सैनिक (अफसर और जवान) या उनके परिवार के कोई भी सदस्य वी-चैट जैसे एप्लिकेशन का इस्तेमाल न करें.

इस निर्देश में उन सारे एप्लिकेशंस का प्रयोग न करने की हिदायत दी गई, जिसके सर्वर विदेश में हों. सेना मुख्यालय ने आधिकारिक तौर पर माना कि चीन के टेलीकॉम ऑपरेटर्स वी-चैट जैसे एप्लिकेशंस के जरिए सूचनाएं हासिल कर उसे चीन सरकार को दे रहे हैं. इंडियन कम्प्यूटर इमरजेंसी रेसपॉन्स टीम से मिली जानकारियों के आधार पर भारतीय वायुसेना की खुफिया शाखा ने भी यह रिपोर्ट केंद्र सरकार को दे रखी है कि शाओमी और रेडमी स्मार्ट फोन्स अपने सारे यूज़र डाटा चीन में बैठे आकाओं को मुहैया करा रहे थे. रेडमी फोन के चीन स्थित आईपी एड्रेस से कनेक्ट होने के भी कई प्रमाण सामने आए. तब यह बात खुली कि सर्वर (डब्लूडब्लूडब्लू.सीएनएनआईसी.सीएन) का मालिक चीन सरकार का सूचना उद्योग मंत्रालय खुद है.

रिसर्च एंड अनालिसिस विंग (रॉ) के अधिकारी बताते हैं कि हचिसन-वैमपोआ और शाओमी काफी करीब हैं और एशिया में साझा कारोबार करते हैं. हच के नाम से भारत में हचिसन का कारोबार था, लेकिन उसने भारत में व्यापार का अधिकार वोडाफोन को बेच डाला. भारत सरकार ने कभी इस बात की छानबीन नहीं कराई कि संचार का सहारा लेकर हचिसन कंपनी भारत में क्या-क्या धंधे करती रही और अचानक काम समेट कर क्यों चली गई. हचिसन कंपनी अरबों रुपए का कैपिटल गेन टैक्स हड़प कर चली गई, इस पर किसी को कोई दर्द ही नहीं हुआ.

हचिसन-वैमपोआ के मालिक ली का शिंग के चीन की सत्ता और चीन की सेना (पीएलए) से गहरे सम्बन्ध हैं. ली का शिंग की कंपनी हचिसन-वैमपोआ चीनी सेना की साइबर रेजिमेंट के साथ मिल कर साइबर वारफेयर और साइबर जासूसी के क्षेत्र में काम करती है. चीन के कम्युनिज्म का सच यही है कि चीन की सेना दुनियाभर में फैली कई नामी कॉरपोरेट कंपनियों की मालिक है या हचिसन-वैमपोआ जैसे कॉरपोरेट घरानों के साथ मिल कर काम करती है. इस तरह चीन की सेना दुनियाभर में जासूसी भी करती है और धन भी कमाती है. हचिसन-वैमपोआ और चीन की सेना ने पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका समेत दुनिया के तमाम देशों के बंदरगाहों को अपने हाथ में ले रखा है.

बंदरगाहों का काम हचिसन पोर्ट होल्डिंग (एचपीएच) के नाम से किया जा रहा है. बंदरगाहों के जरिए हथियारों की आमद-रफ्त बेधड़क तरीके से होती रहती है. हचिसन-वैमपोआ लिमिटेड के चेयरमैन ली का शिंग चीन की सेना के लिए बड़े कारोबार में बिचौलिए की भूमिका भी अदा करते हैं. अमेरिका की ह्यूज़
कॉरपोरेशन और चाइना-हॉन्गकॉन्ग सैटेलाइट (चाइनासैट) के बीच हुए कई बड़े सैटेलाइट करारों में ली का शिंग अहम भूमिका अदा कर चुके हैं. यहां तक कि ली ने चाइनासैट और एशियासैट में अपना धन भी लगाया.

चाइनासैट और एशियासैट कंपनियां चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की कंपनियां हैं. इसी तरह चाइना ओसियन शिपिंग कंपनी (कॉसको) भी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की है, जिसमें हचिसन-वैमपोआ लिमिटेड का धन लगा हुआ है. लीबिया, ईरान, इराक और पाकिस्तान समेत कई देशों में आधुनिक हथियारों की तस्करी में कॉसको की लिप्तता कई बार उजागर हो चुकी है.

कुख्यात आर्म्स डीलर और अत्याधुनिक हथियार बनाने वाली चीन की पॉलीटेक्नोलॉजीज़ कंपनी के मालिक वांग जुन और हचिसन-वैमपोआ के मालिक ली का शिंग के नजदीकी सम्बंध हैं. पॉलीटेक्नोलॉजीज़ कंपनी का संचालन भी पीएलए द्वारा ही होता है. चीन के प्रतिष्ठित द चाइना इंटरनेशनल ट्रस्ट एंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन में वांग जुन और ली का शिंग, ये दोनों कुख्यात हस्तियां बोर्ड मेम्बर्स हैं.

देश के संचार-तंत्र को सड़ा चुका है चीन का साइबर दीमक
चीन के उपकरणों पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता भारत के लिए बड़ी आपदा को न्यौता दे रही है. रणनीतिक विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित रहे हैं कि दूरसंचार क्षेत्र में हो रहा चीनी अतिक्रमण चीनी सेना की सोची-समझी रणनीति है. देश में अधिकांश बेस ट्रांसमिशन स्टेशन (बीटीएस) में चीनी कंपनियों हुआवेई और जेडटीई के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हुआ है. सबसे बड़ा खतरा यह है कि सभी चीनी बीटीएस को जीपीएस सिग्नल के लिए चीनी उपग्रहों पर स्थानांतरित कर दिया गया है. यह खतरनाक है, क्योंकि मोबाइल बीटीएस के जीपीएस मॉड्यूल में बदलाव करने से पूरा का पूरा कम्युनिकेशन सिस्टम ढह सकता है. किसी आपात स्थिति में जीपीएस पल्स को ब्लॉक किया जा सकता है.

यहां तक कि इसके रास्ते में बदलाव करके इसकी टाइमिंग बदली जा सकती है. देश का 60 प्रतिशत सीडीएमए और जीएसएम मोबाइल कम्युनिकेशन चीनी वेंडर्स ही चलाते हैं. इसलिए 60 प्रतिशत मोबाइल नेटवर्क पर सीधा खतरा है. यदि एक बार यह धराशाई हो गया, तो बाकी 40 प्रतिशत पर इसका बोझ पड़ेगा. इस वजह से सारा मोबाइल कम्युनिकेशन नेटवर्क ठप्प पड़ जाएगा. सरकार के पास इससे उबरने का कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं है. यानि, देश के जीपीएस नेटवर्क में थोड़ी सी भी खराबी आती है, तो सारे कम्युनिकेशन नेटवर्क का अचानक भट्ठा बैठ जाएगा.

1963 में ही सीआईए ने कहा था, चीन का अगला हमला वाया बर्मा
अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने 1962 के युद्ध के बाद ही यह कह दिया था कि भविष्य में चीन बर्मा (म्यांमार) के रास्ते भारत पर हमला करेगा. आज सीआईए की वह रिपोर्ट सच साबित हो रही है. सीआईए ने यह भी कहा था कि चीन अगले युद्ध का मुहाना बर्मा, तिब्बत और नेपाल के रास्ते खोलेगा. आप जानते हैं कि अक्टूबर 1962 में चीन ने लद्दाख और नेफा (नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी), जो आज अरुणाचल प्रदेश है, के रास्ते भारत में घुसपैठ की थी और एक महीने के बाद ही एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी थी. जनवरी 1963 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने चीन की धूर्तता के सारे आयामों की सूक्ष्मता से जांच-पड़ताल की थी.

मई 1963 में सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) और यूएसआईबी (यूनाइटेड स्टेट इंटेलिजेंस बोर्ड) की साझा गोपनीय रिपोर्ट में बताया गया था कि चीन बर्मा की तरफ से हमला करेगा और बर्मा उससे इन्कार नहीं कर पाएगा, यहां तक कि बर्मा की रजामंदी से चीनी सैनिक बर्मा के एयरफील्ड और परिवहन व्यवस्था का भी इस्तेमाल करेंगे. सीआईए ने बर्मा के रास्ते होने वाले संभावित हमले के रूट भी बताए थे और कहा था कि चीनी सैनिक कुनमिंग-डिब्रूगढ़ रोड पर लेडो से और कुनमिंग-तेजपुर रोड पर मंडाले और इंफल के रास्ते प्रवेश करेंगे.

हालांकि सीआईए रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि भारत पर चीन की तरफ से हवाई हमले का खतरा उतना नहीं होगा, क्योंकि हिमालयन रेंज में चीन के समुचित एयर बेस नहीं हैं. सीआईए के तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर रे क्लाइन ने उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति और भारत के मित्र रहे जॉन एफ कैनेडी के विशेष सचिव मैकजॉर्ज बंडी को यह रिपोर्ट सौंपी थी और भारत के खिलाफ चीन के षडयंत्रों का विस्तृत ब्यौरा पेश किया था. 55 साल बाद आज सीआईए की उस रिपोर्ट का औचित्य और उसकी प्रासंगिकता समझ में आ रही है.

भारतीय सेना को ब्रह्मोस के ब्रह्मास्त्र का भरोसा
चीन के कारण अरुणाचल प्रदेश की शांत सुंदर वादियों में भारतीय सेना को ब्रह्मोस जैसी खतरनाक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलें तैनात करनी पड़ रही हैं. केंद्र की मंजूरी के बाद भारतीय सेना के 40वीं आर्टिलरी डिवीजन के 864 रेजीमेंट ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग से लेकर विजयनगर क्षेत्र तक ब्रह्मोस ब्लॉक-3 क्रूज मिसाइलें तैनात करने का काम तेज कर दिया है. आठ मई 2015 को ब्रह्मोस मिसाइल के कामयाब परीक्षण के बाद वर्ष 2016 में ही केंद्र सरकार ने इसकी तैनाती की मंजूरी दे दी थी.

यह मिसाइल पर्वत क्षेत्र में युद्ध के लिए सटीक मार करने वाली मिसाइल मानी जाती है. ब्रह्मोस को चीन के डॉन्गफेंग-21डी बैलिस्टिक मिसाइल की कारगर काट माना जाता है. ब्रह्मोस मिसाइल की कारगर मारक क्षमता पांच सौ किलोमीटर तक है, लेकिन ‘मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम’ (एमटीसीआर) संधि के कारण इसकी मारक क्षमता को 290 किलोमीटर तक बांधा गया है. विडंबना यह है कि एमटीसीआर संधि से जुड़े 35 देशों में भारत शामिल है, लेकिन चीन इसमें शामिल नहीं है.

भारतीय नौसेना के 10 युद्धपोतों पर ब्रह्मोस मिसाइलें तैनात कर दी गई हैं. अन्य युद्धपोतों पर इस मिसाइल सिस्टम को सुसज्जित करने का काम चल रहा है. वायुसेना के सुखोई-30 विमानों को ब्रह्मोस मिसाइलें फायर करने में सक्षम बनाने का काम अब पूरा होने वाला है. अरुणाचल प्रदेश के तेजपुर स्थित वायुसेना बेस पर ब्रह्मोस मिसाइलों से सुसज्जित सुखोई-30 विमानों के दो स्न्वाड्रन तैयार रहेंगे. उधर, चीन भी अपनी सामरिक तैयारियों में जुटा हुआ है. चीन ने इसी महीने विमानवाही युद्धपोत सीवी-17 शानडॉन्ग को चीनी नौसेना को सुपुर्द किया. 23 अप्रैल को चीनी नौसेना के 68वें सालगिरह पर उसे यह तोहफा
दिया गया.

ल्हासा से नेपाल के रास्ते भारत को घेरेगा चीन
चीन नेपाल के रास्ते से भी भारत को घेरने की तैयारी लंबे अर्से से कर रहा है. चीन से नेपाल तक हिमालय को काटकर बनाए गए ‘द फ्रेंडशिप हाइ-वे’ ने चीनी सेना के लिए रास्ता आसान कर दिया है. अब चीन से नेपाल तक हिमालय के अंदर सुरंग खोद कर रेलवे लाइन बिछाने का काम चल रहा है. ‘द फ्रेंडशिप हाइ-वे’ तिब्बत के ल्हासा से हिमालय के बीच से होता हुआ झांगमू और नेपाल के कोडारी तक पहुंचता है.

सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से बनाई गई यह सड़क हिमालय से भारत की तरफ बहने वाली सारी प्रमुख नदियों गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, अरुण, कोशी और यहां तक कि हिमालय पर्वत श्रृंखला की पवित्र चोटी कैलाश और पवित्र मानसरोवर झील को छूती और काटती हुई चलती है. नेपाल के कोडारी तक आने वाली यह सड़क आगे भी अरनिको राजमार्ग के नाम से काठमांडू तक पहुंचती है. हिमालय को काट-काट कर बनाया गया यह हाई-वे 5,476 किलोमीटर यानि 3,403 मील का रास्ता तय करता है.

भारत पर हमले के एक साल पहले ही, यानि, 1961 से ही चीन हिमालय के इस क्षेत्र को काटकर सड़क ले जाने की कोशिश में लगा था. भारत-चीन युद्ध के एक साल बाद 1963 में चीन ने काठमांडू-कोडारी रोड बनाना शुरू कर दिया और 1967 में इसे आवागमन के लिए खोल भी दिया. चीन ने नेपाल से लगी अपनी सीमा पर कहीं भी सुरक्षा चौकी नहीं रखी है, केवल कोडारी रोड पर चीन का एक चेक-पोस्ट बना है. अब इसी रूट पर चीन ल्हासा से खासा (नेपाल सीमा पर स्थित) तक और काठमांडू तक रेलवे लाइन का निर्माण कर रहा है. वर्ष 2020 तक यह पूरा हो जाएगा.

अरुणाचल में फिर शुरू होगा भारत-अमेरिका का साझा अभियान, फिर खीझेगा चीन

दलाईलामा की अरुणाचल यात्रा से बौखलाए चीन के लिए और खीझने का समय आ रहा है, क्योंकि अरुणाचल प्रदेश में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लापता हुए चार सौ अमेरिकी वायु सैनिकों के शवों की खोजबीन का साझा अभियान जल्दी ही शुरू किए जाने की सुगबुगाहट है. सेना खुफिया एजेंसी के एक अफसर ने कहा कि लापता अमेरिकी सैनिकों के शव तलाशने का काम 2010 और 2011 में भी होना था, लेकिन अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन के विरोध के कारण तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अभियान स्थगित कर दिया था. लेकिन अब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और अपने मसलों पर अड़ियल रुख रखने वाले माने जाते हैं.

अब ट्रंप के कार्यकाल में उस अभियान को फिर से शुरू करने की पहल हो रही है, इस अभियान में भारतीय सैनिक भी शामिल रहेंगे. 400 अमेरिकी वायु सैनिक दूसरे विश्व युद्ध में असम और चीन के कनमिंग के बीच लॉजिस्टिक्स सप्लाई ऑपरेशन के दौरान विभिन्न हवाई दुर्घटनाओं में मारे गए थे. दूसरे विश्व युद्ध में चीन, भारत और बर्मा क्षेत्र सक्रिय ‘वार-जोन’ में था. युद्ध के दौरान कम से कम 500 वायुयान लापता हो गए थे, जिनका कुछ पता नहीं चल पाया. अमेरिका के खोजी क्लेयटन कुहेल्स ने वर्ष 2006 में इटानगर के उत्तर, वेलांग के दक्षिण, ऊपरी सियांग और कुछ अन्य जगहों पर करीब 19 विमानों के अवशेष पाए थे.

युद्ध के दौरान जो अमेरिकी सैनिक मारे गए थे, उनके परिवार के दबाव पर सैनिकों के अवशेष खोजने के लिए भारत और अमेरिका ने 2008 के अंत में ही संयुक्त तलाशी अभियान शुरू किया था. फिर अभियान बंद हो गया और ओबामा प्रशासन ने उसे स्थगित कर दिया. चीनी घुड़कियों के कारण अरुणाचल प्रदेश में भारत और अमेरिकी सेना का साझा सैन्य अभ्यास भी नहीं हो पाया था. लेकिन अब इसे फिर से आयोजित करने की पहल हो रही है. अरुणाचल प्रदेश में भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर का साझा सैन्य प्रशिक्षण का कार्यक्रम भी पाइप-लाइन में है.

उत्तराखंड में भी चीन ढूंढ़ रहा दरार 

दलाईलामा के अरुणाचल प्रदेश आगमन के दौरान या उनके स्वागत की तैयारियों के दौरान सीमाक्षेत्र पर चीनी सेना की सक्रियता दिखावा थी. असल में उसकी आड़ में वह बर्मा के रास्ते भारत में घुसने की तैयारी में था. इधर, उत्तराखंड भी चीनी घुसपैठ का आसान रास्ता बन रहा है. पिछले साल 19 जुलाई को उत्तराखंड के चमोली जिले में चीनी सेना की घुसपैठ की खबर आई थी. उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी कहा था कि उत्तराखंड की सीमा पर चीन की सक्रियता काफी बढ़ गई है.

इस बारे में केंद्र सरकार को औपचारिक जानकारी भी दे दी गई थी. सेना का कहना है कि चमोली जिले के बाराहोटी इलाके में चीनी सेना ने घुसपैठ की थी. चमोली के भी 80 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन अपना दावा करता है. दो वर्ष पहले चीनी सेना का हेलीकॉप्टर भी भारतीय वायुसीमा का अतिक्रमण कर चुका है. वर्ष 2013-14 में भी कई बार चीनी सैनिक चमोली में घुस कर पत्थरों पर चीन लिखकर चले गए थे. उत्तराखंड की करीब 350 किलोमीटर की सीमा चीन से मिलती है, लेकिन इसका औपचारिक सीमांकन अब तक नहीं हो पाया है.

पूर्वोत्तर का विकास सबसे अहम

सुरक्षा संवेदनशीलता को देखते हुए पूर्वोत्तर का समग्र विकास अत्यंत जरूरी है. अब तक की सरकारों ने पूर्वोत्तर को शेष भारत के साथ समाहित करने के बारे में गंभीरता से कभी ध्यान ही नहीं दिया. सेना की पूर्वी कमान में तैनात पूर्वोत्तर मामलों के विशेषज्ञ माने जाने वाले एक वरिष्ठ सेनाधिकारी ने यह चिंता जताई कि भारत सरकार ने गंभीरता से इस ओर ध्यान नहीं दिया तो पूर्वोत्तर भी कश्मीर बन जाएगा. इस क्षेत्र की सीमाएं चीन, म्यांमार, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल से मिलती हैं, इसलिए यह अधिक संवेदनशील है. हालांकि उन्होंने यह भी माना कि अब पूर्वोत्तर को लेकर सरकार की सोच और समझदारी में बदलाव आया है. लेकिन इस ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. केंद्र सरकार को पूर्वोत्तर के गंभीर भू-सामरिक (जीओ-स्ट्रैटेजिक) महत्व को समझना चाहिए और उस अनुरूप सारे दृष्टिकोणों से काम होना चाहिए.

पूर्वोत्तर के लोगों में अलग-थलग पड़ने की भावना गहरा रही थी, उसमें थोड़ी कमी आई है. लेकिन पूर्वोत्तर के लोगों के साथ शेष भारत में भेदभाव, पक्षपात, अन्याय, आर्थिक उपेक्षा, पहचान की समस्या, नस्ली हिंसा जैसी मुश्किलें न खड़ी हों, इसकी कारगर व्यवस्था की तरफ केंद्र सरकार उतना ध्यान नहीं दे रही है. पूर्वोत्तर के युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं मिल रहे. दूसरी तरफ क्षेत्र में विकास और संरचनात्मक विकास का अभाव उनमें असंतोष पैदा करता है. यही असंतोष उग्रवादी समूहों और हिंसक जातीय गुटों में परिवर्तित हो जाता है. पूर्वोत्तर को लेकर हुए एक अध्ययन के मुताबिक खास तौर पर असम को अवैध आप्रवासियों ने बहुत नुकसान पहुंचाया है. राज्य के 27 जिलों में से नौ जिले अवैध आप्रवासियों के वर्चस्व में हैं. विधानसभा की 126 सीटों में से 60 सीटों पर उनका प्रभुत्व कायम हो गया है. राज्य की वन्य भूमि पर किए गए अतिक्रमण में 85 प्रतिशत बांग्लादेशियों की भागीदारी है. जनसंख्या में अस्वाभाविक वृद्धि अवैध आप्रवास के कारण हुई है.

नगालैंड में भी बांग्लादेशी आप्रवासियों की तादाद बेतहाशा बढ़ी है. इससे स्थानीय लोगों में भय बढ़ा है और असुरक्षा के कारण गिरोहबंदी बढ़ी है. त्रिपुरा भी इसका उदाहरण है, जहां बांग्लादेशी शरणार्थियों के कारण त्रिपुरा के मूल लोगों की स्थानीय पहचान मिट गई. इसी का परिणाम है कि सैकड़ों उग्रवादी संगठन अस्तित्व में आ गए. मिजोरम में भी बाहरी-विरोधी भावनाएं विभिन्न छात्र आंदोलनों के रूप में दिखाई देती हैं. नगा लोग नगालिम के गठन के लिए असम और मणिपुर के क्षेत्रों को शामिल करने की मांग कर रहे हैं. मणिपुर की इरोम शर्मीला 17 साल तक भूख हड़ताल करती रहीं. पूर्वोत्तर के लोगों में सशस्त्र बलों के प्रति भी आक्रोश है. पूर्वोत्तर के लोग राजनीतिक उपेक्षा से परेशान हैं. पूर्वोत्तर में संसदीय सीटें बढ़नी चाहिए और विधानसभाओं में भी जन-प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर काम होना चाहिए.

अरुणाचल प्रदेश भारत-चीन विवाद में ही उलझा हुआ है. जबकि केंद्र सरकार को अरुणाचल प्रदेश के समग्र विकास पर ध्यान देना चाहिए. केवल अपना बताने से काम नहीं चलता, उसे विकास और समृद्धि के जरिए अपना बनना चाहिए. अरुणाचल में जल विद्युत और खनिज संपदा की अपार संभावनाएं हैं. चीन ने अरुणाचल राज्य की सीमा से लगे अपने इलाके में अनेक शहर बसाए हैं. वे इतने विकसित हैं कि अरुणाचल के लोगों को वे चीनी शहर लुभाते हैं. यह हकीकत है. पूर्वोत्तर को भारत विरोधी संगठन भी अपना अड्डा मानते हैं. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी पूर्वोत्तर को अपना सुरक्षित ठिकाना मानती है. भारत और बांग्लादेश के बीच 4096 किलोमीटर लम्बी सीमा पर सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है. इस वजह से भारतीय क्षेत्र में जनसंख्या का स्वरूप ही बदलता चला जा रहा है.

पाकिस्तान के लिए चीनी सैनिक बना रहे बंकर

बाड़मेड़ सेक्टर में पाकिस्तानी सीमा की तरफ से जो पुख्ता बंकर बन रहे हैं, वे चीनी सैनिकों द्वारा बनाए जा रहे हैं. चीन के विशेषज्ञ सैनिकों की मदद से ही लंबे सीमा क्षेत्र में पाकिस्तान बंकरों का जाल बिछा रहा है. भारतीय सेना का कहना है कि पाकिस्तान की तरफ ठोस बंकरों के अलावा हथियारों के कोत, हेलीपैड, पक्की सड़कें, पानी टंकियां, चौकियां और दूसरे कई ढांचे तैयार किए जा रहे हैं. जैसलमेर के किशनगढ़ बल्ज और शाहगढ़ बल्ज क्षेत्र के सामने सीमा पार डेटका टोबा, हरंगवाला, सखीरेवालाखू, डंगाऊ तक, बचोल, जमेश्र्वरी, चुरुनपढ़, कुल फकीर इलाकों में पक्के बंकर बनते देखे गए हैं. सेना ने दूरबीन कैमरे से उन बंकरों की तस्वीरें भी खींची हैं. तस्वीरों में चीनी सैनिकों को काम करते और कराते देखा जा सकता है. प

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