जर्मनी की चांसलन ऐंजेला मर्केल की तीन दिवसीय भारत यात्रा व्यापक सहयोग के आश्वासन के साथ समाप्त हुई. यदि साझा सहयोग की इस नई राह पर दोनों देश चल सके तो दोनों देशों के बीच का आर्थिक सहयोग 15 साल के चरम पर पहुंच जायेगा. मर्केल की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 18 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.
जिसमें से अधिकांश उन क्षेत्रों से संबंधित हैं जिन पर दोनों देश लंबे समय से काम कर रहे हैं, उनमें सुरक्षा, व्यापार एवं निवेश, निर्माण क्षेत्र में साझेदारी, कौशल निर्माण, स्वच्छ ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर, इनोवेशन एवं शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं. चांसलर ऐंजेला मर्केल भारत में जर्मनी के लिए कारोबार के अवसर बढ़ाने के स्पष्ट उद्देश्य के साथ भारत आई थीं. इसलिए उन्होंने भारत के तकनीक केंद्र बेंगलुरू का दौरा किया. वह अपने इस उद्देश्य में सफल हुईं.
एंजेला मर्केल के साथ बातचीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, हम जर्मनी को भारत के आर्थिक परिवर्तन में अपना स्वाभाविक सहयोगी समझते हैं. जर्मनी की क्षमता और भारत की प्राथमिकताएं एक दूसरे से जुड़ी हैं. यूरोपीय संघ में इस वक्त जर्मनी की हैसियत समूह के स्वाभाविक नेता की है. ऐसे में जर्मनी से कारोबारी संबंध बढ़ने से पूरे यूरोपीय बाजार से भारत की निकटता बढ़ेगी.
इससे भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते पर रुकी हुई बातचीत भी आगे बढ़ेगी. राजनीतिक या कूटनीतिक मोर्चे पर भारत और जर्मनी में नज़दीकी का एक बड़ा कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए दोनों देशों का साझा अभियान है. दोनों ही देश सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिए जी-4 के मसौदे पर काम करने के लिए एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं.
मर्केल की भारत यात्रा के दौरान जर्मनी का भारत के स्वच्छ ऊर्जा के लिए क्लीन एनर्जी कॉरीडोर और सोलर योजनाओं के विकास के संबंध में 2.25 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश का अहम समझौता हुआ है. भारत की पेरिस में होने ग्लोबल क्लाइमेट चेंज मीट(सीओपी-21) के मद्देनज़र कार्बन उत्सर्जन स्तर कम करने की योजना है. जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र निर्धारित लक्ष्यों को इस तरह के सहयोग के बिना भारत पूरा नहीं कर सकता है.
इस समझौते के अंतर्गत जर्मन कंपनियों के लिए लाइसेंस पाने की प्रक्रिया को तेज करने भी शामिल है. जर्मनी भारत में निवेश करने वाला आठवां सबसे बड़ा देश है. वर्ष 1991 से फरवरी 2015 तक जर्मनी भारत में 8.25 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश कर चुका है, जबकि साल 2014 में भारत में जर्मनी ने 1.15 बिलियन अमेरिका डॉलर का निवेश किया है. वर्तमान में तकरीबन 1600 इंडो-जर्मन कॉलेबोरेशन पर काम चल रहा है, जबकि 600 से ज्यादा साझा संस्थान कार्यरत हैं.
इसके साथ-साथ पिछले कुछ वर्षों में जर्मनी में भारतीय निवेश में भी वृद्धि दर्ज की गई है. भारतीय संस्थानों ने यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. इसका सीधा सा मतलब है कि दोनों देश एक दूसरे पर परस्पर निर्भर हैं. दोनों देशों की आवश्यकताएं भले ही अलग-अलग हैं जैसे कि जर्मनी को बड़ी मशीने बनाने में महारथ हासिल है भारतीय आईटी उद्योग उन मशीनों को आधुनिक तकनीक से चलाने में सहयोग कर रहा है. मर्केल की बंगलूरू यात्रा भी इस नजरिये से महत्वपूर्ण है. दोनों देश आपसी सहयोग से तेज गति से आगे बढ़ सकते हैं.
दोनों देशों के बीच साल 2001 में स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप की शुरूआत हुई थी. जो कि इंटर-गवर्नमेंटल कंसल्टेशन(आईजीसी) (अंतर-सरकारी परामर्शों की प्रणाली) के दो दौर की वार्ता के बाद और मजबूत हुई है. मर्केल की इस यात्रा के दौरान आजीसी की तीसरी वार्ता संपन्न हुई. जबकि इससे पहले साल 2011 में आईजीसी वार्ता नई दिल्ली में और साल 2013 में बर्लिन में आयोजित हो चुकी है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर वार्ता के लिए कई संस्थागत प्रबंध हैं.
अंतर-सरकारी परामर्शों की प्रणाली निश्चित तौर पर अनूठी है. और, इससे दोनों देशों के बीच संबंधों का हर तरह से विकास हुआ है. भारत अपने आर्थिक रूपान्तनरण के सपने को पूरा करने में जर्मनी को एक स्वाभाविक सहभागी के रूप में देखता है. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जर्मन अभियांत्रिकी तथा भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कौशल अगली पीढ़ी के उद्योगों का सृजन कर सकते हैं, जो कि अधिक सक्षम, किफ़ायती तथा पर्यावरण अनुकूल होगा.
कौशल निर्माण, शिक्षा, रक्षा और निर्माण क्षेत्र में इस तरह के सहयोग मोदी सरकार वरीयता में है. इसकी झलक जर्मनी और भारत के बीच हुए समझौतों में दिखाई दी. मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी योजनाओं को लेकर जर्मनी खासा उत्साहित है. इसीलिए कि चांसलर मर्केल का भी एक डिजिटल एजेंडा है, जिसे वहां 4.0 के नाम से जाना जाता है. उसके तहत जर्मनी डिजिटल तकनीक अपने कारोबार में विस्तार चाहता है. भारत उसमें सहायक बन सकता है.
भारत को आधुनिक तकनीक और निवेश की जरूरत है, जबकि जर्मनी को आईटी में कुशल कर्मियों और बाजार की. यानी जर्मनी और भारत एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा करते हुए विकास के अपने मकसदों को पाने की स्थिति में हैं. मर्केल की इस यात्रा के दौरान इसी दिशा में समझौतों को अंतिम रूप देने की कोशिश हुई है. यह मोदी और मर्केल के बीच बनी केमेस्ट्री का प्रमाण है. मर्केल की यात्रा का मकसद भारत में जर्मन कंपनियों के कारोबार की राह आसान बनाना था.
अब उन जर्मन कंपनियों की परियोजनाओं को तेजी से हरी झंडी मिलेगी. इस तरह से वे प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडिया कार्यक्रम में सकारात्मक भूमिका निभा सकेंगी. जर्मन कंपनियों के लिए फास्ट-ट्रैक मंजूरी प्रक्रिया पर समझौते के तहत जर्मन कंपनियों को परियोजनाओं के लिए सिंगल विंडो अप्रूवल दिया जाएगा. दोनों देश आतंकवाद और उग्रवाद के बढ़ते खतरे और इनकी वैश्विक की चुनौतियों से निपटने के उद्देश्य से सामूहिक सहयोग के लिए सहमत हैं.
दोनों देशों ने आतंकवाद निरोधक कार्रवाई पर संयुक्त कार्यसमूह की बैठकें आयोजित करने का फैसला किया है. इसके अलावा स्विस कंपनी नस्ले के उत्पाद मैगी के हालिया विवाद के बाद फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड के क्षेत्र में सहयोग का निर्णय भी मर्केल-मोदी के बीच की बैठक में लिया गया. जर्मन भाषा को भारत में एक विदेशी भाषा के तौर पर और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जर्मनी में प्रचार के संबंध में मानव संसाधन विकास मंत्रालय और जर्मनी के संघीय विदेश कार्यालय के बीच एक संयुक्त सहमति घोषणापत्र पर दस्तखत किये गये. इस करार को भारत में जर्मन भाषा विवाद के समाधान के तौर पर देखा जा रहा है.
अप्रैल 2015 में मोदी की जर्मनी यात्रा के बाद स्मार्ट सिटीज़, स्वच्छ गंगा तथा अपशिष्ट प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में जर्मन सहयोग ने एक ठोस आकार ले लिया है. मोदी की जर्मनी यात्रा के तकीरबन छह महीने बाद ही भारत आना मर्केल की प्राथमिकताओं में भारत के बढ़े महत्व को इंगित करता है. मर्केल की यात्रा के बाद यह तय है कि इसके बाद दोनों देशों के रिश्तों मेंऔर घनिष्ठता आएगी.