वर्तमान चुनाव में भाजपा जिस तरह से खुलकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के उपर आ गई है ! और सबसे अधिक उनके नेतृत्व वाले लोगों में से नंबर एक नरेंद्र मोदी और नंबर दो पर अमित शाह को देखकर मुझे यह पोस्ट लिखने की प्रेरणा हुई है !
मेरी तरफ से संघ के साथ जो कुछ संबंध थे, उसके बारे में मैं कन्फेशन के लिए यह पोस्ट लिखने के लिए मजबूर हुआ हूँ ! मै जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान सिर्फ बीस साल की उम्र में शामिल था ! और 23 वे साल की उम्र में आपातकाल के कारण जेल भी गया हूँ ( 1976 ! ) उसके पहले मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों ने, आपातकाल में भूमिगत रहने के लिए, काफी मदद की है ! और मेरे खाने पीने से लेकर रहने तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं को उदारता से देने का प्रयास किया है !
और बारह वर्ष की उम्र में मेरे सार्वजनिक जीवन कि शुरुआत भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाने से ही हुई है ! एक तरह से मैंने कुछ समय ही सही लेकिन संघ का नमक खाया है !
और संघ के फासिस्ट रुप का पहला परिचय आपातकालीन परिस्थिति में जेल में रहते हुए, श्रीमती इंदिरा गांधी के बीस कलमी कार्यक्रम को अमल मे लाने के लिए, जेल से बाहर निकालने के लिए माफीनामा लिखकर देने की कृति ! वह भी एक स्टॅटेजी के नाम पर ! और हमारा जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के साथ कुछ भी संबंध नहीं है ! जैसी झुठी बात अंडरटेकिंग करके लिखकर देने की कृति ! हूबहू 65 साल पहले बैरिस्टर सावरकर ने अंग्रेजो के लिए (1911) “मै विनायक दामोदर सावरकर मेरे से प्रभावित, भटके हुए, नौजवानों को महामहिम ब्रिटेन की महारानी के साम्राज्य को मजबूत करने के लिए, मुझे जेल से बाहर निकाल कर देखिये ! मैं ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत करने के लिए क्या नही करुंगा ?” जैसे आधा दर्जन से अधिक माफी मांगने के पत्र सावरकर के मिले हैं !
और आपातकाल के दौरान संघ प्रमुख बालासाहब देवरस के हस्ताक्षर से, यह पत्राचार देखकर मुझे जेल में, संघ के लोगों का पाखंड का परिचय हुआ ! और मेरे मन में संघ के लोगो के प्रति घृणा होती गई ! एक तरह से दोगलापन लगा ! और यह लोग स्ट्रॅटेजी के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं ! और महात्मा गाँधी की हत्या भी इन्ही लोगों ने की होगी ऐसी धारणा पक्की होती गई !
जनता पार्टी के शासनकालमें (1977-80) इनके दोगलापन को, मैंने अपने आंखों से नानाजी देशमुख तथा वसंत भागवत जैसे उनके नेताओं से, विदर्भ की लोकसभा की सीटों के बटवारे को लेकर, तो मेरा झगड़ा तक हो गया था ! और संघ के सर्वोच्च पदाधिकारी हो या साधारण स्वयंसेवक यह मनुष्य नही शाखाओं से निकले हूए रोबोट है ! और जैसा पोग्राम सेट किया है ! वैसे ही यह लोग भी व्यवहार करते हैं ! सबसे ज्यादा भ्रम दूर होना शुरु हो गया था !
जो बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात के दंगों के समय नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए ! मुझे भारतीय दंगों के इतिहास का पहला राज्य पुरस्कृत दंगा दिखाई दिया है ! अगर मेरे ऊपर इस बात को लेकर कोई कानूनी कार्रवाई होती है ! तो मुझे बहुत खुशी होगी ! मेरे पास जो पांच किलो से भी अधिक वजन की फाईलें, मरने के पहले, अहमदाबाद से विमान पकडकर सिर्फ यह पेपर्स देने के लिए, हमारे सोशलिस्ट पत्रकारों मे से एक दिगंतभाई ओझा नागपुर मेरे पास आए थे ! और उसके बाद मुजफ्फरनगर, मेरठ के दंगों की हरकतें ! और पुलवामा !!
और नांदेड़, पाटबंधारे नगर स्थित, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक राजकोंडावार के घर में चल रहा बमों का कारखाना ! और उसमे तकनीकी गड़बड़ी की वजह से हुआ बमविस्फोट!जिसमें राजकोंडावार का नरेश नामका तरुण लडके के शरीर के चिथड़े – चिथड़े हो गए थे ! (6 अप्रैल 2006 के दिन ) तथा उससे ध्यान भटकाने के लिए, दो महीने के भीतर ही (1 जून 2006 की रात को नागपुर के संघ के पुराने संघ बिल्डिंग महल में तीन बजे तथाकथित फिदायीन हमला !) तथा उसके बाद 2006 और 2008 के मालेगांव बमविस्फोट ! जिनकी जांच मैंने मेरे पत्रकार मित्र प्रफुल्ल बिडवाई के आग्रह के कारण ही कि थी ! और मेरे मन में कोई शक नहीं बचा ! की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश में सांप्रदायिक ध्रुविकरण करने के लिए कुछ भी कर सकता हैं !
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दुसरे सरसंघचालक श्री. माधव सदाशिव गोलवलकर (1940-73) को हिंदू महासभा के रहते हुए भी ! अपने खुद के कब्जे में रहने वाले एक राजनीतिक दल की आवश्यकता महसूस हुई ! और उन्होंने भारतीय जनसंघ नामके दल की स्थापना 1950 में की ! 1950 से 1977 के मई मतलब 27 सालों में जनसंघ को सिर्फ छह प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया था ! लेकिन 1963 के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैरकांग्रेसी राजनीतिक कदम से, शिवसेना से लेकर, मुस्लिम लीग और जनसंघ जैसे घोर सांप्रदायिक दलों के साथ भी गठजोड़ की वजह से ! जनसंघ शिवसेना तथा कुछ हदतक मुस्लिम लीग को भी लाभ हुआ है ! 1967 में संयुक्त विधायक दलों की सरकारों का प्रयोग किया गया ! और उसमे सबसे अधिक फायदा जनसंघ को मिला !
जो 1948 में महात्मा गांधी की हत्या की वजह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा अपने मुंह छुपाते थे ! जिन्हें डॉ. राम मनोहर लोहिया और उनके मृत्यु के बाद (1967), (1973-75) जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शामिल होने की वजह से संघ – जनसंघ को प्रतिष्ठित होने के लिए बहुत बडा मौका मिला ! और आपातकाल और उसके बाद हुए चुनाव के पहले 1977 में जयप्रकाश नारायण ने आग्रह किया, कि केंद्र की कांग्रेस सरकार को हटाने के लिए, सभी गैरकांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर एक दल और एक चुनाव चिन्ह लेकर, 1977 का चुनाव लडना चाहिए ! और इस कारण सोशलिस्ट पार्टी, संगठन कांग्रेस, जनसंघ, चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांती दल तथा जगजीवन राम के और एच. एन. बहुगुणा के दलों को मिलाकर जनता पार्टी की स्थापना दिल्ली के प्रगति मैदान में ( 1मई 1977 ) की गई थी !
और जनता पार्टी ने कांग्रेस को उत्तर भारत के क्षेत्र में जबरदस्त टक्कर देते हुए ! प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर, उनके पुत्र संजय गांधी तक चुनाव हार गए थे ! लेकिन जनसंघ तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दोहरी सदस्यता को लेकर सर्वप्रथम चौधरी चरण सिंह ने मुरारजी देसाई को सालभर के पहले ही संघ जनता पार्टी के रोजमर्रे के काम में हस्तक्षेप करने की तकरार लिखि थी ! लेकिन मोरारजी भाई ने उसे अनदेखी की ! और मधु लिमये तथा जॉर्ज फर्नाडिस ने मिल कर, जनता पार्टी की सरकार को गिराने के बाद, पुराने जनसंघ के लोगों ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की ! और यह पार्टी अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए कभी गोहत्या बंदी का आंदोलन तो कभी स्थानीय धार्मिक स्थलों को लेकर उदाहरण के लिए 1985 – 86 में शाहबानो के तलाक के मुद्दे के बाद, “सवाल आस्थाओं का है ! कानून का नही ! ” यह नारा लपक कर, उसके इर्द-गिर्द बाबरी मस्जिद – राममंदिर के आंदोलन को हवा दी ! और उसी दौरान दूरदर्शन पर रामानंद सागर का रामायण धारावाहिक चल रहा था ! उसके बाद भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से रथयात्राओ की राजनीति शुरू की !
और उसी शिलापूजा यात्रा के दौरान 24 अक्तुबर 1989 को, भागलपुर का दंगा किया गया ! जिसे देखकर मुझे लगा कि “आनेवाले पचास वर्षों की भारतीय राजनीति का केंद्र बिंदु सिर्फ सांम्प्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही रहेगा !” जिसे मैंने लिखा और कम-से-कम सौ से अधिक जगहों पर बोलते हुए कहा! “कि हमारे रोजमर्रे के सवालों को लेकर चल रहे सभी आंदोलन, विस्थापन, रोजगार, किसान, मजदूरों से लेकर दलितों तथा आदिवासियों के आंदोलन, धार्मिक ध्रुवीकरण के सामने टिक नहीं पाएंगे ! और संपूर्ण राजनीति सिर्फ सांम्प्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही घुमेगी !” 1990-2000 के एक दशक तक, मैंने यह बात कहने की कोशिश की थी ! लेकिन पता नहीं, शायद मेरी अभिव्यक्ति का तरीका गलत था ! या मै अत्यंत प्रभावित रुप से अपनी बात नहीं कह सका, क्योंकि सुनने पढ़ने वाले सभी लोग सार्वजनिक क्षेत्र के बहुत ही जुझारू और ईमानदार लोग थे ! लेकिन आज पच्चीस साल के पश्चात देख कर, क्या नजारा देखने को मिल रहा है ? नरेंद्र मोदी के लिए पहले ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए जमीन तैयार करने की सब से बड़ी भूमिका लालकृष्ण आडवाणी ने निभाई है ! इसिलिये नरेंद्र मोदी ने उन्हें भारतरत्न पुरस्कार से सम्मानित किया है ! अन्यथा लालकृष्ण अडवाणी का और क्या योगदान है ? नरेंद्र मोदी तो सिर्फ उनके पहले वाले लोगों ने बोई हुई लहलहाती फसल को काट रहे हैं !
और उसके तीन साल बाद 6 दिसंबर 1992 के दिन बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया ! और लगातार मंदिर वहीं बनाएंगे के इर्द-गिर्द पैंतिस सालों से, तथाकथित आंदोलन करते हुए ! 2001 के 27 फरवरी को अयोध्या से वापस जाने वाले कारसेवकों से लदी हुई रेल ‘साबरमती एक्सप्रेस’ में गोधरा स्टेशन पर आग में 59 लोगों की जलकर मृत्यु होने की खबर सुनकर ही नरेंद्र मोदी, गांधीनगर से दो सौ किलोमीटर दूर स्थित गोधरा दौड़कर गए ! और गोधरा की कलक्टर जयती रवी की देखरेख में गोधरा स्टेशन पर जली हुई लाशों का पोस्टमार्टम रोककर, 59 अधजली लाशों को विश्व हिंदू परिषद के गुजरात प्रदेश के अध्यक्ष के कब्जे खुले ट्रकों पर चढा कर अहमदाबाद के सड़कों पर जुलूस निकाला गया ! जिसने लोगों में मुसलमानों के खिलाफ भड़काने में सब से बड़ी भूमिका अदा की है !
और गुजरात में भिषण दंगा होने के लिए पुलिस – प्रशासन को मंत्रीमंडल की बैठक में नरेंद्र मोदी ने एक मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए ! खुली छूट देने का कहा ! और यह बात सुनने वाले दो पुलिस अफसरों ने कहा है ! और हरेन पंड्या नामके मंत्री ने जस्टिस कृष्ण अय्यर कमेटी को भी शपथ लेकर कहा कि “नरेंद्र मोदी ने कॅबिनेट की बैठक में शामिल सभी मंत्रियों तथा पुलिस – प्रशासन के कर्मचारियों को कल गुजरात में जो भी कुछ प्रतिक्रिया हिंदू धर्म के लोगों के द्वारा होगी उन्हें कोई भी नहीं रोकेगा !” और बिल्कुल वही हुआ ! और नरेंद्र मोदी ने 28 फरवरी को खुद सेना भेजने के लिए केंद्र को चिट्ठी भी लिखी थी ! और केंद्र ने जोधपुर से 3000 मिलिटरी सैनिकों को साठ हवाई जहाज की खेपों में अहमदाबाद के एअरपोर्ट पर, 28 फरवरी की श्याम से ही लेफ्टनंट जनरल जमिरुद्दीन शाह के नेतृत्व में, उतारी गई थीं ! लेकिन स्थानीय प्रशासन ने हमारे सेना के जवानों को लॉजिस्टिक देने के लिए टाल-मटोल किया ! यह किसके कहने पर स्थानीय प्रशासन असहयोग कर रहे थे ? किसी भी जांच आयोग ने इस बात का सज्ञान क्यों नहीं लिया ? और उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भेजे गए एस आईटी ने भी इस मामले की और क्यों ध्यान नहीं दिया ? अगर इन सब पहलुओं पर ठिक से कारवाई की गई होती, तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की जगह जेल में बंद रहे होते ! आज नरेंद्र मोदी अपने आप को सर्वोच्च न्यायालय ने क्लिनचिट देने का दावा कैसे कर रहे हैं ?
लेफ्टनंट जनरल जमिरुद्दीन शाह रात के दो बजे, अपने साथ लाए जिप्सी से, गांधीनगर के मुख्यमंत्री आवास पर पहुंच कर, देखा कि भारत के तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नाडिस और नरेंद्र मोदी खाना खा रहे थे ! तो जॉर्ज फर्नांडिस ने खुद उठकर लेफ्टनंट जनरल जमिरुद्दीन शाह से हस्तांदोलन करते हुए, कहा कि “जनरल साहब आप गुजरात को बचाने के लिए मदद किजिए !” तो जमिरुद्दीन शाह ने कहा कि “हमारे 3000 जवान श्याम से ही अहमदाबाद एअरपोर्ट पर पहुंच गए हैं ! लेकिन हमे गुजरात सरकार के किसी भी जिम्मेदार अधिकारियों ने हमारे फोन का जवाब नहीं दिया ! इस कारण मुझे अभी इतनी देर रात को, लोकल गाईड और ड्राइवर की मदद से, मुख्यमंत्री के आवास तक आना पड़ा है ! हमने हमारे फ्लाईट से ही देखा, कि पूरे गुजरात में दंगे की आग लगी हुई है ! मुख्यमंत्रीजी को कहिए की हमे लॉजिस्टिक दिए जाए !
और जॉर्ज फर्नाडिस ने जमिरुद्दीन शाह के सामने नरेंद्र मोदी को लॉजिस्टिक देने के लिए कहा ! लेकिन उसके बावजूद और दो दिनों तक हमारे देश की सेना अहमदाबाद के एअरपोर्ट पर पडी रही ! इसका क्या मतलब है ? भाजपा के लोग सेना के बारे में हमेशा कहते रहते हैं, कि हमारी सेना का मॉरल डाऊन नही करना चाहिए ! तो नरेंद्र मोदी एक तरफ मुख्यमंत्री के नाते गुजरात के दंगों को रोकने के लिए, भारत सरकार को पत्र लिखकर सेना भेजने के लिए कहना ! और दुसरे तरफ उसी सेना को अहमदाबाद एअरपोर्ट के भितर दो दिन तक पडे रहने देना ! क्या भारत की सेना के मॉरल के लिए बहुत अच्छा व्यवहार था ? और उसके बाद गुजरात में क्या हुआ था ? यह पूरे विश्व को मालूम है ! तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात के दंगों को देखने के बाद, नरेंद्र मोदी को कहाँ की “आपने राजधर्म का पालन नही किया !” और नरेंद्र मोदी की हाइट उन्होंने कहा कि साहब मैं वही तो कर रहा हूँ ! मतलब नरेंद्र मोदी कौन सा राजधर्म का पालन 27 फरवरी को गोधरा से 59 अधजली लाशों को खुले ट्रकों पर लादकर अहमदाबाद के सडकोपर 28 फरवरी को जुलूस निकालना और कॅबिनेट की बैठक में पुलिस – प्रशासन तथा अपने मंत्रियों को कलसे गुजरात में जो भी कुछ होगा उसे कोई भी नहीं रोकेगा ! क्या यह एक मुख्यमंत्री का राजधर्म का पालन करने का फैसला था ?
और उसी दंगे के बाद 44 इंच की बनियान पहनने वाले नरेंद्र मोदी की छाती 56 इंच होने, और ‘हिंदूहृदयसम्राट’ के रूप में अपने आपको प्रोजेक्ट करते हुए ! भारत के प्रधानमंत्री तक का सफर तय करना ! दस सालों के कार्यकाल में चंद धन्नासेठों की तिजोरियों के भरने के अलावा और कोई काम नहीं किया ! उल्टा तथाकथित चुनावी बॉंड के नामपर अपने दल को हजारों करोड़ रुपये का चंदा वसुलने के लिए, ईडी सीबीआई तथा रिजर्व बैंक से लेकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया तथा अन्य सरकारी बैंकों को जोर-जबरदस्ती से इस गोरखधंधा करने के लिए बाध्य किया है ! और सबसे हैरानी की बात जिनसे चंदा लिया गया उन्हें कैसे – कैसे कांट्रेक्ट दिए गए हैं ? यह बात सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद पता चल रही है !
यही बात मैं विगत 35 वर्षों से, भागलपुर दंगों का 1989 हाल देखकर बोल लिख रहा था ! लेकिन हमारे कई साथियों को अतिशयोक्ति लग रही थीं ! मैंने कहा था कि “आनेवाले 50 साल की भारतीय राजनीति के केंद्र में सिर्फ और सिर्फ साम्प्रदायिकता का मुद्दा रहेगा, और लोगों के रोजमर्रे के सवाल दोयम दर्जे के हो जाएंगे और कम-से-कम पच्चीस साल में हमारे बेरोजगारी,विस्थापन,शिक्षा,स्वास्थ,पर्यावरण,गैरबराबरी,महंगाई,महिलाओं तथा दलितोके,आदिवासियों के अन्याय अत्याचार सब कुछ दोयम दर्जे के मुद्दे हो जायेंगे ! और सिर्फ सांम्प्रदायिकता का मुद्दा रहेगा ! ” लेकिन उस समय हमारे मुद्दोको लेकर काम करने वाले किसी भी सथीको हम यह बात समझानेमे मैं नाकामयाब रहा हूँ ! इसका मुझे रह-रहकर अफसोस है !
जिस संघ परिवार ने आजादी की लड़ाई में भाग नहीं लिया ! सविंधान को स्वीकार नहीं किया! गरीबी,बेरोजगारी,आदिवासियों तथा दलितोके,मजदूरों तथा किसानो के बारे में कुछ भी नहीं किया ! लेकिन आज वही राजनीतक रुपसे हावी हो गये हैं ! और बेशर्मी का आलम यह है, कि वर्तमान प्रधानमंत्री अपने दस सालों के कार्यकाल पर उन्होंने प्रधानमंत्री की दो – दो पारीया पूरी करने के बावजूद ! उनके कार्यकाल में क्या काम किया ? इसपर एक शब्द से नहीं बोलते हुए ! अभी दस सालों से कांग्रेस सत्ता में नही रहते हुए ! हर चुनावी सभा में सिर्फ “कांग्रेस मुसलमानों को आपकी संपत्ति दे रही है !” जैसे ऊलजलूल बातें फैला रहे हैं ! और “आपकी पुश्तैनी संपत्ति को आपसे छिन रही है ! मतलब नरेंद्र मोदी ने मान लिया है, कि आने वाले चुनावों के बाद कांग्रेस सत्ता में आ रही है ! नरेंद्र मोदी अपने हर भाषण में उन्होंनें प्रधानमंत्री बनने के बाद क्या काम किया? यह कहना छोड़कर कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र तथा विरोधी दलों के नेताओं के खाने-पीने की बात, वह भी गलत तरीके से पेश कर रहे हैं ! जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के देश के प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता है !