रालोसपा ने सात सीटों की मांग लालू प्रसाद से की है. इन सीटों में काराकाट, आरा, जहानाबाद, जमुई, सीतामढ़ी, हाजीपुर और चतरा शामिल हैं. उपेंद्र कुशवाहा चाहते हैं कि तालमेल से पहले इन सीटों को लेकर ठोस आश्वासन लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की तरफ से मिल जाए. काराकाट और सीतामढ़ी रालोसपा की सीटिंग सीट है, जहां से उपेंद्र कुशवाहा और रामकुमार शर्मा चुनाव लड़ेंगे. इसके अलावा चतरा से नागमणि, जहानाबाद से इनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा, आरा से भगवान सिंह कुशवाहा, जमुई से भूदेव चौधरी और हाजीपुर से दशई चौधरी चुनावी अखाड़े में उतरने के लिए तैयार बैठे हैं. इंतजार बस राजद की हरी झंडी का हैः
लोकसभा चुनाव की नजदीक आती तारीखोंे ने सियासी दलों के दिलों की धड़कनें तेज कर दिया है. दोनों ही प्रमुख खेमों महागठबंधन और एनडीए में उहाफोह के हालात हैं. चुनावी तालमेल और सीटों के बंटवारे पर बयानों के तीर चल तो रहे हैं, पर निशाने पर कोई लग नहीं रहा है. हालांकि इस दौर में कुछ सियासी तीरंदाज ऐसे हैं, जो जानबूझकर तीर निशाने पर नहीं मार रहे हैं, इनका मकसद केवल सियासी हवा का रुख भांपना भर है, ताकि अंदाजा लग सके कि चुनाव में तीर मारना किधर है. अभी हाल में उपेंद्र कुशवाहा ने खीर वाला तीर चलाकर महागठबंधन और एनडीए दोनों ही खेेमों में हलचल मचा दिया. अपनी-अपनी सहुलियत के हिसाब से सभी दलों के नेताओं ने इसके मायने निकालने शुरू कर दिए. आखिरकार, उपेंद्र कुशवाहा को इस मामले में सफाई देनी पड़ी कि मेरा मतलब वह नहीं था जो आप समझ रहे हैं. कुशवाहा ने कहा कि मेरे खीर वाले बयान को किसी जाति या पार्टी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. मैंने राजद से ना दूध और ना ही भाजपा से चीनी मांगी. एनडीए एकजुट है, कोई विवाद नहीं है और 2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना ही लक्ष्य है.
गौरतलब है कि बीपी मंडल की जयंती के मौके पर राजेश यादव की अध्यक्षता वाले मंडल विचार मंच के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि ‘यदुवंशी का दूध और कुशवंशी का चावल मिल जाए, तो उत्तम खीर बन सकती है, किंतु खीर तभी स्वादिष्ट होगी जब इसमें छोटी जातियों और दबे-कुचले समाज का पंचमेवा भी पड़ जाएगा. यही सामाजिक न्याय की असली परिभाषा है.’ उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान को लेकर बिहार की राजनीति में कयासों का दौर फिर शुरू हो गया. कुशवाहा की यदुवंशी (यादव) और कुशवंशी (कोइरी) के एक होने की अपील के बाद राजद ने भी संकेत दे दिया है कि महागठबंधन को भी रालोसपा का इंतजार है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कुशवाहा की खीर का स्वागत करते हुए ट्वीट किया. संकेतों में उन्होंने यादवों और कोइरी की संभावित एकता के असर को स्पष्ट करते हुए खीर को बेहतर व्यंजन बताया. तेजस्वी ने कहा कि ‘स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की जरूरत है. पंचमेवा के स्वास्थवर्धक गुण न केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देता है. प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता, स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है.’
कुशवाहा का संकेत और तेजस्वी का संदेश
उल्लेखनीय है कि करीब दो महीने पहले कुशवाहा ने एम्स में इलाजरत लालू प्रसाद से मुलाकात की थी, जिसके बाद बिहार की राजनीति गर्म हो गई थी. इसके पहले, इफ्तार की दावत के दौरान भी राजग खेमे से उपेंद्र के गायब रहने पर कई तरह की चर्चाओं को बल मिला था. उपेंद्र कुशवाहा के शिक्षा सुधार समारोह में राजद नेताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर सनसनी फैला दी थी. इधर रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के खीर वाले बयान से राजद ने पर्दा उठाते हुए दावा किया है कि महागठबंधन में इनका आना तय है. राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि राजद में छोटे दल घुटन महसूस कर रहे हैं. सभी भागने के लिए छटपटा रहे हैं. चंद्रबाबू नायडू ने पहले ही साथ छोड़ दिया है. शिवसेना भी झटके दे चुकी है. अब बिहार की बारी है.
रघुवंश ने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि वे जो पहले कह देते हैं, बाद में वही होता है. बेशक रघुवंश बाबू जो बेवाक कह रहे हैं और उपेंद्र कुशवाहा और तेजस्वी यादव इशारों ही इशारों में कह रहे हैं, इसमें दम है. लेकिन इन बातों को जमीन पर उतारने में अभी बहुत सारे अगर-मगर का समाधान करना होगा. अगर नीतीश कुमार एनडीए में बने रहते हैं, जिसकी संभावना ज्यादा है, तो ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में बरकरार रहने की संभावना कम है. कांग्रेस अभी शांत पड़ी है, ऐसे में राजद के साथ सीटों का तालमेल ही उपेंद्र कुशवाहा के लिए अंतिम विकल्प बच जाता है.
इस बात को रालोसपा के सभी बड़े नेता भी बखूबी समझ रहे हैं. लेकिन दिक्कत सीटोें के बंटवारे को लेकर आ रही है. हमारे सूत्र बताते हैं कि रालोसपा ने सात सीटों की मांग लालू प्रसाद से की है. इन सीटों में काराकाट, आरा, जहानाबाद, जमुई, सीतामढ़ी, हाजीपुर और चतरा शामिल हैं. उपेंद्र कुशवाहा चाहते हैं कि तालमेल से पहले इन सीटों को लेकर ठोस आश्वासन लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की तरफ से मिल जाए. काराकाट और सीतामढ़ी रालोसपा की सीटिंग सीट है, जहां से उपेंद्र कुशवाहा और रामकुमार शर्मा चुनाव लड़ेंगे. इसके अलावा चतरा से नागमणि, जहानाबाद से इनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा, आरा से भगवान सिंह कुशवाहा, जमुई से भूदेव चौधरी और हाजीपुर से दशई चौधरी चुनावी अखाड़े में उतरने के लिए तैयार बैठे हैं. इंतजार बस राजद की हरी झंडी का है.
मोदी को हटाने के लिए भुजबल की मध्यस्थता
इधर राजद और रालोसपा के बीच तालमेल को लेकर जो बातचीत हो रही है, उसमें महाराष्ट्र के दिग्गज नेता छगन भुजबल भी शामिल हो गए हैं. भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार, छगन भुजबल ने दिल्ली में उपेंद्र कुशवाहा के साथ अपनी मुलाकात में साफ कह दिया कि अगर आप के दिल में मेेरे लिए कुछ सम्मान है, तो मोदी हटाओ अभियान का हिस्सा बन जाइए. लालू प्रसाद से मनमाकिफ सीट लेने की जिम्मेदारी भी भुजबल ने अपने कंधों पर ले ली है. लालू प्रसाद के कई दूतों की इस सिलसिले में छगन भुजबल से बातचीत भी हुई है और उम्मीद जताई जा रही है कि सीटों के पेंच को सुलझा लिया जाएगा. रालोसपा की ओर से लचीला रुख अपनाते हुए संकेत यह दिया गया है कि सीटों की संख्या तो सात ही रहेगी, हां एक-दो सीटों को बदला जा सकता है. दरअसल, राजद के रणनीतिकारों का मानना है कि उपेंद्र कुशवाहा को मनमुताबिक सीट देने से पहले जमीन पर कुशवाहा की ताकत को परख लेना हर लिहाज से ठीक होगा.
इसी को ध्यान में रखते हुए समता फुले परिषद के बैनर तले नंवबर में पटना के गांधी मैदान में कुशवाहा समाज की एक बड़ी रैली करने का कार्यक्रम तय किया जा रहा है. पटना के बाद इसी तरह की एक रैली राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली में भी की जाएगी. बताया जा रहा है कि छगन भुजबल ने इन दोनों ही रैलियों का जिम्मा लिया है, ताकि मोदी हटाओ अभियान को धार दिया जा सके. पटना की रैली में राजद का भी पूरा सहयोग रहेगा और कोशिश की जाएगी कि हर लिहाज से यह रैली ऐतिहासिक हो. अगर सब ठीक रहा तो इस दिन कुशवाहा और लालू की दोस्ती का ऐलान हो सकता है या फिर अगले साल दही चूड़ा के बाद इस तरह की घोषणा हो सकती है. पटना की रैली में उपेंद्र कुशवाहा की ताकत का आकलन करने के बाद ही सीटों की संख्या पर अंतिम मुहर लगेगी.
इसलिए निश्चिंत रहिए अभी फिलहाल न खीर बनेगी और न ही खिचड़ी. दरअसल छगन भुजबल और लालू प्रसाद पर जिस तरह से जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता जा रहा है, इससे ये दोनों नेता परेशान हैं. इन्हें लग रहा है कि बिना नरेंद्र मोदी को हटाए राहत मिलने वाली नहीं है. इसलिए लालू प्रसाद और छगन भुजबल दोनों इस समय तालमेल के लिए सक्रिय हैं. श्री भुजबल का दिल्ली प्रवास इस रणनीति को आगे बढ़ाने की कड़ी है. छगन भुजबल ने उपेंद्र कुशवाहा को आश्वस्त किया है कि सात सीटों का इनका दावा हर हाल में माना जाएगा.
एनडीए से मिली उपेक्षा ने बढ़ाई राजद से नज़दीकी
बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी उपेंद्र कुशवाहा की पहली प्राथमिकता है. लेकिन छगन भुजबल का मानना है कि लोकसभा चुनावों के बाद इन सब बातों को सोचना ठीक रहेगा. फिलहाल पहला लक्ष्य नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करना है. अगर बिहार और यूपी में मोदी पिछड़ गए, तो इनका दोबारा प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रह सकता है. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में अभी केवल रामकुमार शर्मा ही हैं, जो नीतीश कुमार का साथ चाहते हैं.
बाकी शीर्ष नेताओं की राय अलग है. नागमणि कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री बनाना मेरा सपना है और मुझे नहीं लगता है कि नीतीश कुमार ऐसा होने देंगे. अगर नीतीश कुमार उपेंद्र कुशवाहा को नेता मान लें, तो फिर दिक्कत कहां है. नागमणि कहते हैं कि कुशवाहा की ताकत को कम आंकना किसी के लिए भी बड़ी भूल होगी. इसलिए समय रहते नेताओं को इस ताकत को पहचान लेना चाहिए. प्रदेश और देश की राजनीति में कुशवाहा समाज ने अभी तक बहुत लोगों को बनाया है अब बारी कुशवाहा समाज के लोगों को नेता बनाने की है.
कुशवाहा समाज अपना हक लेना जानता है और समय आने पर हमारे विरोधी नेताओं को भी इसका अहसास हो जाएगा. रालोसपा के युवा नेता राजेश यादव कहते हैं कि हमलोग तो समाजिक न्याय के विचारधारा का पालन करने वाले लोग हैं. मंडल कमीशन की सभी अनुशंसाओं को लागू कराने का संकल्प हमलोगों ने ले रखा है. मंडल विचार मंच के संयोजक राजेश यादव कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा ही एक मात्र विकल्प है. आने वाले चुनावों में प्रदेश और देश को इस सच्चाई का पता चल जाएगा. जानकारों का कहना है कि हाल के राजनीतिक घटनाक्रम से रालोसपा और राजद के बीच तालमेल की संभावना काफी बढ़ी है और अगर एनडीए ने उपेक्षा जारी रखी, तो उपेंद्र कुशवाहा अपना तीर हवा में मारने के बजाय निशाने पर मारने से नहीं चूकेंगे.