मैं समझता हूं कि मीडिया को अपने लिए कुछ मानक स्थापित करने चाहिए, जो उसकी नीति, उसके कंटेंट, तथ्यों और कार्यान्वयन से जुड़े होने चाहिए. किसी की शैक्षणिक योग्यता जैसी वजह से या अन्य छोटे मुद्दों के लिए सरकार का उपहास करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. चाहे फिर स्मृति ईरानी हों या आप सरकार के मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर. मैं नहीं समझता कि शैक्षिक योग्यता एक सांसद या मंत्री के रूप में उनके प्रदर्शन के लिए प्रासंगिकता रखती है.
मौजूदा समय की सबसे बड़ी खबर नेपाल में आया भूकंप है. त्रासदी बहुत बड़ी है और मृतकों की संख्या का अभी तक अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन यह दस हज़ार से अधिक ही होगी. इस उप-महाद्वीप के लिए इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी? निकटतम पड़ोसी के रूप में भारत जो कुछ भी राहत सामग्री भेजने की कोशिश कर रहा है, उसके लिए हर कोई आभारी है. ऐसी आपदा के मौक़े पर प्रभावित लोगों की मदद के लिए हर देश, हर संस्था, हर संगठन को आगे आना चाहिए. मैं आश्वस्त हूं कि नेपाल के लोग इस त्रासदी से उबरेंगे और एक बार फिर उठ खड़े होंगे, जैसा कि वे 80 साल पहले आया भूकंप झेल कर आगे बढ़े थे. हमें आशा करनी चाहिए कि आने वाले समय में नेपाल फिर से आगे बढ़ेगा.
राज्यसभा में स्वामी रामदेव द्वारा एक दवा की बिक्री, जिसके बारे में माना जाता है कि वह बेटा पैदा करने के लिए इस्तेमाल की जाती है, पर सवाल उठा. इस दवा से बेटी की जगह बेटा पैदा होता है. यह हास्यास्पद और दु:खद है. देश में कई नीम हकीम काम कर रहे हैं, लेकिन बाबा रामदेव की स्थिति अलग है. वह सरकार के भरोसेमंद हैं, सरकार की गुडलिस्ट में हैं और वास्तव में भाजपा चुनाव के लिए उन पर निर्भर करती है. यह दु:खद होगा, यदि भारतीय जनता पार्टी ऐसी दवा का समर्थन करती है या ऐसी दवा की बिक्री पर चुप्पी साध लेती है. बाबा रामदेव ने सा़फ किया है कि यह दवा गर्भ धारण करने में अक्षम महिलाओं में निर्माण प्रक्रिया आरंभ करती है, बजाय पुरुष या महिला सेक्स का निर्धारण करने के. अब जो भी हो, हमारे देश में ऐसी चीजों के लिए कोई जगह नहीं हो सकती. जितनी जल्दी सरकार इस पर कार्रवाई करे, उतना ही बेहतर होगा.
एक अन्य विषय, जो थोड़ा हास्यास्पद है. अपने उत्साह में भारतीय जनता पार्टी सदस्य संख्या के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनना चाहती है. सदस्यों का दाखिला सुनिश्चित करने के लिए उसने कई फोन नंबर मुहैया कराए हैं, जिन पर मात्र मिस्ड कॉल करने से आप सदस्य बन जाएंगे. क्या इससे भी अधिक हास्यास्पद कुछ हो सकता है! एक मिस्ड कॉल के लिए पैसे की भी ज़रूरत नहीं है, तो कोई भी बिना सत्यापन के एक नंबर प्रेस कर सकता है. कल को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी यह दावा कर सकती है कि पूरी चीनी आबादी उसकी सदस्य है. फिर तब तो भाजपा सबसे बड़ी पार्टी नहीं बन सकती. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी रहेगी. भाजपा को लोकतंत्र का मज़ाक बनाना बंद कर देना चाहिए. ठीक है कि वह 282 सांसदों के साथ सत्ता में आ गई है, उसे अपना काम करना चाहिए और सबसे बड़ी पार्टी बनने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे वह फिर से सत्ता में आ सके. लेकिन, इसके लिए उसे ऐसा मज़ाकिया काम नहीं करना चाहिए, इससे कोई फायदा नहीं होगा. उसे गंभीरता से घर-घर, मुहल्ले-मुहल्ले जा कर लोगों से मिलकर अपनी विचारधारा समझानी चाहिए और तब गंभीरता से सदस्यों की भर्ती करनी चाहिए. स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस पार्टी ने ऐसा किया, लेकिन बाद में धीरे-धीरे यह सब कमज़ोर होता चला गया. अभी भाजपा सरकार में है. एक मौक़ा मिला है. उसे मेहनत से काम करना चाहिए, न कि ऐसी मिमिक्री की आवश्यकता है.
राज्यसभा में स्वामी रामदेव द्वारा एक दवा की बिक्री, जिसके बारे में माना जाता है कि वह बेटा पैदा करने के लिए इस्तेमाल की जाती है, पर सवाल उठा. इस दवा से बेटी की जगह बेटा पैदा होता है. यह हास्यास्पद और दु:खद है. देश में कई नीम हकीम काम कर रहे हैं, लेकिन बाबा रामदेव की स्थिति अलग है. वह सरकार के भरोसेमंद हैं, सरकार की गुडलिस्ट में हैं और वास्तव में भाजपा चुनाव के लिए उन पर निर्भर करती है. यह दु:खद होगा, यदि भारतीय जनता पार्टी ऐसी दवा का समर्थन करती है या ऐसी दवा की बिक्री पर चुप्पी साध लेती है.
किसी कारण से मीडिया लगातार अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार के खिला़फ लगातार लिख रहा है. सरकार दो महीने से सत्ता में है. उसने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे आलोचना हो, लेकिन फिर भी आलोचना हो रही है. आलोचना के कारण क्या हैं, इसे समझना कठिन है, लेकिन अनुमान लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है. मीडिया केजरीवाल के ़िखला़फ उतर गया है. केजरीवाल ने कुछ नए प्रतिमान स्थापित करने की कोशिश की. जैसे, बैंक खाते के ज़रिये पैसा इकट्ठा करना, पारदर्शिता आदि. ऐसे में, बजाय उनकी ग़लतियां सुधारने के मीडिया उनका मज़ाक बना रहा है, उनकी आलोचना कर रहा है. इस तरह से मीडिया कांग्रेस और भाजपा के अपारदर्शी तरीकों को प्रोत्साहित कर रहा है. असल में, मीडिया को पारदर्शिता की बात करनी चाहिए और इसलिए यह आलोचना बिल्कुल सही है कि मीडिया खुद ही अपारदर्शी बन गया है. केंद्र सरकार के एक मंत्री ने मीडिया को प्रेस्टीट्यूट कहा, तो मीडिया बहुत गुस्सा हुआ. मीडिया आम आदमी पार्टी के सदस्यों को आपटार्ड कहता है. यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि यह शब्द कहां से आया है. अगर मीडिया इस तरह के शब्द का इस्तेमाल दूसरों के लिए करता है, तो उसे खुद भी ऐसे शब्दों के लिए तैयार रहना चाहिए.
मैं समझता हूं कि मीडिया को अपने लिए कुछ मानक स्थापित करने चाहिए, जो उसकी नीति, उसके कंटेंट, तथ्यों और कार्यान्वयन से जुड़े होने चाहिए. किसी की शैक्षणिक योग्यता जैसी वजह से या अन्य छोटे मुद्दों के लिए सरकार का उपहास करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. चाहे फिर स्मृति ईरानी हों या आप सरकार के मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर. मैं नहीं समझता कि शैक्षिक योग्यता एक सांसद या मंत्री के रूप में उनके प्रदर्शन के लिए प्रासंगिकता रखती है. एक ग़रीब देश में शैक्षिक योग्यता एक पैमाना नहीं हो सकती, अन्यथा केवल अमीर लोगों का ही देश पर नियंत्रण रहेगा. फिर यह एक बनाना रिपब्लिक हो जाएगा. कई ग़रीब एवं अर्द्धशिक्षित लोगों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. मीडिया को समझना चाहिए कि एक नेता के लिए क्या गुण हों, क्या योग्यता हो, एक नेता से आपको क्या चाहिए? क्या आप यह चाहते हैं कि स़िर्फ डिग्रीधारी ही सांसद या मंत्री बनें? क्या आप भू-मालिकों या पूंजीपतियों को सांसद-मंत्री बनते देखना चाहते हैं?
हमारे देश के संस्थापकों ने तो ऐसा नहीं चाहा था. उन्होंने तो स़िर्फ यह सोचा था कि लोगों को नैतिक एवं दिमागी रूप से स्वस्थ होना चाहिए, नीयत सा़फ होनी चाहिए और देश सेवा का जज्बा होना चाहिए. इसका मतलब था कि विधायिका, सरकार में शामिल होने के लिए दरवाजा हर किसी के लिए खुला हुआ है. यदि आप शिक्षित नहीं हैं, तो भी आप का स्वागत है. अब आप इस सबको बदलना चाहते हैं. गंभीर बहस की जगह मीडिया उन कुछ लोगों के खिला़फ प्रोपेगेंडा चला रहा है, जो किसी वजह से शैक्षणिक योग्यता हासिल नहीं कर सके. मैं यह याद नहीं दिलाना चाहता कि दुनिया में धर्मों की स्थापना करने वाले दुनिया के सबसे बड़े लोग कभी कॉलेज नहीं गए. न गुरु नानक, न वेद व्यास, न पैगंबर मुहम्मद और न हिंदू शास्त्रों को लिखने वाले लोग. तो क्या हुआ? इन लोगों ने ऐसा कुछ लिखा, जो सदियों से चला आ रहा है. शैक्षिक योग्यता प्रतिभा या सफलता निर्धारित करने वाला मापदंड नहीं हो सकती. इसे जितनी जल्दी हम समझ सकें, उतना ही अच्छा होगा.